जनमत-संग्रह प्रत्यक्ष लोकतंत्र का महत्त्वपूर्ण उपकरण है। जनमत संग्रह एक प्रत्यक्ष मतदान है, जिसके जरिये एक क्षेत्र के सभी लोगों से एक प्रस्ताव को स्वीकार या अस्वीकार करने के लिये पूछा जाता है। इसमें नागरिकों को राजनीतिक प्रतिनिधियों की बजाय विशिष्ट और महत्वपूर्ण मुद्दों पर सीधे वोट देने पड़ते हैं।
इसे विशेष रूप से आधुनिक राष्ट्रों में एक बेहतर लोकतांत्रिक साधन माना जाता है, क्योंकि यहाँ निर्णय प्रक्रिया में लोगों की भागीदारी का विशेष महत्त्व है। ब्रेक्सिट पर जनमत, स्कॉटलैंड के यूनाइटेड किंगडम में बने रहने के लिये हुए जनमत तथा विश्व में कई अन्य जगहों पर इस उपकरण की स्वीकार्यता ने भारत में भी अपनी उपयुक्तता पर बहस को जन्म दे दिया है।
लाभ
⇰ यह वास्तविक लोकतंत्र का एक रूप है, क्योंकि इससे शक्ति का हस्तांतरण सीधे आम लोगों की तरफ होता है।
⇰ वे कठिन विधायी विकल्पों को वैधता प्रदान करते हैं, क्योंकि निर्णयकर्त्ताओं के लिये अलोकप्रिय विकल्प का चयन करना जोखिम भरा होता है।
⇰ विभिन्न मुद्दों को लेकर आम लोगों के बीच बढ़ती हताशा कभी-कभी विरोध-प्रदर्शनों, हड़तालों और कई बार हिंसा के रूप में अभिव्यक्त होती है। जनमत की प्रक्रिया ऐसे मुद्दों के शांतिपूर्ण हल को सुनिश्चित करती है।
हानि
⇰ बहुमत की निरंकुशता- स्विटज़रलैंड में 2009 में एक मस्जिद के निर्माण को इस्लामी आक्रमण समझकर वहाँ की जनता ने जनमत संग्रह द्वारा नकार दिया था।
⇰ यह जटिल मुद्दों को केवल ‘हाँ’ या ‘न’ तक सीमित कर देता है। यह लोकप्रिय भावनाओं द्वारा संचारित होने वाली प्रक्रिया है।
⇰ कई बार लोकप्रिय भावनाएँ महत्त्वपूर्ण कानूनों के खिलाफ हो सकती हैं, जैसे- नस्लीय भेदभाव के खिलाफ कानून बनाने और मृत्यदंड को समाप्त करने।
भारतीय संविधान में जनमत-संग्रह का कोई प्रावधान नहीं, लेकिन इसका यह आशय नहीं कि सरकार किसी संवेदनशील मुद्दे पर जनता की राय न ले सके। ब्रिटेन इसका ज्वलंत उदाहरण है। ब्रिटिश संविधान में भी जनमत-संग्रह का कोई प्रावधान नहीं, लेकिन हेराल्ड विल्सन सरकार ने 1975 में ब्रिटेन में पहला जनमत-संग्रह इस बात पर करवाया कि ब्रिटेन को यूरोपियन इकॉनमिक कम्युनिटी में रहना है या नहीं।
इसकी स्वीकार्यता भारत में भी नागरिकों को सशक्त बनाएगी, क्योंकि यह उनकी पसंद के विकल्प अपनाने के लिये एक मंच प्रदान करता है। यह देश तथा नागरिकों को प्रभावित करने वाले महत्त्वपूर्ण राष्ट्रीय मुद्दों के बारे में आम जनता को अधिक जागरूक बनाता है।
इसे और प्रभावी बनाने के लिये एक प्रक्रिया विकसित की जा सकती है, जिसमें जनमत के इस उपकरण को केवल चयनित बिलों और अधिनियमों पर ही मत देने के लिये सीमित किये जाने का प्रावधान किया जा सकता है।
उदाहरण- सार्वजनिक सेवाओं का लाभ उठाने के लिये आधार संख्या को अनिवार्य बनाने के मुद्दे पर।
भारतीय परिप्रेक्ष्य में संघ, राज्य या स्थानीय सरकारों को किसी विषय पर जनमत-संग्रह कराने की बाध्यता तो नहीं, लेकिन यदि कोई सरकार किसी विषय पर दलगत दृष्टिकोण से अलग हटकर जनता की राय जानना चाहे तो उसकी कोई मनाही भी नहीं है।