Monday 31 July 2017

इबोला वायरस क्या है, कैसे फैलता है, वायरस के लक्षण क्या हैं, कांगो इबोला वायरस मुक्त घोषित


इबोला वायरस रोग (Ebola Virus Disease), जिसे पहले ‘इबोला रक्तस्रावी बुखार’ (Ebola Haemorrhagic Fever) कहा जाता था, एक घातक बीमारी है। इस बीमारी का कारण फाइलोवायरस परिवार (Filovirus Family) का सदस्य इबोला वायरस है। इबोला के संक्रमण का पहला मामला 40 साल पहले सामने आया था। उसके बाद ये बीमारी कई बार सामने आ चुकी है। लेकिन जानकारों का कहना है कि इस बार का इबोला संक्रमण सबसे खतरनाक है। साल 1976 में अफ्रीका में पहली बार इबोला संक्रमण का पता चला था। सूडान के मुजिारा और कांगो का इबोलागिनी में एक साथ इबोला संक्रमण फैला था। कांगो की ही इबोला नदी के नाम पर इस वायरस का नाम इबोला पड़ गया। तब से अब तक अफ्रीका में 15 बार इबोला संक्रमण फैल चुका है। हर बार कुछ तय सावधानियाँ और तौर-तरीके अपना कर ईबोला को महमारी बनने से रोकने में सफलता पाई जा चुकी है।
विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक, फ्रूट बैट यानी चमगादड़ इबोला वायरस का प्राथमिक स्रोत है। इबोला वायरस 2 से 21 दिन में शरीर में पूरी तरह फैल जाता है। इसके संक्रमण से कोशिकाओं से साइटोकाइन प्रोटीन बाहर आने लगता है। कोशिकाएं नसों को छोड़ने लगती हैं और उससे खून आने लगता है।
पसीने से संक्रमण:- इबोला एक संक्रामक रोग है, इसीलिए इबोला के मरीज को सबसे अलग रखा जाता है लेकिन यह सांस के जरिए नहीं फैल सकता, इसका संक्रमण तभी होता है यदि कोई व्यक्ति मरीज से सीधे संपर्क में आए। मिसाल के तौर पर मरीज के पसीने से यह वायरस फैल सकता है। मरीज की मौत के बाद भी वायरस सक्रिय रहता हैअस्पतालों में इसके फैलने की सबसे बड़ी वजह यह है कि मरीज की मौत के बाद जब उसके रिश्तेदार वहाँ पहुँचते हैं तो अंतिम संस्कार से पहले लाश को छूते हैं संक्रमण के लिए यह काफी है। जानवरों के जरिए भी संक्रमण होता है। चमगादड़ों को इबोला की सबसे बड़ी वजहों में से एक माना गया है। 
बीमारी के लक्षण:- इबोला वायरस के शरीर में प्रवेश करने के दो से 21 दिन के बीच मरीज कमजोर होने लगता है बुखार आता है, लगातार सरदर्द और मांसपेशियों के दर्द की शिकायत रहती है भूख मर जाती है, पेट में दर्द रहता है, चक्कर आने लगते हैं और उल्टी दस्त भी होते हैं बहुत तेज बुखार के बाद रक्तस्राव और खून की उल्टियां भी शुरू हो जाती हैं आंतड़ियों, स्प्लीन यानि तिल्ली और फेंफड़ों में बीमारी फैल जाने के बाद मरीज की मौत हो जाती है। इबोला वायरस के खिलाफ वैज्ञानिक अब तक कोई कारगर टीका नहीं बना पाए हैं और ना ही कोई इसे खत्म करने के लिए बाजार में कोई दवा उपलब्ध हैइसकी रोकथाम का केवल एक ही तरीका है, जागरूकता विश्व स्वास्थ्य संगठन की कोशिश है कि लोगों को समझाया जा सके कि इबोला के मामलों को दर्ज कराना कितना जरूरी है
मई, 2017 में कांगो लोकतांत्रिक गणराज्य में इबोला वायरस रोग का प्रकोप होने के पश्चात हाल ही में विश्व स्वास्थ्य संगठन ने इस देश को इबोला मुक्त घोषित किया।
  • 2 जुलाई, 2017 को विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा कांगो लोकतांत्रिक गणराज्य (DRC) को इबोला वायरस रोग (EVD) के प्रकोप से मुक्त घोषित किया गया।
  • यह घोषणा इबोला वायरस रोग से पीड़ित अंतिम व्यक्ति के दूसरे नकारात्मक परीक्षण के 42 दिन बाद की गई।
  • उल्लेखनीय है कि मई, 2017 में विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा कांगो लोकतांत्रिक गणराज्य के ‘बैस-यूले’ (Bas-Uele) प्रांत में इबोला वायरस रोग का प्रकोप घोषित किया गया था।
  • वर्ष 1976 में कांगो लोकतांत्रिक गणराज्य में वायरस की खोज के पश्चात यह 8वां इबोला वायरस रोग का प्रकोप है।
  • इसके पहले इस देश में वर्ष 1976-77, 1995, 2007, 2008-09, 2012 एवं 2014 में इबोला वायरस रोग प्रकोप हुआ था।
  • वर्ष 2014 में कांगो लोकतांत्रिक गणराज्य के इक्वाएटर (Equateur) प्रांत में इबोला वायरस रोग का प्रकोप हुआ था जिसमें 49 लोगों की मृत्यु हुई।
  • वर्ष 2017 के इबोला वायरस रोग के प्रकोप से देश में 4 लोगों की मृत्यु हुई।
  • गौरतलब है कि वर्ष 2013 में पश्चिम अफ्रीका (लाइबेरिया, गिनी एवं सिएरा लियोन) में इबोला वायरस रोग का प्रकोप हुआ था जिसमें 11,300 लोगों की मृत्यु हुई थी और अनुमानित 28,600 लोग संक्रमित हुए थे।
  • इबोला वायरस का संक्रमण संक्रमित पशुओं या संक्रमित मनुष्यों के शारीरिक तरल पदार्थों के संपर्क में आने से होता है।
  • इबोला वायरस रोग के लक्षण भिन्न-भिन्न है जिसमें शुरुआती चरण में अचानक बुखार, तीव्र कमजोरी, मांसपेशियों में दर्द, सिरदर्द और गले में खराबी सामान्य हैं।
  • विशिष्ट संक्रमण रोकथाम एवं नियंत्रण उपायों के माध्यम से लोग स्वयं को इबोला वायरस संक्रमण से बचा सकते हैं।
  • एक प्रायोगिक इबोला वैक्सीन ‘RVSV-ZEBOV’ को घातक इबोला ‘वायरस के खिलाफ अत्यधिक सुरक्षात्मक पाया गया है।
  • इस वैक्सीन का परीक्षण वर्ष 2015 में गिनी (Guinea) में विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा किया गया था।

विश्व का सबसे बड़ा वायुयान


विज्ञान और तकनीकी के क्षेत्र में नए आविष्कारों ने लोगों की दैनिक जीवन शैली को आधुनिक और उन्नत बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। वर्तमान में विज्ञान के बढ़ते चहुंओर विकास के कारण मानव दुनिया के प्रत्येक क्षेत्र में अग्रसर दिखाई दे रहा है। मानव, विज्ञान की सहायता से प्रत्येक वस्तु को अपने काबू में करता चला जा रहा है। आधुनिक वैज्ञानिक आविष्कारों की सहायता से हम ऊंचे आसमान में उड़ सकते हैं और गहरे पानी में सांस भी ले सकते हैं। किसी भी देश की अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देने और लोगों के जीवन को बेहतर बनाने के लिए, नवीनतम ज्ञान, प्रौद्योगिकी अभियंता, विज्ञान और अभियांत्रिकी (Engineering) आवश्यक मौलिक वस्तुएं हैं। विज्ञान और प्रौद्योगिकी (Science and Technology) के अभाव में एक देश पिछड़ जाता है और उसके विकसित होने की संभावनाएं कम-से-कम हो सकती हैं। यदि हम तकनीकियों की मदद नहीं लेते; जैसे कंप्यूटर, इंटरनेट, विद्युत आदि तथा व्यापक रूप में वायुयान, अंतरिक्षयान, संचार उपग्रह, सैटेलाइट आदि, तो हम भविष्य में कभी भी आर्थिक रूप से मजबूत नहीं होंगे और सदैव पिछड़े हुए ही रहेंगे यहां तक कि हम इस प्रतियोगी और तकनीकी संसार में जीवित भी नहीं रह सकते हैं।
आविष्कारों के इसी क्रम में ब्रिटिश कंपनी ‘हाइब्रिड एयर ह्वीकल’ (Hybrid Air Vechicle : HAV) द्वारा निर्मित ‘एयरलैंडर 10’ वायुयान को 180 मिनट की उड़ान द्वारा संभालने और उसके उतरने की उन्नत तकनीक का तीसरा सफल परीक्षण किया गया। इसमें विमानों, हेलीकॉप्टरों तथा वायुयानों की सम्मिलित तकनीक शामिल है। हीलियम से भरा यह वायुयान व्यावसायिक अनुप्रयोग से केवल एक कदम की दूरी पर है।
  • ‘एयरलैंडर 10’ नामक हाइब्रिड वायुयान में विमानों, हेलीकॉप्टरों तथा वायुयानों की सम्मिलित तकनीक शामिल है, इसे 5 दिन तक 6100 मीटर (20000 फीट) की ऊंचाई पर उड़ान भरने के लिहाज से उन्नत किया गया है।
  • कंपनी का दावा है कि सभी परीक्षणों के सफल हो जाने के पश्चात इसका प्रयोग विभिन्न उद्देश्यों जैसे-निगरानी, संचार, सहायता पहुंचाने तथा यात्री विमान हेतु भी किया जा सकता है।
  • 10 मई, 2017 को 180 मिनट की उड़ान द्वारा वायुयान के संभालने और उसके उतरने की उन्नत तकनीक का तृतीय सफल परीक्षण किया गया।
  • 92 मीटर लंबा ‘एयरलैंडर 10’ अंशकालिक विमान है, यह 17 अगस्त, 2016 को अपने दूसरे परीक्षण उड़ान में पूर्वी इंग्लैंड में दुर्घटनाग्रस्त हो गया था।
  • ध्यातव्य है कि ‘एयरलैंडर 10’ प्रथम बार एचवी-304 के रूप में यू.एस. आर्मी द्वारा मल्टी इंटेलिजेंस वाहन कार्यक्रम के तहत परीक्षण किया गया था।
  • इस परियोजना को मूल रूप से अमेरिकी सेना द्वारा वित्त-पोषित किया गया, परंतु अमेरिका के हटने के पश्चात ब्रिटेन इसका मुख्य निवेशक बन गया।
  • ‘एयरलैंडर 10’ को बनाने वाली कंपनी का नाम ‘हाइब्रिड एयर ह्वीकल’ (Hybrid Air vehicle : HAV) है।
  • विंग विमान, हेलीकॉप्टर और वायुयान प्रौद्योगिकी घटकों को समाहित करने की वजह से इसे संकर (Hybrid) भी कहा जाता है।
  • 92 मीटर (302 फीट) लंबाई के साथ ‘एयरलैंडर 10’ विश्व का सबसे बड़ा वायुयान है।
    कंपनी का दावा है कि शीघ्र ही एयरलैंडर 50 विकसित कर लिया जाएगा, जो 50 टन का भार वहन करने में सक्षम होगा।

Sunday 30 July 2017

Current Affairs in Hindi (भाग-54)


  • रिलायंस डिफेन्स एंड इंजीनियरिंग लिमिटेड द्वारा भारतीय नेवी के लिए हाल ही में लॉन्च किये गये दो नौसेनिक अपतटीय गश्ती जहाजों के नाम- शचि एवं श्रुति
  • जीएसटी काउंसिल पैनल द्वारा राष्ट्रीय मुनाफाखोरी निरोधक प्राधिकरण के गठन के लिए इनकी अध्यक्षता में चयन समिति बनाई गयी है- पी के सिन्हा
  • जिस देश में हाल ही में विश्व का सबसे पुराना इमोजी खोजा गया- तुर्की
  • वह हाईकोर्ट जिसने स्कूलों, कॉलेजों में राष्ट्रीय गीत 'वंदे मातरम' का गायन अनिवार्य किया- मद्रास हाईकोर्ट
  • नीति आयोग के अनुसार भारत की वृद्धि दर चालू वित्त वर्ष में जितने प्रतिशत रहने का अनुमान है- 7.5 प्रतिशत
  • मैडम तुसाद संग्रहालय में जिस अभिनेत्री की मोम की प्रतिमा स्थापित किए जाने की घोषणा की गयी- मधुबाला
  • डिजिटल साक्षरता को बढ़ावा देने हेतु झारखण्ड राज्य सरकार ने जिस अभियान को शुरू करने की घोषणा की- प्रधानमंत्री डिजिटल साक्षरता अभियान
  • सुंदर पिचाई को अल्फाबेट कंपनी का बोर्ड ऑफ डायरेक्टर नियुक्त गया है, अल्फाबेट यह है- गूगल की पेरेंट कंपनी
  • वह संस्था जिसने चाय की पैकेजिंग में स्टेपलर का प्रयोग नहीं किये जाने का निर्देश जारी किया - भारतीय खाद्य सुरक्षा और मानक प्राधिकरण
  • जिसे वित्त मंत्री अरूण जेटली का निजी सचिव नियुक्त किया गया- सौरभ शुक्ला
  • वर्ष 2021 में पहली बार पुरूष विश्व मुक्केबाजी चैंपियनशिप की मेजबानी जो देश करेगा- भारत
  • प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 25 जुलाई 2017 को गुजरात में बाढ़ का हवाई सर्वेक्षण किया उन्होंने बचाव कार्य हेतु जितने करोड़ रुपये की आर्थिक सहायता की घोषणा स्वीकृति प्रदान की- 500 करोड़
  • काठमांडू में एशियाई युवा और जूनियर भारोत्तोलन प्रतियोगिता के पहले दिन खिलाडी तीरपत चौमचेन ने विश्व रिकॉर्ड बनाया, वह जिस देश से सम्बन्धित खिलाडी है- मलेशिया
  • वह स्थान जहां कारगिल विजय दिवस के अवसर पर भारत के रक्षा मंत्री अरुण जेटली ने शहीदों को श्रद्धांजलि अर्पित की- इंडिया गेट
  • वह संस्थान जिसके द्वारा किये गये अध्ययन के अनुसार भारत के ग्रीष्मकालीन मानसून में पिछले 15 वर्षों में मजबूती दर्ज की गयी- मेसाचुसेट्स इंस्टिट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी
  • वह देश जिसने हाल ही में विश्व बैंक और अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) पर निर्भरता से पूर्ण मुक्ति की घोषणा की- बोलीविया
  • युवा मामलों और खेल क्षेत्र में सहयोग पर भारत और जिस देश के बीच हुए समझौते के बारे में कैबिनेट को सूचित किया गया है- फिलीस्तीन
  • इन्हें हाल ही में नेपाल के मुख्य न्यायाधीश के रूप में नियुक्त किया गया- गोपाल प्रसाद पराजुली
  • जिस देश के तैराक एडम पीटी ने हाल ही में वर्ल्ड एक्वाटिक्स चैंपियनशिप की 50 मीटर ब्रेस्टस्ट्रोक स्पर्धा में अपना ही विश्व रिकॉर्ड तोड़ दिया- ब्रिटेन
  • बिल गेट्स को पीछे छोड़ते हुए हाल ही में यह व्यक्ति विश्व के सबसे अमीर व्यक्ति बने - जेफ बेजोस
  • हाल ही में जिस यूनिवर्सिटी के एक शोध ने खुलासा किया है कि बीते 65 सालों में मानव ने लगभग 8.3 अरब मीट्रिक टन प्लास्टिक का उत्पादन किया है- जार्जिया यूनिवर्सिटी
  • एशिया फुटबॉल परिसंघ (एएफसी) की टूर्नामेंट समिति ने इंडियन सुपर लीग (आईएसएल) को जिस कप का स्थान लेने की मंजूरी दे दी है- फेडेरशन कप
  • पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय ने हाल ही में 11वां स्थापना दिवस मनाया, जिस केन्द्रीय मंत्री ने नई दिल्ली में स्थापना दिवस का उद्घाटन किया- केन्द्रीय जलवायु परिवर्तन मंत्री डॉ. हर्षवर्धन
  • केंद्र सरकार ने भारतीय मूल के विदेशी नागरिकों से विवाहोपरांत सामने आने वाली कठिनाइयों का पता लगाने हेतु विशेषज्ञ समिति गठित की इसे जिसे सौंपा गया है- एनआरआई आयोग, पंजाब के पूर्व अध्यक्ष न्यायमूर्ति अरविन्द कुमार गोयल
  • लोगों को दहेज उत्पीड़न के झूठे मुकदमों से बचाने हेतु सर्वोच्च न्यायलय ने केंद्र सरकार को यह दिशा निर्देश जारी किए- फैमिली वेलफेयर कमिटी बनाने
  • पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नवाज शरीफ ने अपने पद से त्यागपत्र दे दिया, प्रधानमंत्री नवाज शरीफ पर यह आरोप थे- पनामा केस और भ्रष्ट्राचार
  • केंद्र सरकार ने सामुद्रिक गतिविधियों से सम्बन्धित सभी जानकारी मछुआरों और अन्य सम्बंधित लोगों तक पहुँचाने हेतु एकीकृत सूचना प्रसार प्रणाली ऐप का शुभारम्भ किया, इस ऐप का नाम यह है- सागर वाणी
  • वह सरकारी थिंक टैंक जिसने हाल ही में भारत में छह अत्याधुनिक परिवहन प्रणाली को मंजूरी प्रदान की – नीति भवन
  • वह अपराध जिसकी शिकायत करने पर सीधे गिरफ्तारी सुप्रीम कोर्ट ने रोक लगाने का आदेश दिया – दहेज उत्पीड़न

कोयला


कोयला
कोयला एक कार्बनिक पदार्थ है जिसको ईंधन के रूप में प्रयोग में लाया जाता है। साधारणतया लकड़ी के अंगारों को बुझाने से बच रहे जले हुए अंश को कोयला कहा जाता है। उस खनिज पदार्थ को भी कोयला कहते हैं जो संसार के अनेक स्थलों पर खानों से निकाला जाता है। कोयला एक तरफ जहाँ शक्ति प्राप्त करने अथवा औद्योगिक ईधन का एक महात्तवपूर्ण साधन है, वहीं विभिन्न उद्योगों के लिए कच्चे माल का स्रोत भी है। एक अनुमान के अनुसार भारत में 19689 करोड़ टन कोयला निकालने का प्रथम प्रयास 1774 में झारखण्ड के रानीगंज कोयला क्षेत्र में दो अंग्रेजों सनमर तथा हेल्थीली ने किया एवं उसके बाद 1814 में इसी क्षेत्र में रूर्पट जोन्स की रिर्पोट मिलने पर कोयले का उत्खनन प्रारम्भ किया गया।
कोयले के प्रकार
कार्बन की मात्रा के आधार पर कोयला चार प्रकार का होता हैं -
पीट कोयला:- इसमें कार्बन की मात्रा 50% से 60% तक होती है। इसे जलाने पर अधिक राख एवं धुआँ निकलता है। यह सबसे निम्न कोटि का कोयला है।
लिग्नाइट कोयला:- कोयला इसमें कार्बन की मात्रा 65% से 70% तक होती है। इसका रंग भूरा होता है, इसमें जलवाष्प की मात्रा अधिक होती है।
बिटुमिनस कोयला:- इसे मुलायम कोयला भी कहा जाता है। इसका उपयोग घरेलू कार्यों में होता है। इसमें कर्बन की मात्रा 70% से 85% तक होती है।
एन्थ्रासाइट कोयला:- यह कोयले की सबसे उत्तम कोटि है। इसमें कार्बन की मात्रा 85% से भी अधिक रहती है।
कोयले के विभिन्न स्तर समूह
भारत में कोयला मुख्यत: दो विभिन्न युगों के स्तर समूहों में मिलता है: पहला गोंडवाना युग में तथा दूसरा तृतीय कल्प में। कोयला उत्खनन में वर्तमान में भारत का स्थान चीन और अमेरिका के बाद विश्व में तीसरा है और यहाँ पर लगभग 136 किग्रा. प्रति व्यक्ति कोयला निकाला जाता है, जो औसत से कम है। भारत में प्रचीन काल की गोण्डवाना शैलों में कुल कोयले का 98 प्रतिशत भाग पाया जाता है जबकि तृतीयक अथवा टर्शियर युगीन कोयला मात्र 2 प्रतिशत है।
गोंडवाना युगीन कोयला
गोंडवाना कोयला उच्च श्रेणी का होता है। इसमें राख की मात्रा अल्प तथा तापोत्पादक शक्ति अधिक होती है। भारत में गोंडवाना युगीन और पूर्वोत्तर के कोयला भंडारों के सभी प्रकार का लगभग 2,0624 खरब टन कोयला है। गोण्डवान युगीन कोयला दक्षिण के पठारी भाग से प्राप्त होता है एवं इसकी आयु 25 करोड़ वर्ष निर्धारित की गयी है। गोंडवाना युग के प्रमुख क्षेत्र झरिया (बिहार) तथा रानीगंज (पश्चिम बंगाल) में स्थित है। अन्य प्रमुख क्षेत्रों में बोकारो, गिरिडीह, करनपुरा, पेंचघाटी, उमरिया, सोहागपुर, सिगरेनी, कोठगुदेम आदि उल्लेखनीय हैं।
टर्शियर युगीन कोयला
टर्शियर कोयला घटिया श्रेणी का होता है। इसमें गंधक की प्रचुरता होने के कारण यह कतिपय उद्योगों में प्रयुक्त नहीं किया जा सकता। टर्शियर युगीन कोयला उत्तर-पूर्वी राज्यों (पश्चिम बंगाल, असम, मेघालय, अरुणाचल प्रदेश तथा नागालैण्ड), जम्मू कश्मीर, राजस्थान एवं कुछ मात्रा में तमिलनाडु राज्य में पाया जाता है। इसकी अनुमानित आयु 1.5 से 6.0 करोड़ वर्ष के बीच है। इसके सबसे प्रमुख क्षेत्र हैं- माकूम क्षेत्र (असम), नेवेली (तमिलनाडु, लिन्गाइट कोयले कक लिए प्रसिद्ध) तथा पलाना (राजस्थान)।
उत्पादन
भारत के कुल कोयला उत्पादन का सर्वाधिक भाग गोण्डवाना युगीन चट्टानों में मिलता है, जिसका विस्तार 90650 वर्ग किमी. क्षेत्र पर है। इसका सबसे प्रमुख क्षेत्र पश्चिम बंगाल, झारखण्ड, तथा उड़ीसा राज्यों में फैला हैं, जहाँ से कुल उत्पादन का 76 प्रतिशत कोयला प्राप्त किया जाता है, जबकि 17 प्रतिशत कोयला मध्य प्रदेश व छत्तीसगढ़ तथा 6 प्रतिशत कोयला आन्ध्र प्रदेश में मिलता है। गोण्डवान युगीन कोयला मुख्यतः बिटुमिनस प्रकार का है, जिसका उपयोग कोकिंग कोयला बनाकर देश के लौह- इस्पात के कारखानों में किया जाता है। प्रायद्वीपीय भारत की नदी-घाटियाँ कोयला के प्रमुख प्राप्ति स्थल हैं, जिनमें दामोदर नदी घाटी, सोन-महानदी, ब्राह्नाणी नदी घटी, वर्धा-गोदावरी-इन्द्रावती नदी तथा कोयला-पंच-कान्हन नदी घाटी प्रमुख हैं।
प्राप्ति स्थान
झारखण्ड राज्य में झारिया, बोकारो, गिरिडीह, रामगढ़, उत्तरी एवं दक्षिणी करनपुरा, औरंगा, हुटार, डाल्टगंज आदि तथा बिहार के ललमटिया आदि क्षेत्रों में उत्तम कोटि का बिटुमिनस कोयला निकाला जाता है। झारिया कोयला क्षेत्र 450 वर्ग किमी. द्वोत्र में विस्तृत है एवं यहाँ से झारखण्ड राज्य का लगभग 50 प्रतिशत कोयला निकाला जाता है। गिरिडीह कोयला क्षेत्र का क्षेत्रफल 2.8 वर्ग किमी हैं। यहाँ बराकर श्रेणी की शैंलों में कोयला मिलता है। बोकारो क्षेत्र झारिया के पश्चिमी में स्थित है एवं इसका क्षेत्रफल 674 वर्ग किमी है। यहाँ पर 305 मी. की गहराई तक 53 करोड़ टन कोयला होने का अनुमान लगाया गया है। बिहार का करनपुरा क्षेत्र ऊपरी दामोदर घाटी से 3 किमी पश्चिमी में स्थित है और इसका कुल क्षेत्रफल 1,424 वर्ग किमी है। यहाँ मिलने वाली कोयला परतें 20 से 30 मी. मोटी हैं।
पश्चिम बंगाल राज्य का रानीगंज कोयला क्षेत्र ऊपरी दामोदर नदी घाटी में है, जो भारत का सबसे महत्त्वपूर्ण एवं बड़ा कोयला क्षेत्र है। इसका कुल क्षेत्रफल लगभग 1,500 वर्ग किमी है। इसमें बराकर तथा रानीगंज श्रेणियों का उत्तम कोयला निकाला जाता है। इस क्षेत्र से भारत का लगभग 35 प्रतिशत कोयला प्राप्त होता है। अरुणाचल प्रदेश के नामचिक-नामकुफ क्षेत्र में भी कोयला खान स्थित है।
सोनाघाटी कोयला क्षेत्र का विस्तार मध्य प्रदेशतथा उड़ीसा राज्यों में फैला हैं। यहाँ के तातापानी - रामकोला कोयला क्षेत्र को छत्तीसगढ़ कोयला क्षेत्र के नाम से जाना जाता है। उड़ीसा का तलचर कोयला ब्राह्नाणी नदी घाटी में फैला है, जहाँ की करहरवाड़ी कोयला परत मशहूर है। इसके अतिरिक्त महाराष्ट्र की गोदावरी एवं वर्धा नदी घाटियों तथा सतपुड़ा पर्वतीय क्षेत्र में भी कोयले का उत्खनन किया जाता है। 2007-08 के दौरान देश में कुल 4911 लाख टन कोयले का उत्पादन हुआ।

लौह अयस्क


लौह अयस्क चट्टानें एवं खनिज हैं जिनसे धात्विक लोहे का आर्थिक निष्कर्षण किया जा सकता है। भारत में कुड़प्पा तथा धारवाड़ युग की जलीय (अवसादी) एवं आग्नेय शैलों में लौह अयस्क की प्राप्ति होती हैं। इनमें मैग्नेटाइट, हैमेटाइट, सिडेराइट, लिमोनाइट तथा लैटराइट अयस्क प्रमुख हैं। भारत में सर्वाधिक शुद्धता वाला मैग्नेटाइट अयस्क (72 प्रतिशत शुद्धता) पर्याप्त मात्रा में पाया जाता है। भारत में निकाले जा सकने योग्य लौह अयस्क का कुल भंडार 12 अरब 74 करोड़ 50 लाख टन हैं, जिसमें लगभग 9 अरब 60 करोड़ 20 लाख टन हैमेटाइट लौह अयस्क का और 3 अरब 14 करोड़ 30 लाख टन मैग्नेटाइट लौह अयस्क सम्मिलित है। इस प्रकार देश में उपलब्ध लौह अयस्क में से 85 प्रतिशत हैमेटाइट, 8 प्रतिशत मैग्नेटाइट और 7 प्रतिशत अन्य किस्म का लोहा पाया जाता है। लौह-अयस्क का निक्षेपण कुछ विशेष पेटियों में हुआ हैं, जो इस प्रकार है-
झारखण्ड-उड़ीसा पेटी
मध्य प्रदेश- महाराष्ट्र पेटी
कर्नाटक- आन्ध्र प्रदेश पेटी
गोवा-पश्चिमी महाराष्ट्र पेटी
झारखण्ड-उड़ीसा पेटी

झारखण्ड- उड़ीसा पेटी की बरमजादा समूह तथा गुरुमहिसानी-बादाम पहाड़ मेखला में हैमटाइट अयस्क की प्राप्ति होती हैं। उड़ीसा के मयूरभंज ज़िले में गुरुमहिसानी, सुलेपात तथा बादाम पहाड़ क्षेत्र की कायान्तरित शैलों एवं झारखण्ड के सिंहभूम ज़िले तथा उड़ीसा के क्योंझर एवं सुन्दरगढ़ ज़िलों में फैले बरमजादा समूह प्रमुख अयस्क क्षेत्र हैं। सिंहभूम ज़िले के बुधुबुरु, कोटामारी बुरू, रजोरी बुरू, पलामू ज़िले के डाल्टेनगंज आदि लौह अयस्क के प्रमुख क्षेत्र हैं।
मध्य प्रदेश- महाराष्ट्र पेटी
छत्तीसगढ़ के बैलाडिया क्षेत्र में भी हैमटाइट अयस्क के 14 निक्षेपों का पता लगाया जाता है। यह क्षेत्र बस्तर ज़िले में स्थित हैं। दुर्ग (डल्लीराजहरा), रायगढ़, बिलासपुर, सरगुजा, बालाघाट आदि में भी हैमटाइट प्रकार के लौह-अयस्क मिलते हैं। पूर्वी महाराष्ट्र के चन्द्रपुर ज़िले में भी लौह अयस्क के निक्षेप मिले हैं। यहाँ के अयस्कों में लोहांश 66 प्रतिशत तक है। कर्नाटक राज्य के बेलारी-हास्पेट क्षेत्र में स्थित सन्दूर पहाड़ियाँ भी लौह अयस्क के प्रमुख क्षेत्र के रूप में गिनी जाती है। यहाँ चिकमंगलूर ज़िले की बाबाबदून पहाड़ियों में भी हैमेटाइट अयस्क पाया जाता है।
गोवा-पश्चिमी महाराष्ट्र पेटी
गोवा-पश्चिमी महाराष्ट्र क्षेत्र में उत्तम किस्म का लोहा अदुलमाले तथा उसगाँव के बीच मिलता है। आन्ध्र प्रदेश में खम्माम, अनन्तपुर, कृष्णा, कुडप्पा तथा नेल्लोर ज़िलों में लौह अयस्क के निक्षेप पाये जाते हैं। हैमटाइट अयस्क की कुछ मात्रा राजस्थान, हिमाचल प्रदेश, असम, पंजाब, उत्तर प्रदेश तथा जम्मू कश्मीर राज्यों में भी मिलती है।
भारत में लौह अयस्क के क्षेत्र
भारत में लौह अयस्क उत्पादन में गोवा प्रथम स्थान रखता है। द्वितीय एवं तृतीय स्थान क्रमशः मध्य प्रदेश एवं कर्नाटक का है। इसके अलावा लौह-अयस्क का उत्पादन झारखंड, बिहार, उड़ीसा, तमिलनाडु, इत्यादि प्रदेशों में भी होता है। 2006-07 में देश में कुल 1772.96 लाख टन लौह अयस्क का उत्पादन हुआ। विश्व लौह व्यापार में भारत का हिस्सा 8.2 प्रतिशत है। भारत से सर्वाधिक लौह अयस्क निर्यात जापान को किया जाता है।
मैग्नेटाइट अयस्क के प्रमुख क्षेत्र
कर्नाटक (कुद्रेमुख), तमिलनाडु (सलेम, उत्तरी अर्काट, नीलगिरि, मालनद, देवला आदि), आन्ध्र प्रदेश (आदिलाबाद, करीमनगर, निजामाबाद), केरल (कोझीकोड), हरियाणा (महेन्द्रगढ़), झारखण्ड (सिंहभूमि) तथा उड़ीसा, महाराष्ट्र एवं गोवा।
लिमोनाइट लौह अयस्क के क्षेत्र
लिमोनाइट लौह अयस्क पश्चिम बंगाल के बीरभूम ज़िले की जामुदा तथा महादेव श्रेणियों में पाया जाता है। हिमाचल प्रदेश में मण्डी क्षेत्र, जम्मू कश्मीर के जम्मू तथा ऊधमपुर ज़िले, उत्तर प्रदेश के मढ़वाल, अल्मोड़ा तथा नैनीताल ज़िले एवं गुजरात के नवानगर, पोरबन्दर, जूनागढ़, भावनगर, बड़ोदरा एवं खाण्डेश्वर की खानों से भी लौह अयस्क का उत्खनन किया जाता है।

Saturday 29 July 2017

गीता के नैतिक दर्शन में उल्लेखित ‘निष्काम कर्मयोग’ का सिद्धांत सिविल सेवकों के लिये एक श्रेष्ठ मार्गदर्शक का कार्य कर सकता है। विवेचना कीजिये।


वेदों और उपनिषदों में जिन नैतिक और दार्शनिक सिद्धांतों का प्रतिपादन किया गया है, गीता उनमें समन्वय स्थापित करके उनका सारतत्त्व प्रस्तुत करती है। गीता में वर्णव्यवस्था, मानव जीवन के चार आश्रमों तथा पुरूषार्थों, कर्मवाद, पुनर्जन्म, आत्मा की अमरता और ईश्वर की सत्ता को पूर्णरूपेण स्वीकार किया गया है परन्तु गीता में वर्णव्यवस्था को जन्म के आधार पर नहीं बल्कि कर्म के आधार पर स्वीकार किया गया है।
श्री अरविन्द, गांधीजी तथा तिलक जैसे विचारकों का मत है कि गीता में ‘निष्काम कर्म’ को ही सर्वाधिक महत्त्व दिया गया है। गीता में भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को सभी परिस्थितियों में निष्काम कर्म करने की शिक्षा दी है। उनके अनुसार फलाकांक्षा का त्याग करके सफलता-असफलता को समान मानते हुए ही कर्म करना चाहिए। इस ‘निष्काम कर्मयोग’ के अनुसार आचरण करने के लिये यह बहुत आवश्यक है कि मनुष्य अपनी सभी इन्द्रियों को संयमित करे तथा अपने मन पर पूर्ण नियंत्रण रखे। स्वानियंत्रण करने के पश्चात् मनुष्य फलासक्ति के बिना कर्म करे।
वर्तमान में सिविल सेवाओं में तनाव का स्तर ऊँचा है क्योंकि कल्याणकारी राज्य की निरंतर बढ़ती अपेक्षाएँ, गठबंधन की राजनीति के कारण परस्पर विरोधी तथा कठिन दबाव, मीडिया एवं सिविल सोसाइटी की जागरूकता आदि सिविल सेवकों को चारों ओर से घेरे रखती हैं। इन जटिल परिस्थितियों में यदि सिविल सेवक स्वनियंत्रण रख निष्काम भाव से अपने कार्यों का संपादन कानूनों, नियमों, विनियमों एवं अंतरात्मा के निर्देशानुसार करता रहे तो न केवल उसे चौतरफा तनावों से मुक्ति मिलेगी बल्कि शांति, संतोष एवं परिणाम भी प्राप्त होंगे। एक सिविल सेवक द्वारा निजी हितों को त्यागकर, निष्पक्षतापूर्वक फैसले लेकर तथा सत्यनिष्ठा के साथ अपने कर्त्तव्य का निर्वहन करना ही ‘निष्काम कर्मयोग’ है।
अतः निःसंदेह गीता का निष्काम कर्मयोग का सिद्धांत सिविल सेवकों के लिये एक श्रेष्ठ मार्गदर्शक का कार्य कर सकता है।

जैन-दर्शन के पाँचों नैतिक सिद्धान्तों की विवेचना कीजिये।


जैन धर्म में निम्नलिखित पाँच नैतिक सिद्धान्तों का उल्लेख मिलता है-
1.किसी भी जीव के साथ हिंसा न करना (अहिंसा)।
2.सदैव सत्य बोलना।
3.चोरी न करना।
4.व्यभिचार से दूर रहना।
5.भौतिक धन-संपत्ति के लिये लालच न करना (अपरिग्रह)।

इन पाँचों नैतिक सिद्धान्तों का पालन गृहस्थ और मुनियों दोनों को करना चाहिये परन्तु मुनियों के लिये नियम ज्यादा कठोर होते है।
जैन-दर्शन में स्पष्ट कहा गया है कि किसी भी जीव को शारीरिक या मानसिक पीड़ा पहुँचाना हिंसा है, जिसे पूरी तरह त्याग देना चाहिये। प्रकृति में सभी जीवों का जीवन समान महत्त्व का है। सत्य के संबंध में भी जैन-दर्शन का दृष्टिकोण सीधा और स्पष्ट है। व्यक्ति को किसी भी परिस्थिति में सत्य से विचलित नहीं होना चाहिये।
हालाँकि जैन-दर्शन ‘स्याद्वाद’ के माध्यम से दूसरे के विचारों की सत्यता में विश्वास के लिये उदारता अपनाने का भी रास्ता दिखाता है।
जैन-दर्शन में चोरी को जघन्य पाप माना है तथा इसके किसी भी तरीके को अपनाना वर्जित समझा गया है। इस दर्शन में यह आदेश भी है कि विवाहित पुरूषों को स्त्रियों पर लोलुप दृष्टि नहीं डालनी चाहिये। उसे उनके साथ आदरपूर्वक व्यवहार करना चाहिये।
ब्रह्मचर्य का यह नियम सभी पुरूषों पर लागू होता है। जैन-दर्शन मनुष्य को अपनी इच्छाओं पर नियंत्रण की शिक्षा भी देता है। मनुष्य को लालची नहीं होना चाहिये तथा धन-संपत्ति के लिये असाधारण प्रेम नहीं पालना चाहिये। अपनी आवश्यकतों को नियंत्रित रख एक सादा व संतोषी जीवन जीना चाहिये।
इस प्रकार हम पाते हैं कि जैन-दर्शन के पाँचों नैतिक सिद्धांत ने केवल व्यक्ति के व्यक्तिगत जीवन को सँवारते हैं बल्कि समाज में आपसी भाईचारा, अहिंसा, सत्य की उपस्थिति व सद्चरित्रता को भी प्रोत्साहित करते हैं।

सुन्दर वन का संरक्षण


सुंदरबन एक विशाल जंगल है जो बंगाल की खाड़ी के तटीय क्षेत्र में स्थित है तथा दुनिया के प्राकृतिक चमत्कारों में से एक माना जाता है। सुंदरबन डेल्टा का निर्माण इस क्षेत्र के प्रमुख तीन नदी-घाटियों द्वारा किया जाता है- पद्मा, मेघना और ब्रह्मपुत्र जो बांग्लादेश के खुलना, सातखरा, बजरहाट, पटुआखी और बरगुना जिलों में फैले हुए हैं। सुंदरबन दुनिया के सदाबहार वनों में और तटीय वातावरण में सबसे बड़ा सदाबहार वन है।
सुंदरबन के कुल क्षेत्रफल में से 10,000 वर्ग किलोमीटर जिसमें 6,017 वर्ग किमी की आबादी बांग्लादेश में है। सन् 1997 में यूनेस्को ने सुंदरबन को यूनेस्को की विश्व-विरासत स्थल के रूप में मान्यता दी थी। बांग्लादेश और भारतीय हिस्सा के बारे में वास्तव में निर्बाध सीमा चिन्ह का एक आसन्न हिस्सा है लेकिन यूनेस्को की ‘विश्व-विरासत सूची’ की सूची को अलग तरह से सूचीबद्ध किया गया है जो कि क्रमशः "सुंदरबन" और "सुंदरबन राष्ट्रीय उद्यान" जैसे नाम दिए गए हैं।
सुंदरबन समुद्री धाराओं से निर्मित दलदलीय क्षेत्र है जहाँ मैंग्रोव वनस्पति जो कि छोटे-छोटे द्वीपसमूहों में फैले हुए हैं। सुंदरबन कुल वन क्षेत्र का 31.1 प्रतिशत है जिसका क्षेत्रफल 1,874 वर्ग किमी है और अधिकतर नदी-तल, बिल, पानी ईत्यादि से भरा हुआ है। सुंदरबन अपने आत्मनिहित रॉयल बंगाल टाइगर के लिए जाना जाता है साथ ही पशुओं की कई और प्रजातियां भी पाई जाती है जिनमें चीतल हिरण, मगरमच्छ और सांप शामिल है। दिनांक 21 मई 1992 को सुंदरबन को रामसर साइट के रूप में मान्यता दी गई थी।

भारतीय सुंदरबन का संरक्षण क्यों महत्वपूर्ण है?
• दुनिया के तीसरे सबसे बड़े संस्पर्शी मैंग्रोव पारिस्थितिकी तंत्र, भारतीय सुंदरबन में वनों के नुकसान की ताजा साक्ष्य को ध्यान में रखते हुए संरक्षित करने के लिए तत्काल प्रयास की आवश्यकता है।
• भारतीय सुंदरबन के अत्यधिक उत्पादकीय वनों का नुकसान औपनिवेशिक युग से देखा जा सकता है जब खेती के उद्देश्य से जंगलों की कटाई को मंजूरी दे दी जाती थी।
• जादवपुर विश्वविद्यालय द्वारा किए गए अध्ययन से यह पता चला है कि 10,000 वर्ग किमी क्षेत्र के भीतर जलवायु परिवर्तन पूरी आबादी के लिए एक बड़ा खतरा बना हुआ है जिसके पूर्व में बांग्लादेश जहाँ लाखों लोगों का भोजन-यापन पानी तथा वन्य उत्पादों पर ही निर्भर करता है।
• इस क्षेत्र के बाघों की एक अनूठी आबादी को भूमि-समुद्र के इंटरफेस के अनुकूल होने और स्थानांतरित करने के लिए मजबूर बाध्य हो रहे हैं जो इस क्षेत्र की विविधता के लिए एक गहरी चिंता का विषय बन चुका है।
• बांध तथा अन्य बैरज के निरंतर निर्माण से द्वीपों के सिकुड़ने और तलछट जैसी समस्याओं के कारण क्षेत्र में पारिस्थितिकी का नुकसान देखा जा सकता है इन अल्पावधि लाभों से नुकसान की भरपाई नहीं की जा सकती है।
• सुंदरबन बड़ी हिमालयी नदियों और उच्च केंद्रित लवणता द्वारा लाए गए ताजे पानी के संगम क्षेत्र के रूप में जाना जाता है तथा इस क्षेत्र के द्वीपों में जैव विविधता का एक क्रूसिबल है जो भारतीय पक्ष में 4.5 मिलियन की आबादी के गुजर-बसर में मदद करता है।
• भीरतीय सरकार को नीदरलैण्ड के मेरिट साईंटिफिक इवैलुएशन के सुझावों पर विचार करना चाहिए तथा वैज्ञानिक योग्यता के आधार पर डाइक की तर्ज पर गड़बड़ी को रोकने के लिए कठोर कदम उठाने चाहिए और उन्हें स्थानिक पौधे और पेड़ों की प्रजातियों से मजबूत प्रदान करने की कोशिश करनी चाहिए जो कि लवणता की स्थिति को बदलने में उपयोगी साबित हो सकती हैं साथ ही साथ स्थानीय आबादी को भी लाभ मिल सकता है।

निषकर्ष
  • सरकार को सुंदरबन डेल्टा क्षेत्र का संरक्षण के लिए तत्काल प्रयास करने की आवश्यकता है क्योंकि इस क्षेत्र में समृद्ध प्राकृतिक संसाधन और विविधता प्रदान करने की क्षमता बहुत है। हालांकि, सुंदरबन के क्षेत्रों को कानूनी रूप से संरक्षित करने का प्रयास शुरुआत से हीं रहा है लेकिन इस क्षेत्र का भविष्य काफी हद तक स्थानीय कार्यों एंव प्रयासों पर निर्भर करेगा जो नदियों के तटीय कटाव को रोकने में मदद करेगा।
  • सरकार को उन नीतियों पर अधिक जोर देना चाहिए जो इस क्षेत्र में अपर्याप्त मानव विकास के कारण प्राकृतिक संसाधनों पर बनाए गए दबावों को दूर कर सकते हैं जो इस क्षेत्र में विविधता के लिए खतरा बना हुआ है। स्थानीय कार्रवाई एंव नीतियों के अलावा सरकार को इस क्षेत्र में इकोटूरिज्म को बढ़ावा देने के लिए हर संभव कोशिश करना चाहिए जो कि जागरूकता बढ़ाने के साथ-साथ धनराशि बटोरने की क्षमता रखता है। इस क्षेत्र को भारत और बांग्लादेश की तरफ से सामूहिक प्रयासों की आवश्यकता है और दोनों देशों को सुंदरबन के संरक्षण और वैश्विक स्तर पर अनूठी पहचान के लिए अंतरराष्ट्रीय जलवायु वित्त सहायता की मांग करनी चाहिए।
  • सुंदरबन क्षेत्र में रहने वोले स्थानीय जनसंख्या जिनकी आर्थिक स्थिति दयनीय है एवज में अपनी जीविका के लिए प्राकृतिक संसाधनों पर हीं निरभर हैं इसलिए यह महत्वपूर्ण होगा कि स्थानीय समुदायों को प्राथमिक आधार पर गरीबी-उनमूलन के प्रयास किये जाने चाहिए। इस क्षेत्र पर जलवायु अनुसंधान वैज्ञानिकों एंव सामाजिक वैज्ञानिकों को भी विशेष ध्यान देने की आवश्यकता है और वे सुंदरबन को सुरक्षित रखने तथा संरक्षण में एक सहकारी भूमिका निभा सकते हैं।

Friday 28 July 2017

भारत में सूखा, बाढ़ एवं पेयजल की अनुपलब्धता जैसी समस्याओं को एक साथ साधने के लिये 'नदी जोड़ो परियोजना' एक रामबाण साबित हो सकती है। समालोचनात्मक मूल्यांकन कीजिये।


भारत सरकार के जल संसाधन मंत्रालय के अंतर्गत राष्ट्रीय जल विकास अभिकरण (NWDA) की इस नदी जोड़ो परियोजना के तहत हिमालयी और प्रायद्वीपीय क्षेत्र की चिह्नित नदियों एवं क्षेत्रों को कुल 30 ‘लिंकों’ द्वारा आपस में जोड़ा जाना है। इसमें हिमालयी क्षेत्र में 14 तथा प्रायद्वीपीय क्षेत्र में 16 संपर्क नहरें शामिल हैं। हाल ही में ‘केन-बेतवा लिंक’ को पर्यावरणीय मंजूरी के लिये हरी झण्डी मिलने के साथ ही इस राष्ट्रव्यापी योजना के पहले चरण की शुरुआत होने की संभावना बढ़ गई है।

नदी जोड़ो परियोजना की आवश्यकता क्योंः?
भारत की मानसून आधारित कृषि अर्थव्यवस्था में मानसून की अनिश्चितता, मानसून आधिक्य या मानसून की कमी एक बड़ी जनसंख्या को प्रभावित करती है। इस परियोजना द्वारा नदियों को जोड़कर, जलाधिक्य वाली नदियों के जल को जलाभाव वाले क्षेत्र की नदियों में स्थानांतरित किया जा सकेगा, जिससे जलाभाव वाले क्षेत्र की सूखे व पेयजल की समस्या का समाधान निकल सकता है तथा जलाधिक्य क्षेत्र से बाढ़ की स्थिति को टाला जा सकता है।
⇒इस परियोजना के तहत करीब 3000 बांध बनाये जाने हैं। इससे बड़ी मात्रा में विद्युत भी उत्पन्न की जा सकेगी।
⇒सिंचाई की उपलब्धता होने से कृषि पैदावार बढ़ेगी तथा इससे ग्रामीण गरीबी में भी कमी आएगी।
⇒नहरों का प्रयोग अंतर्देशीय परिवहन के लिये भी किया जा सकेगा।
⇒परंतु इस नदी जोड़ो परियोजना के जितने लाभ परिलक्षित हो रहे हैं, वे सिक्के का सिर्फ एक पहलू हैं। इस परियोजना को धरातल पर लाना आसान नहीं है क्योंकि इस परियोजना के विरोध में भी प्रभावी तर्क दिये जा रहे हैं।

विरोध में तर्क
⇒नहरों एवं जलाशयों के निर्माण से बड़ी मात्रा में निर्वनीकरण की स्थिति भी उत्पन्न होगी जो पर्यावरण व जैव-विविधता पर प्रतिकूल प्रभाव डालेगी।
⇒इससे बड़ी संख्या में लोगों का विस्थापना होगा जिनका पुनर्वास एक बड़ी चुनौती रहेगी।
⇒अंतर्राष्ट्रीय जल-संधियों को लेकर भी समस्याएँ उत्पन्न होंगी (जैसे-ब्रह्मपुत्र नदी को लेकर)।
⇒इस परियोजना का अनुमानित खर्च अत्यधिक है, जिसकी व्यवस्था करना सरकार के लिये एक बड़ी चुनौती होगी।
दोनों पहलुओं पर गौर करने पर यह स्पष्ट होता है कि यद्यपि नदी जोड़ो परियोजना में असीम संभावनाएँ हैं तथा यह सूखा (जलाभाव क्षेत्र), बाढ़ (जलाधिक्य क्षेत्र) और पेयजल अनुपलब्धता जैसी समस्याओं के निराकरण में रामबाण साबित हो सकती है
परंतु विस्तृत पर्यावरणीय और सामाजिक प्रभाव आंकलन के बिना इस परियोजना को धरातल पर लाने से बचना चाहिये ताकि भविष्य में यह किसी गंभीर स्थिति का कारण न बन सके।

जानें टेबल ऑफ प्रेसीडेंस के मुताबिक भारत में प्रमुख पदों की वरीयता



  • भारत का पहला नागरिक– देश का राष्ट्रपति
  • 2th नागरिक– देश का उप राष्ट्रपति
  • 3th नागरिक– प्रधानमंत्री
  • 4th नागरिक– राज्यपाल (संबंधित राज्यों के सभी)
  • 5th नागरिक– देश के पूर्व राष्ट्रपति, 5th A – देश का उप प्रधानमंत्री
  • 6th नागरिक– भारत का मुख्य न्यायधीश, लोकसभा का अध्यक्ष
  • 7th नागरिक– केंद्रीय कैबिनेट मंत्री, मुख्यमंत्री (संबंधित सभी राज्यों के), योजना आयोग के उपाध्यक्ष (वर्तमान ने नीति आयोग), पूर्व प्रधानमंत्री, राज्यसभा और लोकसभा में विपक्ष का नेता, 7ूth ए– भारत रत्न पुरस्कार विजेता
  • 8th नागरिक– भारत में मान्यता प्राप्त राजदूत, मुख्यमंत्री (संबंधित राज्यों से बाहर के) गवर्नर्स (अपने संबंधित राज्यों से बाहर के)
  • 9th नागरिक– सुप्रीम कोर्ट के जज, 9th A– यूनियन पब्लिक सर्सिस कमिशन (यूपीएससी) के चेयरपर्सन, चीफ इलेक्शन कमिशनर, भारत के नियंत्रक और महालेखा परीक्षक
  • 10th नागरिक– राज्यसभा के डिप्टी चेयरमैन, डिप्टी चीफ मिनिस्टर्स, लोकसभा के डिप्टी स्पीकर, योजना आयोग के सदस्य (वर्तमान में नीति आयोग), राज्यों के मंत्री (सुरक्षा से जुड़े मंत्रालयों के अन्य मंत्री)
  • 11th नागरिक– अटर्नी जर्नल (एजी), कैबिनेट सचिव, उप राज्यपाल (केंद्र शासित प्रदेशों के भी शामिल)
  • 12th नागरिक– पूर्ण जनरल या समकक्ष रैंक वाले कर्मचारियों के चीफ
  • 13th नागरिक– राजदूत ,असाधारण और पूर्ण नियोक्ता जो कि भारत में मान्यता प्राप्त हैं
  • 14th नागरिक– राज्यों के चेयरमैन और राज्य विधानसभा के स्पीकर (सभी राज्य शामिल), हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस (सभी राज्यों की पीठ के जज शामिल)
  • 15th नागरिक– राज्यों के कैबिनेट मिनिस्टर्स (सभी राज्यों के शामिल), केंद्र शासित राज्यों के मुख्यमंत्री, दिल्ली के मुख्य कार्यकारी काउंसिलर (सभी केंद्र शासित राज्य) केंद्र के उपमंत्री
  • 16th नागरिक– लेफ्टिनेंट जनरल या समकक्ष रैंक का पद धारण करने वाले स्टाफ के प्रमुख अधिकारी
  • 17th नागरिक– अल्पसंख्यक आयोग के अध्यक्ष, अनुसूचित जाति के राष्ट्रीय आयोग के अध्यक्ष, अनुसूचित जनजाति के राष्ट्रीय आयोग के अध्यक्ष, उच्च न्यायालयों के मुख्य न्यायाधीश (उनके संबंधित न्यायालय के बाहर), उच्च न्यायालयों के पीयूज न्यायाधीश (उनके संबंधित अधिकार क्षेत्र में)
  • 18th नागरिक– राज्यों (उनके संबंधित राज्यों के बाहर) में कैबिनेट मंत्री, राज्य विधान मंडलों के सभापति और अध्यक्ष (उनके संबंधित राज्यों के बाहर), एकाधिकार और प्रतिबंधात्मक व्यापार व्यवहार आयोग के अध्यक्ष, उप अध्यक्ष और राज्य विधान मंडलों के उपाध्यक्ष (उनके संबंधित राज्यों में), मंत्री राज्य सरकारों (राज्यों में उनके संबंधित राज्यों), केंद्र शासित प्रदेशों के मंत्री और कार्यकारी परिषद, दिल्ली (उनके संबंधित संघ शासित प्रदेशों के भीतर) संघ शासित प्रदेशों में विधान सभा के अध्यक्ष और दिल्ली महानगर परिषद के अध्यक्ष, उनके संबंधित केंद्र शासित प्रदेशों में।
  • 19th नागरिक– संघ शासित प्रदेशों के मुख्य आयुक्त, उनके संबंधित केंद्र शासित प्रदेशों में राज्यों के उपमंत्री (उनके संबंधित राज्यों में), केंद्र शासित प्रदेशों में विधान सभा के उपाध्यक्ष और मेट्रोपॉलिटन परिषद दिल्ली के उपाध्यक्ष
  • 20th नागरिक– राज्य विधानसभा के चेयरमैन और डिप्टी चेयरमैन (उनके संबंधित राज्यों के बाहर)
  • 21th नागरिक– सांसद सदस्य
  • 22th नागरिक– राज्यों के डिप्टी मिनिस्टर्स (उनके संबंधित राज्यों के बाहर)
  • 23th नागरिक– आर्मी कमांडर, वाइस चीफ ऑफ आर्मी स्टाफ और इन्हीं की रैंक के बराबर के अधिकारी, राज्य सरकारों के मुख्य सचिव, (उनके संबंधित राज्यों के बाहर), भाषाई अल्पसंख्यकों के आयुक्त, अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के आयुक्त, अल्पसंख्यक आयोग के सदस्य, अनुसूचित जातियों के लिए राष्ट्रीय आयोग के सदस्य, अनुसूचित जनजाति के लिए राष्ट्रीय आयोग के सदस्य
  • 24th नागरिक– उप राज्यपाल रैंक के अधिकारी या इन्हीं के समक्ष अधिकारी
  • 25th नागरिक– भारत सरकार के अतिरिक्त सचिव
  • 26th नागरिक– भारत सरकार के संयुक्त सचिव और समकक्ष रैंक के अधिकारी, मेजर जनरल या समकक्ष रैंक के रैंक के अधिकारी
टेबल में कुल 26 रैंकिंग की गई हैं आखिरी नंबर पर भारत सरकार के ज्वाइंट सेक्रेटरी को रखा गया है मेजर जनरल रैंक के अधिकारी भी इसमें शामिल हैं

Thursday 27 July 2017

जीका वायरस का एंटीबायोटिक


दक्षिण-पूर्व स्पैनिश विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं ने एक अणु की खोज की घोषणा की है जिसका इस्तेमाल जीका वायरस के प्रभावों से निपटने के लिए किया जा सकता है। 22 जुलाई 2017 को मर्सिया की सैन एंटोनियो कैथोलिक विश्वविद्यालय के द्वारा जारी एक बयान के मुताबिक, बायोइनफॉरमैटिक्स और हाई-परफॉर्मेंस कंप्यूटिंग रिसर्च ग्रुप के शोधकर्ताओं ने पाया है कि नोवोबायोसिन नामक एक यौगिक जो कि एक एंटीबायोटिक के रूप में इस्तेमाल किया जाता रहा है, मच्छर से उत्पन्न रोग के लक्षणों का मुकाबला करने में कारगर है।
प्रमुख तथ्य:-
  • जिका वायरस के प्रतिकृति प्रक्रिया में शामिल प्रोटीन की आणविक संरचना अब से कुछ समय पहले ही खोजी गयी है।
  • शोधकर्ताओं ने एक एंटीबायोटिक पर ध्यान केंद्रित किया है जो कि इससे पूर्व नोसोकोमिअल इन्फेक्शन से लड़ने के लिए बनाया गया था।
  • दोनों विश्वविद्यालयों की टीमों ने अब अणु का पेटेंट एंटी जीका उपचार के रूप में कराया है।
  • यौगिक नोवोबायोसिन ने चूहों के उपचार में अभूतपूर्व परिणाम दर्शाये थे।
जिका विषाणु:-
यह फ्लाविविरिडए विषाणु परिवार से है। जो दिन के समय सक्रिय रहते हैं। इन्सानों में यह मामूली बीमारी के रूप में जाना जाता है, जिसे जिका बुखार, जिका या जिका बीमारी कहते हैं। 1947 के दशक से इस बीमारी का पता चला। यह अफ्रीका से एशिया तक फैला हुआ है। यह 2014 में प्रशांत महासागर से फ्रेंच पॉलीनेशिया तक और उसके बाद 2015 में यह मेक्सिको, मध्य अमेरिका तक भी पहुँच गया।
अप्रैल 2007 में इसका प्रभाव पहली बार अफ्रीका और एशिया के बाहर देखने को मिला। यप नामक एक द्वीप में लाल चकत्ते, नेत्रश्लेष्मलाशोथ, और जोड़ों के दर्द के रूप में इसका असर दिखा, जिसे सामान्यतः डेंगू या चिकनगुनिया समझा जा रहा था। लेकिन जब बीमार लोगों के रक्त का परीक्षण किया गया तो उनके रक्त में जिका विषाणु का आरएनए पाया गया।

अर्थव्यवस्था से अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (GK Q & A, भाग-76)