भारत की लोकतांत्रिक व्यवस्था इसकी उल्लेखनीय सफलता के कारण दुनिया के अनेक देशों के लिये एक प्रतिमान है। लोकतांत्रिक व्यवस्था की इस सफलता का मूल आधार नियमित एवं निष्पक्ष चुनावों का आयोजन है। अतः चुनावों को सफलता पूर्वक आयोजित करने तथा मतदान प्रणाली की निष्पक्षता बनाए रखने के लिये चुनाव आयोग द्वारा अनेक अधिकारों की मांग की गई है।
उनकी प्रमुख मांगे निम्नलिखित हैं-
- संविधान के अनुच्छेद 324 (5) में यह प्रावधान है कि ‘मुख्य चुनाव आयुक्त को इसके पद से उसी रीति और उन्हीं आधारों पर हटाया जाएगा, जिस रीति से और जिन आधारों पर उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश को हटाया जाता है।’ इस प्रकार, मुख्य चुनाव आयुक्त को तो संवैधानिक संरक्षण प्राप्त है लेकिन अन्य चुनाव आयुक्तों को नहीं। अतः चुनाव आयोग ने अन्य चुनाव आयुक्तों को भी इसी प्रकार का संवैधानिक संरक्षण प्रदान करने की माँग की है ताकि वे निष्पक्ष रूप से कार्य कर सकें।
- चुनाव आयोग ने मांग की है कि आयोग के खर्च को भारत की संचित निधि पर भारित घोषित किया जाये। वर्तमान में इसे संसद में अनुदान की मांगों के रूप में स्वीकृत किया जाता है।
- चुनाव आयोग ने स्वतंत्र सचिवालय की मांग की है जिसके माध्यम से वह अपने कर्मचारियों की नियुक्ति स्वतंत्र रूप से कर सकेगा।
- मतगणना कार्य के लिये टोटलाईजर मशीन का प्रयोग करने का प्रस्ताव दिया। इसके प्रयोग से 14 मतदान केंद्रों के मतों का योग एक साथ प्रस्तुत होगा। अतः राजनीतिक दलों द्वारा उन क्षेत्रों की पहचान नहीं हो पाएगी जिन क्षेत्रों के मतदाताओं ने उन्हें मत नहीं दिया।
- आयोग ने धन बल के उपयोग करने पर चुनावों को स्थगित अथवा अवैध घोषित करने की शक्ति प्रदान करने की माँग की है तथा इसके लिये जन प्रतिनिधित्व अधिनियम में संशोधन की माँग की है।
- अगर किसी न्यायालय ने चुनाव लड़ने वाले उम्मीदवार के खिलाफ आरोप तय कर दिये है तो उम्मीदवार को अयोग्य घोषित करना चाहिए।
- चुनाव के दौरान रिश्वत देने को संज्ञेय अपराध घोषित किया जाए तथा पेड-न्यूज को भी अपराध की श्रेणी में शामिल किया जाए।
- इस प्रकार, चुनाव आयोग को चुनाव आयोजन से संबंधित नई चुनौतियों से निपटने के लिये अधिक शक्तियाँ देकर भारतीय लोकतंत्र के प्रहरी के रूप में उसकी भूमिका को और मजबूत किया जा सकता है।