आइंस्टाइन ने अपने सापेक्षतावाद सिद्धांत के द्वारा विश्व का अंतरिक्ष,
समय, द्रव्यमान, ऊर्जा और गुरुत्वाकर्षण के प्रति दृष्टिकोण बदल कर रख दिया
था।
➽ आइंस्टाइन से पहले गति के को समझने के लिये आइजैक न्यूटन के
नियमो का प्रयोग किया जाता था। 1687 मे न्यूटन ने प्रस्तावित किया था कि
गुरुत्वाकर्षण समस्त ब्रह्माण्ड को प्रभावित करती है। यही गुरुत्वाकर्षण बल
जो किसी सेब के टूटने पर धरती की ओर खींचता है वही पृथ्वी को सूर्य की
परिक्रमा करवाता है। लेकिन न्यूटन ने गुरुत्वाकर्षण के स्रोत को जानने का कभी प्रयास नहीं किया।
➽ दार्शनिक डेविड ह्युम द्वारा 1738 मे रचित पुस्तक "A Treatise of Human
Nature" ने आइंस्टाइन का अंतरिक्ष और समय के प्रति दृष्टिकोण बदल दिया था।
ह्युम संशयवादी थे और अनुभव जनित ज्ञान पर ही विश्वास करते थे, उनके अनुसार
विज्ञान के सिद्धांतो को केवल तर्क पर आधारित नही होना चाहिये, उन्हे
अनुभव और प्रमाण का समर्थन भी होना चाहिये। उनके अनुसार समय का पिंडॊ की
गति से स्वतंत्र अस्तित्व नही होता है।
आइंस्टाइन ने लिखा है कि पूरी तरह से संभव है कि दर्शनशास्त्र के इस अध्ययन के बिना वे सापेक्षतावाद के सिद्धांत को खोज नहीं पाते।
➽ 1905 मे आइंस्टाइन ने दो सिद्धांतो पर आधारित एक नयी अवधारणा को
प्रस्तावित किया। प्रथम सिद्धांत था कि सभी निरीक्षको के लिये भौतिकी के
नियम समान है।
दूसरा, उन्होने प्रकाशगति की गणना की, जोकि 299,338
किमी/सेकंड है और स्थिरांक है। आइंस्टाइन से पहले वैज्ञानिक मानते थे कि
ब्रह्मांड एक विशिष्ट माध्यम एथर से भरा है और यह माध्यम प्रकाशगति को
स्रोत और निरीक्षक की सापेक्षगति के अनुसार परिवर्तित करता है।
➽ इन
सिद्धांतो के परिणाम स्वरूप आइंस्टाइन ने पाया कि ब्रह्मांड मे कोई भी
स्थायी संदर्भ बिंदू(frame of reference) नही है। हर पिंड दूसरे पिंड के
सापेक्ष गति कर रहा है। इसलिये इस अवधारणा का नाम सापेक्षतावाद का सिद्धांत
है।
इसे विशेष सापेक्षतावाद भी कहा गया क्योंकि यह विशेष परिस्थितियों
’स्थायी संदर्भ बिंदु तथा स्थिर गति’ मे ही लागु होती है। 1915 मे
आइंस्टाइन ने साधारण सापेक्षतावाद का सिद्धांत प्रस्तुत किया जिसमे संदर्भ
बिंदु एक दूसरे के सापेक्ष त्वरण करती गति की अवस्था में है।
➽ सभी के
लिये समय प्रवाह की गति समान नहीं होती है। तेज गति से चल रहे निरीक्षक के
लिये समय प्रवाह की गति सापेक्ष रूप से किसी स्थिर निरीक्षक की तुलना मे कम
होगी। इस घटना को समय विस्तारण (Time Dilation) कहते हैं।
चित्र मे गति करती घड़ी के कांटे किसी स्थिर घड़ी के कांटो से धीमे गति करते हैं।
➽ एक तेज गति से गति करता पिंड सापेक्ष रूप से स्थिर पिंड से गति की दिशा में ’संकुचित’ नजर आता है। यह प्रभाव प्रकाशगति से कम गति पर अत्यंत
सूक्षम(नगण्य) होता है।
➽ द्रव्यमान और ऊर्जा एक ही वस्तु के दो भिन्न
रूप है। आइंस्टाइन के प्रसिद्ध समीकरण E=mc^2 , के अनुसार ऊर्जा की मात्रा
द्रव्यमान मे प्रकाशगति के वर्ग के गुणनफल के तुल्य होती है। इसी कारण से
नाभिकिय विस्फोट मे अत्याधिक ऊर्जा का उत्सर्जन होता है।
➽ E=mc^2 के
कारण एक स्थिर पिंड के सापेक्ष तेज गति से यात्रा करते पिंड का द्रव्यमान
बढ़ा हुआ लगता है। इसके पीछे तथ्य यह है कि किसी पिंड की गति मे वृद्धि होने
पर उसकी गतिज ऊर्जा में वृद्धि होती है, इसलिये उसके द्रव्यमान मे वृद्धि
होती है (क्योंकि द्रव्यमान = ऊर्जा)।
➽ तेज गति द्वारा द्रव्यमान मे
वृद्धि के परिणाम स्वरूप पदार्थ कभी भी प्रकाशगति से या उससे तेज यात्रा नहीं कर सकता है। गति मे वृद्धि के साथ द्रव्यमान बढ़ता है और प्रकाशगति पर
पहुंचने पर द्रव्यमान अनंत(infinite) हो जाता है। अनंत द्रव्यमान को गति
करने के लिये अनंत ऊर्जा चाहिये होगी, इसलिये प्रकाशगति से यात्रा असंभव
है।
➽ समय और अंतरिक्ष एक दूसरे से जुड़े हुये हैं, इन्हे अलग नहीं किया जा सकता है। इन्हे एक साथ ’काल-अंतराल’ कहा जाता है।
आइंस्टाइन के गणित मे अंतरिक्ष के तीन आयाम है और चौथा आयाम समय है। कुछ
नये सिद्धांत कुछ अन्य आयामो क्प प्रस्तावित करते है जिन्हे हम देख पाने में असमर्थ हैं।
काल-अंतराल को किसी चादर के जैसा मान सकते है जिसमे द्र्व्यमान की उपस्थिति उसमे विकृति उत्पन्न करती है।
➽ सापेक्षतावाद गुरुत्वाकर्षण के स्रोत की व्याख्या करता है। काल-अंतराल
का कपड़े की चादर वाले माडेल में द्रव्यमान वाले पिंड वक्रता उत्पन्न करते
है, इस वक्रता को गुरुत्विय कुंआ (gravity well) कहते हैं। इस द्रव्यमान
वाले पिंड की परिक्रमा करने वाले पिंड सबसे छोटे मार्ग को चूनते हैं जिसमे
सबसे कम ऊर्जा की आवश्यकता होती है। ग्रहों की कक्षा दिर्घवृत्ताकार होती है
जो कि सबसे कम ऊर्जा प्रयुक्त करने वाला पथ है।
➽ गुरुत्वाकर्षण प्रकाश पथ को भी वक्र कर देता है। इस प्रक्रिया को गुरुत्विय लेंसींग (gravitational lensing) कहते है।
जब हम किसी दूरस्थ आकाशगंगा को देखते है, तब पृथ्वी और उस आकाशगंगा के
मध्य उपस्थित पदार्थ प्रकाशकिरणो को भिन्न दिशाओं मे वक्र कर देता है। जब
यह प्रकाश दूरबीन तक पहुँचात है एक ही आकाशगंगा की अनेक छवियाँ दिखायी देती
है।