Thursday 27 July 2017

जीका वायरस का एंटीबायोटिक


दक्षिण-पूर्व स्पैनिश विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं ने एक अणु की खोज की घोषणा की है जिसका इस्तेमाल जीका वायरस के प्रभावों से निपटने के लिए किया जा सकता है। 22 जुलाई 2017 को मर्सिया की सैन एंटोनियो कैथोलिक विश्वविद्यालय के द्वारा जारी एक बयान के मुताबिक, बायोइनफॉरमैटिक्स और हाई-परफॉर्मेंस कंप्यूटिंग रिसर्च ग्रुप के शोधकर्ताओं ने पाया है कि नोवोबायोसिन नामक एक यौगिक जो कि एक एंटीबायोटिक के रूप में इस्तेमाल किया जाता रहा है, मच्छर से उत्पन्न रोग के लक्षणों का मुकाबला करने में कारगर है।
प्रमुख तथ्य:-
  • जिका वायरस के प्रतिकृति प्रक्रिया में शामिल प्रोटीन की आणविक संरचना अब से कुछ समय पहले ही खोजी गयी है।
  • शोधकर्ताओं ने एक एंटीबायोटिक पर ध्यान केंद्रित किया है जो कि इससे पूर्व नोसोकोमिअल इन्फेक्शन से लड़ने के लिए बनाया गया था।
  • दोनों विश्वविद्यालयों की टीमों ने अब अणु का पेटेंट एंटी जीका उपचार के रूप में कराया है।
  • यौगिक नोवोबायोसिन ने चूहों के उपचार में अभूतपूर्व परिणाम दर्शाये थे।
जिका विषाणु:-
यह फ्लाविविरिडए विषाणु परिवार से है। जो दिन के समय सक्रिय रहते हैं। इन्सानों में यह मामूली बीमारी के रूप में जाना जाता है, जिसे जिका बुखार, जिका या जिका बीमारी कहते हैं। 1947 के दशक से इस बीमारी का पता चला। यह अफ्रीका से एशिया तक फैला हुआ है। यह 2014 में प्रशांत महासागर से फ्रेंच पॉलीनेशिया तक और उसके बाद 2015 में यह मेक्सिको, मध्य अमेरिका तक भी पहुँच गया।
अप्रैल 2007 में इसका प्रभाव पहली बार अफ्रीका और एशिया के बाहर देखने को मिला। यप नामक एक द्वीप में लाल चकत्ते, नेत्रश्लेष्मलाशोथ, और जोड़ों के दर्द के रूप में इसका असर दिखा, जिसे सामान्यतः डेंगू या चिकनगुनिया समझा जा रहा था। लेकिन जब बीमार लोगों के रक्त का परीक्षण किया गया तो उनके रक्त में जिका विषाणु का आरएनए पाया गया।