Friday 31 August 2018

‘आरक्षण की व्यवस्था’ के हालिया स्वरूप को खत्म कर ‘आर्थिक आरक्षण’ देने की मांग किस हद तक उचित प्रतीत होती है? हालिया आंदोलनों के संदर्भ में कथन की चर्चा करें।


आरक्षण प्रणाली सदियों से उपेक्षित निचली जातियों का सामाजिक-आर्थिक उत्थान कर उन्हें समाज की मुख्य धारा से जोड़ने हेतु प्रारम्भ की गई थी। परंतु वर्तमान परिदृश्य में जबकि आजादी के लगभग 7 दशक पश्चात् ‘समानता’ का लक्ष्य प्राप्त कर लिया जाना चाहिये था, आरक्षण की मांग अन्य ‘सामान्य समुदाय’ के लोगों द्वारा उग्रता से उठाई जा रही है।

हालिया दिनों में विभिन्न राज्यों के संपन्न समुदाय जैसे- गुजरात का पाटीदार, महाराष्ट्र का मराठा तथा हरियाणा का जाट समुदाय जाति आधारित आरक्षण व्यवस्था को समाप्त कर ‘आर्थिक आधार’ पर आरक्षण की मांग हेतु आंदोलित दिखा। यदि इन आंदोलनों के पक्ष का विश्लेषण किया जाए तो कहीं-न-कहीं इनकी यह मांग उचित प्रतीत होती है।

वर्तमान में सरकारी नौकरियों तथा विश्वविद्यालयों में 15 प्रतिशत सीटें अनुसूचित जातियों तथा 7.5 प्रतिशत सीटें अनुसूचित  जनजातियों के लिये आरक्षित हैं। इसके अतिरिक्त प्रत्येक राज्य स्वयं की आरक्षण व्यवस्था लागू करता है जो कि कुल मिलाकर लगभग 50 प्रतिशत हो जाती है। इस व्यवस्था से सामान्य वर्ग का विद्यार्थी अधिक अंक प्राप्त करने के बावजूद शिक्षण संस्थान में प्रवेश तथा नौकरी के लिये ‘अयोग्य’ हो जाता है, जबकि आरक्षित वर्ग के विद्यार्थी न केवल औसत अंकों के साथ शिक्षण संस्थानों में दाखिला लेते हैं बल्कि अन्य सुविधाएँ तथा नौकरी भी आसानी से प्राप्त कर लेते हैं।

विडम्बना केवल ‘सामान्य’ बनाम ‘आरक्षित’ श्रेणी की नहीं अपितु गरीब सामान्य वर्ग तथा अमीर आरक्षित वर्ग की है। वर्तमान आरक्षण प्रणाली सामान्य वर्ग के ‘गरीब’ व्यक्ति के आरक्षण पर मौन है तो आरक्षित वर्ग के ‘अमीर’ व्यक्ति के संबंध में प्रावधानों का अभाव है। यद्यपि ‘क्रीमीलेयर सिद्धांत इस संदर्भ में सीमा आरोपित करता है परंतु इसका संकुचित विस्तार इसे नाकाम सिद्ध करता है। 

इस प्रकार इस व्यवस्था से ‘योग्यता’ द्वितीयक हो जाती है तथा ‘जाति’ प्राथमिक। यही कारण है कि सार्वजनिक क्षेत्रों में कार्यकुशलता एवं निष्पादन क्षमता नकारात्मक रूप से प्रभावित होती है।

उपरोक्त समस्या के साथ-साथ यह प्रणाली सामाजिक विभेदन को भी बढ़ावा देती है। आर्थिक विभेदन का यह रोष विभिन्न जातियों के आपसी विवादों तथा हिंसक झड़पों में मुखर होता है। इसके अतिरिक्त आरक्षण का लाभ उस वर्ग के अमीर व्यक्ति ही अधिकतर उठाते हैं जिससे अंतरा जातीय विभेदन भी गहरा होता है। यह सामाजिक विभेदन भारत की सामाजिक विविधता पर प्रहार कर भारतीय समाज की नींव को खोखला कर रहा है।

अतः यह उचित प्रतीत होता है कि उपरोक्त समस्याओं के निदान हेतु जाति आधारित आरक्षण व्यवस्था को समाप्त कर आरक्षण का आधार आर्थिक स्थिति तथा योग्यता आधारित कर दिया जाना चाहिये।

परंतु यह केवल विवाद का एक पक्ष है, क्योंकि यदि जाति आधारित आरक्षण समाप्त कर दिया गया तो न केवल ‘भारतीय समाजवाद’ खतरे में पड़ जाएगा, अपितु ‘समावेशी विकास’ की अवधारणा भी अवरूद्ध होगी। अतः आरक्षण को समाप्त करना या केवल ‘आर्थिक स्थिति’ आधारित करना समाधान नहीं होगा बल्कि ‘आरक्षण प्रणाली’ को ‘व्यवस्थित’ करना बेहतर उपाय होगा।

तथाकथित निचली जातियों के उत्थान हेतु इस प्रणाली को बनाए रखना तथा अंतिम व्यक्ति तक इसकी जानकारी एवं लाभ सुनिश्चित करना अपेक्षित है और सामान्य वर्ग के आर्थिक रूप से पिछड़े एवं योग्य व्यक्तियों की सहायता करना भी समान रूप से महत्त्वपूर्ण है। इसके अतिरिक्त, ‘क्रीमीलेयर’ का दायरा विस्तारित कर अमीर आरक्षित वर्ग को इससे से बाहर कर इस प्रणाली को सुचारू, निष्पक्ष एवं लाभकारी बनाया जा सकता है।

Wednesday 29 August 2018

नासा के स्पिट्जर दूरबीन ने अंतरिक्ष में 15 साल पूरे किए, जाने इसकी खासियत


नासा के स्पिट्जर स्पेस टेलीस्कोप (दूरबीन) को अंतरिक्ष में 15 साल पूरे हो गए इस मिशन की अवधि शुरुआत में 2.5 वर्ष रखी गई थी

इस टेलीस्कोप ने TRAPPIST-1 तारे की परिक्रमा कर रहे सात ग्रहों की खोज के साथ-साथ शुरुआत में बनी आकाशगंगाओं के अध्ययन में भी विशेष योगदान दिया है

नासा ने यह प्रोग्राम अंतरिक्ष में मौजूद पराबैंगनी किरणें, एक्स रे, गामा रे आदि की वेवलेंथ व ऊर्जा की विभिन्न टेक्नोलॉजी की जांच के लिए लांच किया था इस टेलीस्कोप की मदद से सौर मंडल के साथ ही अन्य तारों का चक्कर लगा रहे ग्रहों और अंतरिक्ष में होने वाली घटनाओं के बारे में कई रोचक जानकारियां मिलीं

सर्वाधिक आयु वाला दूरबीन

➤ यह अमेरिका के ग्रेट आब्जर्वेटरी कार्यक्रम में शामिल सर्वाधिक आयु वाला दूरबीन है ग्रेट आब्जर्वेटरी में चार बड़े दूरबीन हैं, जिनमें स्पिट्जर के अलावा हब्बल स्पेस टेलीस्कोप, कॉप्टन गामा रे आब्जर्वेटरी (सीजीआरओ) और चंद्र एक्स-रे आब्जर्वेटरी शामिल हैं

➤ इन दूरबीनों के माध्यम से प्रकाश के अलग-अलग और पूरक तरंग आयामों से ब्रह्मांड का अवलोकन किया जाता है

➤ 15 साल के मिशन के दौरान में स्पिट्जर स्पेस टेलीस्कोप ने कई आकाशगंगाओं के बारे में डाटा एकत्र कियाशनि ग्रह का नया रिंग खोजने के साथ ही यह नए तारों और ब्लैक होल से भी संबंधित जानकारी भी जुटा रहा है सौर मंडल के बाहर स्थित ग्रहों की खोज में भी इस टेलीस्कोप की अहम भूमिका रही

स्पिट्जर स्पेस टेलीस्कोप

➤ स्पिट्जर स्पेस टेलीस्कोप (दूरबीन) एक खगोलीय दूरदर्शी है जो अंतरिक्ष में कृत्रिम उपग्रह के रूप में स्थित है

➤ यह ब्रह्माण्ड की विभिन्न वस्तुओं की अवरक्त (Infrared) प्रकाश में जाँच करता है

➤ इसे वर्ष 2003 में रॉकेट के जरिये अमेरिकी अंतरिक्ष अनुसन्धान संस्था नासा ने अंतरिक्ष में पहुँचाकर पृथ्वी के इर्द-गिर्द कक्षा (ऑरबिट) में डाला था

➤ इसे चलते रहने के लिए अति-ठंडी द्रव्य हीलियम की आवश्यकता थी जो 15 मई 2009 को खत्म हो गया

➤ उसके बाद से इस यान पर मौजूद अधिकतर यंत्रों ने काम करना बंद कर दिया लेकिन इसका कैमरा कुछ हद तक अभी भी खगोलीय वस्तुओं की तस्वीरें उतारने में सक्षम है

"लखवाड़ बांध परियोजना" हेतु छह राज्यों के मध्य समझौता पत्र पर हस्ताक्षर


देहरादून के पास यमुना नदी पर बनने वाले बहुउद्देशीय लखवाड़ बांध परियोजना के क्रियान्वयन हेतु नितिन गडकरी सहित छह राज्यों के मुख्यमंत्रियों ने 28 अगस्त 2018 को समझौता पत्र पर हस्ताक्षर किये। इस समझौता पत्र पर उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश, हिमाचल प्रदेश, राजस्थान, दिल्ली और हरियाणा के मुख्यमंत्रियों ने हस्ताक्षर किये।

हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर, उत्तराखंड के मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत, उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ, हिमाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर, राजस्थान की मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे सिंधिया और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने लखवाड़ बांध परियोजना के समझौता पत्र पर हस्ताक्षर किये।

लखवाड़ बांध परियोजना से लाभ
  • लखवाड़ बहुउद्देशीय बांध परियोजना के निर्माण से यमुना की जल भंडारण क्षमता में 65 प्रतिशत की बढ़ोतरी होगी।
  • कुल 204 मीटर ऊंचाई की लखवाड़ बहुउद्देशीय बांध परियोजना का निर्माण 3966.51 करोड़ रुपए की लागत से उत्तराखंड के देहरादून जिले में लोहारी गांव के निकट किया जाएगा।
  • इस परियोजना की जल भंडारण क्षमता 330.66 एमसीएम (मिलियन क्यूबिक मीटर) होगी।
  • इस भंडारण क्षमता से सभी 6 राज्यों की 33,780 हेक्टेयर कृषि भूमि को सिंचाई के अतिरिक्त पेयजल, घरेलू व औद्योगिक उद्देश्यों के लिए 78.83 एमसीएम पानी उपलब्ध हो सकेगा।
  • लखवाड़ बहुउद्देशीय बांध परियोजना से 330 मेगावाट विद्युत उत्पादन भी होगा।
  • बांध परियोजना के निर्माण से लगभग 47 प्रतिशत पानी हरियाणा को मिलेगा जबकि बाकी 53 प्रतिशत पानी अन्य राज्यों को दिया जायेगा।

लागत का बंटवारा

लखवाड़ बहुउद्देशीय बांध परियोजना के निर्माण की कुल 3966.51 करोड़ रुपये लागत में से विद्युत उत्पादन घटक की 1388.28 करोड़ रुपये की राशि उत्तराखंड राज्य द्वारा वहन की जाएगी। शेष 2578.23 करोड़ रुपये की लागत में से सिंचाई व पेयजल घटक का 90 फीसदी (2320.41 करोड़ रुपये) केंद्र द्वारा जबकि 10 फीसदी भाग राज्यों द्वारा उनके अनुपातिक भाग के आधार पर वहन किया जाएगा हरियाणा द्वारा 123.29 करोड़ (47.82 फीसदी) रुपये का वहन किया जाएगा


पृष्ठभूमि

योजना आयोग ने वर्ष 1976 में लोहारी में 204 मीटर ऊंचाई का बांध बनाने की परियोजना को मंजूरी दी थी।वर्ष 1986 में पर्यावरणीय मंजूरी मिलने के बाद वर्ष 1987 में जे.पी. समूह ने बांध का निर्माण शुरू किया। वर्ष 1992 में जब 35 प्रतिशत काम पूरा हो गया तो आर्थिक विवाद में जेपी समूह परियोजना से अलग हो गया। वर्ष 2008 में केंद्र सरकार ने इसे राष्ट्रीय परियोजना घोषित करते हुए 90 प्रतिशत लागत खर्च खुद वहन करने की घोषणा की।

भारतीय रेलवे ने भारत का पहला स्मार्ट कोच लॉन्च किया


भारतीय रेलवे द्वारा हाल ही में भारत का पहला स्मार्ट कोच लॉन्च किया गया इसमें प्रयोग की गई अत्याधुनिक तकनीक के कारण इसे स्मार्ट कोच कहा जा रहा है इन डिब्बों का निर्माण रायबरेली स्थित रेल कोच फैक्ट्री में किया जा रहा है

स्मार्ट कोच में पैंसेंजर इंफार्मेशन एंड कोच कंप्यूटिंग यूनिट लगाई गई ये यूनिट डिब्बे की हर तरह की गतिविधि पर नजर रखती है इन रेलवे कोचों में लाइव सीसीटीवी मॉनिटरिंग सहित कई अन्य सुविधाएं भी दी गई हैं

स्मार्ट कोच की विशेषताएं
  • भारतीय रेलवे द्वारा बनाए गये स्मार्ट कोच में एसी, डिस्क ब्रेक सिस्टम, फायर डिटेक्शन, अलार्म सिस्टम, वॉटर लेवल इंडिकेटर जैसी सुविधाएं दी गई हैं
  • इसके अतिरिक्त इमरजेंसी टॉक बैक सिस्टम भी इनस्टॉल किया गया है
  • कोच के पैसेंजर एक बटन दबाकर सीधे गार्ड से बात कर सकेंगे और आवश्यकता होने पर मदद ले सकेंगे
  • कोच के किसी भी हिस्से में खराबी आने पर सेंसर तुरंत कंट्रोल रूम को सूचना भेज देगा
  • कोच में ब्रेक जाम होना, स्प्रिंग पर अधिक प्रेशर पड़ने से उसका टूट जाना, ट्रैक फ्रैक्चर आदि की जानकारी भी सिस्टम स्वतः जारी कर सकेगा
  • यह कोच ब्रेक घिसने, पहियों की स्थिति, ट्रैक का हेल्थ कार्ड भी बताएगा जिससे खराबी का पहले ही पता चल सकेगा
  • सीसीटीवी में रिकॉर्ड हुआ फुटेज कंप्यूटर लगातार एनालाइज करेगा अगर फुटेज में कोई संदिग्ध चेहरा दिखता है तो कंप्यूटर का आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस इसके लिए रेलवे के अधिकारियों को सतर्क कर देगा जिससे रेल यात्रियों की सुरक्षा में काफी मदद मिलेगी

स्मार्ट कोच के लाभ

स्मार्ट कोच से रेलवे के रखरखाव में पूरी तरह से बदलाव देखा जा सकेगा इसमें ट्रैक संबंधी दिक्कतें, यात्री सुविधाओं से संबंधित दिक्कतें शामिल हैं सेंसर द्वारा जानकारी एकत्रित होने से जांच का खर्चा भी कम होगा तथा रेलवे अधिकारी बिना किसी देरी के जानकारी प्राप्त करते रहेंगे इससे रेल गाड़ी के बारे में रेलवे विभाग पूरी तरीके से अवगत रहेगा और समय रहते तमाम निर्णय लिए जा सकेंगे सुरक्षा और सुविधा की दृष्टि से भी यह कोच किफायती होंगे

अमेरिकी स्वतंत्रता संग्राम का परिणाम, इंग्लैंड के लिये चाहे जो कुछ भी रहा हो, परन्तु विश्व इतिहास के लिये यह एक महत्त्वपूर्ण घटना थी”। इस कथन के समर्थन में तर्क प्रस्तुत करें।


अमेरिकी क्रांति का वास्तविक महत्त्व न तो स्पेन या फ्राँस के प्रादेशिक लाभों में था, न ही इंग्लैंड के साम्राज्य की अवनति में था, वरन् इसका वास्तविक महत्त्व इसके द्वारा विश्व को प्रदत्त आदर्शों व सिद्धांतों में था:-

➤ अमेरिकी स्वतंत्रता संग्राम के पश्चात नए जन्मे अमेरिका ने गणतंत्रवाद, जनतंत्र, संघवाद और संविधानवाद के रूप में चार आदर्शों को विश्व के समक्ष रखा। हालाँकि विश्व इन शब्दों से पहले से ही परिचित था, परन्तु इस क्रांति ने इन्हें जीवंतता प्रदान की। 

 यदि इंग्लैंड की क्रांति ने प्रतिनिधि सत्तात्मक प्रथा को जन्म दिया था तो अमेरिकी स्वतंत्रता संग्राम ने जनतंत्रात्मक प्रथा को जन्म दिया, जिसमें पहली बार सर्वसाधारण को मताधिकार प्राप्त हुआ।  

 इस क्रांति के बाद ही विश्व में लिखित संविधानों का प्रचलन प्रारंभ हुआ। धर्मनिरपेक्ष राज्य के रूप में अमेरिका विश्व का प्रथम देश बना। 

 अमेरिकी क्रांति ने फ्राँसीसी समाज को प्रभावित कर उसे भी क्रांति के लिये प्रेरित किया। शेष यूरोप व दक्षिण अमेरिका में भी उपनिवेशवाद का विरोध शुरू हो गया। 

निष्कर्षतः यह कहा जा सकता है कि अमेरिकी स्वतंत्रता संग्राम विश्व इतिहास की महत्त्वपूर्ण घटना थी।

भारत के सबसे बड़ा/अधिक उत्पादक राज्यों की सूची (GK Q & A, भाग-125)

  • भारत का काजू का सबसे बड़ा उत्पादक राज्य कौन सा है? –  महाराष्ट्र (UPUDA/LDA Exam)
  • भारत का चावल सबसे बड़ा उत्पादक राज्य कौन सा है? –  पश्चिम बंगाल
  • भारत का सबसे अधिक गन्ना उत्पादक राज्य कौन सा है? –  उत्तर प्रदेश (UPPCS Exam))
  • भारत का सबसे अधिक चाय उत्पादक राज्य कौन सा है? – असम
  • भारत का सबसे अधिक दलहन उत्पादक राज्य कौन सा है? – मध्य प्रदेश
  • भारत का सबसे अधिक रबड़ उत्पादक राज्य कौन सा है? –  केरल (UPPCS Exam)
  • भारत का सबसे ज्यादा अभ्रक उत्पादक राज्य कौन सा है? – आंध्र प्रदेश
  • भारत का सबसे ज्यादा दूध उत्पादक राज्य कौन सा है? – उत्तर प्रदेश
  • भारत का सबसे ज्यादा धान उत्पादक राज्य कौन सा है? – पंजाब (UPPCS Main Exam)
  • भारत का सबसे ज्यादा नारियल उत्पादक राज्य कौन सा है? – केरल
  • भारत का सबसे बड़ा कॉफी उत्पादक राज्य कौन सा है? – कर्नाटक (UPPCS Main Exam)
  • भारत का सबसे बड़ा बॉक्साइट उत्पादक राज्य कौन सा है? – झारखंड
  • भारत का सबसे बड़ा मूंगफली उत्पादक राज्य कौन सा है? – गुजरात
  • भारत का सबसे बड़ा रबर उत्पादक राज्य कौन सा है? – केरल
  • भारत का सबसे बड़ा सीमेंट उत्पादक राज्य कौन सा है? – राजस्थान
  • भारत में राज्य का उत्पादन सबसे बड़ा कुल बागान फसलों है? – तमिलनाडु
  • भारत में राज्य का निर्माण करने वाली सबसे बड़ी सब्जियां हैं? – पश्चिम बंगाल
  • भारत में राज्य का सबसे बड़ा कुल खाद्य अनाज उत्पादन होता है? – उत्तर प्रदेश
  • भारत में सबसे बड़ा अंगूर राज्य कौन सा है? – महाराष्ट्र
  • भारत में सबसे बड़ा अमरूद उत्पादक राज्य कौन सा है? – मध्य प्रदेश
  • भारत में सबसे बड़ा ऐप्पल उत्पादक राज्य कौन सा है? – जम्मू और कश्मीर
  • भारत में सबसे बड़ा कुल मसाला उत्पादन राज्य कौन सा है? – आंध्र प्रदेश
  • भारत में सबसे बड़ा केला उत्पादन राज्य कौन सा है? – तमिलनाडु
  • भारत में सबसे बड़ा कोको उत्पादक राज्य कौन सा है? – केरल
  • भारत में सबसे बड़ा गेहूं उत्पादक राज्य कौन सा है? – उत्तर प्रदेश
  • भारत में सबसे बड़ा चावल उत्पादक राज्य कौन सा है? – पश्चिम बंगाल
  • भारत में सबसे बड़ा चीनी उत्पादक राज्य कौन सा है? – उत्तर प्रदेश
  • भारत में सबसे बड़ा जूट उत्पादक राज्य कौन सा है? – पश्चिम बंगाल
  • भारत में सबसे बड़ा तेल उत्पादक राज्य कौन सा है? – गुजरात
  • भारत में सबसे बड़ा नारियल उत्पादक राज्य कौन सा है? – तमिलनाडु
  • भारत में सबसे बड़ा फल उत्पादक राज्य कौन सा है? – आंध्र प्रदेश
  • भारत में सबसे बड़ा बागवानी उत्पाद उत्पादक राज्य कौन सा है? – पश्चिम बंगाल
  • भारत में सबसे बड़ा बैंगन उत्पादक राज्य कौन सा है? – ओडिशा
  • भारत में सबसे बड़ा मक्का उत्पादक राज्य कौन सा है? – आंध्र प्रदेश
  • भारत में सबसे बड़ा मैंगो उत्पादक राज्य कौन सा है? – उत्तर प्रदेश और आंध्र प्रदेश
  • भारत में सबसे बड़ा मोटे अनाज उत्पादक राज्य कौन सा है? – कर्नाटक, राजस्थान
  • भारत में सबसे बड़ा रेपसीड और सरसों का उत्पादन राज्य कौन सा है? – राजस्थान
  • भारत में सबसे बड़ा सूरजमुखी उत्पादक राज्य कौन सा है? – कर्नाटक
  • भारत में सबसे बड़ा सोयाबीन उत्पादक राज्य कौन सा है? – मध्य प्रदेश (UPPCS Exam)
  • भारत में सबसे बड़ी लीची उत्पादक राज्य कौन सा है? – बिहार
  • मूंगफली का सबसे बड़ा उत्पादक राज्य कौन सा है? – गुजरात
  • सबसे बड़ा कट फूल भारत में उत्पादन राज्य कौन सा है? – पश्चिम बंगाल

Tuesday 28 August 2018

शांति मिशन 2018 संयुक्त युद्धाभ्यास रूस में आयोजित किया गया


शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) द्वारा पीस (शांति) मिशन अभ्यास 2018 चेबरकुल, रूस में 24 अगस्त 2018 को औपचारिक तौर पर शुरू हुआ इस अभ्यास में सभी आठ एससीओ सदस्य देशों की सैनिक टुकड़ियों ने भाग लिया

इन टुकड़ियों को रूस के सेन्ट्रल मिलिट्री डिस्ट्रिक्ट के चीफ कमांडर लेफ्टिनेंट जनरल एलेक्जेंदर पावलोविच लेपिन ने संबोधित किया सैनिक टुकड़ियों द्वारा औपचारिक परेड चेबरकुल, रूस में कंबाइंड आर्मस रेंज में हुई

शांति मिशन अभ्यास 2018 
  • यह अभ्यास एससीओ देशों की सशस्त्र सेनाओं को बहुराष्ट्रीय और संयुक्त माहौल के शहरी परिदृश्य में आतंकवाद की कार्रवाइयों से निपटने के प्रशिक्षण का अवसर प्रदान करेगा
  • अभ्यास के दायरे में पेशागत बातचीत, ड्रिलों और अन्य प्रक्रियाओं की आपसी समझ, संयुक्त कमान और नियंत्रण अवसंरचनाओं की स्थापना तथा आतंकवाद के खतरे का सफाया शामिल है
  • इस अभ्यास में सबसे अधिक रूसी सेना के 1700 जवान, चीन के 700 और भारत के 200 जवान शामिल हैं
  • भारतीय दल में 167 जवान थल सेना (4 महिला अफसर) तथा 33 वायुसेना के जवान शामिल थे इस अभ्यास के पाकिस्तान के 110 सैनिक शामिल थे।
  • स्वतंत्रता के बाद यह पहला अवसर था जब भारत और पाकिस्तान की सेनाओं ने संयुक्त सैन्य अभ्यास में साथ भाग लिया
  • एससीओ शांति मिशन एससीओ देशों के बीच रक्षा सहयोग की प्रमुख पहल है और एससीओ रक्षा सहयोग के इतिहास में यह एक ऐतिहासिक घटना है
  • संयुक्त सैन्य अभ्यास में शहरी क्षेत्र में आतंकवादियों के विरुद्ध ऑपरेशन का अभ्यास किया गया इसमें सभी देशों में अपनी दक्षता व युद्ध कुशलता का आदान प्रदान किया 


स्मरणीय तथ्य

शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) शांति मिशन अभ्यास का आयोजन प्रत्येक दो वर्ष बाद किया जाता है इसके आरंभिक दौर में इस अभ्यास में मध्य एशियाई देश ही हिस्सा लेते थे जून, 2017 में भारत और पाकिस्तान को भी इस अभ्यास में शामिल किया गया

शंघाई सहयोग संगठन के बारे में

शंघाई सहयोग संगठन राजनीतिक व सुरक्षा सहयोग संगठन है, इस संगठन के आठ सदस्य देश हैं शंघाई के पूर्णकालिक सदस्य चीन, रूस, कजाखस्तान, उज्बेकिस्तान, ताजिकिस्ता, किर्गिज़स्तान, भारत और पाकिस्तान हैं इसका मुख्यालय चीन की राजधानी बीजिंग में स्थित है सदस्य देशों की जनसँख्या विश्व की कुल जनसँख्या का 40% तथा सदस्य देशों की जीडीपी वैश्विक जीडीपी का 20% हिस्सा है

एससीओ का उदय 'शंघाई फाइव' नामक संगठन से हुआ है, इसकी स्थापना 1996 में चीन ने की थी इसमें रूस, कजाखस्तान, किर्गिजस्तान और ताजीकिस्तान शामिल थे वर्ष 2001 में उज्बेकिस्तान को इसमें शामिल होने के लिए आमंत्रित किया गया था इसके पश्चात् शंघाई सहयोग संगठन का जन्म हुआ वर्ष 2005 में अस्ताना शिखर सम्मेलन की घोषणा के बाद यह एक क्षेत्रीय सुरक्षा संगठन के रूप में उभरा

पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने 'नेता' ऐप लॉन्च किया


पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने 24 अगस्त 2018 को नई दिल्ली में 'नेता' ऐप लॉन्च किए युवा आईटी विशेषज्ञ प्रथम मित्तल द्वारा विकसित ‘नेता ऐप’ जनप्रतिनिधियों के कामकाज पर मतदाताओं और जनसामान्य की निगरानी बनाये रखने के लिये कारगर हथियार साबित होगा

इस अवसर पर केन्द्रीय सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता राज्य मंत्री विजय सांपला, दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल, पूर्व चुनाव आयुक्त एस. वाई. कुरैशी और नसीम जैदी, पूर्व केन्द्रीय कानून मंत्री अश्विनी कुमार, वरिष्ठ भाजपा नेता मुरली मनोहर जोशी और पूर्व गृहमंत्री शिवराज पाटिल भी मौजूद थे

‘नेता ऐप' के जरिये जनप्रतिनिधियों के काम का आकलन आम जनता द्वारा किये गये मूल्यांकन के आधार पर तैयार किया जायेगा प्रणब मुखर्जी ने इस ऐप को लोकतांत्रिक व्यवस्था में जनप्रतिनिधियों की जवाबदेही और जनता की भागीदारी बढ़ाने वाली पहल बताया हैं

उद्देश्य

इसका उद्देश्य नेताओं के बीच राजनीतिक जवाबदेही और पारदर्शिता को बढ़ावा देना है देश के राजनीतिक परिवेश पर गहरी छाप छोड़ना नेता ऐप का उद्देश्य है

'नेता' ऐप के बारे में
  • यह मतदाताओं को अपने राजनीतिक प्रतिनिधियों की दर और समीक्षा करने की अनुमति देता है
  • यह ऐप उपयोगकर्ताओं को अपने विधायकों और सांसदों को रेट करने का अधिकार देगा
  • नेता ऐप एंड्रॉइड,आईओएस और वेब पर 16 भाषाओं में उपलब्ध है
  • एंड्रॉयड और आईओएस आधारित स्मार्ट फोन के अलावा वेबपोर्टल पर उपलब्ध ‘नेता’ ऐप का इस्तेमाल कर कोई भी व्यक्ति अपने इलाके के सांसद और विधायक के काम का न सिर्फ रिपोर्टकार्ड जान सकेगा बल्कि उसके काम की रेटिंग भी खुद कर सकेगा
  • नेता ऐप नए नेताओं को अपनी लोकप्रियता प्रदर्शित करने तथा राजनैतिक दलों का ध्यान अपनी ओर आकर्षित करने का मौका भी देगा ऐप मौजूदा पार्टी उम्मीदवारों को चुनाव लड़ने में सक्षम बनाएगा
  • इस ऐप में विधायक से लेकर मंत्रियों तक का आंकलन किया जा सकेगा
  • इसके माध्यम से देश के किसी भी निर्चाचन क्षेत्र में वहाँ के मतदाताओं की संवेदनाओं को आंका जा सकता है

फायेदे

इस ऐप के द्वारा न सिर्फ मतदाताओं को बेहतर काम करने वाले नेता का चयन करने में आसानी होगी बल्कि राजनीतिक दलों को भी अच्छे रिपोर्ट कार्ड वाले उम्मीदवार चुनने में यह ऐप मददगार बनेगा इस ऐप का सबसे बड़ा फायदा यहा होगा कि इससे पता चलेगा कि मतदाता अपने प्रतिनिधि को कैसा फीडबैक कर रहे हैं

नोट

हाल ही में इस ऐप का प्रायोगिक आधार पर कर्नाटक विधानसभा चुनाव में सफल प्रयोग किया गया था इसमें चुनाव जीतने वाले 93 प्रतिशत उम्मीदवार ‘नेता ऐप’ की श्रेष्ठ रेटिंग में शामिल थे

पिछले आठ महीनों में 543 संसदीय क्षेत्र और 4120 विधानसभा क्षेत्रों में अब तक लगभग 1.5 करोड़ लोगों ने ‘नेता ऐप’ का इस्तेमाल शुरु कर दिया है अगले साल आम चुनाव से पहले यह संख्या दस करोड़ तक पहुँचने की उम्मीद जताई गयी है

जैव ईंधन चालित भारत का प्रथम वायुयान की उड़ान


स्पाइसजेट के विमान ने 27 अगस्त 2018 को बायोफ्यूल के इस्तेमाल से देहरादून से दिल्ली तक उड़ान भरीमीडिया में प्रकाशित जानकारी के अनुसार, स्पाइसजेट के विमान क्यू-400 को देहरादून में ही एक दिन पहले 10 मिनट तक बायो-फ्यूल के साथ उड़ाया गया इस उड़ान के बाद इसे बायो-फ्यूल द्वारा ही देहरादून से दिल्ली तक लाया गया

यह भारत में बायोफ्यूल से उड़ने वाली पहली फ्लाइट है अभी तक केवल अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया जैसे विकसित देशों में यह प्रयोग सफल रहा है काउंसिल ऑफ़ साइंटिफिक एंड इंडस्ट्रियल रिसर्च के तहत देहरादून में संचालित इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ पेट्रोलियम ने 400 किलोग्राम बायो जेट फ्यूल तैयार किया है यह बायो-फ्यूल जेट्रोफा पौधे से तैयार किया गया है

बायो-फ्यूल फ्लाइट
  • छत्तीसगढ़ में 500 किसानों से जेट्रोफा के दो टन बीज लिए गए, जिनसे 400 लीटर फ्यूल बनाया गया
  • परीक्षण के समय विमान में 300 लीटर बायोफ्यूल के साथ 900 लीटर एटीएफ विमान के दाहिने विंग में भरा गया बाएं विंग में 1200 लीटर एटीएफ इमरजेंसी के लिए रखा गया
  • बायो-फ्यूल पर काम कर रहे अधिकारियों ने इस उड़ान के दौरान विमान में सफर किया
  • विमान ने सफलतापूर्वक सामान्य टेक-ऑफ और लैंडिंग की
  • स्पाइसजेट का चयन इसलिए किया गया क्योंकि उसके विमानों में बायोफ्यूल को इस्तेमाल करने वाले इंजन लगे हैं

जेट्रोफा से बायो-फ्यूल

जेट्रोफा को भारत में पहले जंगली अरण्डी के नाम से भी जाना जाता था इसकी उपयोगिता एवं महत्व की जानकारी के अभाव में इसकी व्यापारिक तौर पर खेती नहीं की जा रही थी विगत वर्षों से इसका उपयोग बायोडीजल के रूप में होने के कारण यह केरोसिन तेल, डीजल, कोयला,  लौनी लकड़ी के विकल्प के रूप में उभरा है जेट्रोफा के तेल से बने डीजल में सल्फर की मात्रा बहुत ही कम होने के कारण इसको बायो-डीजल की श्रेणी में रखा गया है

भारतीय रेल, दिल्ली से अमृतसर तक जेट्रोफा बायोडीजल (5 प्रतिशत मिश्रित) से शताब्दी एक्सप्रेस चलाकर तथा महिंद्रा एंड महिंद्रा कम्पनी अपने ट्रेक्टरों में बायोडीजल का प्रयोग सफलता पूर्वक कर चुका है। जेट्रोफा बायोफ्यूल के जहाँ बहुद्देशीय लाभ हैं वहीं इसके तेल का उपयोग करने से प्रर्यावरण प्रदूषण में कमी आती है

क्या लाभ होगा?
  • भारत में विमानों में यदि बायोफ्यूल का उपयोग होने लगे तो प्रत्येक वर्ष 4000 टन कार्बन डाई ऑक्साइड उत्सर्जन कम होगा
  • पारंपरिक ईंधन की तुलना में ऑपरेटिंग लागत भी 17% से 20% तक कम हो जाएगी
  • भारत में बायोफ्यूल के आयात पर निर्भरता कम होगी वर्ष 2013 में 38 करोड़ लीटर बायोफ्यूल की आयात हुआ, जो 2017 में 141 करोड़ लीटर तक पहुँचा
  • कुल कार्बन डाई ऑक्साइड उत्सर्जन में हवाई परिवहन की भूमिका 2.5% है, जो अगले 30 साल में 4 गुना तक बढ़ सकती है बायोफ्यूल से इस उत्सर्जन में कमी आएगी

Saturday 25 August 2018

मधुबनी चित्रकारी क्या है, इसके बारे में विस्तृत चर्चा करें


भारत रचनात्मकता, कला और संस्कृति का देश है। मधुबनी पेंटिंग भारत और विदेशों में सबसे प्रसिद्ध कलाओं में से एक है। इस चित्रकला की शैली को आज भी बिहार के कुछ हिस्सों में प्रयोग किया जाता है, खासकर मिथिला चूंकि मिथिला क्षेत्र में इस पेंटिंग की शैली की उत्पत्ति हुई है, इसलिए इसे मिथिला चित्रों के रूप में भी जाना जाता है। समृद्धि और शांति के रूप में भगवान का आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए इन कलाओं की इस अनूठी शैली का इस्तेमाल महिलाएं अपने घरों और दरवाजों को सजाने के लिए किया करती थी। इस लेख के माध्यम से मधुबनी कला के बारें में जानेंगे।

➤ मधुबनी बिहार में एक जिला है, जिसका अर्थ है शहद का जंगल। यह चित्रकारी मधुबानी जिले की स्थानीय कला है, इसलिए इसका नाम मधुबनी पेंटिंग पढ़ा। यह कला प्रकृति और पौराणिक कथाओं की तस्वीरों विवाह और जन्म के चक्र जैसे विभिन्न घटनाओं को चित्रित करती हैं। मूल रूप से इन चित्रों में कमल के फूल, बांस, चिड़िया, सांप आदि कलाकृतियाँ भी पाई जाती है। इन छवियों को जन्म के प्रजनन और प्रसार के प्रतिनिधित्व के रूप में दर्शाया गया हैं।

➤ मधुबनी पेंटिंग सामान्यतया भगवान कृष्ण, रामायण के दृश्यों जैसे भगवान की छवियों और धार्मिक विषयों पर आधारित हैं। इतिहास के अनुसार, इस कला की उत्पत्ति रामायण युग में हुई थी, जब सीता के विवाह के अवसर पर उनके पिता राजा जनक ने इस अनूठी कला से पूरे राज्य को सजाने के लिए बड़ी संख्या में कलाकारों का आयोजन किया था।

➤ मधुबनी पेंटिंग को प्राकृतिक रंगों के साथ चित्रित किया जाता है, जिसमें गाय का गोबर और कीचड़ का उपयोग किया जाता है ताकि दीवारों में इन चित्रों को बेहतर बनाया जा सके। कलाकारों ने अपनी कला में केवल प्राकृतिक रंगों का इस्तेमाल किया जिसमें हल्दी, पराग या चुना और नीले रंग को नील से इस्तेमाल करते थे।कुसुम फूल का रस लाल रंग, चंदन या गुलाब के लिए इस्तेमाल किया जाता था। इसी तरह कह सकते है कि कलाकारों ने अपने रंग की जरूरतों के लिए विभिन्न प्राकृतिक सामग्रियों का भी इस्तेमाल किया था जो अपने में एक अनूठी कला को दर्शाता है। मूल रूप से इन पेंटिंग को झोपड़ियों की दीवार पर किया जाता था, लेकिन अब यह कपड़े, हाथ से बने कागज और कैनवास पर भी की जाती है।

➤ मधुबनी चित्रों की खोज कैसे हुई थी: 1930 से पहले मधुबनी क्षेत्र के बाहर कोई भी इस दुर्लभ सजावटी पारंपरिक कला को नहीं जानता था। 1934 में बिहार को बड़े भूकंप का सामना करना पड़ा था। मधुबनी क्षेत्र के ब्रिटिश अधिकारी विलियम जी आर्चर जो भारतीय कला और संस्कृति के बहुत शौकीन थे, ने निरीक्षण के दौरान मधुबनी की क्षतिग्रस्त दीवारों पर इस अनूठी कला को देखा था।

➤ मधुबनी पेंटिंग दो तरह की होतीं हैं- भित्ति चित्र और अरिपन। भित्ति चित्र विशेष रूप घरों में तीन स्थानों पर मिटटी से बनी दीवारों पर की जाती है: परिवार के देवता/देवी, नए विवाहित जोड़े (कोहबर) के कमरे और ड्राइंग रूम में। अरिपन (अल्पना) कमल, पैर, आदि को चित्रित करने के लिए फर्श पर लाइन खींच कर बनाई जाने वाली एक कला है। अरिपन कुछ पूजा-समारोहों जैसे पूजा, वृत, और संस्कारा आदि विधियों पर की जाती है।

➤ पेंटिंग को कमरों की बाहरी और आंतरिक दीवारों पर और मारबा पर, शादी में, उपनायन (पवित्र थ्रेडिंग समारोह) और त्यौहार जैसे दीपावली आदि कुछ शुभ अवसरों पर किया जाता हैं। सूर्य और चंद्रमा भी चित्रित किये जाते हैं क्योंकि यह माना जाता है कि वे परिवार में समृद्धि और खुशी लाते हैं।

➤ वनों की कटाई की रोकथाम में यह पेंटिंग महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। इस अद्भुत कला के बारे में यह एक ऐसा तथ्य है जो इन चित्रों को अद्वितीय बनाता है। मधुबनी कलाकार मधुबनी चित्रों का उपयोग पेड़ों को काटने से रोकने के लिए करते हैं। मधुबनी कला केवल सजावट के लिए ही नहीं है क्योंकि इन चित्रों में से अधिकांश चित्र हिंदू देवताओं को चित्रित करते हैं। कलाकार हिंदू देवताओं के चित्र को पेड़ों पर बनाते हैं, जिसके कारण लोग पेड़ों को काटने से रुक जाते है या फिर उन्होंने पेड़ों को काटना बंद कर दिया है।

➤ इस पारंपरिक मधुबनी कला को बिहार के ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वाली महिलाएं किया करती थी। लेकिन आज, चीजें बदल गई हैं और अब यह शैली न केवल भारत के लोगों के बीच लोकप्रिय है, बल्कि अन्य देशों के लोगों, खासकर अमेरिका और जापान के बीच भी लोकप्रिय है। पारंपरिक समय के दौरान, इस प्रकार की पेंटिंग को मिटटी से बनी दीवारों पर किया जाता था जिन पर ताजा प्लास्टर होता था। अब, इसे कैनवास, कुशन, कागज यहाँ तक कि कपड़े पर मधुबनी पेंटिंग को किया जाता हैं। अब तो लोग बर्तनों और यहां तक कि चूड़ियों पर भी मधुबनी कलाकृति को कर रहे।

➤ मधुबनी पेंटिंग की अंतर्राष्ट्रीय मांग भी हैं। जापान के लोग भारत की मधुबनी कला से बहुत परिचित हैं और यह कई अन्य देशों में प्रसिद्ध और सराही जाती है। एक 'मिथिला संग्रहालय', जापान के निगाटा प्रान्त में टोकामाची पहाड़ियों में स्थित एक टोकियो हसेगावा की दिमागी उपज है, जिसमें 15,000 अति सुंदर, अद्वितीय और दुर्लभ मधुबनी चित्रों के खजाने को रखा गया है।

इस कला को समर्पित संगठन

➤ भारत की इस दुर्लभ कला के समर्थन में काम करने वाले कई संगठन हैं। भारत और विदेशों में मधुबनी चित्रों का संग्रह युक्त कई अनन्य गैलरी हैं बेंगलुरु में, दिल्ली और बिहार में कई गैर-लाभकारी संगठन मधुबनी कलाकारों के साथ काम करने और उनकी सहायता करने के लिए काम कर रहे हैं।

➤ मधुबनी शहर में एक स्वतंत्र कला विद्यालय मिथिला कला संस्थान (एमएआई) की स्थापना जनवरी 2003 में ईएएफ द्वारा की गई थी, जो कि मधुबनी चित्रों के विकास और युवा कलाकारों का प्रशिक्षण के लिए है।

➤ मिथीलासिमिता एक ऐसा संगठन है, जो कुछ उद्यमियों द्वारा बनाई गई एक संस्था बेंगलुरु, भारत में स्थित है।

उपरोक्त लेख से मधुबनी कला के बारे में ज्ञात होता है और अब यह कला भारत में ही नहीं बल्कि पुरे विश्व में भी प्रसिद्ध हो रहीं हैं।

मधुबनी पेंटिंग से सज-धजकर दरभंगा से नई दिल्ली रवाना हुई बिहार संपर्क क्रांति


दरभंगा से नई दिल्ली जाने वाली मिथिलांचल की प्रीमियम ट्रेन बिहार संपर्क क्रांति सुपरफास्ट मधुबनी पेंटिंग से सज-धजकर नौ कोचों के साथ नई दिल्ली रवाना हुई। 23 अगस्त की सुबह 8: 25 बजे समस्तीपुर रेल मंडल के डीआरएम रवींद्र कुमार जैन ने दरभंगा जंक्शन पहुंचकर भारतीय रेल के इस अभिनव प्रयोग के संबंध में मीडिया को जानकारी दी तथा स्वयं भी इस ट्रेन में सवार होकर रवाना हो गए। 


  • तकरीबन दो महीने में 50 कलाकारों ने बिहार संपर्क क्रांति के नौ डिब्बों को मधुबनी पेंटिंग से सजाया। 
  • भारतीय रेल की ओर से किया गया यह पहला प्रयोग है।
  • अगर यात्रियों ने इसे पसंद किया तो अन्य गाडि़यों में भी इसे उकेरा जाएगा। 
  • मधुबनी पेंटिंग की इस कला से दूसरे नगर व प्रदेश के यात्रियों को भी मिथिलांचल की कला व संस्कृति से रू-ब-रू होने का अवसर प्राप्त हो सकेगा।
  • मधुबनी पेंटिंग अपनी कला के लिए विश्वविख्यात रही है। इसलिए इस कला को ट्रेनों के माध्यम से एक जगह से दूसरी जगह संप्रेषित किया जा रहा है।
  • किसी क्षेत्रीय कला को स्थान देने वाली इंडियन रेलवे की यह पहली ट्रेन बन गई। मधुबनी पेंटिंग से सजी इस ट्रेन का परिचालन होने से मिथिलावासी बहुत खुश हैं।
  • इससे प्रभावित होकर रेलवे ने स्टेशनों एवं ट्रेनों में मिथिला पेंटिंग उकेर कर सौंदर्यीकरण की दिशा में काम शुरू किया है। बिहार संपर्क क्रांति को मॉडल के रूप में लिया गया। फिलहाल नौ बोगियां मिथिला पेंटिंग से सजाई गईं हैं। इसमें एक से डेढ़ माह का समय लगा है। शेष बोगियों का कार्य जल्द पूरा करने के बाद पूरे कोच को मिथिला पेंटिंग से सुसज्जित कर चलाया जाएगा।


बोगियों के अंदर होगी मिथिला पेंटिंग
  • फिलहाल नौ बोगियों पर मिथिला पेंटिंग कर परिचालन शुरू किया गया है। 
  • इसको मधुबनी (बेनीपट्टी) की संस्था केएसबी इंस्टीट्यूट के कलाकारों के माध्यम से कराया गया है। 
  • 13 कलाकारों की टीम ने एक बोगी में औसतन चार दिनों में पेंटिंग की है।
  • टीम में खुशबू चौधरी, अंजनी झा, प्रीति कुमारी, रिंकू कुमार, प्रीति झा, सपना कुमारी सहित लगभग 45 कलाकारों की सहभागिता रही।
  • सभी कोच में बाहर से पेंटिंग होने के बाद जल्द ही भीतरी भाग में कार्य शुरू कराया जाएगा। इच्छुक कलाकारों को मौका दिया जाएगा। बदले में पारिश्रमिक दिया जाएगा। इसके लिए कलाकार आवेदन कर सकते हैं।

आधार से जुड़ी सुविधाओं के लिए फेशिअल वेरिफिकेशन अनिवार्य किया गया


यूनीक आईडेंटिफिकेशन अथॉरिटी ऑफ इंडिया (UIDAI) ने आधार नंबर प्रणाली की सुरक्षा को सुनिश्चित करने के लिए फेशिअल वेरिफिकेशन अथवा फेशियल रिकग्नीशन को अनिवार्य करने का फैसला लिया है।

फेशिअल वेरिफिकेशन को अनिवार्य करने से अब जिन सेवाओं के लिए आधार की अनिवार्यता हैं मसलन बैंकिंग, मोबाइल ऑपरेटर और सरकारी योजनाओं का लाभ के लिए अब आधार ऑथेंटिकेशन कराने के लिए फेशियल रिकग्नीशन कराना होगा।

UIDAI द्वारा जारी निर्देश
  • यूआईडीएआई के अनुसार अब केवाईसी कराते वक्त फोटो देने के साथ-साथ आधार ऑथेंटिकेशन के लिए अब ऑन-स्पॉट फोटो भी खींची जाएगी।
  • यूआईडीएआई ने दावा किया है कि फेशियल रिकग्नीशन से मौजूदा ऑथेंटिकेशन प्रक्रिया को और दुरुस्त किया जा सकेगा।
  • फिलहाल आधार ऑथेंटिकेशन के लिए आंख की पुतली (आइरिस ऑथेंटिकेशन) और उंगली के निशान (फिंगरप्रिंट ऑथेंटिकेशन) और मोबाइल फोन के जरिए ओटीपी ऑथेंटिफिकेशन की प्रक्रिया की जाती है।
  • इस प्रक्रिया को यूआईडीएआई द्वारा 17 अगस्त 2018 को जारी किए गए सर्कुलर के आधार पर किया जा रहा है।


फेशियल वेरिफिकेशन से लाभ

यूआईडीएआई का मानना है कि इससे आधार कार्यक्रम को अधिक समावेशी बनाया जा सकेगा। इस कदम से उन लोगों का आधार ऑथेंटिफिकेशन आसान हो जाएगा जिन्हें फिंगरप्रिंट के जरिए आधार वेरिफिकेशन में दिक्कत का सामना करना पड़ता है। विदित है कि देश में बुजुर्ग जनसंख्या के साथ-साथ ज्यादातर मजदूरों का फिंगरप्रिंट के जरिए ऑथेंटिफिकेशन कराने में दिक्कतों का सामना करना पड़ता है।

इस नए फीचर को सबसे पहले सिम कार्ड के लिए शुरू किया जाएगा। इस प्रोसेस को 15 सितंबर से शुरू किया जाएगा। यदि कोई भी इस सुरक्षा लेयर को पूरा नहीं करेगा तो इसे कानूनन अपराध माना जाएगा। साथ ही आधार एक्ट 2016 के सेक्शन 42 और 43 के तहत जुर्माना भी लगाया जाएगा।

Friday 24 August 2018

गोथिक स्थापत्य कला से आप क्या समझते हैं? इंडो-गोथिक शैली की विशेषताओं का संक्षेप में वर्णन कीजिये


गोथिक कला से अभिप्राय तिकोने मेहराबों वाली यूरोपीय शैली से है, जिससे इमारत के विशाल होने का आभास होता है। यह मध्ययुगीन यूरोपीय वास्तु की एक शैली है, जो संभवत: जर्मन गोथ जाति के प्रभाव से आविर्भूत हुई थी। इस शैली की इमारतें यद्यपि क्लासिकल शैली के सौंदर्य से विरहित थीं और पतले, ऊँचे अनेक शिखरों से मंडित होती थीं। इस शैली का बोलबाला प्राय: 12वीं से 15वीं सदी तक बना रहा और अंत में पुनर्जागरण काल में इसका स्थान क्लासिकल शैली ने ले लिया।

यह शैली ब्रिटिशों के शासनकाल के दौरान यूरोप से भारत आई। इसे विक्टोरियन शैली भी कहा जाता है। इंडो-गोथिक शैली हिन्दुस्तानी, फारसी और गोथिक शैलियों का शानदार मिश्रण है। इसकी विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-

➤ इस शैली के अंतर्गत बनी इमारतों की संरचना बहुत बड़ी है और इसका क्रियान्वयन भी बड़े स्तर पर होता था। 

 इंडो-इस्लामिक वास्तुकला की तुलना में इंडो-गोथिक शैली की दीवारें बहुत पतली होती हैं। 

 इस शैली में मेहराबें नुकीली होती थी।

 इस शैली की सबसे शानदार विशेषताओं में एक है – मकान में बड़ी-बड़ी खिड़कियों का होना। 

 चर्च को क्रूस ग्राउंड योजना के आधार पर बनाया जाता था। 

 यह ब्रिटेन के उन्नत संरचनात्मक इंजीनियरिंग मानक का पालन करने वाली शैली है। 

 पहली बार इसी शैली में मकान निर्माण में स्टील, लोहा और कंक्रीट-गारे का इस्तेमाल शुरू हुआ। 

 1833 ई. में बना मुंबई का टाउन हॉल तथा 1860 के दशक में मुंबई में बनी कई इमारतें नवशास्त्रीय शैली के उदाहरण हैं जिनमें बड़े-बड़े स्तंभों के पीछे रेखागणितीय संरचनाओं का निर्माण किया गया।

नवगोथिक शैली में मुंबई का सचिवालय, विश्वविद्यालय, उच्च न्यायलय जैसी कई इमारतें बनीं, जो तत्कालीन वणिक वर्ग को पसंद आईं। इस शैली का सबसे अच्छा उदाहरण मुंबई का छत्रपति शिवाजी टर्मिनल है, जो कभी ग्रेट इंडियन पेनिनसुलर रेलवे कंपनी का स्टेशन और मुख्यालय था। इसे 2004 में विश्व विरासत सूची में शामिल कर लिया गया। आगे आगरा के सेंट जॉन कॉलेज, इलाहबाद विश्वविद्यालय (मेयर कॉलेज) तथा मद्रास उच्च न्यायालय के निर्माण में यह शैली निखर कर सामने आई।

गांधार मूर्तिकला का संक्षिप्त परिचय देते हुए इसकी विशेषताओं का वर्णन कीजिये


यूनानी कला के प्रभाव से देश के पश्चिमोत्तर प्रदेशों में कला की जिस नवीन शैली का उदय हुआ उसे गांधार शैली कहा जाता है। यह विशुद्ध रूप से बौद्ध धर्म से संबंधित धार्मिक प्रस्तर मूर्तिकला शैली है, जिसका उदय कनिष्क प्रथम के समय हुआ। तक्षशिला, कपिशा, पुष्कलावती, बामियान आदि इसके प्रमुख केंद्र रहे। इसमें स्वात घाटी के भूरे रंग के पत्थर या काले स्लेटी पत्थरों का इस्तेमाल होता था। इस कला का चरम विकास कुषाण काल में हुआ।

गांधार कला को दो खंडों में वर्गीकृत किया जाता है— प्रारंभिक गांधार कला तथा परवर्ती गांधार कला। प्रारंभिक गांधार कला के अंतर्गत मूर्तियों का निर्माण मिट्टी, चूना, भित्ति स्तंभ तथा प्लास्टर का उपयोग करके किया जाता था। परवर्ती गांधार कला शैली में पाषाण का उपयोग प्रचुर मात्र में प्रारंभ हुआ। इस कला शैली पर विदेशी प्रभाव स्पष्ट दृष्टिगोचर होता है। इस दौर में गांधार कला की निम्नलिखित विशेषताएँ देखी गई हैं-

➤ मानव शरीर की सुंदर रचना तथा माँसपेशियों का सूक्ष्म अंकन।

➤ शरीर पर पारदर्शक वस्त्रें का सिलवटों के साथ प्रयोग।

➤ अनुपम नक्काशी।

गांधार कला में बुद्ध की मूर्तियों को इतना सुंदर बनाने का प्रयास किया गया है कि ये यूनानियों के सौंदर्य देवता अपोलो की अनुकृति लगती हैं। इसमें बुद्ध को प्रायः घुंघराले बाल व मूँछ, ललाट पर अर्णा (भौंरी), सिर के पीछे प्रभामंडल, वस्त्र सलवट युक्त और चप्पल पहने हुए दर्शाया गया है। इस कला में प्रयुक्त चिड़ियों की पूँछ जैसी परतें रोम में हैड्रियन काल की हेलेनिस्टिक शैली का अनुकूलित रूप मानी जाती है।

इस शैली की मूर्तिकला में जो भव्यता है यद्यपि उससे भारतीय कला पर यूनानी और हेलेनिस्टक प्रभाव पड़ने की बात स्पष्ट होती है तथापि अपने इसी स्वरूप के कारण यह भारतीय कला की मुख्य धारा से पृथक् रही तथा इसका क्षेत्र पश्चिमोत्तर प्रदेश तक ही सीमित रहा।

बौद्ध मूर्तियों के अतिरिक्त गांधार शैली की कुछ देवी मूर्तियाँ भी मिलती हैं। इनमें देवी रोमा की मूर्ति विशिष्ट है। हिंदू देवी-देवताओं की मूर्तियों में पांचिक, हारिति, कुबेर, इंद्र, ब्रह्मा, सूर्य आदि का भी चित्रण इस कला में मिलता है।