केंद्र सरकार द्वारा मई 2018 में घोषित राष्ट्रीय जैव ईंधन नीति का क्रियान्वयन करने वाला राजस्थान देश का पहला राज्य हो गया है।
- राजस्थान तिलहन का उत्पादन बढ़ाने पर बल देगा तथा वैकल्पिक ईंधन एवं ऊर्जा स्रोतों के क्षेत्र में शोध के लिए उदयपुर में उत्कृष्टता केंद्र स्थापित करेगा।
- राज्य के पंचायती राज मंत्री के अनुसार भारतीय रेलवे की आर्थिक सहायता से राज्य में पहले ही 8 टन की क्षमता वाला बायोडीजल प्लांट स्थापित किया गया है।
- राज्य सरकार जैव ईंधन के विपणन को बढ़ावा देगा तथा इसके बारे में जागरूकता फैलाएगा।
- राज्य ग्रामीण आजीविका विकास परिषद् बायोडीजल की आपूर्ति के द्वारा अतिरिक्त आय सृजन की संभावना के लिए महिला स्वयं सहायता समूहों को प्रोत्साहित करेगी।
जैव ईंधन पर राष्ट्रीय नीति-2018
केन्द्रीय मंत्रिमंडल ने 16 मई, 2018 को जैव ईंधन पर राष्ट्रीय नीति-2018 को मंजूरी प्रदान की थी। ज्ञातव्य है कि देश में जैव ईंधनों को बढ़ावा देने के लिए वर्ष 2009 के दौरान नवीन और नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय ने जैव ईंधनों पर एक राष्ट्रीय नीति बनाई थी। पिछले दशक में जैव ईंधन ने दुनिया का ध्यान आकृष्ट किया। जैव ईंधन के क्षेत्र में विकास की गति के साथ चलना आवश्यक है। भारत में जैव ईंधनों का रणनीतिक महत्व है क्योंकि ये सरकार की वर्तमान पहलों मेक इन इंडिया, स्वच्छ भारत अभियान, कौशल विकास के अनुकूल है और किसानों की आमदनी दोगुनी करने, आयात कम करने, रोजगार सृजन, कचरे से धन सृजन के महत्वाकांक्षी लक्ष्यों को जोड़ने का अवसर प्रदान करता है। भारत का जैव ईंधन कार्यक्रम जैव ईंधन उत्पादन के लिए फीडस्टॉक की दीर्घकालिक अनुप्लब्धता और परिमाण के कारण बड़े पैमाने पर प्रभावित हुआ है।
जैव ईंधन पर राष्ट्रीय नीति-2018 मुख्य विशेषताएं
श्रेणीबद्धता: नीति में जैव ईंधनों को ‘आधारभूत जैव ईंधनों’ यानी पहली पीढ़ी (1जी) जैव इथनॉल और जैव डीजल तथा ‘’विकसित जैव ईंधनों’ – दूसरी पीढ़ी (2जी) इथनॉल, निगम के ठोस कचरे (एमएसडब्ल्यू) से लेकर ड्रॉप इन ईंधन, तीसरी पीढ़ी (3जी) के जैव ईंधन, जैव सीएनजी आदि को श्रेणीबद्ध किया गया है ताकि प्रत्येक श्रेणी में उचित वित्तीय और आर्थिक प्रोत्साहन बढ़ाया जा सके।
कच्चे माल का दायरा: नीति में गन्ने का रस, चीनी वाली वस्तुओं जैसे चुकन्दर, स्वीट सौरगम, स्टार्च वाली वस्तुएं जैसे – भुट्टा, कसावा, मनुष्य के उपभोग के लिए अनुपयुक्त बेकार अनाज जैसे गेहूं, टूटा चावल, सड़े हुए आलू के इस्तेमाल की अनुमति देकर इथनॉल उत्पादन के लिए कच्चे माल का दायरा बढ़ाया गया है।
अतिरिक्त अनाजों के इस्तेमाल की अनुमति: अतिरिक्त उत्पादन के चरण के दौरान किसानों को उनके उत्पाद का उचित मूल्य नहीं मिलने का खतरा होता है। इसे ध्यान में रखते हुए इस नीति में राष्ट्रीय जैव ईंधन समन्वय समिति की मंजूरी से इथनॉल उत्पादन के लिए पेट्रोल के साथ उसे मिलाने के लिए अतिरिक्त अनाजों के इस्तेमाल की अनुमति दी गई है।
अतिरिक्त कर प्रोत्साहन: जैव ईंधनों के लिए, नीति में 2जी इथनॉल जैव रिफाइनरी के लिए 1जी जैव ईधनों की तुलना में अतिरिक्त कर प्रोत्साहनों, उच्च खरीद मूल्य के अलावा 6 वर्षों में 5000 करोड़ रुपये की निधियन योजना के लिए व्यावहारिकता अन्तर का संकेत दिया गया है।
आपूर्ति श्रृंखला तंत्र: नीति गैर-खाद्य तिलहनों, इस्तेमाल किए जा चुके खाना पकाने के तेल, लघु गाभ फसलों से जैव डीजल उत्पादन के लिए आपूर्ति श्रृंखला तंत्र स्थापित करने को प्रोत्साहन दिया गया।
इन प्रयासों के लिए नीति दस्तावेज में जैव ईंधनों के संबंध में सभी मंत्रालयों/विभागों की भूमिकाओं और जिम्मेदारियों का अधिग्रहण किया गया है।
संभावित लाभ
आयात निर्भरता कम होगी : एक करोड़ लीटर ई-10 वर्तमान दरों पर 28 करोड़ रुपये की विदेशी मुद्रा की बचत करेगा। इथनॉल आपूर्ति वर्ष 2017-18 में करीब 150 करोड़ लीटर इथनॉल की आपूर्ति दिखाई देने की उम्मीद है जिससे 4000 करोड़ रुपये की विदेशी मुद्रा की बचत होगी।
स्वच्छ पर्यावरण – एक करोड़ लीटर ई-10 से करीब 20,000 हजार टन कार्बनडाइक्साइड उत्सर्जन कम होगा। वर्ष 2017-18 इथनॉल आपूर्ति के लिए कार्बनडाइक्साइड 30 लाख टन उर्त्सजन कम होगा। फसल जलाने में कमी लाने और कृषि संबंधी अवशिष्ट/कचरे को जैव ईंधनों में बदलकर ग्रीन हाउस गैस उत्सर्जन में और कमी आएगी।
स्वास्थ्य संबंधी लाभ : खाना पकाने के लिए तेल खासतौर से तलने के लिए लंबे समय तक उसका दोबारा इस्तेमाल करने से स्वास्थ्य के लिए खतरा पैदा हो सकता है और अनेक बीमारियां हो सकती हैं। इस्तेमाल हो चुका खाना पकाने का तेल जैव ईंधन के लिए संभावित फीडस्टॉक हो सकता है और जैव ईंधन बनाने के लिए इसके इस्तेमाल से खाद्य उद्योगों में खाना पकाने के तेल के दोबारा इस्तेमाल से बचा जा सकता है।
एमएसडब्लयू प्रबंध : एक अनुमान के अनुसार भारत में हर वर्ष 62 एमएमटी निगम का ठोस कचरा निकलता है। ऐसी प्रौद्योगिकियां उपलब्ध हैं जो कचरा/प्लास्टिक, एमएसडब्ल्यू को ईंधन में परिवर्तित कर सकती हैं। ऐसे एक टन कचरे में ईंधनों के लिए करीब 20 प्रतिशत बूंदें प्रदान करने की संभावना है।
ग्रामीण इलाकों में आधारभूत संरचना निवेश : एक अनुमान के अनुसार के एक 100 केएलपीडी जैव रिफाइनरी के लिए करीब 800 करोड़ रुपये के पूंजी निवेश की आवश्यकता होती है। वर्तमान में तेल विपणन कंपनियां करीब 10,000 करोड़ रुपये के निवेश से बारह 2जी रिफाइनरियां स्थापित करने की प्रक्रिया में है। साथ ही देश में 2जी जैव रिफाइनरियों से ग्रामीण क्षेत्रों में आधारभूत संरचना में निवेश के लिए प्रोत्साहित किय जा सकेगा।
रोजगार सृजन : एक 100 केएलपीडी 2जी जैव रिफाइनरी संयंत्र परिचालनों, ग्रामीण स्तर के उद्यमों और आपूर्ति श्रृंखला प्रबंधन में 1200 नौकरियां देने में योगदान दे सकती हैं।
किसानों की अतिरिक्त आय : 2जी प्रौद्योगिकियों को अपना कर कृषि संबंधी अवशिष्टों/ कचरे को इथनॉल में बदला जा सकता है और यदि इसके लिए बाजार विकसित किया जाए तो कचरे का मूल्य मिल सकता है जिसे अन्यथा किसान जला देते हैं। साथ ही, अतिरिक्त उत्पादन चरण के दौरान उनके उत्पादों के लिए उचित मूल्य नहीं मिलने का खतरा रहता है। अत: अतिरिक्त अनाजों को परिवर्तित करने और कृषि बॉयोमास मूल्य स्थिरता में मदद कर सकते हैं।