Thursday 30 November 2017

मन या बुद्धि – कौन सही है?


एक समय एक आश्रम में एक प्रतियोगिता हुई जिसमें जीतने वाले को आश्रम के सर्वश्रेष्‍ठ पुरूष्‍कार से सम्‍मानित किया जाना था। आश्रम के सभी शिष्‍यों को गुरूदेव ने आश्रम के पांडाल में एकत्रित होने के लिए कहा। जब सभी शिष्‍य पांडाल में एकत्रित हो गए तो गुरूजी के एक सेवक द्वारा उनके सामने एक ऐसा रथ लाकर खड़ा कर दिया, जिसमें दो घोड़े बंधे हुए थे अौर रथ का मुँह उत्तर दिशा की ओर था जबकि दोनों घोड़े एक दूसरे की विपरीत दिशा में देख रहे थे।

जब सेवक रथ खड़ा करके चला गया तो गुरूजी ने शिष्‍यों से पूछा कि- शिष्‍यों तुम्‍हारे सामने एक रथ खडा है, जिसमें दो घोड़े बंधे हैं, लेकिन जैसाकि तुम सभी देख सकते हो, कि दोनों घोड़ों  में से एक का मुँह पूर्व की आेर है जबकि दूसरे का पश्चिम की ओर। तुम्‍हें बताना ये है कि अगर सारथी रथ को आगे बढ़ाए, तो रथ किस दिशा में जाएगा?

जब गुरूजी ने अपनी बात पूरी की तो एक शिष्‍य ने  प्रत्युत्तर  दिया कि- रथ पूर्व दिशा की ओर जायेगा।

गुरूदेव ने पूछा- कैसे?

तो शिष्‍य ने इसका उत्तर दिया- पूर्व दिशा का घोड़ा अधिक बलशाली है।

गुरूदेव ने अन्‍य शिष्‍यों से पूछा- कोई और इस प्रश्‍न का उत्तर देना चाहेगा?

ताे एक दूसरे शिष्‍य ने कहा- नहीं  गुरूदेव  घोड़ा पूर्व दिशा की आेर नही बल्कि पश्चिम दिशा की ओर जाएगा क्‍योंकि रथ का झुकाव पश्चिम दिशा की ओर है।

तभी एक तीसरे शिष्‍य ने कहा कि- घोड़ा न पूर्व दिशा की ओर जाएगा, न ही पश्चिम दिशा कि ओर, वह दक्षिण की ओर जाएगा।

तीसरे शिष्‍य का उत्तर सुन कर गुरूदेव व सभी अन्‍य शिष्‍यों को बहुत आश्‍यर्च हुआ। सो गुरूजी ने उससे पूछा कि- तुम यह कैसे कह सकते हो?

तीसरे शिष्‍य ने उत्तर दिया कि- गुरूदेव  ये घोड़े अपनी मर्जी के मालिक हैं। इसलिए इनका जिस ओर मन करेगा, ये उस ओर आगे बढ़ेंगे।

तीसरे शिष्‍य का ये उत्तर सुन कर गुरूदेव सहित वहाँ उपस्थित सभी शिष्‍य हंस पड़े लेकिन गुरूजी किसी भी शिष्‍य के जवाब से संतुष्‍ट दिखाई नहीं दिए। इसलिए  उन्‍होंने फिर से पूछा कि- कोई और इस प्रश्‍न का उत्तर देना चाहेगा?

तभी वहाँ बैठे एक शिष्‍य ने पूछा- गुरूदेव  रथ में कितने सारथी है?

गुरूदेव ने उत्तर दिया कि- रथ में केवल एक ही सारथी है।

शिष्‍य ने कहा कि- गुरूदेव  रथ मे केवल एक ही सारथी है तो दोनों घोड़े उसी दिशा में जाऐंगे जिस ओर सारथी उनको लेकर जायेगा क्‍योंकि दोनों घोड़े, सारथी के अधीन हैं, न कि सारथी घोड़ों के।

इस लघुकथा से हमें ये शिक्षा मिलती है कि हमारा मन और बुद्धि, दो अलग दिशा में भागने वाले घोड़ों के समान हैं। मन कहता है कि हमें किसी अमुक कार्य को करना चाहिए जबकि बुद्धि उसी कार्य को करने से रोक देता है। इस स्थिति में सही निर्णय केवल तभी लिया जा सकता है जबकि आप एक सारथी की तरह दोनों को अपने नियंत्रण में रखें न कि स्‍वयं इन दोनों में से किसी एक के नियंत्रण में होकर निर्णय लें।

मन हमेंशा सरल रास्‍ता चुनते हुए निर्णय लेने हेतु अपना पक्ष रखता है जबकि बुद्धि हमेंशा गुण-दोष का विचार करते हुए निर्णय लेने हेतु अपना पक्ष रखता है। यानी मन और बुद्धि, किसी विषय पर निर्णय नहीं लेते, बल्कि उपयुक्‍त निर्णय लेने हेतु केवल अपना पक्ष रखते हैं और निर्णय हमेंशा हम लेते हैं। लेकिन हमारे निर्णय तब गलत होते हैं, जब हम या तो केवल मन की सुनते हैं या फिर केवल बुद्धि की जबकि निर्णय हमेंशा मन और बुद्धि दोनों की सुनने के बाद विवेक के आधार पर लेना चाहिए।

अक्‍सर लोग मन और बुद्धि के बीच अन्‍तर नहीं कर पाते। यानी ये नहीं समझ पाते कि उनके द्वारा लिया जा रहा निर्णय मन से प्रेरित है अथवा बुद्धि से। इसलिए मन व बुद्धि के बीच अन्‍तर समझने के लिए हम एक उदाहरण देखते हैं।

मान लीजिए कि आप किसी अनजान शहर में हैं और आपको रेलवे स्‍टेशन जाना है। आप किसी रास्‍ते पर चल रहे हैं। चलते-चलते वह रास्‍ता Left व Right दो रास्‍तों में बंट जाता है। अब यदि आप बिना ये जाने हुए कि आप सही रास्‍ते पर जा रहे हैं या नहीं, Left या Right किसी एक रास्‍ते पर चलना शुरू कर देते हैं, क्‍योंकि पहली नजर में वह रास्‍ता आपको अच्‍छा, सरल या सही लगता है, तो आप द्वारा लिया गया ये निर्णय मन से प्रेरि‍त है। जबकि इस दो-राहे पर यदि आप रूक जाते हैं और किसी अाने-जाने वाले से रेलवे स्‍टेशन का सही रास्‍ता पूछने के बाद ही किसी एक रास्‍ते पर आगे बढते हैं, तो आप द्वारा लिया गया ये निर्णय आपकी बुद्धि से प्रेरित है।

क्‍योंकि मन हमेंशा सरल, सुखद व सुविधायुक्‍त रास्‍ता खोजता है, बिना ये सोंचे-समझे कि उस रास्‍ते पर चलने के क्‍या अच्‍छे या बुरे परिणाम हो सकते हैं। जबकि बुद्धि हमेंशा तर्क के आधार पर सही-गलत का अन्‍दाजा लगाने के बाद ही किसी रास्‍ते पर चलने हेतु प्रेरित करती है, फिर भले ही वह रास्‍ता कठिन ही क्‍यों न हो।

सरल शब्‍दों में कहें तो यदि आपका निर्णय तुक्‍के पर आधारित है, तो आपका निर्णय मन से प्रेरित है। जबकि यदि आपका निर्णय निश्चित तथ्‍यों पर आधारित है, तो आपका निर्णय बुद्धि से प्रेरित है।

Tuesday 28 November 2017

आईएफएफआई-2017 (भारतीय अंतर्राष्ट्रीय फिल्म समारोह-2017) में ‘120 बिट्स पर मिनट’ को स्वर्ण मयूर ट्रॉफी


रोबिन केम्पिलो द्वारा निर्देशित फ्रांस की फिल्म ‘120 बिट्स पर मिनट’ ने आईएफएफआई 2017 में सर्वश्रेष्ठ फिल्म का पुरस्कार हासिल किया। इस पुरस्कार में स्वर्ण मयूर ट्रॉफी, प्रमाण पत्र एवं 40,00,000 रुपये का नकद पुरस्कार, जिसे निर्देशक एवं निर्माता में समान रूप से विभाजित किया गया, शामिल हैं। नहुएल पेरेज बिक्सायार्ट को ‘120 बिट्स पर मिनट’ के लिए सर्वश्रेष्ठ अभिनेता का पुरस्कार मिला और उन्हें रजत मयूर प्रदान किया गया। ‘120 बिट्स पर मिनट’ 1990 के दशक में पेरिस में कार्यकर्ताओं के एक समूह की कहानी है, जो एचआईवी/एड्स मरीजों के पक्ष में संघर्ष करने के दौरान सरकारी एजेंसियों एवं फॉर्मास्यूटिकल क्षेत्र की बड़ी कंपनियों का मुकाबला करते हैं।

संघर्ष और वकालत


पिकासो (Picasso) स्पेन में जन्मे एक अति प्रसिद्ध चित्रकार थे। उनकी पेंटिंग्स दुनिया भर में करोड़ों और अरबों रुपयों में बिका करती थीं।

एक दिन रास्ते से गुजरते समय एक महिला की नजर पिकासो पर पड़ी और संयोग से उस महिला ने उन्हें पहचान लिया। वह दौड़ी हुई उनके पास आयी और बोली, 'सर, मैं आपकी बहुत बड़ी फैन हूँ। आपकी पेंटिंग्स मुझे बहुत ज्यादा पसंद हैं। क्या आप मेरे लिए भी एक पेंटिंग बनायेंगे?'
पिकासो हँसते हुए बोले, 'मैं यहाँ खाली हाथ हूँ। मेरे पास कुछ भी नहीं है। मैं फिर कभी आपके लिए एक पेंटिंग बना दूंगा।'
लेकिन उस महिला ने भी जिद पकड़ ली, 'मुझे अभी एक पेंटिंग बना दीजिये, बाद में पता नहीं मैं आपसे मिल पाऊँगी या नहीं।'
पिकासो ने जेब से एक छोटा सा कागज निकाला और अपने पेन से उसपर कुछ बनाने लगे। करीब 10 मिनट के अंदर पिकासो ने पेंटिंग बनायीं और कहा, 'यह लो, यह मिलियन डॉलर की पेंटिंग है।'
महिला को बड़ा अजीब लगा कि पिकासो ने बस 10 मिनट में जल्दी से एक काम चलाऊ पेंटिंग बना दी है और बोल रहे हैं कि मिलियन डॉलर की पेंटिग है। उसने वह पेंटिंग ली और बिना कुछ बोले अपने घर आ गयी।
उसे लगा पिकासो उसको पागल बना रहा है। वह बाजार गयी और उस पेंटिंग की कीमत पता की। उसे बड़ा आश्चर्य हुआ कि वह पेंटिंग वास्तव में मिलियन डॉलर की थी।
वह भागी-भागी एक बार फिर पिकासो के पास आयी और बोली, 'सर आपने बिलकुल सही कहा था। यह तो मिलियन डॉलर की ही पेंटिंग है।'
पिकासो ने हँसते हुए कहा,'मैंने तो आपसे पहले ही कहा था।'
वह महिला बोली, 'सर, आप मुझे अपनी स्टूडेंट बना लीजिये और मुझे भी पेंटिंग बनानी सिखा दीजिये। जैसे आपने 10 मिनट में मिलियन डॉलर की पेंटिंग बना दी, वैसे ही मैं भी 10 मिनट में न सही, 10 घंटे में ही अच्छी पेंटिंग बना सकूँ, मुझे ऐसा बना दीजिये।'
पिकासो ने हँसते हुए कहा, 'यह पेंटिंग, जो मैंने 10 मिनट में बनायी है, इसे सीखने में मुझे 30 साल का समय लगा है। मैंने अपने जीवन के 30 साल सीखने में दिए हैं तुम भी दो, सीख जाओगी। वह महिला अवाक् और निःशब्द होकर पिकासो को देखती रह गयी।

भारत का इतिहास एवं संस्कृति (GK Q & A, भाग-116)

  • इलाहबाद स्थित अषोक स्तम्भ किस साम्राज्य के सम्बन्ध में सूचना देता है - समुन्द्रगुप्त
  • मौर्यकाल में षिक्षा का सर्वाधिक प्रसिद्ध केन्द्र था - तक्षषिला
  • ‘बीजक’ किसके द्वारा रचित है - कबीर
  • किस चित्रकार को  ‘षीरी कलम’ की उपाधि अकबर द्वारा दी गई थी - अब्दुस समद
  • भारतीय राष्ट्रिय काँग्रेस क्षरा किसकी असफलता के बाद भारत छोड़ो आन्दोलन प्रारम्भ किया गया - क्रिप्स मिशन
  • हिन्दू और मुसलमानों की एकता स्थापित करने के सम्बन्ध में ऐसा अवसर अगले 100 वर्षों तक नहीं मिलेगा-खिलाफत आन्दोलन के सम्बन्ध में किसने सोचा था - गाँधी
  • भारतीय संगीत का मूल किस वेद को कहा जाता है - सामवेद को
  • सैधव सभ्यता के किस स्थल की प्रमुख उपलब्धि जहाजों को गोदी है - लोथल की
  • बौद्ध धर्म में भिक्षुओं का कल्याण मित्र किसे कहा जाता है - अष्टागिंक मार्ग को
  • निकैया एवं बुकाफेला नामक नगरों की स्थापना किसके द्वारा की गई - सिकन्दर महान्
  • किस गुप्त शासक को कविराज की उपाधि से विभूषित किया गया है - समुन्द्रगुप्त
  • ‘दुनिया का खान’ दिल्ली सल्तनत के किस सुल्तान को कहा गया - मुहम्मद बिन तुगलक
  • अकबर ने तीर्थ-यात्रा कर को कब समाप्त किया - 1563 ईस्वी में
  • 1612 इस्वी में किस मुगल बादषाह ने पहली बार रक्षाबंधन का त्योहार मनाया - जहाँगीर ने
  • कर्नल टाॅड ने ‘राठौड़ों का यूलिसीज’ किसे कहा है - वीर राठौड़ दुर्गादास को
  • 1893 ईस्वी में न्यूयार्क में स्वामी विवेकानन्द द्वारा दिए गए भाषण के बारे में किस समाचार-पत्र ने लिखा, ‘उनको सुनने के बाद हम यह अनुभव करते है कि ऐसे ज्ञान सम्पन्न देष में अपने धर्म प्रचारक भेजना कितना मूर्खतापूर्ण है। - न्यूयार्क हेराल्ड
  • किसने जलियावाला बाग हत्याकांड के बाद अपनी नाइट की उपाधि ब्रिटिष शासन को वापस कर दी - रविन्द्र नाथ टैगोर ने
  • भारतीय चित्रकला का पावन तीर्थ अजन्ता को कहा जाता है, जहां कुल 30 गुफाऐं है, अजन्ता   कहाँ  स्थित है - औरंगाबाद (महाराष्ट्र)
  • वृहदारण्यक उपनिषद् अन्य उपनिषदों में सबसे विषाल है, इसके प्रधान प्रवक्ता कौन है - महर्षि याज्ञवल्क्य
  • महात्मा बुद्ध ने अपने जीवन-काल में सर्वाधिक उपदेष कहां दिए - श्रावस्ती (कोषल प्रदेष की राजधानी)
  • महावीर स्वामी की मृत्यु के बाद जैन संघ का प्रथम अध्यक्ष कौन बना - सुधर्मन
  • कंदरिया महादेव का मन्दिर कहां स्थित है - खजुराहो (मध्यप्रदेश)
  • वासुदेव कृष्ण को किस जैन तीर्थंकर के समकालीन बताया गया है - अरिष्टनेमि के
  • बंगाल में सहजिया सम्प्रदाय की स्थापना किसने की - कवि चण्डीदास ने
  • मोहिनीअट्टम नृत्य का स्वरूप एकल होता है, यह नृत्य किस राज्य से संबंधित है - केरल से
  • भारतीय मानव विज्ञान सर्वेक्षण कहां स्थित है - कोलकाता में
  • प्रेस ट्रस्ट आॅफ इंडिया भारत के सबसे बड़ी समाचार एजेन्सी है जिसकी स्थाना की गई - 1947 में
  • अलाई दरवाजा दिल्ली के सुल्तान अलाउद्दीन खिलती के द्वारा बनवाया गया, जिसके बारे में किस कला मर्मज्ञ ने कहा कि ‘अलाई दरवाजा इस्लामी स्थापत्य के खजाने का सबसे सुन्दर हीरा है - मार्शल

भारत में ऊर्जा के संसाधन (GK Q & A, भाग-115)


  • N.T.P.C. का पूरा नाम क्या है— नेशनल थर्मल पावर कॉर्पोरेशन 
  • N.T.P.C. की स्थापना कब हुई— 1975 ई. 
  • N.H.P.C. का पूरा नाम क्या है— नेशनल हाइड्रोइलेक्ट्रो पावर कॉर्पोरेशन 
  • N.H.P.C. की स्थापना कब हुई— जून 1976 ई. 
  • A.E.C. का पूरा नाम क्या है— एटॉमिक एनर्जी कमीशन (परमाणु ऊर्जा आयोग)
  • A.E.C. का स्थापना कब हुई— 1948 ई. 
  • D.A.C. का पूरा नाम क्या है— डिपार्टमेंट ऑफ एटॉमिक एनर्जी (परमाणु ऊर्जा विभाग)
  • D.A.C. की स्थापना कब हुई— 1954 ई. 
  • कौन-सा स्त्रोत गैर परंपरागत स्त्रोत की श्रेणी में आता है— बायोगैस 
  • किस प्रकार की ऊर्जा से वायु प्रदूषण सबसे कम होता है— सौर ऊर्जा 
  • भारत में सबसे अधिक ऊर्जा किससे प्राप्त की जाती है— ताप विद्युत 
  • भारत में पहली लहर ऊर्जा परियोजना कहाँ स्थापित की गई— विझिनजाम (त्रिवेंद्रम के पास)
  • काकरापार परमाणु शक्ति केन्द्र किस राज्य में है— गुजरात 
  • भारत का प्रथम परमाणु रिएक्टर कौन-सा है और यह कब शुरू हुआ— अप्सरा, 1956 ई. 
  • शून्य ऊर्जा एक्सपैरीमेंटल थर्मल रिएक्टर कौन-सा है— जरलीना 
  • भारत का पहला न्यूट्रॉन रिएक्टर कौन-सा है— कामिनी (1988 ई.)
  • भारत में परमाणु ऊर्जा का उत्पादन कब आरम्भ हुआ— 1969 ई. 
  • भारत में परमाणु ऊर्जा का शुभारम्भ कहाँ से हुआ— तारापुर 
  • तारापुर परमाणु केंद्र कहाँ है— महाराष्ट्र 
  • रावतभाटा परमाणु केंद्र कहाँ है— राजस्थान 
  • कैगा परमाणु शक्ति केंद्र किस राज्य में है— कर्नाटक 
  • भारत में वर्तमान में कितने परमाणु रिएक्टर कार्यरत हैं— 20 
  • भारत के परमाणु रिएक्टरों में कितने मेगावाट विद्युत पैदा होती है— 4780 
  • भारत में उत्पादित परमाणु ऊर्जा देश में कुल उत्पादित विद्युत का कितने % है— 3% 
  • भारत में भूतापीय ऊर्जा का संयंत्र कहाँ स्थापित किया गया है— हिमाचल प्रदेश 
  • चूखा जलविद्युत परियोजना किन देशों की संयुक्त परियोजना है— भारत व भूटान 
  • भारत की प्रथम जलविद्युत परियोजना कौन-सी है व किस नदी पर है— शिवसमुद्रम परियोजना, कावेरी नदी पर 
  • भारत व एशिया की एकमात्र अधोभौमिक संचय जलविद्युत परियोजना किस राज्य में है— हिमाचल प्रदेश 
  • भारत में विद्युत आपूर्ति सर्वप्रथम कहाँ हुई— दार्जिलिंग में 
  • पवन ऊर्जा के उत्पादन में भारत का कौन-सा स्थान है— पांचवाँ 
  • भारत में वाणिज्यिक ऊर्जा की कितने % पूर्ति कोयले से होती है— 67% 
  • भारत में ओबरा शहर क्यों प्रसिद्ध है— थर्मल पावर प्लांट के लिए 
  • भारत में भूतापीय ऊर्जा संयंत्र कहाँ है— हिमालय प्रदेश के मणिकर्ण में 
  • देश के कुल विद्युत उत्पादन में ताप विद्युत का योगदान कितना है— 70% 
  • तालचेर एवं इन्नौर किसके लिए विख्यात है— तापीय शक्ति संयंत्रों हेतु 
  • मुंद्रा अल्ट्रा मेगा पावर परियोजना कहाँ स्थित है— गुजरात 
  • N.T.P.C. सिंगरौली कहाँ स्थित है— उत्तर प्रदेश 
  • लोकटक शक्ति परियोजना किस राज्य में स्थित है— मणिपुर 
  • टनकपुर परियोजना किस राज्य में है— उत्तराखंड में 
  • उत्तराखंड राज्य पूर्णतया किस प्रकार की ऊर्जा पर निर्भर है— जलविद्युत ऊर्जा पर 
  • B.A.R.C. का पूरा नाम क्या है— भाभा एटामिक रिसर्च सेंटर 
  • B.A.R.C. का मुख्यालय कहाँ है— ट्रॉम्बे (महाराष्ट्र)
  • परमाणु शोध के इंदिरा गाँधी केंद्र की स्थापना कब व कहाँ की गई— 1971 ई., कलपक्कम् (चेन्नई) 
  • भारत विश्व का कौन-से नंबर का सबसे बड़ा ऊर्जा उत्पादक देश है और यह कुल ऊर्जा का कितना उत्पादन करता है— 11 वां और 2.4% 
  • विश्व के सबसे बड़े ऊर्जा उपभोक्ता देशों में भारत का स्थान कौन-सा है— छठा 
  • भारत विश्व की कुल ऊर्जा का कितने % उपभोग करता है— 3.7% 
  • भारत में ऊर्जा की विकास दर कितने % प्रतिवर्ष है— 3.6%
  • कोयला उत्पादन में भारत का स्थान विश्व में अमेरिका और चीन के बाद कौन-सा है— तीसरा 
  • भारत में कोयले के उत्पादन का कितने % से भी अधिक गैर-कोककारी कोयले का उत्पादन होता है— 90% 
  • कोयले की सर्वाधिक खपत किसमें होती है— विद्युत उत्पादन में 
  • भारत कोयले का कुछ निर्यात अपने किन समीपवर्ती देशों को करता है— म्यांमार, श्रीलंका, पाकिस्तान व सिंगापुर 
  • भारत अच्छे किस्म का कुकिंग कोयला किस देश से आयात करता है— ऑस्ट्रेलिया 
  • भारत के कुल सिंचित भंडार का कितने % कोयला गोंडवाना काल का है— 96% 
  • भारत के कुल उत्पादन का लगभग कितने % भाग गोंडवाना काल के कोयले से प्राप्त होता है— 98% 
  • भारत में मिलने वाला गोंडवाना काल का कोयला मुख्यतः किस प्रकार का है— बिटुमिनस 
  • कोयला उत्पादन में अग्रणी 5 राज्य कौन-कौन से हैं— क्रमशः झारखंड, छत्तीसगढ़, ओड़िशा, मध्य प्रदेश व आंध्र प्रदेश 
  • असम में पहली बार 1835 ई. में पेट्रोलियम किस क्षेत्र में मिला— माकूम 
  • असम में वास्तविक उत्पादन कार्य 1890 ई. में कहाँ से प्रारंभ हुआ— डिग्बोई 
  • असम के नाहरकटिया एवं हुगरीजान-मोरान क्षेत्र का तेल पाइपलाइन द्वारा कहाँ भेजा जाता है— नून एवं बरौनी (बिहार) 
  • भारत में प्राकृतिक गैस के भंडार कहाँ-कहाँ स्थित हैं— खंभात की खाड़ी (गुजरात); अंकलेश्वर (गुजरात); बोम्बे हाई (महाराष्ट्र); मोराह, नाहरकटिया (असोम); नामटिक नियाओपंग और लाप्टांग पंग  (अरुणाचल प्रदेश); बारामुरा श्रेणी (त्रिपुरा); कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश);  फिरोजपुर (पंजाब); मिदनापुर (पश्चिम बंगाल); नौसर-मुरादपुर  (जम्मू-कश्मीर); तंजावुर और चिंगलपेट (तमिलनाडु) 
  • अंकलेश्वर किस राज्य का सर्वाधिक महत्वपूर्ण तेल क्षेत्र है— गुजरात 
  • गुजरात का दूसरा प्रमुख तेल क्षेत्र कौन-सा है— खंभात (लुनेज) क्षेत्र 
  • कृष्णा-गोदावरी के तटीय क्षेत्रों में प्राकृतिक गैसे के विशाल भंडारों की खोज किसके द्वारा की गई है— रिलायंस इंडस्ट्रीज 
  • आंध्र प्रदेश राज्य में किन क्षेत्रों से बड़ी मात्रा में प्राकृतिक गैस का उत्पादन हो रहा है— रखा, लक्ष्मी और गौरी 
  • भारत के कुल ऊर्जा संसाधन में प्राकृतिक गैस का योगदान कितना है— 9-10%
  • वर्तमान में भारत अपनी आवश्यकता का लगभग कितने % पेट्रोलियम एवं पेट्रोलियम उत्पादों का आयात करता है— 70% 
  • सौर ऊर्जा के दोहन के लिए सरकार ने जवाहरलाल नेहरू नेशनल सोलर मिशन की शुरूआत कब की— 11 जनवरी, 2009 

Monday 27 November 2017

अनुशासन ही बनाता है आपको सफल (The Importance of Discipline in Our Life)


जरा आप खुद से एक सवाल करें – क्या अनुशासन के बगैर एक एथलीट दौड़ की प्रतियोगिता को जीत सकता है? क्या एक कप्तान जहाज को सही ढंग से चला सकता है? एक वायलिन वादक किसी संगीत समारोह में अच्छी तरह से वायलिन बजा सकता है? बिल्कुल नहीं। तो फिर अपने निजी काम में हमें अनुशासन की कमी क्यों नजर आती है? कहने का तात्पर्य यह है कि काम चाहे आसान हो या मुश्किल, व्यक्तिगत हो या सेवा संबंधी, अनुशासन के बगैर उसका सफल संचालन नामुमकिन है, यानी कि उसमें गलती होने की आशंका हमेशा ही बनी रहेगी।

अनुशासन का मतलब है, किसी काम को सही तरीके से संपादित करना। ऐसा करने में हमें अतिरिक्त मेहनत करने की जरूरत पड़ सकती है, पर यह भी सच है कि मंजिल तक पहुंचने का यही एक रास्ता है। जो अनुशासित रहते हुए अपने काम में अथक परिश्रम करते हैं, सफलता उनको ही नसीब होती है। अनुशासन का पालन करना आपके लिए कई बार कष्टप्रद हो सकता है, पर अंततः वह आपको सफलता की ओर ही ले जाता है।

व्यक्ति का स्वभाव ही ऐसा होता है कि वह नतीजे की परवाह किए बिना ही अपनी इच्छा के अनुसार काम करना पसंद करता है और नियमानुसार काम करने की बजाय शॉर्ट कट तरीका अपनाता है या गलत ढंग से सफलता प्राप्त करने की कोशिश करता है। अनुशासन रहित ऐसा प्रयास हो सकता है कि व्यक्ति को क्षणिक सफलता दिला दे, पर आखिरकार इससे नाकामी ही हासिल होती है। इसलिए अपने काम में अनुशासन जरूरी है। तभी काम को पूरा करने का दृढ़ संकल्प भी हमारे मन में बना रहता है। अनुशासन व्यक्ति, समाज और देश दोनों के लिए बेहद जरूरी है।

अगर किसी बच्चे को आप उसकी इच्छानुसार चॉकलेट खाने की आजादी दे दें, तो क्या आप इससे होने वाले दुष्परिणामों की कल्पना कर सकते हैं? लगभग सभी बच्चे चॉकलेट खाना पसंद करते हैं। चॉकलेट खाने की आजादी का परिणाम होता है कि वे बस चॉकलेट खाते ही चले जाते हैं। ऐसे में चॉकलेट खाने की उनकी आदत में अनुशासन कमी नजर आने लगती है। फलस्वरूप वे बीमार पड़ जाते हैं। स्पष्ट है कि यदि अनुशासित ढंग से वे एक या दो चॉकलेट रोजाना खाएं, तो चॉकलेट खाने का सही आनंद उठा सकते हैं। उपर्युक्त उदाहरण जीवन में अनुशासन की जरूरत और महत्ता को दर्शाता है।

अनुशासन का पालन करने का अर्थ यह नहीं है कि आप नियमों और तौर-तरीकों के गुलाम हो गए और आपकी आजादी छिन गई। यह सोच गलत है। अगर ट्रेन को पटरी से उतार दें, तो वह आजाद हो जाएगी। लेकिन जरा सोचिए, ऐसे में क्या वह चल पाएगी? अगर इंसान खुद ही अपना ट्रैफिक कानून बनाने लगे, तो फिर ट्रैफिक का क्या हाल होगा, आप इसका सहज ही अनुमान लगा सकते हैं। अनुशासन आजादी में खलल नहीं है, बल्कि नियम-कानून के अनुसार किसी काम को करने की सीख है। इसलिए अनुशासित बनें और लक्ष्य पर निगाह रखें, आपको सफल होने से कोई रोक नहीं सकता।

Sunday 26 November 2017

अनुरक्ति – संस्कृत में पहली 3D फिल्म



संस्कृत भाषा में पहली बार बनी 3 डी फिल्म अनुरक्ति है, जिसे हाल ही में गोवा में आयोजित 48वें इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल ऑफ इंडिया में दिखाया गया है। इसे अशोकम पी.के ने डायरेक्ट और विजित पीके ने प्रोड्यूस किया है। फिल्म अगले साल फरवरी तक रिलीज होगी।

फिल्म की कहानी ‘वसुधा’ नाम की लड़की के चारों ओर घूमती है, नायिका वसुधा जो एक पंजाबी नृत्यांगना हैं और केरल कुडीयाट्टम नृत्य सीखने आती है, यह नृत्य नाटक का एक आला रूप है। वसुधा को यहां उसके गुरु के बेटे से प्यार हो जाता है। किसी बात को लेकर दोनों के बीच एक गलतफहमी होती है और कहानी आगे बढ़ती है। फिल्म की अवधि 80 मिनट है। फिल्म में कोई भाषाई गलती ना हो इसलिए फिल्म बनाते समय 10 शिक्षकों की मदद ली गई है।

कर्नाटक में अंधविश्वास निरोधक विधेयक, 2017


भारतीय संविधान के अनुच्छेद 51(A) के अनुसार, ‘यह प्रत्येक नागरिक का कर्तव्य है कि, वह वैज्ञानिकता और मानवतावाद की भावना को बढ़ावा दे।’ इसी के मद्देनजर कर्नाटक सरकार ने राज्य में प्रचलित अंधविश्वास एवं कुरीतियों के खिलाफ अमानवीय प्रथाओं और काला जादू की रोकथाम और उन्मूलन विधेयक, 2017 (अंधविश्वास विरोधी विधेयक) को हाल ही में पारित किया है। जिसके सकारात्मक परिणाम की उम्मीद की जा रही है। विदित हो कि, ऐसा कानून महाराष्ट्र में बहुत पहले से है और अब कर्नाटक में इसे मजबूती से लागू करने के लिए राज्य सरकार गंभीर है।
  • 27 सितंबर, 2017 को कर्नाटक सरकार ने बहुप्रतिक्षित अमानवीय प्रथाओं और काला जादू की रोकथाम और उन्मूलन विधेयक, 2017 (अंधविश्वास विरोधी विधेयक) को मंजूरी प्रदान की।
  • हालांकि विधेयक में, केश लोचन (बालों को तोड़ने), वास्तु, ज्योतिष, धार्मिक स्थानों पर पूजा, प्रदक्षिणा, यात्रा, कीर्तन, प्रवचन आदि पर प्रतिबंध नहीं लगाया गया है।
  • इस विधेयक में कुछ गंभीर मामलों में मौत की सजा का भी प्रावधान है।
  • कर्नाटक में उरुली सिवे, मडेस्नान, माता-मंत्र, बाईबिगा प्रथा, सिदी ओखली जैसे कई रिवाज आपराधिक माने गए हैं।
  • विधेयक के मुताबिक, अगर ऐसी दकियानुसी प्रथा से इंसान की जान चली जाती है, तो दोषियों को मौत की सजा दी जा सकती है।
  • विधेयक में अंधविश्वास को फैलाने वाले तत्वों के खिलाफ कठोर कार्यवाही करने का भी प्रावधान है।
  • यदि गांव का ओझा ग्रामीणों को झाड़-फूंक के जाल में फसाएंगा, तो उसके अलावा उस व्यक्ति के खिलाफ भी कार्यवाही की जाएगी जो उसका प्रचार-प्रसार कर रहा है।
  • अंधविश्वास विरोधी विधेयक में नर बलि पर पूर्ण प्रतिबंध का प्रस्ताव किया गया है।
  • इस विधेयक में नर बलि के साथ-साथ पशु की गर्दन पर आघात कर उसकी बलि पर भी प्रतिबंध लगाया गया है।
  • इस विधेयक में ‘बाइबिगा प्रथा’ के नाम पर लोहे की रॉड को मुंह के आर-पार करते हुए करतब करने, ‘बनामाथी प्रथा’ के नाम पर पथराव करना, तंत्र-मंत्र से प्रेत या आत्मा बुलाने की मान्यता पर भी प्रतिबंध लगाया गया है।
  • विधेयक में उंगलियों द्वारा सर्जरी करने का दावा तथा किसी महिला के गर्भ में पल रहे बच्चे का लिंग बदलने का दावा करने वालों पर कठोर कार्यवाही की बात कही गई है।
  • विधेयक में बेथेल सेव (Betthale Seve) के नाम पर महिलाओं को पूजा के समय नग्न रहने की प्रथा को प्रतिबंधित किया गया है।
  • विधेयक में माता मंत्र, गंदरा डोरा जैसी उपचार व्यवस्था पर भी रोक लगाया गया है, जिसमें किसी व्यक्ति को कुत्ते, सांप या बिच्छु के काटने पर चिकित्सकीय उपचार लेने से रोका जाता है और इसके बदले उसे माता-मंत्र, गंदरा-डोरा जैसे अन्य उपचार दिए जाते हैं।
  • विधेयक में धर्म के नाम पर महिलाओं और लड़कियों के यौन शोषण को रोकने और खत्म करने का प्रावधान किया गया है।
  • अंधविश्वास विरोधी विधेयक में धर्म के नाम पर महिलाओं और बच्चियों को देवदासी बनाने पर भी प्रतिबंध लगाया गया है।

Friday 24 November 2017

दृढ निश्‍चय – सफलता के लिए आज भी उतना ही जरूरी है


हिन्‍दु धर्म ग्रंथो में मृत्यु के देव यमराज से जुड़े केवल दो ही ऐसे प्रसंग हैं जहाँ यमराज को भी मनुष्‍य की जिद के आगे मजबूर होना पड़ा था।

पहला प्रसंग सावित्री से सम्बंधित है, जहाँ यमराज को सावित्री के हठ पर मजबूर होकर उसके पति सत्यवान को पुनः जीवित करना पड़ा। जबकि दूसरा प्रसंग एक बालक नचिकेता से सम्बंधित है, जहाँ यमराज को एक बालक की जिद के आगे मजबूर होकर उसे मृत्यु से जुड़े गूढ़ रहस्य बताने पड़े।

नचिकेता के इस प्रसंग का वर्णन हिन्दू धर्मग्रन्थ कठोपनिषद में निम्‍नानुसार मिलता है:-

शाम का समय था। पक्षी अपने-अपने घोसले की ओर लौट रहे थे, लेकिन नचिकेता नाम का वह बालक आगे बढ़ा जा रहा था, जिसे न तो र्को थकान का अनुभव हो रहा था न ही कोई पछतावा था। उसे अपनी मंजिल तक पहुंचना ही था और यही उसके पिता की आज्ञा भी थी। उसका लक्ष्य था यमपुरी, जहां यमराज निवास करते थे और उसे यमराज से ही मिलना था क्‍योंकि यही उसके पिता का आदेश था।

लगातार तीन पहर तक चलने के बाद नचिकेता यमपुरी के द्वार पर जा पहुंचा, जहां दो यमदूत पहरा दे रहे थे। उन्होंने जब उस बालक नचिकेता को देखा तो आश्चर्यचकित रह गए और दोनों सोंचने लगे- कौन है यह बालक, जो मौत के मुंह में चला आया?

सहसा दोनों में से एक यमदूत ने गरजती आवाज में नचिकेता से पूछा- हे बालक, तू कौन है और यहां क्या करने आया है?

उस बालक ने धीरता के साथ उत्तर दिया- मेरा नाम नचिकेता है और मैं अपने पिता की आज्ञा से यमराजजी के पास आया हूं।

दूसरे यमदूत ने प्रश्न किया- लेकिन क्यों मिलना चाहते हो तुम यमराज से?

नचिकेता ने उत्तर दिया- क्योंकि मेरे पिताश्री ने उन्हें मेरा दान कर दिया है।

नचिकेता की बात सुनकर दोनों यमदूत हैरान रह गए। ये कैसा अजीब बालक है, जिसे मृत्यु का भी भय नहीं और यमराज से मिलने चला आया। उन्होंने उसे डराना चाहा, पर नचिकेता दृढ निश्‍चय के साथ अपने निर्णय पर अडिग रहा और बराबर यमराज से मिलने की इच्‍छा प्रकट करता रहा। बालक की जिद को देख अन्‍त में एक यमदूत बोला- वे इस समय यमपुरी में नहीं हैं। तीन दिन बाद लौटेंगे। इसलिए तुम भी तीन दिन बाद ही आना।

नचिकेता ने उत्तर दिया- कोई बात नहीं, मैं तीन दिन तक प्रतीक्षा कर लूंगा।

और वह वहीं द्वार के पास बैठ गया। सहसा उसकी आंखों के आगे पिछले कुछ समय के दौरान बीती हुई एक-एक घटना चित्र की भांति घूमने लगी।

नचिकेता के पिता ऋषि वाजश्रवा उद्दालक ऋषि ने विश्वजीत नामक एक ऐसे यज्ञ का आयोजन किया, जिसमें अपना सब कुछ दान करना होता था। इसलिए उन्‍होंने विद्वानों, ऋषि-मुनियों और ब्राह्मणों को दान ग्रहण करने हेतु उस यज्ञ में आमंत्रित किया।

ब्राह्मणों को आशा थी कि यज्ञ की समाप्ति पर उद्दालक ऋषि की ओर से उन्हें अच्छी दक्षिणा मिलेगी, लेकिन जब यज्ञ समाप्त हुआ और वाजश्रवा ने दक्षिणा देनी शुरू की तो सभी आश्चर्यचकित रह गए। दक्षिणा में वह उन्‍हें वे गायें दे रहा था, जो कि कमजोर थीं, बूढ़ी हो चुकी थीं और दूध भी नहीं देती थीं। सम्‍भवतया वे अधिक जीवित भी नहीं रहने वाली थीं।

यज्ञ के प्रारंभ होने से पूर्व वाजश्रवा ने घोषणा की थी वह यज्ञ में अपनी समस्त सं‍पत्ति दान कर देगा। इसी कारण यज्ञ में कुछ ज्यादा ही लोग उपस्‍थित हुए थे। पर जब उन्होंने दान का स्तर देखा तो सभी मन ही मन काफी दु:खी व नाराज हुए लेकिन उनमें से किसी ने उद्दालक ऋषि को कुछ कहा नहीं।

लेकिन वाजश्रवा (उद्दालक ऋषि) के पुत्र नचिकेता से यह सब न देखा गया। संपत्ति के प्रति अपने पिता का यह मोह उसे सहन नहीं हुआ। इसलिए वह अपने पिता के पास जाकर बोला- पिताजी, ये आप क्या कर रहे हैं?

उद्दालक ऋषि ने कहा- देखते नहीं हो, मैं ब्राह्मणों को दान दे रहा हूँ।

तो नचिकेता ने विनम्रतापूर्वक कहा- लेकिन ये गायें तो कमजोर और बूढ़ी हैं और सम्‍भवतया दूध भी नहीं देतीं, जबकि आपको अच्छी गायें दान में देनी चाहिए, ताकि जिसे दान दिया जाए, उसके लिए वे उपयोगी हों।

वाजश्रवा नाराज होकर झल्लाते हुए कहने लगा- क्या तुम मुझसे ज्यादा जानते हो कि कौन सी चीज दान में देनी चाहिए, कौन सी नहीं?

नचिकेता ने कहा- हाँ पिताजी। दान में वह वस्तु दी जानी चाहिए, जो व्यक्ति को सबसे ज्यादा प्रिय हो और आपको तो सबसे ज्‍यादा प्रिय मैं ही हूँ। इसलिए आप मुझे किसको दान में देंगे?

नचिकेता की इस बात का वाजश्रवा ने कोई उत्तर न दिया लेकिन नचिकेता ने हठ ही पकड़ ली। वह बार-बार अपने पिता ये यही प्रश्न करता रहा कि- पिताजी आप मुझे किसको दान में देंगे?

काफी देर तक वाजश्रवा, अपने पुत्र नचिकेता की बातों को अनसुना करता रहा, लेकिन जब नचिकेता न माना तो झल्लाहट में वाजश्रवा ने कह दिया कि- जा, मैं तुझे यमराज को दान में देता हूँ।

अगले ही पल वाजश्रवा को अपनी गलती का अहसास हुआ कि ये उसने क्या कह दिया? अपने इकलौते पुत्र को ही यमराज को दान में दे दिया?

लेकिन अब कुछ नहीं हो सकता था क्‍योंकि नचिकेता भी बहुत दृढ़ निश्चयी था इसलिए वह भी पीछे हटने वाला नहीं था। उसने पिता की ये बात सुनकर कहा- मैं आपकी आज्ञा का पालन करूंगा पिताजी, आप बिलकुल चिंतित न रहें।

अपनी गलती समझ में आते ही वाजश्रवा ने नचिकेता को बहुत समझाया, लेकिन नचिकेता नहीं माना और अपने सभी परिजनों से अंतिम भेंट करके वह यमराज से मिलने के लिए निकल पड़ा।

जिसने भी यह सुना कि वाजश्रवा ने अपने इकलौते पुत्र नचिकेता को यमराज को दान कर दिया है, वह आश्चर्यचकित हुए बिना न रह सका जबकि सभी नचिकेता के साहस की प्रशंसा करने लगे क्‍योंकि मृत्‍यु से सभी भयभीत होते हैं, जबकि नचिकेता स्‍वयं ही मृत्‍यु के देवता यमराज से मिलने चला जा रहा था।

यमपुरी के द्वार पर बैठा नचिकेता इन्‍हीं सब बीती बातों को याद कर रहा था। लेकिन उसे इस बात का संतोष था कि वह अपने पिता की आज्ञा का पालन कर रहा था और वह लगातार तीन दिन तक यमपुरी के बाहर बैठा यमराज की प्रतीक्षा करता रहा।

तीसरे दिन जब यमराज आए तो नचिकेता को द्वार पर बैठा देखकर वे चौंके और जब द्वारपालों ने उन्‍हें बताया कि नचिकेता पिछले तीन दिनों से यमराज से मिलने के लिए ही द्वार पर बैठा है, तो वे भी आश्चर्यचकित रह गए और उन्होंने नचिकेता को अपने कक्ष में बुला भेजा।

यमराज के कक्ष में पहुंचते ही नचिकेता ने उन्हें प्रणाम किया। उसे देखकर यमराज बोले- वत्स, मैं तुम्हारी पितृभक्ति और दृढ़ निश्चयी इच्‍छाशक्ति से बहुत प्रसन्न हुआ। इसलिए तुम मुझसे कोई भी तीन वरदान मांग सकते हो।

यमराज के मुख से ये बात सुनकर नचिकेता को भी बडी प्रसन्नता हुई और अपने पहले वरदान के रूप में उसने ये मांगा कि- मेरे पिता का क्रोध शांत हो जाएं और वे मुझे पहले कि तरह स्‍वीकार करें।

यमराज ने तथास्‍तु यानी ‘ऐसा ही होगा‘ कहकर उसे पहला वरदान दिया और कहा- दूसरा वरदान मांगो।

इस बार नचिकेता थोडा सोच में पड़ गया कि अब वह क्या मांगे क्‍योंकि उसे स्‍वयं तो किसी चीज की इच्‍छा थी ही नहीं। लेकिन अचानक उसे ध्यान आया कि उसके पिता ने जो यज्ञ किया था वह स्वर्ग की प्राप्ति के लिए ही किया था। सो क्यों न पिताजी के लिए स्‍वर्ग प्राप्ति का उपाय ही मांग लिया जाए? यह सोचकर वह बोला- मुझे स्वर्ग की प्राप्ति किस प्रकार हो सकती है?

अब यमराज सोंच में पड़ गए, लेकिन क्‍योंकि वे वचन दे चुके थे, इसलिए उन्होंने स्‍वर्ग प्राप्ति से सम्‍बंधित सभी जरूरी बातें सविस्‍तार नचिकेता को बता दीं और तीसरा व अंतिम वरदान मांगने के लिए कहा। नचिकेता फिर से कुछ समय के लिए सोच में डूबा रहा। फिर मौन तोडते हुए बोला- आत्मा का रहस्य क्या है? कृपया समझाएं।

नचिकेता के मुख से इस प्रश्न की आशा यमराज को बिलकुल न थी। यम ने आखिरी वर को टालने की भरपूर कोशिश की और नचिकेता को आत्मज्ञान के बदले कई सांसारिक सुख-सुविधाओं को देने का लालच दिया तथा टालमटोल करते हुए नचिकेता को कोई और वरदान मांगने के लिए कहा और बोले- यह विषय इतना गूढ़ है‍ कि हर कोई इसे नहीं समझ सकता, इसलिए कोई और वर मांग लो।

लेकिन नचिकेता को मृत्यु का रहस्य जानना था। अत: नचिकेता ने सभी सुख-सुविधाओं को नाशवान जानते हुए नकार दिया और अपनी बात पर अड़ा रहा तथा निर्णायक स्वर में बोला- अगर आपको कुछ देना ही है तो मेरे इस प्रश्न का उत्तर दें, क्योंकि मुझे अन्य कोई भी वस्तु नहीं चाहिए।

अंत में विवश होकर यमराज ने नचिकेता को जन्म-मृत्यु से जुड़े सभी रहस्य बताए और आशीर्वाद देते हुए उसे फिर से पृथ्‍वी पर अपने पिता वाजश्रवा के पास भेज दिया।

अक्‍सर नचिकेता और यम की इस कहानी को पितृपक्ष के दौरान श्राद्ध करने वाले लाेग पढते-सुनते हैं और ऐसी मान्‍यता है कि इस कहानी को श्राद्ध के दौरान पढने-सुनने से पितरों को मोक्ष की प्राप्ति होती है।

लेकिन नचिकेता की इस कहानी में एक बहुत ही महत्‍वपूर्ण Moral भी छिपा है कि यदि अापमें दृढ इच्‍छाशक्ति है, तो आप मृत्‍यु के देवता यम से भी सवाल-जवाब कर सकते हैं और यमराज से भी वरदान के रूप में मनचाहा फल प्राप्‍त कर सकते हैं तो इस दुनियां का कौनसा ऐसा काम है, जिसमें दृढ इच्‍छाशक्ति द्वारा सफलता नहीं पाई जा सकती।

हो सकता है कि इन पौराणिक कहानियों का कभी कोई औचित्‍य न रहा हो या ये सभी झूठी हों, लेकिन इन कहानियों में जो Message जो Moral छिपा है, वो झूठ नहीं है। इस संसार में हम आज जितने भी वैज्ञानिक आविष्‍कार देखते हैं, उनके पीछे सिर्फ और सिर्फ दृढ इच्‍छाशक्ति ही है।

यदि दृढ इच्‍छाशक्ति न होती, तो राईट बंधु कभी भी हवाईजहाज का आविष्‍कार न कर पाते, क्‍योंकि राईट बंधुओं के अलावा किसी को विश्‍वास नहीं था कि हवा में उड़ा जा सकता है।

यदि दृढ इच्‍छाशक्ति न होती, तो इंसान कभी चांद पर कदम न रख पाता, कभी आसमान में उपग्रह न छोड़ पाता, जिसकी वजह से हम आज Internet क्रांति को जी रहे हैं और Mobile जैसी तकनीक को Use करते हुए किसी भी समय किसी के भी संपर्क में रह रहे हैं।

यदि दृढ इच्‍छाशक्ति न होती, तो क्‍या सैकड़ों सालों की गुलामी से महात्‍मा गांधी इस भारत देश को कभी आजाद न हो पाता और क्‍या लाल बहादुर शास्‍त्री इस देश का नेतृत्‍व करते हुए 1965 के भारत-पाकिस्‍तान युद्ध में भारत को विजय दिलवा पाते?

बिल गेट्स के अलावा किसे विश्‍वास था कि एक दिन हर घर के डेस्‍क पर एक कम्‍प्‍यूटर सिस्‍टम होगा, जिसमें Microsoft Company का Operating System Run होगा। क्‍या बिल गेट्स की दृढ इच्‍छाशक्ति के बिना ये सम्‍भव था?

दृढ इच्‍छाशक्ति अथवा दृढ निश्‍चय के कारण सफलता प्राप्‍त होने के संदर्भ में लाखों उदाहरण दिए जा सकते हैं लेकिन कोई भी उदाहरण ऐसा नहीं हो सकता, जहाँ किसी कार्य को सफल करने के पीछे दृढ इच्‍छाशक्ति न रही हो और वह कार्य सफल हो गया हो।

तो इस कहानी से दृढ इच्‍छाशक्ति की सीख लीजिए, और आप जो कुछ भी करना चाहते हैं, जिस किसी भी कार्य में सफलता प्राप्‍त करना चाहते हैं, उसमें दृढ निश्‍चय के साथ लग जाईए क्‍योंकि जहां चाह है वहीं राह है और अवसर किसी की प्रतिक्षा नहीं करता।

Thursday 23 November 2017

महासागरीय धाराएं (Ocean Currents)


धाराएँ महासागर के जल में उत्पन्न होने वाली वह शक्तिशाली गति है, जो निरन्तर किसी दिशा में नदी की धारा की भाँति बहती है। एफ. जे. मोंकहाऊस के अनुसार, “सागर तल की विशाल जलराशि की एक निश्चित दिशा में होने वाली सामान्य गति को महासागरीय dhaaraa कहते हैं।”
जव धाराएँ सुनिश्चित दिशा में अत्यधिक वेग से चलती हैं तो इन्हें स्ट्रीम (streams) कहा जाता है। कभी-कभी इनका वेग 19 किलोमीटर प्रति घण्टा तक होता है, जबकि अनिश्चित स्वरूप एवं घीमी गति से बहने वाले सागर जल की चौड़ी धारा को प्रवाह (Drift) कहते हैं।

धाराओं की उत्पत्ति का कारण (Causes of Origin of currents)
सागर का जल सदा गतिशील रहता है। सन्मार्गी पवनों का प्रवाह, जल के ताप और घनत्व में अन्तर, वर्षा की मात्रा और पृथ्वी गतिशीलता आदि कारक धाराओं को जन्म देने में सहायक होते हैं।

स्थायी पवनें (Permanent Winds)- स्थायी पवनें प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से धाराओं को जन्म देती हैं, क्योंकि विश्व की अधिकांश धाराएँ, प्रचलित पवनों का ही अनुगमन करती हैं। हिन्द महासागर में चलने वाली धाराएँ प्रति 6 महीने पश्चात् मानसून की दिशा परिवर्तन के साथ ही अपनी दिशा बदल लेती हैं। उष्ण कटिबन्ध में सन्मार्गों पवने महासागर में पश्चिम की ओर चलने वाली धाराएँ उत्पन्न कर देती हैं। शीतोष्ण कटिबन्ध में पछुआ पवनें पश्चिम से पूरब की ओर धाराएँ प्रवाहित करती हैं।

तापमान में भिन्नता (Difference In Temperature)- उष्ण सागरों में जल का घनत्व तापमान ऊँचा रहने पर घट जाता है तथा जल हल्का होकर फैलता है, जबकि तापमान गिरने से जल का घनत्व अधिक हो जाता है तथा जाता है। परिणामस्वरूप गरम जल धारा के रूप में ठण्डे प्रदेशों की ओर प्रवाहित होने लगता है। इसके विपरीत, ठंडे भागों का जल गरम भागों की ओर बहता है। उत्तरी ध्रुव प्रदेशों से लैब्राडोर तथा क्यूराइल की धाराएँ दक्षिण की ओर जबकि गल्फस्ट्रीम तथा क्युरोसिवो गरम जल धाराएं उत्तरी ठण्डे भागों की ओर चलती हैं।

जल का खारापन (Salinity of Water)- खारेपन की मात्रा कहीं अधिक और कहीं कम होती है। अधिक खारे जल का घनत्व भी अधिक हो जाता है, जबकि कम खारेपन से उसका घनत्व कम रहता है। अधिक घनत्व वाला जल नीचे बैठ जाता है। फलस्वरूप अपने घनत्व को समान रखने के लिए कम घनत्व के स्थानों से जल अधिक घनत्व वाले स्थानों की ओर बहता है जिससे धाराओं की उत्पत्ति होती है।

महाद्वीपों का आकार (Forms of Continent)- धाराओं की प्रवाह दिशा पर महाद्वीपों के आकार तथा बनावट का भी गहरा प्रभाव पड़ता है। दक्षिणी विषुवत रेखीय जलधारा पश्चिम की ओर चलने की अपेक्षा सेण्ट रॉक अन्तरीप से टकराकर उत्तर तथा दक्षिण को मुड़ जाती है। इसी प्रकार अलास्का तट की स्थिति के कारण ही अलास्का धारा पश्चिम की ओर बहने लगती है।

पृथ्वी की परिभ्रमण गति (Rotation the Earth)- सागरों में धाराओं का प्रवाह प्रायः गोलाकार देखा जाता है। धाराओं की यह प्रकृति पृथ्वी के परिभ्रमण से सम्बन्धित है। फेरेल के नियमानुसार, धाराएँ उत्तरी गोलार्द्ध में दायीं ओर तथा दक्षिणी गोलार्द्ध में बायीं ओर मुड़ जाती हैं। इसी कारण धाराओं का प्रवाह घीरे-घीरे गोलाकार बन जाता है।

धाराओं के प्रकार (Kinds of Currents)
सागरीय धाराएँ दो प्रकार की होती हैं-

गर्म जल धाराएँ (Warm Currents)- जो सामान्यत: ठण्डे स्थानों की ओर चलती हैं। विषुवतरेखीय भागों से उच्च अक्षांशों (ध्रुवों) की ओर चलने वाली धाराएँ होती हैं।

ठण्डी धाराएँ (Coldor Cool Currents)– जो सामान्य रूप से ध्रुवों की ओर से विषुवतरेखीय गर्म भागों की ओर चलती हैं।

अन्ध महासागर की धाराएँ (Currents Atlantic Ocean)
अन्ध महासागर की धाराओं की मुख्य विशेषता यह है कि विषुवत रेखा के दोनों ओर इन धाराओं का क्रम प्राय: समान है। अन्ध महासागर की प्रमुख धाराएँ निम्नलिखित हैं-

उत्तरी विषुवतरेखीय गर्म धारा (North Equatorial Warm Current)- अन्ध महासागर में विषुवत रेखा के उत्तर में उत्तर-पूर्वी सन्मार्गी पवनों के द्वारा एक उष्ण जलधारा प्रवाहित होती है जो विषुवत रेखा के उष्ण जल को पूर्व से पश्चिम को धकेलती है। यही उत्तरी विषुवतरेखीय गर्म जलधारा कहलाती है। कैरेबियन सागर में इस जलधारा के दो भाग हो जाते हैं, जो कि पश्चिमी द्वीपों के कारण होते हैं। एक शाखा उत्तर की ओर अमरीका के पूर्वी तट के साथ बहकर गल्फस्ट्रीम में मिल जाती है और दूसरी शाखा दक्षिण की ओर चलकर मैक्सिको की खाड़ी में पहुँच जाती है।

गल्फस्ट्रीम या खाड़ी की गर्म धारा (Gulf stream)- इसकी उत्पति मैक्सिको की खाड़ी से होती है, इसलिए अर्थातु खाड़ी की धारा कहा जाता है। यहाँ यह लगभग किलोमीटर गहरी 49 किलोमीटर चौड़ी होती है और इसकी गति लगभग 5 किलोमीटर प्रति घण्टा तथा तापमान 28° सेण्टीग्रेड होता है। यह जलधारा फ्लोरिडा जल सन्धि से निकलकर उत्तरी अमरीका के पूर्वी तट के साथ-साथ उत्तर की ओर बहती है। हैलीफैक्स के दक्षिण से इसका प्रवाह पूर्णतः पूर्व की ओर हो जाता है। वहाँ से इसे पछुआ पवनें आगे बहा ले जाती हैं। 45° पश्चिमी देशान्तर के निकट इसकी चौड़ाई बहुत बढ़ जाती है, जिससे धारा के रूप में इसका स्वरूप बिल्कुल बदल जाता है। फलतः यहाँ उसका नाम उत्तरी अटलाण्टिक प्रवाह North Atlantic drift) पड़ जाता है। यही प्रवाह फिर पश्चिमी यूरोप में नार्वे की ओर चला जाता है और उत्तरी ध्रुव सागर में विलीन हो जाता है। गल्फस्ट्रीम में दक्षिणी विषुवत रेखीय धारा के जल का एक भाग आकर मिलने से ही इसकी शक्ति क्षमता बढ़ जाती है।

कनारी की ठण्डी घारा (Canary Current)- उतरी अटलाण्टिक प्रवाह स्पेन के निकट दो शाखाओं में बंट जाता है। एक शाखा उत्तर की ओर चली जाती है और दूसरी दक्षिण की ओर मुड़कर स्पेन, पुर्तगाल तथा अफ्रीका के उत्तरी पश्चिमी तट के सहारे बहती है। यहाँ यह कनारी द्वीप के पास जाकर निकलती है, अतः इसका नाम कनारी धारा पड़ गया है। यहाँ सन्मार्गी पवनों के प्रभाव में आ जाने से धारा पुनः विषुवतरेखीय धारा के साथ विलीन हो जाती है।

लैब्राडोर की ठण्डी धारा (Labrador Cold Current)- ग्रीनलैण्ड के पश्चिमी तट पर बेफिन की खाड़ी से निकलकर लैव्राडोर पठार के सहारे-सहारे बहती हुई न्यूफाउलैंड गल्फस्ट्रीम में मिल जाती है। यह धारा सागरों से आने के कारण ठण्डी होती है। न्यूफाउण्डलैण्ड के निकट ठण्डे और गरम जल मिलने के कारण घाना कुहरा छाया रहता है। मछलियों के विकास हेतु यहाँ आदर्श दशाएं मिलती हैं।
सारगैसो सागर, उत्तरी अटलांटिक महासागर का मध्यवर्ती भाग वृत्ताकार धरा प्रवाह के कारण शांत व् प्रायः स्थिर रहता है। यहाँ कूड़ा-करकट एकत्रित होने पर उस पर सारगोसा नामक घास उगने से ही इसे सारगैसो सागर कहते हैं।

दक्षिणी विषुवत रेखीय गर्म धारा (South Equatorial Current)- यह धारा दक्षिण-पूर्वी सन्मार्गी.हवाओं के प्रवाह के कारण पश्चिमी अफ्रीका से प्रारम्भ होकर दक्षिणी अमरीका के पूर्वी तक बहती है। सेण्ट राक्स द्वीप से टकराने के बाद यह दो भागों में बंट जाती है प्रथम शाखा उत्तरी विषुवत् रेखीय धारा में मिल जाती है तथा दूसरी पूर्वी ब्राजील तट के सहारे गुजरती हुई आगे बढ़ जाती है।

ब्राजील की गर्म धारा (Brazilian Warm Current)- दक्षिणी विषुवत रेखीय धारा दक्षिण-अमरीका के सेण्ट राक दीप से टकराकर दो शाखाओं में विभक्त हो जाती है। इसकी एक शाखा तट के सहारे उत्तर की ओर चली जाती है। यह उत्तरी ब्राजील धारा (north Brazilian Current) कहलाती है जो आगे चलकर खाड़ी की धारा में मिल जाती है। दूसरी धारा ब्राजील के तट के सहारे दक्षिण की ओर चली जाती है। यह दक्षिणी ब्राजील की धारा (South Brazilian Current) कहलाती है। आगे चलकर 40° द. अक्षांश के समीप फाकलैण्ड की ठण्डी धारा से टकराकर यह दक्षिणी अन्ध महासागर के प्रवाह के रूप में पश्चिम में पूर्व की ओर बहने लगती है।

फाकलैण्ड की ठण्डी धारा (Falkland Cold Current)- अण्टार्कटिक महासागर में पश्चिम से पूर्व की ओर चलने वाली ठण्डी धारा प्रवाह (drift) के दक्षिणी अमरीका के केपहार्न से टकराने से उसकी एक शाखा उसके पूर्वी किनारे के सहारे उत्तर की ओर चलने लगती है। यह फाकलैण्ड धारा कहलाती है।
बेंगुला की ठण्डी धारा Banguela Cold Current- दक्षिणी अटलांटिक प्रवाह दक्षिण अफ्रीका के पश्चिमी तट से टकराकर उसके सहारे उतर की ओर मुड़ जाती है। इसे ही बेन्गुला की ठण्टी धारा कहा जाता है।

अण्टार्कटिक प्रवाह (Antarctic Drift)- यह प्रवाह दक्षिणी ध्रुव सागर में तीव्र पछुआ पवनों के कारण पश्चिम से पूर्व की ओर चलता है। इसे पछुआ पवनों का प्रवाह भी कहा जाता है। यह एक ठण्डा प्रवाह है और यहाँ स्थल के अभाव में बड़े वेग से सम्पूर्ण पृथ्वी की प्रक्रिया करता हुआ वहता है।

विपरीत भूमध्यरेखीय जलधारा (Counter Equatorial Current)- उत्तरी व दक्षिणी विषुवत रेखीय जलधाराएँ जव दक्षिणी अमरीका के पूर्वी तट पर पहुंचती हैं तो तट से टकराकर इन धाराओं का कुछ जल पुनः विषुवत् रेखा के शान्त खण्ड से होकर अफ्रीका के गिनी तट की ओर आता है। दोनों धाराओं के बीच जल के इस उल्टे बहाव को ही विपरीत विषुवत रेखीय जलधारा कहते हैं। इसकी उत्पत्ति में पृथ्वी की परिभ्रमण गति एवं पूर्ववर्ती भाग में जल की कमी की पुनः आपूर्ति का ही विशेष कारण निहित रहे हैं।

प्रशांत महासागर की धाराएं (Currents Pacific Ocean)
अन्ध महासागर की अपेक्षा प्रशान्त महासागर अधिक विस्तृत है और इसके तटवर्ती प्रदेशों का आकार भी भिन्न है, अतः इसमें धाराओं के क्रम कुछ भिन्न पाए जाते हैं। प्रशान्त महासागर की मुख्य धाराएँ निम्नलिखित हैं-

उत्तरी भूमध्यरेखीय गर्मघारा (North Equatorial Current)- मध्य अमरीका के तट से पूर्वी द्वीपसमूह की ओर बहने वाली यह गरम जलधारा है। विषुवत्रैखा के निकट जल के उच्च तापमान के कारण गरम होकर सन्मार्गी पवनों द्वारा वहाए जाने से इसकी उत्पत्ति होती है। यह प्रायः विषुवत् रेखा के समान्तर बहती है।

क्यूरोसिबो गर्म जलधारा (Kuroshio Warm Current)- जब प्रशान्त महासागर की उत्तरी विषुवतरेखीय धारा का बड़ा भाग फिलीपीन द्वीपसमूह के निकट पहुंचती है तो सन्मार्गी पवनों के प्रवाह से उत्तर की ओर मुड़ जाती है। इसके बाद दक्षिणी मध्य चीन के सहारे बढ़ती हुई जापान के पूर्वी तट तक पहुंचती है। यह उसे क्यूरोसिवो धारा कहते हैं। इसका रंग गहरा नीला होने के कारण जापानी लोग इसे जापान की काली धारा (Black Stream of Japan) भी कहते हैं। जापानी तट के सहारे बढ़ती हुई यह क्यूराइल के पास ठण्डी धारा से मिल जाती है। यहीं यह पछुआ पवनों के प्रवाह में आ जाने से पूरब की ओर मुड़ जाती है। यहाँ से इस धारा का विस्तार बहुत अधिक हो जाता है और यह उत्तरी प्रशान्त प्रवाह (North Pacific Drift ) कहलाने लगती है। यह प्रवाह पूर्व की ओर बहता हुआ उत्तरी अमरीका के पश्चिमी तट अलास्का से जा लगता है। वेंकूवर द्वीप समूह के निकट यह दो भागों में विभक्त हो जाती है। एक शाखा उत्तर की ओर अलास्का तट के सहारे बहती हुई पुनः उत्तरी प्रशान्त प्रवाह से मिल जाती है। इस उत्तरी शाखा को अलास्का की धारा (Alaskan Current) कहते हैं। दक्षिण की ओर जाने वाली धारा गर्म सागरों में शीतल होने से केलीफोर्निया की ठण्डी धारा के नाम से जानी जाती है।

क्यूराइल की ठण्डी धारा (Cold Current)- यह एक ठण्डी जलधारा है जो बेरिंग जल संयोजकं से होती हुई दक्षिण की ओर साइबेरिया तट के साथ बहती है और क्यूराइल द्वीपसमूह के निकट क्यूरोसियो जलधारा से मिल जाती है जिससे यहाँ घना कोहरा उत्पन्न होता है।

कैलीफोर्निया की ठण्डी घारा (Californian Cold Current)- यह एक ठण्डी धारा है। यह उत्तरी प्रशान्त प्रवाह की दक्षिणी शाखा का ही भाग है। यह कैलीफोर्निया के पश्चिम तट के साथ बहकर दक्षिण में उत्तरी भूमध्यरेखीय धारा से मिल जाती है।

दक्षिणी भूमध्य रेखीय धारा (South Equatorial Current)- सन्मार्ग पवनों के कारण उत्पन्न होती है। यह धारा दक्षिणी अमरीका के पश्चिमी तट से पश्चिम की ओर आस्ट्रेलिया के पूर्वी तट पर बहती है। न्यूगिनी द्वीप के समीप यह दो भागों में विभक्त हो जाती है एक धारा न्यूगिनी के उत्तरी तट के सहारे बहती है और दूसरी दक्षिण की ओर बहकर आस्ट्रेलिया की पूर्वी तटीय धारा में विलीन हो जाती है।

पूर्वी आस्ट्रेलिया की गर्म धारा (East Australian warm current)- न्यू गिनी के समीप दक्षिण में विषुवत रेखीय धारा दो शाखाओं में विभक्त हो जाती है। इसी की दक्षिणी शाखा आस्ट्रेलिया के पूर्वी तट के साथ बहती है। आस्ट्रेलिया के पूर्वी तट पर इसे पूर्वी आस्ट्रेलिया की गर्म घारा अथवा न्यूसाउथवेल्स की धारा कहकर भी पुकारा जाता है। आगे चलकर पवनों के प्रभाव से पूर्व की ओर मुड़ जाती है।

हम्बोल्ट (Hambolt) अथवा पेरू की ठण्डी धारा (Peruvian Cold Current)- दक्षिणी प्रशांत महासागर का अण्टार्कटिक प्रवाह दक्षिणी अमरीका के दक्षिणी सिरे पर पहुंचता है, तो केपहॉर्न से टकराकर उत्तर की ओर मुड़ जाता है। फिर यह पेरू देश के पश्चिमी तट के साथ-साथ उत्तर की ओर प्रवाहित होता है जो आगे चलकर पूर्वी आस्ट्रेलिया की धारा से मिल जाता है। पेरू के समीप इसे पेरुवियन घारा कहा जाता है। सर्वप्रथम इसे हम्बोल्ट नामक महान भूगोलवेता ने खोजा था, अतः यह हम्बोल्ट की धारा के नाम से भी विख्यात है।

अण्टार्कटिक प्रवाह (Antarctic Drift)- अण्टार्कटिक महासागर में प्रशान्त महासागर के जल के सम्पर्क में आकर पश्चिम से पूर्व की एक ठण्डी जलधारा बहती है। यह पूर्वार्द्ध पछुआ पवनों से प्रभावित होती है। इसी कारण इसे पछुआ पवन प्रवाह (West wind Drift) भी कहते हैं। इसका वेग कम रहता है।

विपरीत भूमध्यरेखीय धारा (Counter Equatorial Current)- यह धारा अन्ध महासागर की विपरीत धारा के समान प्रशान्त महासागर दोनों भूमध्य रेखीय गर्म धातुओं के मध्य पूर्व की ओर बहती हैं।

हिन्द महासागर की धाराएं (Currents of The Indian Oceans)
उत्तरी हिन्द महासागर में चलने वाली धाराएँ मानसून पवनों के साथ अपनी दिशा बदलती हैं। अत: हिन्द महासागर की धाराओं को दो श्रेणियों में विभक्त किया जा सकता है।

परिवर्तनशील धाराएँ या मानसून प्रवाह (Variable Or Monsoon Currents)- विषुवत् रेखा के उत्तर की ओर हिन्द महासागर की धाराएँ मानसून पवनों के अनुसार अपनी दिशा और क्रम बदल लेती हैं, इसलिए ये परिवर्तनशील धाराएँ कहलाती हैं। इन्हें मानसून प्रवाह (Monsoon Drift) भी कहा जाता है। यह प्रवाह भारतीय उपमहाद्वीप से अरब तट के मध्य बहता है।

स्थायी धाराएँ (Permanent Currents)- हिन्द महासागर में विषुवत् रेखा के दक्षिण में चलने वाली धाराएँ वर्ष भर एक ही क्रम में चलती हैं, अत: इन्हें स्थायी धारा कहते हैं। इन धाराओं में दक्षिणी विषुवत्रेखीय जलधारा, मोजाम्बिक धारा, पश्चिमी आस्ट्रेलिया की जलधारा और अगुलहास धारा मुख्य हैं।
हिन्द महासागर की निम्नलिखित धाराएँ हैं-

दक्षिण विषुवतीय गर्म धारा (South Equatorial Warm Current)- दक्षिण पूर्वी सन्मार्गी पवनों के प्रवाह से ऑस्ट्रेलिया के पश्चिमी तट से पूर्व की ओर चलती हैा पूर्वी अफ्रीका के निकट मेडागास्कर के तट पर दो शाखाओं में बँटकर के समीप यह दक्षिण की ओर मुड़ जाती है। इसकी पश्चिमी शाखा ही मोजाम्विक धारा कहलाती है।

मोजाम्बिक की गर्म धारा (Mozambique Hot Current) – अफ्रीका के पूर्वी तट मेडागास्कर के समीप बहती है। मेडागास्कर के पूर्वी तट पर वाली शाखा को मेडागास्कर धारा भी कहते हैं। यह दोनों ही शाखाएँ मिलकर अगुलहास की धारा कहलाती है।

अगुलहास की गर्म धारा (Agulhas Warm Current)- अफ्रीका के दक्षिण में अगुलहास अन्तरीप से पछुआ पवनों के प्रवाह द्वारा पूर्व को एक धारा चलने लगती है। इसी धारा को अगुलहास की गर्म धारा कहते हैं।

पश्चिमी आस्ट्रेलिया की ठण्डी धारा (West Australian Cold Current)- अण्टार्कटिक प्रवाह की एक शाखा आस्ट्रेलिया के दक्षिण-पश्चिमी भाग से मुड़कर उत्तर की ओर आस्ट्रेलिया के पश्चिमी तट के साथ-साथ वहने लगती है। यहीं यह पश्चिमी आस्ट्रेलिया की ठण्डी जलधारा कहलाती है।

ग्रीष्मकालीन मानसून प्रवाह (Summer Monsoon Drift)- ग्रीष्म में दक्षिण-पश्चिमी मानसून पवनों के प्रभाव से एशिया महाद्वीप के पश्चिमी तटों में उष्ण प्रवाह पवनों की ओर चलने लगता है। उत्तरी विषुवत्रेखीय धारा भी मानसून के प्रवाह से पूर्व की ओर बहकर मानसून प्रवाह के साथ ग्रीष्मकाल की समुद्री धाराओं का क्रम बनाती है

शीतकालीन मानसून प्रवाह (Winter Monsoon Drift)- शीत-ऋतु में उत्तर-पूर्वी मानसूनी पवनों के प्रभाव से एशिया के दक्षिणी तटों से एक धारा प्रवाहित होती है, जो पूर्व से पश्चिम को बहती है। यह विभिन्न देशों के तटों के साथ-साथ बढ़ती हुई पूर्वी अफ्रीका के समीप पूर्व की ओर मुड़ जाती है और पूर्वी द्वीपसमूह को चली जाती है।

धाराओं का मानव-जीवन पर प्रभाव (Effects Currents on Human Life)-
जिन सागरीय तटों से होकर जलधाराएँ बहती हैं, वहाँ के निवासियों पर इनका बड़ा भारी प्रभाव पड़ता है। धाराओं का यह प्रभाव कई प्रकार से होता है-

तापमान पर प्रभाव- धाराओं का जलवायु पर सम (Equable) और विषम (Extreme) दोनों ही प्रकार का प्रभाव होता है। ठण्डी धाराओं के समीप के तट महीनों हिम से जमे रहते हैं, किन्तु जिन भागों में गर्म धाराओं का प्रवाह वहता है, वहाँ इनका बहुत ही उत्तम और सम प्रभाव होता है। गर्म धाराएँ उष्ण प्रदेशों की गर्मी को उच्च अक्षांशों के शीतल प्रदेशों को पहुंचाकर वहाँ की जलवायु को सम शीतोष्ण बनाए रखती हैं। उप ध्रुवीय ध्रुव प्रदेश में फसलें पैदा की जाती हैं। उत्तरी पश्चिमी यूरोप (नार्वे, स्वीडेन, इंग्लैण्ड, आदि) और पूर्वी जापान की उन्नति का कारण ये गर्म धाराएँ भी हैं।

वर्षा पर प्रभाव- गर्म धाराओं के ऊपर होकर बहने वाली पवनों में काफी नमी होती है। यही वाष्प भरी पवनें उच्च अक्षांशों में पहुंचने पर अथवा अधिक ऊँचाई पर उठने पर वर्षा कर देती हैं। उत्तर-पश्चिमी यूरोप और अमरीका के पश्चिमी किनारे पर इसी प्रकार से वर्षा नियमित रूप से होती है। इसके विपरीत अफ्रीका में कालाहारी और दक्षिणी अमरीका में आटाकामा मरुस्थलों का अस्तित्व तटीय ठण्डी धाराओं के कारण कम वर्षा का परिणाम हैं।

वातावरण पर प्रभाव- जिन स्थानों पर गर्म और शीतल धाराएँ परस्पर मिलती हैं वहाँ धना कुहरा उत्पन्न हो जाता है। न्यूफाउण्डलैण्ड के समीप गल्फस्ट्रीम की गर्म धारा और लैब्राडोर की ठण्डी धारा के मिलने से तथा जापान तट पर क्यूरोसिवो और क्यूराइल धाराओं के मिलने से घना कुहरा उत्पन्न हो जाता है।

सामुद्रिक जीव-जन्तुओं पर प्रभाव- धाराएँ सामुद्रिक जीवन का प्राण हैं, सामुद्रिक जीवन को बनाए रखने और उसको प्रश्रय देने में धाराएँ महत्वपूर्ण योग देती हैं। धाराओं के कारण ही सागरों में आवश्यक जीवन-तत्व (ऑक्सीजन) एवं प्लेंकटन का सन्तुलित वितरण होता है। कई जीवों के लिए भोजन का आधार भी ये धाराएँ ही हैं।

नौसंचालन (Shipping) पर प्रभाव- डीजल से चलने वाले अति आधुनिक शक्तिशाली जहाज धाराओं के प्रभाव से मुक्त जान पड़ते हैं, किन्तु प्राचीनकाल में जब जहाज पालदार होते थे, धाराओं का नौसंचालन पर उल्लेखनीय प्रभाव पड़ता था।

व्यापार पर प्रभाव- धाराओं के कारण सागरों की गति बनी रहती है। यह गति सागरों को जमने से बचाती है। जिन तटों पर गरम धाराएँ बहती हैं वहाँ के बन्दरगाह वर्ष भर खुले रहते हैं, जैसे-नार्वे तथा जापान के बन्दरगाह। बन्दरगाहों के खुले रहने से उन प्रदेशों में वर्ष भर व्यापार बना रहता है।

"जापान" के बारे में चौंका देने वाले तथ्य


  • जापान में हर साल लगभग 1500 भुकंम्प आते है मतलब कि हर दिन चार।
  • मुसलमानों को “नागरिकता” न देने वाला Japan अकेला राष्ट्र है। यहाँ तक कि मुसलमानों को Japan में किराए पर मकान भी नहीं मिलता।
  • जापान, के किसी विश्वविद्यालय में अरबी या अन्य कोई इस्लामी भाषा नहीं सिखाई जाती।
  • कुत्ता पालने वाला प्रत्येक जापानी नागरिक उसे घुमाते समय अपने साथ एक विशेष बैग रखता है, जिसमें वह उसका मल एकत्रित कर लेता हैं।
  • Japan में 10 साल की उम्र होने तक बच्चों को कोई परीक्षा नहीं देनी पड़ती।
  • Japan में बच्चे और अध्यापक एक साथ मिलकर Classroom को साफ करते हैं।
  • जापान के लोगो की औसत आयु दुनिया में सबसे ज्यादा है (82 साल). Japan में 100 साल से ज्यादा उम्र के 50,000 लोग हैं।
  • जापान के पास किसी प्रकार के प्राकृतिक संसाधन नहीं है और वे प्रतिवर्ष सैंकड़ों भूकंप भी झेलते हैं, किन्तु उसके बाद भी Japan दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी आर्थिक शक्ति हैं।
  • “Sumo” Japan की सबसे लोकप्रिय खेल है इसके इलावा बेसबाल भी काफी लोकप्रिय हैं।
  • Japan में सबसे ज्यादा लोग पढ़े लिखे हैं। जहाँ  साक्षरता दर 100% है। जहाँ अखबारों और न्युज चैनलों में भारत की तरह दुर्घटना, राजनीति, वाद-विवाद, फिल्मी मसालो आदि पर खबरे नहीं छपती। यहाँ पर अखबारों में आधुनिक जानकारी और आवश्क खबरें ही छपती हैं।
  • Japan में जो किताबें प्रकाशित होती हैं उन में से 20% Comic Books होती हैं।
  • Japan में 1 जनवरी को नववर्ष का स्वागत मंदिर में 108 घंटियाँ बजा कर किया जाता हैं।
  • जापानी समय के बहुत पक्के है यहाँ तो ट्रेने भी ज्यादा से ज्यादा 18 सैकेंड लेट होती है।
  • “Vending Machine” वह मशीन होती है जिसमें सिक्का डालने से कोई चीज आदि निकल आती है जेसे कि noodles, अंडे, केले आदि। जब आप Japan में होगे तो इन मशीनों को हर जगह पाएँगे। यह हर सड़क पर होती है। जापान में लगभग 55 लाख वेंडिंग मशीन हैं।
  • 2015 तक जापान में देर रात तक नाचना मना था।
  • Japan में एक ऐसी बिल्डिंग भी है जिसके बीच से हाइवे गुजरता हैं।
  • जापान चारों और से समुंदर से घिरा होने के बावजूद भी 27 प्रतिशत मछलियां दूसरे देशों से मंगवाता हैं।
  •  काली बिल्ली को Japan में भाग्यशाली माना जाता हैं।
  • Japan में 90% “Mobile WaterProof” है क्योकिं ये लोग नहाते समय भी फोन यूज करते हैं।
  • Japan में 70 तरह की “fanta” मिलती हैं।
  • जापान में सबसे ज्यादा सड़के ऐसी है जिनका कोई नाम नही हैं।
  • जापानियो के पास “Sorry” कहने के 20 से ज्यादा तरीके हैं।
  • Japan दुनिया का सबसे बड़ा आॅटोमोबाइल निर्माता हैं।
  • साल 2011 में Japan में जो भूकंप आया था वह आज तक का सबसे तेज भूकंप था। इस भूकंप से पृथ्वी के “घूमने की गति” में 1.8 microseconds की वृद्धि हुई थी।
  • जापान दुनिया का केवल एकलौता देश है जिस पर “परमाणु बमों” का हमला हुआ है। जैसा कि आप जानते ही है कि अमेरिका ने 6 और 9 अगस्त 1945 में हिरोशिमा और नागाशाकी पर बम फेंके थे। इन बमों को little-boy और Fat-man नाम दिया गया था।

Wednesday 22 November 2017

वैश्विक लैंगिक अंतराल सूचकांक, 2017



सूचकांक (Index)
‘वैश्विक लैंगिक अंतराल सूचकांक’ (Global Gender Gap Index) लैंगिक समानता को मापने के लिए बनाया गया सूचकांक है, जो विश्व आर्थिक मंच (World Economic Forum : WEF) द्वारा वर्ष 2006 से प्रत्येक वर्ष जारी किया जा रहा है। इस वर्ष का सूचकांक 2 नवंबर, 2017 को जारी किया गया।

उद्देश्य (Object)
इस सूचकांक का उद्देश्य विभिन्न व्यावसायिक, राजनैतिक, शैक्षणिक एवं अन्य वैश्विक हस्तियों को एक मंच पर साथ लाकर वैश्विक व्यवस्था में सुधार लाना है।

सूचकांक जारी करने का आधार
यह सूचकांक चार क्षेत्रों में लैंगिक अंतराल परीक्षण के आधार पर जारी किया जाता है। ये चार क्षेत्र निम्न हैं-
(1) आर्थिक भागीदारी एवं अवसर, 
(2) शैक्षणिक उपलब्धियां, 
(3) स्वास्थ्य एवं उत्तरजीविता तथा 
(4) राजनीतिक सशक्तीकरण।

यह सूचकांक 0 (शून्य) से 1 के स्कोर के मध्य विस्तारित है जिसमें 0 (शून्य) का अर्थ ‘पूर्ण लैंगिक असमानता’ तथा 1 का अर्थ ‘पूर्ण लैंगिक समानता’ है।

वैश्विक व्याप्ति (Global Coverage)
वैश्विक लैंगिक अंतराल सूचकांक, 2017 में भी विगत वर्ष की भांति कुल 144 देशों को शामिल किया गया है।

परिणाम एवं विश्लेषण
वैश्विक लैंगिक अंतराल सूचकांक, 2017 में शीर्ष 5 देश
रैंक 2017 देश              स्कोर
1         आइसलैंड         0.878
2         नॉर्वे                  0.83
3         फिनलैंड           0.823
4         रवांडा              0.822
5         स्वीडन             0.816
इस सूची में शीर्ष 3 स्थानों पर नॉर्डिक (Nordic) देश हैं। जहाँ आइसलैंड लगातार 9 वर्षों से इस सूची में शीर्ष स्थान पर बना हुआ है।

वैश्विक लैंगिक अंतराल, 2017 में अंतिम 5 देश
रैंक 2017  देश             स्कोर
144वां यमन          0.516
143वां पाकिस्तान   0.546
142वां सीरिया        0.568
141वां चाड            0.575
140वां ईरान           0.583

वैश्विक लैंगिक अंतराल, 2017 में ब्रिक्स (BRICS) देशों की स्थिति
रैंक 2017  देश                   स्कोर
19वां         दक्षिण अफ्रीका  0.756
71वां         रूसी संघ          0.696
90वां         ब्राजील              0.684
100वां चीन                        0.674
108वां भारत 0.669

ब्रिक्स (BRICS) देशों में सबसे अधिक गिरावट (21 स्थानों की) भारत की रैंकिंग में हुई है, जिससे वह ब्रिक्स देशों में सबसे निचले स्थान पर है, जबकि विगत वर्ष भारत की रैंकिंग में सबसे अधिक सुधार (21 स्थानों का) हुआ था।
ब्रिक्स समूह के सभी देशों की रैंकिंग में गिरावट हुई है, लेकिन सबसे अधिक गिरावट भारत की रैंकिंग में (21 अंक की) हुई है, जबकि सबसे कम रूस की रैंकिंग में (1 अंक की) हुई है।

भारत की स्थिति
⇰ कुल 144 देशों के इस सूचकांक में इस वर्ष भारत का स्थान 108वां है, जबकि गत वर्ष की सूची में इसका स्थान 87वां था।
⇰ भारत एक बार पुनः वर्ष 2015 की रैंकिंग पर पहुँच गया, क्योंकि वर्ष 2015 की वैश्विक लैंगिक अंतराल सूचकांक, 2015 में भारत की रैंकिंग 108वीं थी। 

सूचकांक के विभिन्न क्षेत्रों में भारत की उपलब्धियां इस प्रकार रहीं
क्रम           वर्ग                                रैंक
1 आर्थिक भागीदारी एवं अवसर 139वां
2 स्वास्थ्य एवं उत्तरजीविता             112वां
3 शैक्षणिक उपलब्धियां                  141वां
4 राजनीतिक सशक्तीकरण           15वां
  • भारत केवल ‘स्वास्थ्य एवं उत्तरजीविता’ के क्षेत्र में वर्ष 2016 की तुलना में वर्ष 2017 में सुधार किया है, जबकि आर्थिक भागीदारी एवं अवसर, शैक्षणिक उपलब्धियां तथा राजनीतिक सशक्तीकरण में गत वर्ष की तुलना में गिरावट आई है।
  • भारत की रैंकिंग में यह कमी मुख्य रूप से अर्थव्यवस्था में महिलाओं की कम भागीदारी और कम मजदूरी के कारण हुआ।
  • सूचकांक के अनुसार, भारत में कामकाजी महिलाओं में 65.6 प्रतिशत महिलाएं अवैतनिक कार्य करती हैं, जो कि पुरुषों की तुलना में काफी है। पुरुषों में यह आंकड़ा 11.7 प्रतिशत है।
  • चीन में अवैतनिक कार्य करने वाली महिलाओं की संख्या 44.6 प्रतिशत है, जबकि पुरुषों का आंकड़ा 18.9 प्रतिशत है।
  • विकसित देशों में ब्रिटेन को इस सूची में 15वां स्थान मिला है। ब्रिटेन में महिलाओं के कामकाज का 56.7 प्रतिशत अवैतनिक है, जबकि पुरुषों के कार्य का 32.1 प्रतिशत अवैतनिक है।
  • अमेरिका में अवैतनिक कार्य करने वाले पुरुषों का आंकड़ा 31.5 प्रतिशत है जबकि महिलाओं में यह आंकड़ा 50.0 प्रतिशत है।
  • वैश्विक स्तर पर 68 प्रतिशत महिला पुरुष असमानता समाप्त हुई है।