धाराएँ महासागर के जल में उत्पन्न होने वाली वह शक्तिशाली गति है, जो निरन्तर किसी दिशा में नदी की धारा की भाँति बहती है। एफ. जे. मोंकहाऊस के अनुसार, “सागर तल की विशाल जलराशि की एक निश्चित दिशा में होने वाली सामान्य गति को महासागरीय dhaaraa कहते हैं।”
जव धाराएँ सुनिश्चित दिशा में अत्यधिक वेग से चलती हैं तो इन्हें स्ट्रीम (streams) कहा जाता है। कभी-कभी इनका वेग 19 किलोमीटर प्रति घण्टा तक होता है, जबकि अनिश्चित स्वरूप एवं घीमी गति से बहने वाले सागर जल की चौड़ी धारा को प्रवाह (Drift) कहते हैं।
धाराओं की उत्पत्ति का कारण (Causes of Origin of currents)
सागर का जल सदा गतिशील रहता है। सन्मार्गी पवनों का प्रवाह, जल के ताप और घनत्व में अन्तर, वर्षा की मात्रा और पृथ्वी गतिशीलता आदि कारक धाराओं को जन्म देने में सहायक होते हैं।
स्थायी पवनें (Permanent Winds)- स्थायी पवनें प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से धाराओं को जन्म देती हैं, क्योंकि विश्व की अधिकांश धाराएँ, प्रचलित पवनों का ही अनुगमन करती हैं। हिन्द महासागर में चलने वाली धाराएँ प्रति 6 महीने पश्चात् मानसून की दिशा परिवर्तन के साथ ही अपनी दिशा बदल लेती हैं। उष्ण कटिबन्ध में सन्मार्गों पवने महासागर में पश्चिम की ओर चलने वाली धाराएँ उत्पन्न कर देती हैं। शीतोष्ण कटिबन्ध में पछुआ पवनें पश्चिम से पूरब की ओर धाराएँ प्रवाहित करती हैं।
तापमान में भिन्नता (Difference In Temperature)- उष्ण सागरों में जल का घनत्व तापमान ऊँचा रहने पर घट जाता है तथा जल हल्का होकर फैलता है, जबकि तापमान गिरने से जल का घनत्व अधिक हो जाता है तथा जाता है। परिणामस्वरूप गरम जल धारा के रूप में ठण्डे प्रदेशों की ओर प्रवाहित होने लगता है। इसके विपरीत, ठंडे भागों का जल गरम भागों की ओर बहता है। उत्तरी ध्रुव प्रदेशों से लैब्राडोर तथा क्यूराइल की धाराएँ दक्षिण की ओर जबकि गल्फस्ट्रीम तथा क्युरोसिवो गरम जल धाराएं उत्तरी ठण्डे भागों की ओर चलती हैं।
जल का खारापन (Salinity of Water)- खारेपन की मात्रा कहीं अधिक और कहीं कम होती है। अधिक खारे जल का घनत्व भी अधिक हो जाता है, जबकि कम खारेपन से उसका घनत्व कम रहता है। अधिक घनत्व वाला जल नीचे बैठ जाता है। फलस्वरूप अपने घनत्व को समान रखने के लिए कम घनत्व के स्थानों से जल अधिक घनत्व वाले स्थानों की ओर बहता है जिससे धाराओं की उत्पत्ति होती है।
महाद्वीपों का आकार (Forms of Continent)- धाराओं की प्रवाह दिशा पर महाद्वीपों के आकार तथा बनावट का भी गहरा प्रभाव पड़ता है। दक्षिणी विषुवत रेखीय जलधारा पश्चिम की ओर चलने की अपेक्षा सेण्ट रॉक अन्तरीप से टकराकर उत्तर तथा दक्षिण को मुड़ जाती है। इसी प्रकार अलास्का तट की स्थिति के कारण ही अलास्का धारा पश्चिम की ओर बहने लगती है।
पृथ्वी की परिभ्रमण गति (Rotation the Earth)- सागरों में धाराओं का प्रवाह प्रायः गोलाकार देखा जाता है। धाराओं की यह प्रकृति पृथ्वी के परिभ्रमण से सम्बन्धित है। फेरेल के नियमानुसार, धाराएँ उत्तरी गोलार्द्ध में दायीं ओर तथा दक्षिणी गोलार्द्ध में बायीं ओर मुड़ जाती हैं। इसी कारण धाराओं का प्रवाह घीरे-घीरे गोलाकार बन जाता है।
धाराओं के प्रकार (Kinds of Currents)
सागरीय धाराएँ दो प्रकार की होती हैं-
गर्म जल धाराएँ (Warm Currents)- जो सामान्यत: ठण्डे स्थानों की ओर चलती हैं। विषुवतरेखीय भागों से उच्च अक्षांशों (ध्रुवों) की ओर चलने वाली धाराएँ होती हैं।
ठण्डी धाराएँ (Coldor Cool Currents)– जो सामान्य रूप से ध्रुवों की ओर से विषुवतरेखीय गर्म भागों की ओर चलती हैं।
अन्ध महासागर की धाराएँ (Currents Atlantic Ocean)
अन्ध महासागर की धाराओं की मुख्य विशेषता यह है कि विषुवत रेखा के दोनों ओर इन धाराओं का क्रम प्राय: समान है। अन्ध महासागर की प्रमुख धाराएँ निम्नलिखित हैं-
उत्तरी विषुवतरेखीय गर्म धारा (North Equatorial Warm Current)- अन्ध महासागर में विषुवत रेखा के उत्तर में उत्तर-पूर्वी सन्मार्गी पवनों के द्वारा एक उष्ण जलधारा प्रवाहित होती है जो विषुवत रेखा के उष्ण जल को पूर्व से पश्चिम को धकेलती है। यही उत्तरी विषुवतरेखीय गर्म जलधारा कहलाती है। कैरेबियन सागर में इस जलधारा के दो भाग हो जाते हैं, जो कि पश्चिमी द्वीपों के कारण होते हैं। एक शाखा उत्तर की ओर अमरीका के पूर्वी तट के साथ बहकर गल्फस्ट्रीम में मिल जाती है और दूसरी शाखा दक्षिण की ओर चलकर मैक्सिको की खाड़ी में पहुँच जाती है।
गल्फस्ट्रीम या खाड़ी की गर्म धारा (Gulf stream)- इसकी उत्पति मैक्सिको की खाड़ी से होती है, इसलिए अर्थातु खाड़ी की धारा कहा जाता है। यहाँ यह लगभग किलोमीटर गहरी 49 किलोमीटर चौड़ी होती है और इसकी गति लगभग 5 किलोमीटर प्रति घण्टा तथा तापमान 28° सेण्टीग्रेड होता है। यह जलधारा फ्लोरिडा जल सन्धि से निकलकर उत्तरी अमरीका के पूर्वी तट के साथ-साथ उत्तर की ओर बहती है। हैलीफैक्स के दक्षिण से इसका प्रवाह पूर्णतः पूर्व की ओर हो जाता है। वहाँ से इसे पछुआ पवनें आगे बहा ले जाती हैं। 45° पश्चिमी देशान्तर के निकट इसकी चौड़ाई बहुत बढ़ जाती है, जिससे धारा के रूप में इसका स्वरूप बिल्कुल बदल जाता है। फलतः यहाँ उसका नाम उत्तरी अटलाण्टिक प्रवाह North Atlantic drift) पड़ जाता है। यही प्रवाह फिर पश्चिमी यूरोप में नार्वे की ओर चला जाता है और उत्तरी ध्रुव सागर में विलीन हो जाता है। गल्फस्ट्रीम में दक्षिणी विषुवत रेखीय धारा के जल का एक भाग आकर मिलने से ही इसकी शक्ति क्षमता बढ़ जाती है।
कनारी की ठण्डी घारा (Canary Current)- उतरी अटलाण्टिक प्रवाह स्पेन के निकट दो शाखाओं में बंट जाता है। एक शाखा उत्तर की ओर चली जाती है और दूसरी दक्षिण की ओर मुड़कर स्पेन, पुर्तगाल तथा अफ्रीका के उत्तरी पश्चिमी तट के सहारे बहती है। यहाँ यह कनारी द्वीप के पास जाकर निकलती है, अतः इसका नाम कनारी धारा पड़ गया है। यहाँ सन्मार्गी पवनों के प्रभाव में आ जाने से धारा पुनः विषुवतरेखीय धारा के साथ विलीन हो जाती है।
लैब्राडोर की ठण्डी धारा (Labrador Cold Current)- ग्रीनलैण्ड के पश्चिमी तट पर बेफिन की खाड़ी से निकलकर लैव्राडोर पठार के सहारे-सहारे बहती हुई न्यूफाउलैंड गल्फस्ट्रीम में मिल जाती है। यह धारा सागरों से आने के कारण ठण्डी होती है। न्यूफाउण्डलैण्ड के निकट ठण्डे और गरम जल मिलने के कारण घाना कुहरा छाया रहता है। मछलियों के विकास हेतु यहाँ आदर्श दशाएं मिलती हैं।
सारगैसो सागर, उत्तरी अटलांटिक महासागर का मध्यवर्ती भाग वृत्ताकार धरा प्रवाह के कारण शांत व् प्रायः स्थिर रहता है। यहाँ कूड़ा-करकट एकत्रित होने पर उस पर सारगोसा नामक घास उगने से ही इसे सारगैसो सागर कहते हैं।
दक्षिणी विषुवत रेखीय गर्म धारा (South Equatorial Current)- यह धारा दक्षिण-पूर्वी सन्मार्गी.हवाओं के प्रवाह के कारण पश्चिमी अफ्रीका से प्रारम्भ होकर दक्षिणी अमरीका के पूर्वी तक बहती है। सेण्ट राक्स द्वीप से टकराने के बाद यह दो भागों में बंट जाती है प्रथम शाखा उत्तरी विषुवत् रेखीय धारा में मिल जाती है तथा दूसरी पूर्वी ब्राजील तट के सहारे गुजरती हुई आगे बढ़ जाती है।
ब्राजील की गर्म धारा (Brazilian Warm Current)- दक्षिणी विषुवत रेखीय धारा दक्षिण-अमरीका के सेण्ट राक दीप से टकराकर दो शाखाओं में विभक्त हो जाती है। इसकी एक शाखा तट के सहारे उत्तर की ओर चली जाती है। यह उत्तरी ब्राजील धारा (north Brazilian Current) कहलाती है जो आगे चलकर खाड़ी की धारा में मिल जाती है। दूसरी धारा ब्राजील के तट के सहारे दक्षिण की ओर चली जाती है। यह दक्षिणी ब्राजील की धारा (South Brazilian Current) कहलाती है। आगे चलकर 40° द. अक्षांश के समीप फाकलैण्ड की ठण्डी धारा से टकराकर यह दक्षिणी अन्ध महासागर के प्रवाह के रूप में पश्चिम में पूर्व की ओर बहने लगती है।
फाकलैण्ड की ठण्डी धारा (Falkland Cold Current)- अण्टार्कटिक महासागर में पश्चिम से पूर्व की ओर चलने वाली ठण्डी धारा प्रवाह (drift) के दक्षिणी अमरीका के केपहार्न से टकराने से उसकी एक शाखा उसके पूर्वी किनारे के सहारे उत्तर की ओर चलने लगती है। यह फाकलैण्ड धारा कहलाती है।
बेंगुला की ठण्डी धारा Banguela Cold Current- दक्षिणी अटलांटिक प्रवाह दक्षिण अफ्रीका के पश्चिमी तट से टकराकर उसके सहारे उतर की ओर मुड़ जाती है। इसे ही बेन्गुला की ठण्टी धारा कहा जाता है।
अण्टार्कटिक प्रवाह (Antarctic Drift)- यह प्रवाह दक्षिणी ध्रुव सागर में तीव्र पछुआ पवनों के कारण पश्चिम से पूर्व की ओर चलता है। इसे पछुआ पवनों का प्रवाह भी कहा जाता है। यह एक ठण्डा प्रवाह है और यहाँ स्थल के अभाव में बड़े वेग से सम्पूर्ण पृथ्वी की प्रक्रिया करता हुआ वहता है।
विपरीत भूमध्यरेखीय जलधारा (Counter Equatorial Current)- उत्तरी व दक्षिणी विषुवत रेखीय जलधाराएँ जव दक्षिणी अमरीका के पूर्वी तट पर पहुंचती हैं तो तट से टकराकर इन धाराओं का कुछ जल पुनः विषुवत् रेखा के शान्त खण्ड से होकर अफ्रीका के गिनी तट की ओर आता है। दोनों धाराओं के बीच जल के इस उल्टे बहाव को ही विपरीत विषुवत रेखीय जलधारा कहते हैं। इसकी उत्पत्ति में पृथ्वी की परिभ्रमण गति एवं पूर्ववर्ती भाग में जल की कमी की पुनः आपूर्ति का ही विशेष कारण निहित रहे हैं।
प्रशांत महासागर की धाराएं (Currents Pacific Ocean)
अन्ध महासागर की अपेक्षा प्रशान्त महासागर अधिक विस्तृत है और इसके तटवर्ती प्रदेशों का आकार भी भिन्न है, अतः इसमें धाराओं के क्रम कुछ भिन्न पाए जाते हैं। प्रशान्त महासागर की मुख्य धाराएँ निम्नलिखित हैं-
उत्तरी भूमध्यरेखीय गर्मघारा (North Equatorial Current)- मध्य अमरीका के तट से पूर्वी द्वीपसमूह की ओर बहने वाली यह गरम जलधारा है। विषुवत्रैखा के निकट जल के उच्च तापमान के कारण गरम होकर सन्मार्गी पवनों द्वारा वहाए जाने से इसकी उत्पत्ति होती है। यह प्रायः विषुवत् रेखा के समान्तर बहती है।
क्यूरोसिबो गर्म जलधारा (Kuroshio Warm Current)- जब प्रशान्त महासागर की उत्तरी विषुवतरेखीय धारा का बड़ा भाग फिलीपीन द्वीपसमूह के निकट पहुंचती है तो सन्मार्गी पवनों के प्रवाह से उत्तर की ओर मुड़ जाती है। इसके बाद दक्षिणी मध्य चीन के सहारे बढ़ती हुई जापान के पूर्वी तट तक पहुंचती है। यह उसे क्यूरोसिवो धारा कहते हैं। इसका रंग गहरा नीला होने के कारण जापानी लोग इसे जापान की काली धारा (Black Stream of Japan) भी कहते हैं। जापानी तट के सहारे बढ़ती हुई यह क्यूराइल के पास ठण्डी धारा से मिल जाती है। यहीं यह पछुआ पवनों के प्रवाह में आ जाने से पूरब की ओर मुड़ जाती है। यहाँ से इस धारा का विस्तार बहुत अधिक हो जाता है और यह उत्तरी प्रशान्त प्रवाह (North Pacific Drift ) कहलाने लगती है। यह प्रवाह पूर्व की ओर बहता हुआ उत्तरी अमरीका के पश्चिमी तट अलास्का से जा लगता है। वेंकूवर द्वीप समूह के निकट यह दो भागों में विभक्त हो जाती है। एक शाखा उत्तर की ओर अलास्का तट के सहारे बहती हुई पुनः उत्तरी प्रशान्त प्रवाह से मिल जाती है। इस उत्तरी शाखा को अलास्का की धारा (Alaskan Current) कहते हैं। दक्षिण की ओर जाने वाली धारा गर्म सागरों में शीतल होने से केलीफोर्निया की ठण्डी धारा के नाम से जानी जाती है।
क्यूराइल की ठण्डी धारा (Cold Current)- यह एक ठण्डी जलधारा है जो बेरिंग जल संयोजकं से होती हुई दक्षिण की ओर साइबेरिया तट के साथ बहती है और क्यूराइल द्वीपसमूह के निकट क्यूरोसियो जलधारा से मिल जाती है जिससे यहाँ घना कोहरा उत्पन्न होता है।
कैलीफोर्निया की ठण्डी घारा (Californian Cold Current)- यह एक ठण्डी धारा है। यह उत्तरी प्रशान्त प्रवाह की दक्षिणी शाखा का ही भाग है। यह कैलीफोर्निया के पश्चिम तट के साथ बहकर दक्षिण में उत्तरी भूमध्यरेखीय धारा से मिल जाती है।
दक्षिणी भूमध्य रेखीय धारा (South Equatorial Current)- सन्मार्ग पवनों के कारण उत्पन्न होती है। यह धारा दक्षिणी अमरीका के पश्चिमी तट से पश्चिम की ओर आस्ट्रेलिया के पूर्वी तट पर बहती है। न्यूगिनी द्वीप के समीप यह दो भागों में विभक्त हो जाती है एक धारा न्यूगिनी के उत्तरी तट के सहारे बहती है और दूसरी दक्षिण की ओर बहकर आस्ट्रेलिया की पूर्वी तटीय धारा में विलीन हो जाती है।
पूर्वी आस्ट्रेलिया की गर्म धारा (East Australian warm current)- न्यू गिनी के समीप दक्षिण में विषुवत रेखीय धारा दो शाखाओं में विभक्त हो जाती है। इसी की दक्षिणी शाखा आस्ट्रेलिया के पूर्वी तट के साथ बहती है। आस्ट्रेलिया के पूर्वी तट पर इसे पूर्वी आस्ट्रेलिया की गर्म घारा अथवा न्यूसाउथवेल्स की धारा कहकर भी पुकारा जाता है। आगे चलकर पवनों के प्रभाव से पूर्व की ओर मुड़ जाती है।
हम्बोल्ट (Hambolt) अथवा पेरू की ठण्डी धारा (Peruvian Cold Current)- दक्षिणी प्रशांत महासागर का अण्टार्कटिक प्रवाह दक्षिणी अमरीका के दक्षिणी सिरे पर पहुंचता है, तो केपहॉर्न से टकराकर उत्तर की ओर मुड़ जाता है। फिर यह पेरू देश के पश्चिमी तट के साथ-साथ उत्तर की ओर प्रवाहित होता है जो आगे चलकर पूर्वी आस्ट्रेलिया की धारा से मिल जाता है। पेरू के समीप इसे पेरुवियन घारा कहा जाता है। सर्वप्रथम इसे हम्बोल्ट नामक महान भूगोलवेता ने खोजा था, अतः यह हम्बोल्ट की धारा के नाम से भी विख्यात है।
अण्टार्कटिक प्रवाह (Antarctic Drift)- अण्टार्कटिक महासागर में प्रशान्त महासागर के जल के सम्पर्क में आकर पश्चिम से पूर्व की एक ठण्डी जलधारा बहती है। यह पूर्वार्द्ध पछुआ पवनों से प्रभावित होती है। इसी कारण इसे पछुआ पवन प्रवाह (West wind Drift) भी कहते हैं। इसका वेग कम रहता है।
विपरीत भूमध्यरेखीय धारा (Counter Equatorial Current)- यह धारा अन्ध महासागर की विपरीत धारा के समान प्रशान्त महासागर दोनों भूमध्य रेखीय गर्म धातुओं के मध्य पूर्व की ओर बहती हैं।
हिन्द महासागर की धाराएं (Currents of The Indian Oceans)
उत्तरी हिन्द महासागर में चलने वाली धाराएँ मानसून पवनों के साथ अपनी दिशा बदलती हैं। अत: हिन्द महासागर की धाराओं को दो श्रेणियों में विभक्त किया जा सकता है।
परिवर्तनशील धाराएँ या मानसून प्रवाह (Variable Or Monsoon Currents)- विषुवत् रेखा के उत्तर की ओर हिन्द महासागर की धाराएँ मानसून पवनों के अनुसार अपनी दिशा और क्रम बदल लेती हैं, इसलिए ये परिवर्तनशील धाराएँ कहलाती हैं। इन्हें मानसून प्रवाह (Monsoon Drift) भी कहा जाता है। यह प्रवाह भारतीय उपमहाद्वीप से अरब तट के मध्य बहता है।
स्थायी धाराएँ (Permanent Currents)- हिन्द महासागर में विषुवत् रेखा के दक्षिण में चलने वाली धाराएँ वर्ष भर एक ही क्रम में चलती हैं, अत: इन्हें स्थायी धारा कहते हैं। इन धाराओं में दक्षिणी विषुवत्रेखीय जलधारा, मोजाम्बिक धारा, पश्चिमी आस्ट्रेलिया की जलधारा और अगुलहास धारा मुख्य हैं।
हिन्द महासागर की निम्नलिखित धाराएँ हैं-
दक्षिण विषुवतीय गर्म धारा (South Equatorial Warm Current)- दक्षिण पूर्वी सन्मार्गी पवनों के प्रवाह से ऑस्ट्रेलिया के पश्चिमी तट से पूर्व की ओर चलती हैा पूर्वी अफ्रीका के निकट मेडागास्कर के तट पर दो शाखाओं में बँटकर के समीप यह दक्षिण की ओर मुड़ जाती है। इसकी पश्चिमी शाखा ही मोजाम्विक धारा कहलाती है।
मोजाम्बिक की गर्म धारा (Mozambique Hot Current) – अफ्रीका के पूर्वी तट मेडागास्कर के समीप बहती है। मेडागास्कर के पूर्वी तट पर वाली शाखा को मेडागास्कर धारा भी कहते हैं। यह दोनों ही शाखाएँ मिलकर अगुलहास की धारा कहलाती है।
अगुलहास की गर्म धारा (Agulhas Warm Current)- अफ्रीका के दक्षिण में अगुलहास अन्तरीप से पछुआ पवनों के प्रवाह द्वारा पूर्व को एक धारा चलने लगती है। इसी धारा को अगुलहास की गर्म धारा कहते हैं।
पश्चिमी आस्ट्रेलिया की ठण्डी धारा (West Australian Cold Current)- अण्टार्कटिक प्रवाह की एक शाखा आस्ट्रेलिया के दक्षिण-पश्चिमी भाग से मुड़कर उत्तर की ओर आस्ट्रेलिया के पश्चिमी तट के साथ-साथ वहने लगती है। यहीं यह पश्चिमी आस्ट्रेलिया की ठण्डी जलधारा कहलाती है।
ग्रीष्मकालीन मानसून प्रवाह (Summer Monsoon Drift)- ग्रीष्म में दक्षिण-पश्चिमी मानसून पवनों के प्रभाव से एशिया महाद्वीप के पश्चिमी तटों में उष्ण प्रवाह पवनों की ओर चलने लगता है। उत्तरी विषुवत्रेखीय धारा भी मानसून के प्रवाह से पूर्व की ओर बहकर मानसून प्रवाह के साथ ग्रीष्मकाल की समुद्री धाराओं का क्रम बनाती है
शीतकालीन मानसून प्रवाह (Winter Monsoon Drift)- शीत-ऋतु में उत्तर-पूर्वी मानसूनी पवनों के प्रभाव से एशिया के दक्षिणी तटों से एक धारा प्रवाहित होती है, जो पूर्व से पश्चिम को बहती है। यह विभिन्न देशों के तटों के साथ-साथ बढ़ती हुई पूर्वी अफ्रीका के समीप पूर्व की ओर मुड़ जाती है और पूर्वी द्वीपसमूह को चली जाती है।
धाराओं का मानव-जीवन पर प्रभाव (Effects Currents on Human Life)-
जिन सागरीय तटों से होकर जलधाराएँ बहती हैं, वहाँ के निवासियों पर इनका बड़ा भारी प्रभाव पड़ता है। धाराओं का यह प्रभाव कई प्रकार से होता है-
तापमान पर प्रभाव- धाराओं का जलवायु पर सम (Equable) और विषम (Extreme) दोनों ही प्रकार का प्रभाव होता है। ठण्डी धाराओं के समीप के तट महीनों हिम से जमे रहते हैं, किन्तु जिन भागों में गर्म धाराओं का प्रवाह वहता है, वहाँ इनका बहुत ही उत्तम और सम प्रभाव होता है। गर्म धाराएँ उष्ण प्रदेशों की गर्मी को उच्च अक्षांशों के शीतल प्रदेशों को पहुंचाकर वहाँ की जलवायु को सम शीतोष्ण बनाए रखती हैं। उप ध्रुवीय ध्रुव प्रदेश में फसलें पैदा की जाती हैं। उत्तरी पश्चिमी यूरोप (नार्वे, स्वीडेन, इंग्लैण्ड, आदि) और पूर्वी जापान की उन्नति का कारण ये गर्म धाराएँ भी हैं।
वर्षा पर प्रभाव- गर्म धाराओं के ऊपर होकर बहने वाली पवनों में काफी नमी होती है। यही वाष्प भरी पवनें उच्च अक्षांशों में पहुंचने पर अथवा अधिक ऊँचाई पर उठने पर वर्षा कर देती हैं। उत्तर-पश्चिमी यूरोप और अमरीका के पश्चिमी किनारे पर इसी प्रकार से वर्षा नियमित रूप से होती है। इसके विपरीत अफ्रीका में कालाहारी और दक्षिणी अमरीका में आटाकामा मरुस्थलों का अस्तित्व तटीय ठण्डी धाराओं के कारण कम वर्षा का परिणाम हैं।
वातावरण पर प्रभाव- जिन स्थानों पर गर्म और शीतल धाराएँ परस्पर मिलती हैं वहाँ धना कुहरा उत्पन्न हो जाता है। न्यूफाउण्डलैण्ड के समीप गल्फस्ट्रीम की गर्म धारा और लैब्राडोर की ठण्डी धारा के मिलने से तथा जापान तट पर क्यूरोसिवो और क्यूराइल धाराओं के मिलने से घना कुहरा उत्पन्न हो जाता है।
सामुद्रिक जीव-जन्तुओं पर प्रभाव- धाराएँ सामुद्रिक जीवन का प्राण हैं, सामुद्रिक जीवन को बनाए रखने और उसको प्रश्रय देने में धाराएँ महत्वपूर्ण योग देती हैं। धाराओं के कारण ही सागरों में आवश्यक जीवन-तत्व (ऑक्सीजन) एवं प्लेंकटन का सन्तुलित वितरण होता है। कई जीवों के लिए भोजन का आधार भी ये धाराएँ ही हैं।
नौसंचालन (Shipping) पर प्रभाव- डीजल से चलने वाले अति आधुनिक शक्तिशाली जहाज धाराओं के प्रभाव से मुक्त जान पड़ते हैं, किन्तु प्राचीनकाल में जब जहाज पालदार होते थे, धाराओं का नौसंचालन पर उल्लेखनीय प्रभाव पड़ता था।
व्यापार पर प्रभाव- धाराओं के कारण सागरों की गति बनी रहती है। यह गति सागरों को जमने से बचाती है। जिन तटों पर गरम धाराएँ बहती हैं वहाँ के बन्दरगाह वर्ष भर खुले रहते हैं, जैसे-नार्वे तथा जापान के बन्दरगाह। बन्दरगाहों के खुले रहने से उन प्रदेशों में वर्ष भर व्यापार बना रहता है।