Monday, 20 November 2017

डब्ल्यूएचओ ने लिम्फेटिक फिलैरिसिस के वैश्विक उन्मूलन में तेजी लाने के लिए ट्रिपल ड्रग थेरेपी की सिफारिश की


विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्लूएचओ) लिम्फेटिक फिलैरिसिस के वैश्विक उन्मूलन में तेजी लाने के लिए एक वैकल्पिक तीन दवाओं वाले उपचार (ट्रिपल ड्रग थेरेपी) की सिफारिश कर रहा है। इस उपचार को आईडीए के रूप में जाना जाता है।

प्रमुख तथ्य
  • इसमें आइवरमेक्टिन (ivermectin), डायएथिलकार्बामेजाइन सिट्रेट (diethylcarbamazine citrate) और अल्बेंडाजोल (albendazole) का संयोजन शामिल है। इस उपचार की उस जगह पर प्रतिवर्ष सिफारिश की जा रही है जहाँ इसका सबसे बड़ा प्रभाव पड़ने की उम्मीद है।
  • हाल ही में हुए शोध अध्ययनों के साक्ष्यों ने यह साबित किया है कि वर्तमान में प्रयोग किये जा रहे डायएथिलकार्बामेजाइन सिट्रेट और अल्बेंडाजोल के संयोजन के साथ आइवरमेक्टिन को जोड़ने पर माइक्रोफाइलेरिया की रक्त से अधिक कुशलता से सफाई की जा सकती है। यह संयोजन दो दवाओं के उपचार से बेहतर और सुरक्षित होता है।
  • चार देशों में किए गए बड़े यादृच्छिक सामुदायिक अध्ययन में पाया गया कि एमडीए के दौरान इस्तेमाल किये जाने पर आईडीए दो-दवाओं के उपचार के समान ही सुरक्षित होता है। नई सिफारिशों की विशेषताओं को डब्ल्यूएचओ के नए दिशानिर्देशों में प्रकाशित किया गया है।
लाभ
वर्तमान में डायएथिलकार्बामेजाइन सिट्रेट प्लस ऐल्बेंडाजोल का इस्तेमाल करने वाले 24 देशों को आईडीए से फायदा हो सकता है और इसका उपयोग उन स्थानिक देशों के लिए विशेष रूप से सहायक होगा जिन्होंने अभी तक सभी स्थानिक जिलों में एमडीए शुरू नहीं किया है।

प्रगति
  • सार्वजनिक स्वास्थ्य समस्या के रूप में लिम्फेटिक फिलैरिसिस के वैश्विक उन्मूलन की दिशा में महत्वपूर्ण प्रगति लगातार हो रही है। डब्ल्यूएचओ ने पहले ही दस देशों को लिम्फेटिक फिलैरिसिस से मुक्त घोषित कर दिया है। अब इन देशों में यह सार्वजनिक स्वास्थ्य समस्या के रूप में विद्यमान नहीं है।
  • कम से कम 856 मिलियन लोग उन क्षेत्रों में रह रहे हैं जहाँ फिलैरियल संक्रमण अभी भी संचारित हैं; जबकि 514 मिलियन लोग ऐसे क्षेत्रों में रह रहे हैं जो आईडीए से लाभान्वित हो सकते हैं। आईडीए उन्मूलन को तेज करने के लिए एक संभावित फास्ट-ट्रैक और कम-लागत वाला विकल्प प्रदान करता है।

फाइलेरिया (Lymphatic Filariasis)

  • फाइलेरिया (Lymphatic Filariasis) एक परजीवीजन्य संक्रामक बीमारी है जो धागे जैसे कृमियों से होती है। वैश्विक स्तर पर इसे एक उपेक्षित उष्णकटिबंधीय बीमारी (Neglected Tropical Disease) माना जाता है। फाइलेरिया दुनिया भर के उष्णकटिबंधीय और उपोष्णकटिबंधीय देशों में एक गंभीर स्वास्थ्य समस्या है। जिसमें भारत भी शामिल है।
  • हाथीपांव (Elephantiasis) फाइलेरिया का सबसे सामान्य लक्षण है जिसमें शोफ (Oedema) के साथ चमड़ी तथा उसके नीचे के ऊतक मोटे हो जाते हैं।

फाइलेरिया के कौन से कारक जीव हैं?
  • फाइलेरिया, फाइलेरियोडिडिया (Filariodidea) कुल के नेमैटोडों (गोलकृमि) के संक्रमण से होता है। तीन प्रकार के कृमि इस बीमारी को जन्म देते हैं। ये हैं वुचिरेरिया बैंक्राफ्टाई (Wuchereria bancrofti), ब्रुजिया मलाई (Brugia malayi) और ब्रुजिया टिमोरीई (Brugia timori)।
  • वुचिरेरिया बैंक्राफ्टाई इस बीमारी का सबसे सामान्य कारक है जो पूरे विश्व में पाया जाता है। ब्रुजिया मलाई दक्षिण-पश्चिम भारत, चीन, इंडोनेशिया, मलेशिया, दक्षिण कोरिया, फिलिपींस और वियतनाम में पाया जाता है जबकि ब्रुजिया टिमोराई सिर्फ इंडोनेशिया तक ही सीमित है। वुचिरेरिया बैंक्राफ्टाई में नर कृमि 40 मिलीमीटर लंबा होता है जबकि मादा की लंबाई लगभग 50-100 मिलीमीटर होती है।

कैसे फैलता है फाइलेरिया?
फाइलेरिया मच्छरों से फैलता है जो परजीवी कृमियों के लिए रोगवाहक का काम करते हैं। इस परजीवी के लिए मनुष्य मुख्य पोषक है जबकि मच्छर इसके वाहक और मध्यस्थ पोषक हैं। परजीवियों को चार मुख्य प्रकार के मच्छरों द्वारा प्रेषित किया जाता है: क्यूलेक्स, मैनसोनिया, एनोफेलीज और एडीज।