Friday, 10 November 2017

क्या है 'स्मॉग'? इसको रोकने के क्या उपाय है? यह हमारी दिनचर्या से किस प्रकार बढ़ रही है?


'स्मॉग' शब्द का इस्तेमाल 20वीं सदी के शुरूआत से हो रहा है। यह शब्द अंग्रेजी के दो शब्दों 'स्मोक' और 'फॉग' से मिलकर बना है। आम तौर पर जब ठंडी हवा किसी भीड़भाड़ वाली जगह पर पहुंचती है तब स्मॉग बनता है। चूंकि ठंडी हवा भारी होती है इसलिए वह रिहायशी इलाके की गर्म हवा के नीचे एक परत बना लेती है। तब ऐसा लगता है जैसे ठंडी हवा ने पूरे शहर को एक कंबल की तरह लपेट लिया है।
गर्म हवा हमेशा ऊपर की ओर उठने की कोशिश करती है और थोड़ी ही देर में वह किसी मर्तबान के ढक्क्न की तरह व्यवहार करने लगती है। कुछ ही समय में हवा की इन दोनों गर्म और ठंडी परतों के बीच हरकतें रुक जाती हैं। इसी खास 'उलट पुलट' के कारण स्मॉग बनता है। और यही कारण है कि गर्मियों के मुकाबले जाड़ों के मौसम में स्मॉग ज्यादा आसानी से बनता है।
स्मॉग बनने का दूसरा बड़ा कारण है प्रदूषण। आजकल हर बड़ा शहर वायु प्रदूषण से जूझ ही रहा है। कहीं उद्योग, धंधों और गाड़ियों से निकलने वाला धुंआ तो कहीं चिमनियां, सब मिलकर हवा में बहुत सारा धुंआ छोड़ रहे हैं।
स्मॉग एक तरह का वायु प्रदूषण ही है। यह स्मोक और फॉग से मिलकर बना है जिसका मतलब है स्मोकी फॉग, यानी कि धुआं युक्त कोहरा। इस तरह के वायु प्रदूषण में हवा में नाइट्रोजन ऑक्साइड्स, सल्फर ऑक्साइड्स, ओजोन, स्मोक और पार्टिकुलेट्स घुले होते हैं। हमारे द्वारा इस्तेमाल किए जाने वाले वाहनों से निकलने वाला धुआं, फैक्ट्रियों और कोयले, पराली आदि के जलने से निकलने वाला धुआं इस तरह के वायु प्रदूषण का प्रमुख कारण होता है।

क्या है स्मॉग का कारण
एनसीआर-दिल्ली की सीमाएं पंजाब, उत्तर प्रदेश और हरियाणा से लगती हैं जहां बहुतायत मात्रा में कृषि की जाती है। यहाँ के लोग फसल कटने के बाद उसके अवशेषों को जला देते हैं जिससे स्मॉग की समस्या उत्पन्न होती है। इसके अलावा इस बार सुप्रीम कोर्ट से बैन होने के बावजूद राजधानी के बहुत से इलाकों में भारी मात्रा में पटाखे आदि फोड़े गए। स्मॉग के बनने में इनका भी योगदान कम नहीं है। राजधानी की सड़कों पर उतरने वाली कारें, ट्रक्स, बस तो बहुत सालों से स्वच्छ पर्यावरण की राह में रोड़ा हैं। इसके अलावा औद्योगिक प्रदूषण भी स्मॉग का मुख्य जिम्मेदार कारक है। सर्दी के मौसम में हवाएं थोड़ी सुस्त होती हैं। ऐसे में डस्ट पार्टिकल्स और प्रदूषण वातावरण में स्थिर हो जाता है जिससे स्मॉग जैसी समस्याएं सामने आती हैं।

कैसे कम हो स्मॉग या वायु प्रदूषण?
आज राजधानी दिल्ली में ही नहीं बल्कि पूरे देश में वायु प्रदूषण का खतरा बढ़ता ही जा रहा है। (खासकर उत्तर भारत men) हम वायु प्रदूषण के विभिन्न कारणों पर तो बात करते हैं लेकिन इसे खत्म करने या रोके जाने के उपायों पर कम ही चर्चा करते हैं। हवा की गुणवत्ता अभी भी निहायत खराब है। अगर हम कोई ठोस उपाय नहीं करते हैं तो हालात ऐसे ही बने रहेंगे।

इस स्तर को कम करने के लिये क्या किया जाना चाहिये?
  • यह चिंताजनक है कि अस्वच्छ ईंधन पर करों में रियायत दी जा रही है, जबकि स्वच्छ ईंधन के मामले में यह रियायत नहीं दी जा रही। स्वच्छ ईंधन के लिए भी रियायत दी जाए ।
  • वस्तु एवं सेवा कर व्यवस्था के अधीन ‘फर्नेस ऑयल’ जैसे ज़हरीले ईंधन को इस्तेमाल करने वाले उद्योगों को ईंधन पर रीफंड दिया जा रहा है, जबकि प्राकृतिक गैस को जीएसटी से बाहर रखा गया है। इस व्यवस्था में सुधार हो ।
  • यानी उद्योगपति चाहकर भी स्वच्छ ऊर्जा का इस्तेमाल नहीं कर सकते। हमें स्वच्छ ईंधन को बढ़ावा देना होगा।
  • हम दुनिया का सबसे प्रदूषक ईंधन यानी ‘पेट कोक’, अमेरिका से आयात करते हैं। अमेरिका प्रदूषण के चलते खुद इस पर प्रतिबंध लगा चुका है।चीन ने इसका आयात बंद कर दिया है लेकिन हमारे यहाँ ‘ओपेन जनरल लाइसेंस’ के अधीन इसे अनुमति दी जा रही है। इसे कम करके ग्रीन एनर्जी अपनानी होगी सौर ऊर्जा नवीकरणीय ऊर्जा को बढ़ावा देना होगा।
  • उल्लेखनीय है कि सर्वोच्च न्यायालय ने राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में इस गंदे ईंधन का इस्तेमाल बंद करने के लिये दखल दी है।
  • पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय को चाहिये कि वह उच्च सल्फर ईंधन से उत्पन्न प्रदूषकों को देखते हुए उत्सर्जन मानक तय करे।
  • अरावली पर हो रहे अनियंत्रित खनन पर पूरी तरह रोक लगे। निर्माण कार्यो को नियंत्रित तरीके से किया जाए ताकि वातावरण में धूल कर्ण न के बराबर रहे इसके लिए उच्चस्तरी मानक अपनाये जाए। वही अरावली के पारिस्थितिक तंत्र को फिर से बहाल किया जाए।
  • तात्कालिक उपयो में मल्टी-फंक्शन डस्ट सेप्रेशन ट्रक का इस्तेमाल किया गया।  इसके ऊपर एक विशाल वॉटर कैनन लगा होता है जिससे 200 फीट ऊपर से पानी का छिड़काव होता है। पानी का छिड़काव इसलिए किया गया ताकि धूल नीचे बैठ जाए। 
  • वेंटिलेटर कॉरिडोर बनाने से लेकर एंटी स्मॉग पुलिस तक बनाने का फैसला किया जाए।  ये पुलिस जगह-जगह जाकर प्रदूषण फैलाने वाले कारणों जैसे सड़क पर कचरा फेंकने और जलाने पर नज़र रखे और जुर्माना लगाए।
  • पेरिस की तरह हफ्ते के अंत में कार चलाने पर पाबंदी लगा दी जाए। शहरो में ऑड-ईवन तरीका अपनाया जाए। ऐसे दिनों में जब प्रदूषण बढ़ने की संभावना हो तो सार्वजनिक वाहनों को मुफ्त किया जाए और वाहन साझा करने के लिए कार्यक्रम चलाए जाए।
  • सार्वजनिक परिवहन बेहतर करने पर ज़ोर दिया जाए प्रदूषण कम करने के लिए सार्वजनिक परिवहन को बेहतर बनाने पर ज़ोर दिया जाए भीड़भाड़ वाले क्षेत्रों में ट्राम नेटवर्क को बढ़ाया दिया जाए।
  • बस ट्रक्स और गाड़ियों आदि के प्रदूषण मानको की गहन जांच की जाए इसके लिए एक विशेष जांच टीम गठित की जाए। क्योंकि ज्यादातर वायु प्रदूषण इन्ही के द्वारा होता है।
  • उद्योगों पर चिमनी फिल्टर्स को अनिवार्य किया जाए जिससे चिमनियों से प्रदूषक तत्व की मात्रा अत्यंत सीमित हो जाए।
  • स्कूल स्तर पर बच्चो को पर्यावरण प्रदूषण के बारे में पढ़ाया जाए प्रेक्टिकल के साथ यह शिक्षा दी जाए साथ ही पेरेंट्स मीटिंग में पेरन्ट्स को बुलाकर प्रदूषण के प्रति समय समय पर शिक्षित किया जाए।
  • प्रदूषण के प्रति लोगों को सजग करने के लिए टीवी, इश्तेहार , शोशल मीडिया, सिनेमा हॉल शॉपिंग मॉल, रेलवे स्टेशन आंगनवाड़ी केंद्रों ,संगोष्ठियां आदि के माध्यम से जागरूक किया जाए।
  • वनावरण को बढ़ाया जाए वृक्षारोपण कार्यक्रम द्वारा लोगो को वृक्षावरण के प्रति जागरूक किया जाए साथ ही सरकार द्वारा इसके लिए साधन उपलब्ध कराने के साथ लोगो प्रोत्साहित भी किया जाना चाहिए।

प्रदूषण के कुछ मुख्य कारण
प्रदूषण के लिए जीवनचर्या भी जिम्मेदार
  • पर्यावरण को बिगाड़ने और आबोहवा को इस हद तक जहरीली बनाने के लिए आज के दौर की जीवनचर्या कम जिम्मेदार नहीं है। इसे दिखावे की संस्कृति का खेल कहिए या आरामतलबी का जुनून। अब जरूरतों पर इच्छाएं भारी पड़ रही हैं। बिना जरूरत के वाहन खरीदने और कदम भर भी पैदल न चलने की जीवनशैली हमारे भविष्य पर ही प्रश्नचिन्ह लगा रही है।
  • हर तरह की सुख-सुविधा के आदी हो चले हम पहले इन चीजों के बिना भी सहज जीवन जीया करते थे। आज घरों और दफ्तरों में दिन-रात चलने वाले अनगिनत उपकरण ऐसे हैं जो प्रदूषण फैलाने के लिए जिम्मेदार हैं। ऐसे में कहना गलत नहीं होगा कि हवा में जहर घोलने में आमजन की भी बड़ी भूमिका है।
  • बीते कुछ सालों में लोगों की जीवनशैली और आर्थिक स्थिति में बड़ा बदलाव आया है। लोगों में निजी वाहन की चाहत बढ़ी है। हालांकि इसका बड़ा कारण सार्वजनिक परिवहन व्यवस्था का कमजोर होना भी है, पर इस बदलती भोगवादी जीवनशैली में दिखावा संस्कृति की सोच ने इस चाहत को और बल दिया है।
  • एक अनुमान के मुताबिक 2007 से 2011 तक दिल्ली में वाहनों की संख्या 37 फीसद तक बढ़ी है। राजधानी दिल्ली में ही पिछले तीस सालों में वाहनों की संख्या तकरीबन डेढ़ लाख से बढ़ कर 30 लाख से भी अधिक हो गई है। हर रोज दिल्ली की सड़कों पर चौदह सौ नई कारें आ रही हैं। भारत में हर साल कार कंपनियों द्वारा कार के नए-नए मॉडल बाजार में उतारे जाते हैं, जिन्हें ग्राहक भी खूब मिलते हैं। जिसने प्रदूषण बढ़ोतरी में मुख्य भूमिका निभाई है।

बाजार का प्रदूषण से सीधा संबंध
  • त्योहारी मौसम में तो कई सारी रियायतें देकर उपभोक्ताओं को ललचाया जाता है। निजी वाहनों के विज्ञापन को लेकर कंपनियां जो आक्रामक रणनीति अपनाती हैं उसकी चपेट में मध्यवर्ग से लेकर उच्च वर्ग तक सभी शामिल हैं। हमारे यहां कारें ही नहीं दोपहिया वाहनों का बाजार भी खूब बड़ा है।
  • माना जा रहा है कि आर्थिक असमानता और गरीबी का दंश ङोल रहे हमारे देश में 2020 तक लग्जरी कारों का बाजार तीन गुना हो जाएगा। प्रतिदिन सड़क पर उतर रहे नए वाहनों के कारण प्रदूषण का स्तर तेजी बढ़ रहा है। समस्या यह भी है कि हमारे यहां वाहनों की जांच की कोई उचित व्यवस्था नहीं है। बरसों पुरानी गाड़ियां भी धुआं उड़ाते हुए सड़कों पर दौड़ती नजर आती हैं।
  • इतना ही नहीं वर्तमान में वाहनों के लिए मिलने वाले पेट्रोल-डीजल में भी मिलावट होती है। जिसकी वजह से गाड़ी के धुएं से निकलने वाले जहरीले रसायन त्वचा, आंख, फेफड़े के लिए जानलेवा साबित हो रहे हैं। इतना ही नहीं सर्दी के मौसम में हीटर और गर्मी के मौसम में एसी का इस्तेमाल भी अब हर घर में आम है। ऐसे में आबादी के लिहाज से देखा जाए तो हवा में बढ़ते जहर के लिए सुविधासंपन्न जीवनशैली भी कम जिम्मेदार नहीं।

कानून के क्रियान्वयन की जरूरत
  • यकीनन इस जहरीली हवा से उपजा यह सार्वजनिक स्वास्थ्य संकट बेहद गंभीर है। ऐसे में वाहनों की खरीद और बिक्री के लिए सख्त नियम बनाए जाने चाहिए। संभावित खतरों को देखते हुए ईंधन की गुणवत्ता, उत्सर्जन के मानक और प्रदूषण नियंत्रक कानूनों को भी कठोरता से लागू किया जाना चाहिए।
  • आमजन भी आने वाले कल की बेहतरी के लिए इन नियमों का पालन करें। साथ ही कार पूलिंग जैसे साझा परिवहन को बढ़ावा देना चाहिए। निजी वाहनों के प्रयोग में कमी लाने के लिए जन जागरूकता बढ़ाई जानी चाहिए।
  • सरकार सार्वजनिक यातायात सुविधाओं का दुरुस्त करने की भी सोचे। जाहिर है प्रदूषण के बढ़ते स्तर को देखते हुए और भविष्य की बेहतरी के लिए न केवल सरकार को सचेत होना होगा, बल्कि आमजन को भी अपनी जीवनशैली में बदलाव लाना होगा। इसके लिए केवल आरामतलबी और दिखावे के लिए वाहन खरीदने या सवारी करने की सोच भी बदलनी होगी।

पराली समस्या का समाधान हो
  • धान की पराली एक गंभीर समस्या है, जिसे किसान जलाकर खेत खाली करने की जल्दी में रहते हैं। हरियाणा, पंजाब और पश्चिम उत्तर प्रदेश में धान की फसल सबसे पहले तैयार हो जाती है। आगामी गेहूं की बुवाई के लिए खेत खाली करने चक्कर में धान की फसलें कंबाइनर हार्वेस्टर से कटाई जाती है। इस मशीन से कटाई में धान की पराली खेतों में ही खड़ी रह जाती है, जिसे खेत में ही जला दिया जाता है।
  • पराली जलाने के लिए कानूनी प्रावधान के साथ लोगों के बीच जागरुकता लाना जरूरी है। इसके लिए उठाये जाने वाले कदमों की जानकारी भी हर सप्ताह देना जरूरी किया गया है। एनजीटी के निर्देशों से सभी ग्राम पंचायतों को अवगत कराना है। पराली न जलाने वाले किसानों को प्रोत्साहित भी किया जाए। खेत को जल्दी खाली करने के वैकल्पिक उपायों और मशीनरी मुहैया कराने का बंदोबस्त भी राज्य सरकारें करें।

निष्कर्ष
  • इन प्रयासों से तात्कालिक तौर पर राहत तो मिल जाएगी, लेकिन प्रदूषण कम करने हेतु दीर्घावधि सुधार के लिये सार्वजनिक परिवहन को बढ़ावा दिया जाना चाहिये। साथ ही पैदल या साइकिल से चलने वालों के लिये नया मार्ग भी बनाना होगा।
  • कचरा निपटान की कोई ठोस व्यवस्था करनी होगी। दिल्ली जैसे शहरों में जहाँ कचरा निस्तारण के ठिकाने बनाए गए हैं वहाँ भी जब तब आग लगती ही रहती है।
  • यदि कचरा फेंकने की उपयुक्त व्यवस्था नहीं है तो लोगों को सबसे आसान यही लगता है कि उसे एक जगह एकत्रित कर जला दिया जाए। हमें कचरे के पूर्ण निस्तारण की व्यवस्था करनी होगी। इसमें कचरे को अलग-अलग करना भी शामिल है।
  • दिल्ली के आसपास पंजाब, हरियाणा और उत्तर प्रदेश में फसल जलाने से होने वाले प्रदूषण का ऐसा हल निकालना होगा जो किसानों को उनके फसल अवशेष के वैकल्पिक उपयोग का तरीका सिखा सके।