Friday 24 November 2017

दृढ निश्‍चय – सफलता के लिए आज भी उतना ही जरूरी है


हिन्‍दु धर्म ग्रंथो में मृत्यु के देव यमराज से जुड़े केवल दो ही ऐसे प्रसंग हैं जहाँ यमराज को भी मनुष्‍य की जिद के आगे मजबूर होना पड़ा था।

पहला प्रसंग सावित्री से सम्बंधित है, जहाँ यमराज को सावित्री के हठ पर मजबूर होकर उसके पति सत्यवान को पुनः जीवित करना पड़ा। जबकि दूसरा प्रसंग एक बालक नचिकेता से सम्बंधित है, जहाँ यमराज को एक बालक की जिद के आगे मजबूर होकर उसे मृत्यु से जुड़े गूढ़ रहस्य बताने पड़े।

नचिकेता के इस प्रसंग का वर्णन हिन्दू धर्मग्रन्थ कठोपनिषद में निम्‍नानुसार मिलता है:-

शाम का समय था। पक्षी अपने-अपने घोसले की ओर लौट रहे थे, लेकिन नचिकेता नाम का वह बालक आगे बढ़ा जा रहा था, जिसे न तो र्को थकान का अनुभव हो रहा था न ही कोई पछतावा था। उसे अपनी मंजिल तक पहुंचना ही था और यही उसके पिता की आज्ञा भी थी। उसका लक्ष्य था यमपुरी, जहां यमराज निवास करते थे और उसे यमराज से ही मिलना था क्‍योंकि यही उसके पिता का आदेश था।

लगातार तीन पहर तक चलने के बाद नचिकेता यमपुरी के द्वार पर जा पहुंचा, जहां दो यमदूत पहरा दे रहे थे। उन्होंने जब उस बालक नचिकेता को देखा तो आश्चर्यचकित रह गए और दोनों सोंचने लगे- कौन है यह बालक, जो मौत के मुंह में चला आया?

सहसा दोनों में से एक यमदूत ने गरजती आवाज में नचिकेता से पूछा- हे बालक, तू कौन है और यहां क्या करने आया है?

उस बालक ने धीरता के साथ उत्तर दिया- मेरा नाम नचिकेता है और मैं अपने पिता की आज्ञा से यमराजजी के पास आया हूं।

दूसरे यमदूत ने प्रश्न किया- लेकिन क्यों मिलना चाहते हो तुम यमराज से?

नचिकेता ने उत्तर दिया- क्योंकि मेरे पिताश्री ने उन्हें मेरा दान कर दिया है।

नचिकेता की बात सुनकर दोनों यमदूत हैरान रह गए। ये कैसा अजीब बालक है, जिसे मृत्यु का भी भय नहीं और यमराज से मिलने चला आया। उन्होंने उसे डराना चाहा, पर नचिकेता दृढ निश्‍चय के साथ अपने निर्णय पर अडिग रहा और बराबर यमराज से मिलने की इच्‍छा प्रकट करता रहा। बालक की जिद को देख अन्‍त में एक यमदूत बोला- वे इस समय यमपुरी में नहीं हैं। तीन दिन बाद लौटेंगे। इसलिए तुम भी तीन दिन बाद ही आना।

नचिकेता ने उत्तर दिया- कोई बात नहीं, मैं तीन दिन तक प्रतीक्षा कर लूंगा।

और वह वहीं द्वार के पास बैठ गया। सहसा उसकी आंखों के आगे पिछले कुछ समय के दौरान बीती हुई एक-एक घटना चित्र की भांति घूमने लगी।

नचिकेता के पिता ऋषि वाजश्रवा उद्दालक ऋषि ने विश्वजीत नामक एक ऐसे यज्ञ का आयोजन किया, जिसमें अपना सब कुछ दान करना होता था। इसलिए उन्‍होंने विद्वानों, ऋषि-मुनियों और ब्राह्मणों को दान ग्रहण करने हेतु उस यज्ञ में आमंत्रित किया।

ब्राह्मणों को आशा थी कि यज्ञ की समाप्ति पर उद्दालक ऋषि की ओर से उन्हें अच्छी दक्षिणा मिलेगी, लेकिन जब यज्ञ समाप्त हुआ और वाजश्रवा ने दक्षिणा देनी शुरू की तो सभी आश्चर्यचकित रह गए। दक्षिणा में वह उन्‍हें वे गायें दे रहा था, जो कि कमजोर थीं, बूढ़ी हो चुकी थीं और दूध भी नहीं देती थीं। सम्‍भवतया वे अधिक जीवित भी नहीं रहने वाली थीं।

यज्ञ के प्रारंभ होने से पूर्व वाजश्रवा ने घोषणा की थी वह यज्ञ में अपनी समस्त सं‍पत्ति दान कर देगा। इसी कारण यज्ञ में कुछ ज्यादा ही लोग उपस्‍थित हुए थे। पर जब उन्होंने दान का स्तर देखा तो सभी मन ही मन काफी दु:खी व नाराज हुए लेकिन उनमें से किसी ने उद्दालक ऋषि को कुछ कहा नहीं।

लेकिन वाजश्रवा (उद्दालक ऋषि) के पुत्र नचिकेता से यह सब न देखा गया। संपत्ति के प्रति अपने पिता का यह मोह उसे सहन नहीं हुआ। इसलिए वह अपने पिता के पास जाकर बोला- पिताजी, ये आप क्या कर रहे हैं?

उद्दालक ऋषि ने कहा- देखते नहीं हो, मैं ब्राह्मणों को दान दे रहा हूँ।

तो नचिकेता ने विनम्रतापूर्वक कहा- लेकिन ये गायें तो कमजोर और बूढ़ी हैं और सम्‍भवतया दूध भी नहीं देतीं, जबकि आपको अच्छी गायें दान में देनी चाहिए, ताकि जिसे दान दिया जाए, उसके लिए वे उपयोगी हों।

वाजश्रवा नाराज होकर झल्लाते हुए कहने लगा- क्या तुम मुझसे ज्यादा जानते हो कि कौन सी चीज दान में देनी चाहिए, कौन सी नहीं?

नचिकेता ने कहा- हाँ पिताजी। दान में वह वस्तु दी जानी चाहिए, जो व्यक्ति को सबसे ज्यादा प्रिय हो और आपको तो सबसे ज्‍यादा प्रिय मैं ही हूँ। इसलिए आप मुझे किसको दान में देंगे?

नचिकेता की इस बात का वाजश्रवा ने कोई उत्तर न दिया लेकिन नचिकेता ने हठ ही पकड़ ली। वह बार-बार अपने पिता ये यही प्रश्न करता रहा कि- पिताजी आप मुझे किसको दान में देंगे?

काफी देर तक वाजश्रवा, अपने पुत्र नचिकेता की बातों को अनसुना करता रहा, लेकिन जब नचिकेता न माना तो झल्लाहट में वाजश्रवा ने कह दिया कि- जा, मैं तुझे यमराज को दान में देता हूँ।

अगले ही पल वाजश्रवा को अपनी गलती का अहसास हुआ कि ये उसने क्या कह दिया? अपने इकलौते पुत्र को ही यमराज को दान में दे दिया?

लेकिन अब कुछ नहीं हो सकता था क्‍योंकि नचिकेता भी बहुत दृढ़ निश्चयी था इसलिए वह भी पीछे हटने वाला नहीं था। उसने पिता की ये बात सुनकर कहा- मैं आपकी आज्ञा का पालन करूंगा पिताजी, आप बिलकुल चिंतित न रहें।

अपनी गलती समझ में आते ही वाजश्रवा ने नचिकेता को बहुत समझाया, लेकिन नचिकेता नहीं माना और अपने सभी परिजनों से अंतिम भेंट करके वह यमराज से मिलने के लिए निकल पड़ा।

जिसने भी यह सुना कि वाजश्रवा ने अपने इकलौते पुत्र नचिकेता को यमराज को दान कर दिया है, वह आश्चर्यचकित हुए बिना न रह सका जबकि सभी नचिकेता के साहस की प्रशंसा करने लगे क्‍योंकि मृत्‍यु से सभी भयभीत होते हैं, जबकि नचिकेता स्‍वयं ही मृत्‍यु के देवता यमराज से मिलने चला जा रहा था।

यमपुरी के द्वार पर बैठा नचिकेता इन्‍हीं सब बीती बातों को याद कर रहा था। लेकिन उसे इस बात का संतोष था कि वह अपने पिता की आज्ञा का पालन कर रहा था और वह लगातार तीन दिन तक यमपुरी के बाहर बैठा यमराज की प्रतीक्षा करता रहा।

तीसरे दिन जब यमराज आए तो नचिकेता को द्वार पर बैठा देखकर वे चौंके और जब द्वारपालों ने उन्‍हें बताया कि नचिकेता पिछले तीन दिनों से यमराज से मिलने के लिए ही द्वार पर बैठा है, तो वे भी आश्चर्यचकित रह गए और उन्होंने नचिकेता को अपने कक्ष में बुला भेजा।

यमराज के कक्ष में पहुंचते ही नचिकेता ने उन्हें प्रणाम किया। उसे देखकर यमराज बोले- वत्स, मैं तुम्हारी पितृभक्ति और दृढ़ निश्चयी इच्‍छाशक्ति से बहुत प्रसन्न हुआ। इसलिए तुम मुझसे कोई भी तीन वरदान मांग सकते हो।

यमराज के मुख से ये बात सुनकर नचिकेता को भी बडी प्रसन्नता हुई और अपने पहले वरदान के रूप में उसने ये मांगा कि- मेरे पिता का क्रोध शांत हो जाएं और वे मुझे पहले कि तरह स्‍वीकार करें।

यमराज ने तथास्‍तु यानी ‘ऐसा ही होगा‘ कहकर उसे पहला वरदान दिया और कहा- दूसरा वरदान मांगो।

इस बार नचिकेता थोडा सोच में पड़ गया कि अब वह क्या मांगे क्‍योंकि उसे स्‍वयं तो किसी चीज की इच्‍छा थी ही नहीं। लेकिन अचानक उसे ध्यान आया कि उसके पिता ने जो यज्ञ किया था वह स्वर्ग की प्राप्ति के लिए ही किया था। सो क्यों न पिताजी के लिए स्‍वर्ग प्राप्ति का उपाय ही मांग लिया जाए? यह सोचकर वह बोला- मुझे स्वर्ग की प्राप्ति किस प्रकार हो सकती है?

अब यमराज सोंच में पड़ गए, लेकिन क्‍योंकि वे वचन दे चुके थे, इसलिए उन्होंने स्‍वर्ग प्राप्ति से सम्‍बंधित सभी जरूरी बातें सविस्‍तार नचिकेता को बता दीं और तीसरा व अंतिम वरदान मांगने के लिए कहा। नचिकेता फिर से कुछ समय के लिए सोच में डूबा रहा। फिर मौन तोडते हुए बोला- आत्मा का रहस्य क्या है? कृपया समझाएं।

नचिकेता के मुख से इस प्रश्न की आशा यमराज को बिलकुल न थी। यम ने आखिरी वर को टालने की भरपूर कोशिश की और नचिकेता को आत्मज्ञान के बदले कई सांसारिक सुख-सुविधाओं को देने का लालच दिया तथा टालमटोल करते हुए नचिकेता को कोई और वरदान मांगने के लिए कहा और बोले- यह विषय इतना गूढ़ है‍ कि हर कोई इसे नहीं समझ सकता, इसलिए कोई और वर मांग लो।

लेकिन नचिकेता को मृत्यु का रहस्य जानना था। अत: नचिकेता ने सभी सुख-सुविधाओं को नाशवान जानते हुए नकार दिया और अपनी बात पर अड़ा रहा तथा निर्णायक स्वर में बोला- अगर आपको कुछ देना ही है तो मेरे इस प्रश्न का उत्तर दें, क्योंकि मुझे अन्य कोई भी वस्तु नहीं चाहिए।

अंत में विवश होकर यमराज ने नचिकेता को जन्म-मृत्यु से जुड़े सभी रहस्य बताए और आशीर्वाद देते हुए उसे फिर से पृथ्‍वी पर अपने पिता वाजश्रवा के पास भेज दिया।

अक्‍सर नचिकेता और यम की इस कहानी को पितृपक्ष के दौरान श्राद्ध करने वाले लाेग पढते-सुनते हैं और ऐसी मान्‍यता है कि इस कहानी को श्राद्ध के दौरान पढने-सुनने से पितरों को मोक्ष की प्राप्ति होती है।

लेकिन नचिकेता की इस कहानी में एक बहुत ही महत्‍वपूर्ण Moral भी छिपा है कि यदि अापमें दृढ इच्‍छाशक्ति है, तो आप मृत्‍यु के देवता यम से भी सवाल-जवाब कर सकते हैं और यमराज से भी वरदान के रूप में मनचाहा फल प्राप्‍त कर सकते हैं तो इस दुनियां का कौनसा ऐसा काम है, जिसमें दृढ इच्‍छाशक्ति द्वारा सफलता नहीं पाई जा सकती।

हो सकता है कि इन पौराणिक कहानियों का कभी कोई औचित्‍य न रहा हो या ये सभी झूठी हों, लेकिन इन कहानियों में जो Message जो Moral छिपा है, वो झूठ नहीं है। इस संसार में हम आज जितने भी वैज्ञानिक आविष्‍कार देखते हैं, उनके पीछे सिर्फ और सिर्फ दृढ इच्‍छाशक्ति ही है।

यदि दृढ इच्‍छाशक्ति न होती, तो राईट बंधु कभी भी हवाईजहाज का आविष्‍कार न कर पाते, क्‍योंकि राईट बंधुओं के अलावा किसी को विश्‍वास नहीं था कि हवा में उड़ा जा सकता है।

यदि दृढ इच्‍छाशक्ति न होती, तो इंसान कभी चांद पर कदम न रख पाता, कभी आसमान में उपग्रह न छोड़ पाता, जिसकी वजह से हम आज Internet क्रांति को जी रहे हैं और Mobile जैसी तकनीक को Use करते हुए किसी भी समय किसी के भी संपर्क में रह रहे हैं।

यदि दृढ इच्‍छाशक्ति न होती, तो क्‍या सैकड़ों सालों की गुलामी से महात्‍मा गांधी इस भारत देश को कभी आजाद न हो पाता और क्‍या लाल बहादुर शास्‍त्री इस देश का नेतृत्‍व करते हुए 1965 के भारत-पाकिस्‍तान युद्ध में भारत को विजय दिलवा पाते?

बिल गेट्स के अलावा किसे विश्‍वास था कि एक दिन हर घर के डेस्‍क पर एक कम्‍प्‍यूटर सिस्‍टम होगा, जिसमें Microsoft Company का Operating System Run होगा। क्‍या बिल गेट्स की दृढ इच्‍छाशक्ति के बिना ये सम्‍भव था?

दृढ इच्‍छाशक्ति अथवा दृढ निश्‍चय के कारण सफलता प्राप्‍त होने के संदर्भ में लाखों उदाहरण दिए जा सकते हैं लेकिन कोई भी उदाहरण ऐसा नहीं हो सकता, जहाँ किसी कार्य को सफल करने के पीछे दृढ इच्‍छाशक्ति न रही हो और वह कार्य सफल हो गया हो।

तो इस कहानी से दृढ इच्‍छाशक्ति की सीख लीजिए, और आप जो कुछ भी करना चाहते हैं, जिस किसी भी कार्य में सफलता प्राप्‍त करना चाहते हैं, उसमें दृढ निश्‍चय के साथ लग जाईए क्‍योंकि जहां चाह है वहीं राह है और अवसर किसी की प्रतिक्षा नहीं करता।