Wednesday 31 January 2018

आजाद हिन्द फौज/Indian National Army (INA)


आजाद हिन्द फौज या Indian National Army (INA) की स्थापना का विचार सर्वप्रथम मोहन सिंह के मन में मलाया में आया। मोहन सिंह, ब्रिटिश सेना में एक भारतीय सैन्य अधिकारी थे किंतु कालांतर में उन्होंने साम्राज्यवादी ब्रिटिश सेना में सेवा करने के स्थान पर जापानी सेना की सहायता से अंग्रेजों को भारत से निष्कासित करने का निश्चय किया।

आजाद हिन्द फौज के गठन के चरण


प्रथम चरण
जापानी सेना ने जब भारतीय युद्ध बंदियों को मोहन सिंह को सौंपना प्रारंभ कर दिया तो वे उन्हें आजाद हिन्द फौज में भर्ती करने लगे। सिंगापुर के जापानियों के हाथ में आने के पश्चात मोहन सिंह को 45 हजार युद्धबंदी प्राप्त हुये। यह घटना अत्यंत महत्वपूर्ण थी। 1942 के अंत तक इनमें से 40 हजार लोग आजाद हिंद फौज में सम्मिलित होने को राजी हो गये। आजाद हिंद फौज के अधिकारियों ने निश्चय किया कि वे कांग्रेस एवं भारतीयों द्वारा आमंत्रित किये जाने के पश्चात ही कार्रवाई करेंगे। बहुत से लोगों का यह भी मानना था कि आजाद हिंद फौज के कारण जापान, दक्षिण-पूर्व एशिया में भारतीयों से दुर्व्यवहार नहीं करेगा या भारत पर अधिकार करने के बारे में नहीं सोचेगा।
भारत छोड़ो आंदोलन ने आजाद हिंद फौज को एक नयी ताकत प्रदान की। मलाया में ब्रिटेन के विरुद्ध तीव्र प्रदर्शन किये गये। 1 सितम्बर 1942 को 16,300 सैनिकों को लेकर आजाद हिन्द फौज की पहली डिवीजन का गठन किया गया। इस समय तक जापान यह योजना बनाने लगा था कि भारत पर आक्रमण किया जाये। भारतीय सैनिकों के संगठित होने से जापान अपनी योजना को मूर्तरूप देने हेतु उत्साहित हो गया। किंतु दिसम्बर 1942 तक आते-आते आजाद हिन्द फौज की भूमिका के प्रश्न पर मोहन सिंह एवं अन्य भारतीय सैन्य अधिकारियों तथा जापानी अधिकारियों के बीच तीव्र मतभेद पैदा हो गये। दरअसल जापानी अधिकारियों की मंशा थी कि भारतीय सेना प्रतीकात्मक हो तथा उसकी संख्या 2 हजार तक सिमित रखी जाए किन्तु मोहन सिंह का उद्देश्य 2 लाख सैनिकों की फौज तैयार करने का था।

द्वितीय चरण
आजाद हिंद फौज का द्वितीय चरण 2 जुलाई 1943 को सुभाषचंद्र बोस के सिंगापुर पहुँचने पर प्रारंभ हुआ। इससे पहले गांधीजी से मतभेद होने के कारण सुभाषचंद्र बोस ने कांग्रेस की सदस्यता से त्यागपत्र दे दिया था तथा 1940 में फारवर्ड ब्लाक के नाम से एक नये दल का गठन कर लिया था। मार्च 1941 में वे भारत से भाग निकले, जहाँ उन्हें नजरबंद बनाकर रखा गया था। भारत से पलायन के पश्चात उन्होंने रूसी नेताओं से मुलाकात कर ब्रिटेन के विरुद्ध सहायता देने की माँग की। जब जून 1941 में सोवियत संघ भी मित्र राष्ट्रों की ओर युद्ध में सम्मिलित हो गया तो सुभाषचंद्र बोस जर्मनी चले गये। तत्पश्चात वहां से फरवरी 1943 में वे जापान पहुंचे। उन्होंने जापान से ब्रिटेन के विरुद्ध सशस्त्र संघर्ष प्रारंभ की मांग की। जुलाई 1943 में सुभाषचंद्र बोस सिंगापुर पहुँचे, जहाँ रासबिहारी बोस एवं अन्य लोगों ने उनकी मदद की। यहाँ दक्षिण-पूर्व एशिया में निवास करने वाले भारतीयों तथा बर्मा, मलाया एवं सिंगापुर के भारतीय युद्धबंदियों ने उन्हें महत्वपूर्ण सहायता पहुँचायी। अक्टूबर 1943 में उन्होंने सिंगापुर में अस्थायी भारतीय सरकार का गठन किया। सिंगापुर के अतिरिक्त रंगून में भी इसका मुख्यालय बनाया गया। धुरी राष्ट्रों ने इस सरकार को मान्यता प्रदान कर दी। सैनिकों को गहन प्रशिक्षण दिया गया तथा फौज के लिये धन एकत्रित किया गया। नागरिकों को भी सेना में भारतीय किया गया। स्त्री सैनिकों का भी एक दल बनाया गया तथा उसे रानी झांसी रेजीमेंट नाम दिया गया। जुलाई 1944 में सुभाषचंद्र बोस ने गांधी जी से भारत की स्वाधीनता के अंतिम युद्ध के लिये आशीर्वाद मांगा।
शाह नवाज के नेतृत्व में आजाद हिन्द फौज की एक बटालियन जापानी फौज के साथ भारत-बर्मा सीमा पर हमले में भाग लेने के लिये इम्फाल भेजी गयी। किंतु यहां भारतीय सैनिकों से दुर्व्यवहार किया गया। उन्हें न केवल रसद एवं हथियारों से वंचित रखा गया अपितु जापानी सैनिकों के निम्न स्तरीय काम करने के लिये भी बाध्य किया गया। इससे भारतीय सैनिकों का मनोबल टूट गया। इम्फाल अभियान की विफलता तथा जापानी सैनिकों के पीछे लौटने से इस बात की उम्मीद समाप्त हो गयी कि आजाद हिंद फौज भारत को स्वाधीनता दिला सकती है। जापान के द्वितीय विश्व युद्ध में आत्मसर्पण करने के पश्चात जब आजाद हिंद फौज के सैनिकों को युद्ध बंदी के रूप में भारत लाया गया तथा उन्हें कठोर दंड देने का प्रयास किया गया तो भारत में उनके बचाव में एक सशक्त जनआंदोलन प्रारंभ हो गया।

विश्व युद्ध के पश्चात राष्ट्रीय विप्लव-
जून 1945 से फरवरी 1946 ब्रिटिश शासन के अंतिम दो वर्षों में राष्ट्रीय विप्लव के संबंध में दो आधारभूत कारकों का विश्लेषण किया जा सकता है-
इस दौरान सरकार, कांग्रेस एवं मुस्लिम लीग तीनों ही कुटिल समझौते करने में संलग्न रहे। इससे साम्प्रदायिक हिंसा को बढ़ावा मिला, जिसकी चरम परिणति स्वतंत्रता एवं देश के विभाजन के रूप में सामने आयी।

श्रमिकों, किसानों एवं राज्य के लोगों द्वारा असंगठित, स्थानीय एवं उग्रवादी जन प्रदर्शन। इसने राष्ट्रव्यापी स्वरूप धारण कर लिया। इस तरह की गतिविधियों में- आजाद हिंद फौज के युद्धबंदियों को रिहा करने से संबंधित आन्दोलन, नौसेना के नाविकों का विद्रोह, पंजाब किसान मोर्चा का आन्दोलन, ट्रावनकोर के लोगों का संघर्ष तथा तथा तेलंगाना आंदोलन प्रमुख है।

जब सरकार ने जून 1945 में कांग्रेस से प्रतिबंध हटाकर उसके नेताओं की रिहा किया तो उसे उम्मीद थी कि इसे जनता हतोत्साहित होगी। लेकिन इसके स्थान पर भारतियों का उत्साह दोगुना हो गया। तीन वर्षों के दमन से जनता में सरकार के विरुद्ध तीव्र रोष का संचार हो चुका था। राष्ट्रवादी नेताओं की रिहार्यी से जनता की उम्मीदें और बढ़ गयीं। रूढ़िवादी सरकार के समय की वैवेल योजना, मौजूदा संवैधानिक संकट को हल करने में विफल रही।

जुलाई 1945 में, ब्रिटेन में श्रमिक दल सत्ता में आया। क्लीमेंट एटली ने ब्रिटेन के नये प्रधानमंत्री का पदभार संभाला तथा पैथिक लारेंस नये भारत सचिव बने।
अगस्त 1945 में, केंद्रीय एवं प्रांतीय व्यवस्थापिकाओं के लिये चुनावों की घोषणा की गयी।
सितम्बर 1945 में, सरकार ने घोषणा की कि युद्ध के उपरांत एक संविधान सभा गठित की जायेगी।

सरकार के दृष्टिकोण में परिवर्तन के कारण
  • युद्ध की समाप्ति के पश्चात विश्व-शक्ति-संतुलन परिवर्तित हो गया- ब्रिटेन अब महाशक्ति नहीं रहा तथा अमेरिका एवं सोवियत संघ विश्व की दो महान शक्तियों के रूप में उभरे। इन दोनों ने भारत की स्वतंत्रता का समर्थन किया।
  • ब्रिटेन की नयी लेबर सरकार, भारतीय मांगों के प्रति ज्यादा सहानुभूति रखती थी।
  • संपूर्ण यूरोप में इस समय समाजवादी-लोकतांत्रिक सरकारों के गठन की लहर चल रही थी।
  • ब्रिटिश सैनिक हतोत्साहित एवं थक चुके थे तथा ब्रिटेन की आर्थिक स्थिति कमजोर हो गयी थी।
  • दक्षिण-पूर्व एशिया- विशेषकर वियतनाम एवं इंडोनेशिया में इस समय साम्राज्यवाद-विरोधी वातावरण था। यहाँ उपनिवेशी शासन का तीव्र विरोध किया जा रहा था।
  • अंग्रेज अधिकारियों को भय था कि कांग्रेस पुनः नया आंदोलन प्रारंभ करके 1942 के आंदोलन की पुनरावृति कर सकती है। सरकार का मानना था कि यह आंदोलन 1942 के आंदोलन से ज्यादा भयंकर हो सकता है क्योंकि इसमें कृषक असंतोष, संचार-व्यवस्था पर प्रहार, मजदूरों की दुर्दशा, सरकारी सेवाओं से असंतुष्ट तथा आजाद हिन्द फौज के सैनिकों इत्यादि जैसे कारकों का गठजोड़ बन सकता है। सरकार इस बात से भी चिंतित थी कि आजाद हिंद फौज के सैनिकों का अनुभव, सरकार के विरुद्ध हमले में प्रयुक्त किया जा सकता है।
  • युद्ध के समाप्त होते ही भारत में चुनावों का आयोजन तय था क्योंकि 1934 में केंद्र के लिये एवं 1937 में प्रांतों के लिये जो चुनाव हुये थे उसके पश्चात दुबारा चुनावों का आयोजन नहीं किया गया था।
  • यद्यपि ब्रिटेन भारतीय उपनिवेश की खोना नहीं चाहता था लेकिन उसकी सत्तारूढ़ लेबर सरकार समस्या के शीघ्र समाधान के पक्ष में थी।

कांग्रेस का चुनाव अभियान एवं आजाद हिंद फौज पर मुकदमा
1946 में सर्दियों में चुनावों के आयोजन की घोषणा की गयी। इन चुनावों में अभियान के समय राष्ट्रवादी नेताओं के समक्ष यह उद्देश्य था कि वे न केवल वोट पाने का प्रयास करें अपितु लोगों में ब्रिटिश विरोधी भावनाओं को और सशक्त बनायें।
चुनाव अभियान में राष्ट्रवादियों ने 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान सरकार की दमनकारी नीतियों की खुलकर आलोचना की। कांग्रेसी नेताओं ने शहीदों की देशभक्ति एवं त्याग की प्रशंसा तथा सरकार की आलोचना करके भारतीयों में देश प्रेम की भावना को संचारित करने का प्रयत्न किया। कांग्रेस के नेताओं ने 1942 के आंदोलन में नेतृत्वविहीन जनता के साहसी प्रतिरोध की मुक्तकंठ से प्रशंसा की। अनेक स्थानों पर शहीद स्मारक बनाये गये तथा पीड़ितों को सहायता पहुंचाने के लिये धन एकत्रित किया गया। सरकारी दमन की कहानियों को विस्तार से जनता के मध्य सुनाया जाता था, दमनकारी नीतियाँ अपनाने वाले की धमकी दी जाती थी।
किंतु सरकार इन गतिविधियों में रोक लगाने में असफल रही। राष्ट्रवादियों के इन कार्यों से जनता सरकार से और भयमुक्त हो गयी। उन सभी प्रांतों में कांग्रेस की सरकार की स्थापना लगभग सुनिश्चित हो गयी, जहाँ सरकारी, दमन ज्यादा बर्बर था। इन कारणों से सरकार परेशान हो गयी। अब सरकार कांग्रेस के साथ कोई ‘सम्मानजनक समझौता’ करने हेतु मजबूर सी दिखने लगी।
सरकार द्वारा आजाद हिंद फौज के सैनिकों पर मुकदमा चलाये जाने के निर्णय के विरुद्ध पूरे देश में जितनी तीव्र प्रतिक्रिया हुयी उसकी कल्पना न तो कांग्रेसी नेताओं को और न ही सरकार की थी। पूरा देश इन सैनिकों के बचाव में आगे आ गया। इससे पहले सरकार ने यह यह निर्णय लिया था कि इन सैनिकों पर मुकदमा चलाया जायेगा। कांग्रेस ने सैनिकों के बचाव हेतु आजाद हिंद फौज बचाव समिति का गठन किया। सैनिकों को आर्थिक सहायता देने तथा उनके लिये रोजगार की व्यवस्था करने हेतु आजाद हिंदू फौज राहत तथा जाँच समिति भी बनायी गयी।
आजाद हिंद फौज का मानसिक प्रभाव अत्यंत प्रबल था और इसका प्रत्यक्ष प्रमाण था, आजाद हिंद फौज के बंदी बनाये गये सैनिकों की रिहाई के पक्ष में जन और नेतृत्व-स्तर पर राष्ट्रीय आंदोलन। इस संदर्भ में दो साम्राज्यवादी नीतियों का सशक्त प्रभाव पड़ा। एक, तो पहले ही सरकार ने आजाद हिन्द फौज के कैदियों पर सार्वजनिक मुकदमा चलाने का निर्णय लिया, तथा दूसरा, मुकदमा नवंबर में लाल किले में एक हिन्दू (प्रेम कुमार सहगल), एक मुसलमान (शाहनवाज खान) तथा एक सिख (गुरुबख्श सिंह ढिल्लो) को एक ही कटघरे में खड़ा करके चलाया गया। बचाव पक्ष में भूलाभाई देसाई और तेजबहादुर सप्रू के साथ नेहरू भी थे। काटजू एवं आसफ अली उनके सहायक थे।
इसके अतिरिक्त वियतनाम एवं इंडोनेशिया में भी उपनिवेशी शासन की स्थापना हेतु भारतीय सेना की टुकड़ियों का प्रयोग किये जाने से ब्रिटिश विरोधी भावनायें पुख्ता हुयीं। इससे शहरी वर्ग एवं सैनिकों दोनों में असंतोष जागा।

Monday 29 January 2018

देश के युवा मामले एवं खेल मंत्रालय की झांकी सभी मंत्रालयों के बीच सर्वश्रेष्‍ठ झांकी आंकी गई


गणतंत्र दिवस 2018 के लिए देश के युवा मामले एवं खेल मंत्रालय की झांकी भारत सरकार के सभी मंत्रालयों/विभागों की झांकियों के बीच सर्वश्रेष्ठ आंकी गई हैं। कल (28 जनवरी, 2018) नई दिल्‍ली में एक समारोह में सचिव (खेल) श्री राहुल भटनागर ने माननीया रक्षा मंत्री श्रीमती निर्मला सीतारमन से सर्वश्रेष्‍ठ झांकी के लिए ट्रॉफी एवं प्रमाण पत्र ग्रहण किया। टीम को बधाई देते हुए युवा मामले एवं खेल राज्‍य मंत्री (स्‍वतंत्र प्रभार) कर्नल राज्‍यवर्द्धन राठौर ने ट्वीट कर बधाई दी और कहा “CONGRATS @IndiaSports @YASMinistry @KheloIndia  #RepublicDay Parade! में सर्वश्रेष्‍ठ झांकी आंके जाने पर बधाई’’।

युवा मामले एवं खेल मंत्रालय की झांकी की थीम थी – खेलो इंडिया। डोंगी के एक तरफ कहा गया था ‘खेलो इंडिया, जो खेलेगा, वो खिलेगा।’ ओलम्पिक पदक विजेताओं द्वारा अपनी सफलता का जश्‍न मनाते भारत के खेल नायकों की तस्‍वीरों का एक कोलाज भी साइड पैनल पर था, जो देश के लाखों युवाओं को खेलों में भाग लेने के लिए प्रोत्‍साहित कर रहा था।

मलखंब का प्रतिनिधित्‍व कर रही एक छोटी टीम पारम्‍परिक पहनावे में सुसज्जित थी और भीषण ठंड के बावजूद प्राचीन भारतीय खेल प्रदर्शित कर रही थी। दो मुक्‍केबाज रिंग में मुक्‍केबाजी कर रहे थे और गिद्ध की आंखों की तरह एक रेफरी की उनके खेल पर नजर थी। बॉक्सिंग रिंग के दोनों तरफ महिला भारत्‍तोलकों थी और खेलों का दीप प्रज्‍ज्‍वलित हो रहा था। डोंगी के आखिर में ऐतिहासिक जवाहर लाल नेहरू स्‍टेडियम की प्रतिकृति थी और शीर्ष पर महान पौराणिक धनुषधारी अर्जुन की तस्‍वीर थी।

डोंगी पर एक टीवी कैमरेमैन की उपस्थिति मानव प्रयासों और साहस की कहानी बताने में मीडिया के महत्‍व को दर्शा रही थी। बॉक्सिंग ग्‍लोव्‍स का एक जोड़ा, एक फुटबॉल, क्रिकेटर का हेलमेट, टेनिस का एक रैकेट भी प्रदर्शन के लिए रखा गया था।

उद्घाटक खेलो इंडिया स्‍कूल गेम्‍स का आयोजन पांच स्‍थानों, जहां एशियाई खेल 1982 एवं राष्‍ट्रकुल खेल 2010 का आयोजन किया गया था, 31 जनवरी से 8 फरवरी, 2018  तक किया जाएगा। 16 स्‍पर्धाओं में 3200 से अधिक एथलीट 198 स्‍वर्ण पदकों के लिए जी तोड़ प्रयास करेंगे।  खेलो इंडिया स्‍कूल गेम्‍स का प्रसारण स्‍टार स्‍पोर्ट्स नेटवर्क द्वारा किया जाएगा। खेलो इंडिया कार्यक्रम, खेल विभाग का एक प्रमुख कार्यक्रम है, जिसे 2017-18 में आरंभ किया गया है।

मुद्रास्फीति को नियंत्रित करने के उपाय


केन्‍द्रीय वित्‍त एवं कॉरपोरेट मामलों के मंत्री श्री अरुण जेटली ने आज संसद के पटल पर आर्थिक सर्वेक्षण 2017-18 प्रस्‍तुत किया। इसके मुताबिक, मुद्रास्फीति को नियंत्रित करना केंद्र सरकार की प्राथमिकता रही है। सरकार ने इसके लिए कई कदम उठाए हैं, जो निम्नलिखित हैं:

- जमाखोरी और कालाबाजारी के खिलाफ कार्रवाई करने, आवश्यक वस्तु अधिनियम, 1955 और कम आपूर्ति वाली वस्तुओं की कालाबाजारी निवारण एवं आवश्यक वस्तु अनुरूप अधिनियम, 1980 को प्रभावी ढंग से लागू करने के लिए जरूरत पड़ने पर समय-समय पर राज्य सरकारों को परामर्शिकाएं जारी की जा रही हैं।

- कीमत और उपलब्धता की स्थिति के आकलन के लिए नियमित तौर पर उच्च स्तरीय समीक्षा बैठकें की जा रही हैं। ये बैठकें सचिवों की समिति, अंतर मंत्रालय समिति, कीमत स्थिरीकरण निधि प्रबंधक समिति और अन्य विभागीय स्तर पर की जाती हैं।

- उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए खाद्य पदार्थों के अधिकतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) की घोषणा की गई। इसका उद्देश्य खाद्य पदार्थों उपलब्धता बढ़ाना भी है, जिससे कीमतों को कम रखने में मदद मिलेगी।

- दालों, प्याज आदि कृषि वस्तुओं की कीमतों में उतार-चढ़ाव को नियंत्रित करने के लिए कीमत स्थिरीकरण निधि (पीएसएफ) योजना लागू की जा रही है।

- खुदरा कीमतों को बढ़ने से रोकने के प्रयासों के तहत सरकार ने दालों के सुरक्षित भंडार (बफर स्टॉक) को 1.5 लाख मी. टन से बढ़ाकर 20 लाख मी. टन करने का अनुमोदन किया। इस क्रम में 20 लाख टन तक दालों का सुरक्षित भंडार तैयार किया गया।

- राज्यों/संघ शासित क्षेत्रों को सार्वजनिक वितरण प्रणाली के माध्यम से वितरित करने, मध्याह्न भोजन योजना आदि के लिए सुरक्षित भंडार से दालें दी जा रही हैं। इसके अलावा सेना और केन्द्रीय अर्द्ध सैन्य बलों की दाल की जरूरत को पूरा करने के लिए भी सुरक्षित भंडार से दालों का उपयोग किया जा रहा है।

- सरकार ने अप्रैल, 2018 तक चीनी के स्टॉकिस्टों/डीलरों पर स्टॉक होल्डिंग की सीमा तय कर दी है।

- सरकार ने उपलब्धता को बढ़ावा देने और कीमतों को कम बनाए रखने के लिए चीनी के निर्यात पर 20 प्रतिशत शुल्क लगाया।

- शून्य सीमा शुल्क पर 5 लाख टन कच्ची चीनी के आयात को अनुमति दी गई। इसके बाद 25 प्रतिशत शुल्क पर 3 लाख टन अतिरिक्त आयात की अनुमति प्रदान की गई।

- साख पत्र पर सभी प्रकार के प्याज के निर्यात की अनुमति दी जाएगी, जो 31 दिसंबर, 2017 तक 850 डॉलर प्रति मी. टन न्यूनतम निर्यात मूल्य (एमईपी) से संबद्ध होगा।

- राज्यों/संघ शासित क्षेत्रों को प्याज पर भंडारण सीमा लगाने की सलाह दी गई है। राज्यों से अपनी प्याज की जरूरत की सूचना देने का अनुरोध किया गया, जिससे उपलब्धता बढ़ाने और कीमतों में कमी लाने के लिए आवश्यक आयात की दिशा में कदम उठाए जा सकें।

HIV/AIDS एवं STI पर राष्ट्रीय कार्यनीति योजना, 2017-24


भारत में पहली बार वर्ष 1986 में ‘ह्यूमन इम्यूनोडिफीसिएंसी वायरस (HIV : Human Immunodeficiency Virus) और एक्वायर्ड इम्यून डिफीसिएंसी सिंड्रोम (AIDS : Acquired Immune Deficiency Syndrome) सूचित हुआ था। तीन दशकों के राष्ट्रीय प्रयासों के फलस्वरूप वर्ष 2000 से नए संक्रमण में 66 प्रतिशत की कमी और वर्ष 2007 से एड्स (AIDS) संबंधित मौतों में 54 प्रतिशत की महत्वपूर्ण कमी आई है। जून, 2016 में एड्स पर संयुक्त राष्ट्र की उच्चस्तरीय बैठक में केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्री ने ‘सार्वजनिक स्वास्थ्य खतरे के रूप में एड्स महामारी की 2030 तक समाप्ति’ (Ending the AIDS Epidemic as a Public Health Threat By, 2030) के लक्ष्य के प्रति भारत की प्रतिबद्धता दोहराई थी जिसमें वर्ष 2020 हेतु एचआईवी/एड्स पर संयुक्त राष्ट्र कार्यक्रम (UNAIDS) और 2030 हेतु सतत विकास लक्ष्य’ (SDGs) शामिल थे। भारत ने ‘सहस्राब्दी विकास लक्ष्यों’ (MDGs) के तहत निर्धारित लक्ष्य वर्ष 2015 तक वार्षिक नए एचआईवी संक्रमण और एड्स-संबंधित मौतों में 50 प्रतिशत की कमी को पहले ही प्राप्त कर लिया है। राष्ट्रीय एड्स नियंत्रण संगठन (NACO) द्वारा एड्स-संबंधित सेवाओं को अधिक प्रभावी, टिकाऊ एवं व्यापक आच्छादन सुनिश्चित करने हेतु ‘एचआईवी/एड्स और एसटीआई पर राष्ट्रीय कार्यनीति, 2017-24’ (National Strategic Plan on HIV/AIDS and STI, 2017-24) का कार्यान्वयन किया जाना है।

HIV/AIDS एवं STI पर राष्ट्रीय कार्यनीति
1 दिसंबर, 2017 को विश्व एड्स दिवस के अवसर पर केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण राज्य मंत्री अनुप्रिया पटेल ने ‘HIV/AIDS और ‘सेक्सुअली ट्रांसमिटेड इंफेक्शन’ (STI) पर राष्ट्रीय कार्यनीति योजना, 2017-24’ को जारी किया।

विजन
कार्यनीति का विजन (Vision) एचआईवी रोकथाम एवं उपचार के सार्वभौमिक आच्छादन के माध्यम से ‘एड्स मुक्त भारत हेतु मार्ग प्रशस्त करना’ (Paving the way for an AIDS free India) है।

मिशन
कार्यनीति का मिशन आवश्यकताओं के अनुरूप प्रभावी, समावेशी, न्यायसंगत एवं अनुकूलित देखभाल सेवाओं की निरंतरता के माध्यम से एचआईवी रोकथाम एवं उपचार हेतु सार्वभौमिक आच्छादन प्राप्त करना है।

लक्ष्य
कार्यनीति का लक्ष्य शून्य नए संक्रमण, शून्य एड्स-संबंधित मौतें और शून्य भेदभाव को प्राप्त करना है।

उद्देश्य
कार्यनीति के उद्देश्य निम्नलिखित हैं-
1. वर्ष 2024 तक नए संक्रमण 80 प्रतिशत तक कम करना।
2. वर्ष 2024 तक अनुमानित ‘पीपुल लिविंग विथ एचआईवी’ (PLHIV) के 95 प्रतिशत को सेवाओं से जोड़ना।
3. वर्ष 2024 तक टिकाऊ वायरल शमन हेतु PLHIV के 90 प्रतिशत को एआरटी (Anti Retro Viral Tiral Treatment) आरंभ एवं अवधारण सुनिश्चित करना।
4. वर्ष 2020 तक माता से शिशु को एचआईवी और सिफलिस के संचरण को समाप्त करना।
5. वर्ष 2020 तक एचआईवी से संबंधित भेदभाव को समाप्त करना।
6. वर्ष 2024 तक टिकाऊ ‘राष्ट्रीय एड्स नियंत्रण कार्यक्रम’ (NACP) सेवा वितरण उपलब्ध कराना।

प्राथमिकताएं
कार्यनीति की प्राथमिकताएं निम्नलिखित हैं-
  • जोखिम वाले समूह और प्रमुख जनसंख्या (Key Population) में एचआईवी की रोकथाम तेज करना।
  • व्यापक एचआईवी देखभाल तक सार्वभौमिक पहुंच के साथ गुणवत्तापूर्ण सुनिश्चित एचआईवी परीक्षण का विस्तार करना।
  • माता से शिशु को एचआईवी एवं सिफलिस के संचरण का उन्मूलन करना।
  • एचआईवी कार्यक्रम निर्माण में महत्वपूर्ण सहयोगियों का पता लगाना।
  • रोगी-केंद्रित एवं प्रभावी बनाने हेतु रणनीतिक सूचना प्रणाली का पुनर्गठन करना।

वित्तीयन
कार्यनीति के 7 वर्षीय (2017 से 2024 तक) कार्यान्वयन हेतु 33088.19 करोड़ रुपये के बजट का प्रस्ताव है।
प्रस्तावित बजट आवश्यकता का लगभग 59 प्रतिशत रोकथाम के लिए है, जबकि एक-तिहाई (32%) देखभाल, समर्थन एवं उपचार के लिए है।

निष्कर्ष
वयस्क जनसंख्या में 0.26 प्रतिशत के एचआईवी प्रसार के साथ भारत में वर्ष 2015 में 2.1 मिलियन ‘पीपुल लिविंग विथ एचआईवी’ (PLHIV) हैं। विगत 15 वर्षों में भारत में अनुमानित नए एचआईवी संक्रमण, प्रसार एवं एड्स-संबंधित कारकों से होने वाली मौतों में लगातार गिरावट आई है। फिर भी सतत विकास लक्ष्यों के तहत वर्ष 2030 तक ‘सार्वजनिक स्वास्थ्य खतरे के रूप में एड्स महामारी की समाप्ति’ हेतु व्यापक एवं टिकाऊ प्रगति की आवश्यकता है जिसकी पूर्ति HIV/AIDS एवं STI पर सात वर्षीय राष्ट्रीय कार्यनीति योजना से हो सकती है।

Sunday 21 January 2018

जानें कैसे, ज्यादा तनाव में रहनेवाले पुरूष अपने आनेवालों संतानों को अनुवांशिक सौगात के रूप में तनाव प्रदान करते है।


पेंसिल्वेनिया विश्वविद्यालय(University of Pennsylvania) के शोधकर्ताओं ने आण्विक स्तर पर अपने प्रयोग में यह दिखा दिया है की ज्यादा तनाव में रहनेवाले पुरूष अपने आनेवालों संतानों को अनुवांशिक सौगात के रूप में तनाव प्रदान करते है। ज्यादा तनाव का सामना करनेवाले पुरुषों के शुक्राणुओं के मुंह का आकार बदल जाता है यह परिवर्तन DNA कोड के अलावा MicroRNAs के माध्यम से एक वंश से दूसरे वंश में अनुवांशिक रूप से चला जाता है इसे तनाव बढ़ाने के लिए जिम्मेदार माना जाता है।

आधुनिक शोधों से पता चलता है की केवल DNA को अनुवांशिक गुणों का वाहक मानना आण्विक स्तर पर एकमात्र विकल्प नहीं है बल्कि माता पिता द्वारा किये गये अनुभव भी बड़े पैमाने पर DNA और microRNAs पर व्यापक असर डालते है। पेंसिल्वेनिया विश्वविद्यालय के न्यूरोसाइंटिस्ट ट्रेसी बेल(Tresy Bell) का कहना है “एक पुरूष पिता के जीवन अनुभव, व्यवहार और तनाव जैसी घटनाएं उनके बच्चों के मस्तिष्क के विकास और मानसिक स्वास्थ्य पर जैविक रूप से प्रभाव डालते है। हमने अपने प्रयोग में उल्लेख किया है पुरुषों के शुक्राणुओं के मुख के आकार का हल्का सा बदलाव भी microRNAs प्रतिक्रिया में बड़े बदलाव का संकेत दे सकता है और यह बदलाव उसके आगामी संतानों पर देखा जा सकता है।”

पेंसिल्वेनिया विश्वविद्यालय के न्यूरोएंडोक्रिनोलॉजिस्ट जेनिफर चान(Jennifer Chang) ने वाशिंगटन, डी.सी. में आयोजित सोसाइटी फॉर न्यूरोसाइंस की वार्षिक बैठक मे कहा “तनावग्रस्त पुरूष का शुक्राणु एक पीढ़ी से दूसरे पीढ़ी में तनाव को ले जाते है लेकिन हमें वास्तविक सवाल पर ज्यादा ध्यान देना चाहिए की इस तनाव को कैसे खत्म या कम-से-कम किया जा सकता है।”

फिलहाल शोधकर्ताओं द्वारा इसे समझने के लिए पुरुष प्रजनन स्थान एपीडिड्यमिस(epididymis) पर ध्यान केंद्रित किया है यह वह स्थान है जहाँ शुक्राणु कोशिका परिपक्व होती है। शोध अध्ययन से पता चलता है की तनाव हार्मोन संवेदक(stress-hormone sensor) से छुटकारा पाने के लिए ग्लूकोकोर्टिकोइड रिसेप्टर्स(glucocorticoid receptor) की बड़ी अहम भूमिका होती है। ग्लूकोकोर्टिकोइड रिसेप्टर्स की मात्रा में कमी बड़े पैमाने पर तनाव संचरण को कम कर सकते है। चूहों पर किये गये एक प्रयोग में देखा गया की शिकारी जीवों का लगातार सामना करनेवाले चूहे जो की लंबे समय तक तनावपूर्ण अवस्था मे थे उन्होंने अपने तनाव हार्मोन कॉर्टिकोस्टेरोन(stress-hormone corticosterone) को काफी बढ़ा लिया था लेकिन जिन चूहों के एपीडिड्यमिस में रिसेप्टर्स की मात्रा कम थी वो सामान्य हार्मोनल प्रतिक्रियाएं प्रदर्शित कर रहे थे।


इससे पहले के शोध से पता चला था की तनाव की अवस्था मे एपीडिड्यमिस कोशिकाओं RNA से भरा छोटे पैकेट जारी करते हैं जो शुक्राणुओं को फ्यूज कर सकते हैं और उनके आनुवंशिक पेलोड को बदल सकते हैं। जब सवाल शोधकर्ताओं से पूछा गया की शुक्राणुओं को कैसे बदल सकते है इसका एक स्पष्टीकरण शोधकर्ताओं द्वारा दिया गया है। ग्लुकोकॉर्टीकॉइड रिसेप्टर जब ज्यादा सक्रिय हो तो एपीडिड्यमिस RNA को तनाव में ला देते है। इसके बाद उन RNA द्वारा शुक्राणुओं में अपनी बदलती सामग्री वितरित करते है इससे शुक्राणुओं की आकृति में बदलाव आता है और इस तरह शुक्राणु अगली पीढ़ी को तनाव प्रसारित कर देते हैं। तनाव से दूर रहना ही इसका सर्वश्रेष्ठ विकल्प है।

"दांडी मार्च"


दांडी मार्च से अभिप्राय उस पैदल यात्रा से है, जो महात्मा गाँधी और उनके स्वयं सेवकों द्वारा 12 मार्च, 1930 ई. को प्रारम्भ की गई थी। इसका मुख्य उद्देश्य था- "अंग्रेज़ों द्वारा बनाये गए 'नमक क़ानून को तोड़ना'।" गाँधी जी ने अपने 78 स्वयं सेवकों, जिनमें वेब मिलर भी एक था, के साथ साबरमती आश्रम से 358 कि.मी. दूर स्थित दांडी के लिए प्रस्थान किया। लगभग 24 दिन बाद 6 अप्रैल, 1930 ई. को दांडी पहुँचकर उन्होंने समुद्रतट पर नमक क़ानून को तोड़ा। महात्मा गाँधी ने दांडी यात्रा के दौरान सूरत, डिंडौरी, वांज, धमन के बाद नवसारी को यात्रा के आखिरी दिनों में अपना पड़ाव बनाया था। यहाँ से कराडी और दांडी की यात्रा पूरी की थी। नवसारी से दांडी का फासला लगभग 13 मील का है।

सरदार पटेल की भूमिका
वल्लभभाई पटेल की इच्छा थी कि 1930 में हुई गाँधी जी की गिरफ्तारी के विरोध में जनता उसका मुँहतोड़ जवाब दे। सत्याग्रहियों से जेल भर जाए। टैक्स के भुगतान के बिना शासन की कार्यप्रणाली ठप्प हो जाए। इस संबंध में जब उन्होंने खेड़ा ज़िले के रास ग्राम में लोगों के आग्रह पर भाषण करना शुरू किया, तो पुलिस ने उन्हें गिरफ्तार कर लिया। 9 मार्च, 1930 को रविवार का अवकाश होने के बाद भी मजिस्ट्रेट ने अदालत खुली रखकर सरदार पटेल को 3 माह की सजा सुनाई। साबरमती जेल जाते हुए गाँधी जी के दर्शन कर उन्होंने उनका आशीर्वाद लिया। 9 मार्च, 1930 को ही गाँधी जी ने लिखा कि "इसमें संदेह नहीं कि यदि गुजरात पहल करता है, तो पूरा भारत जाग उठेगा।" इसलिए 10 मार्च को अहमदाबाद में 75 हजार शहरियों ने मिलकर सरदार पटेल को हुई सजा के विरोध में लड़ने की प्रतिज्ञा की।

गाँधी जी इच्छा
11 मार्च को गाँधी जी ने अपना वसीयतनामा कर अपनी इच्छा जताई कि आंदोलन लगातार चलता रहे, इसके लिए सत्याग्रह की अखंड धारा बहती रहनी चाहिए, क़ानून भले ही भंग हो, पर शांति रहे। लोग स्वयं ही नेता की जवाबदारी निभाएँ। 11 मार्च की शाम की प्रार्थना नदी किनारे रेत पर हुई, उस समय गाँधी जी के मुख से निम्न उद्गार निकले-
मेरा जन्म ब्रिटिश साम्राज्य का नाश करने के लिए ही हुआ है। मैं कौवे की मौत मरुँ या कुत्ते की मौत, पर स्वराज्य लिए बिना आश्रम में पैर नहीं रखूँगा।
दांडी यात्रा की तैयारी देखने के लिए देश-विदेश के पत्रकार, फोटोग्राफर अहमदाबाद आए थे। आजादी के आंदोलन की यह महत्वपूर्ण घटना 'वाइज ऑफ़ अमेरिका' के माध्यम से इस तरह प्रस्तुत की गई कि आज भी उस समय के दृश्य, उसकी गंभीरता और जोश का प्रभाव देखा जा सकता है। अहमदाबाद में एकजुट हुए लोगों में यह भय व्याप्त था कि 11-12 की दरम्यानी रात में गाँधी जी को गिरफ्तार कर लिया जाएगा। गाँधी जी की जय और 'वंदे मातरम्' के जयघोष के साथ लोगों के बीच गाँधी जी ने रात बिताई और सुबह चार बजे उठकर सामान्य दिन की भाँति दिनचर्या पूर्ण कर प्रार्थना के लिए चल पड़े। भारी भीड़ के बीच पंडित खरे जी ने अपने कोमल कंठ से यह गीत गाया-
शूर संग्राम को देख भागे नहीं,
देख भागे सोई शूर नाहीं

यात्रा की शुरुआत
प्रार्थना पूरी करने के बाद जब सभी लोग यात्रा की तैयारी कर रहे थे, इस बीच अपने कमरे में जाकर गाँधी जी ने थोड़ी देर के लिए एक झपकी ली। लोगों का सैलाब आश्रम की ओर आ रहा था। तब सभी को शांत और एकचित्त करने के लिए खरे जी ने 'रघुपति राघव राजाराम' की धुन गवाई। साथ ही उन्होंने भक्त कवि प्रीतम का गीत बुलंद आवाज में गाया-
ईश्वर का मार्ग है वीरों का
नहीं कायर का कोई काम
पहले-पहल मस्तक देकर
लेना उनका नाम
किनारे खड़े होकर तमाशा देखे
उसके हाथ कुछ न आए
महा पद पाया वह जाँबाज
छोड़ा जिसने मन का मैल।

अहमदाबाद के क्षितिज में मंगलप्रभात हुआ, भारत की ग़ुलामी की जंजीरें तोड़ने के लिए भागीरथ प्रयत्न शुरू हुए। 12 मार्च को सुबह 6.20 पर वयोवृद्ध 61 वर्षीय महात्मा गाँधी के नेतृत्व में 78 सत्याग्रहियों ने जब यात्रा शुरू की, तब किसी को बुद्ध के वैराग्य की, तो किसी को गोकुल छोड़कर जाते हुए कृष्ण की, तो किसी को मक्का से मदीना जाते हुए पैगम्बर की याद आई। गाँधी जी के तेेजस्वी और स्फूर्तिमय व्यक्तित्व के दर्शन मात्र से स्वतंत्रता के स्वर्ग की अनुभूति करते लाखों लोगों की कतारों के बीच दृढ़ और तेज गति से कदम बढ़ाते गाँधी जी और 78 सत्याग्रहियों का दल अन्याय, शोषण और कुशासन को दूर करने, मानवजाति को एक नया शस्त्र, एक अलग ही तरह की ऊर्जा और अमिट आशा दे रहा था।

नमक कानून को तोड़ना
नमक कानून भारत के और भी कई भागों में तोड़ा गाया। सी. राजगोपालाचारी ने त्रिचनापल्ली से वेदारण्यम तक की यात्रा की। असम में लोगों ने सिलहट से नोआखली तक की यात्रा की। 'वायकोम सत्याग्रह' के नेताओं ने के. केलप्पन एवं टी. के. माधवन के साथ कालीकट से पयान्नूर तक की यात्रा की। इन सभी लोगों ने नमक क़ानून को तोड़ा। नमक क़ानून इसलिए तोड़ा जा रहा था, क्योंकि सरकार द्वारा नमक कर बढ़ा दिया गया था, जिससे रोजमर्रा की ज़रूरत के लिए नमक की कीमत बढ़ गई थी।

अब्दुल गफ्फार ख़ाँ का योगदान
उत्तर पश्चिमी सीमा प्रदेश में खान अब्दुल गफ्फार खान, जिन्हें 'सीमांत गाँधी' भी कहा जाता है, के नेतृत्व में 'खुदाई खिदमतगार' संगठन के सदस्यों ने सरकार का विरोध किया। उन्होंने पठानों की क्षेत्रीय राष्ट्रवादिता के लिए तथा उपविनेशवाद और हस्तशिल्प के कारीगरों को गरीब बनाने के विरुद्ध आवाज़ उठायी। 'लाल कुर्ती दल' के गफ्फार ख़ाँ को 'फख्र-ए-अफगान' की उपाधि दी गयी। इन्होंने पश्तों भाषा में 'पख्तून' नामक एक पत्रिका निकाली, जो बाद में 'देशरोजा' नाम से प्रकाशित हुई। गफ्फार ख़ाँ को 'बादशाह ख़ाँ' भी कहा जाता है। पेशावर में गढ़वाल राइफल के सैनिकों ने अपने साथी चंद्रसिंह गढ़वाली के अनुरोध पर 'सविनय अवज्ञा आन्दोलन' कर रहे आन्दोलनकारियों की भीड़ पर गोली चलाने के आदेश का विरोध किया। नमक कानून भंग होने के साथ ही सारे भारत में 'सविनय अवज्ञा आन्दोलन' ने जोर पकड़ा।

रानी गाइदिनल्यू
नागाओं ने मदोनांग के नेतृत्व मे आन्दोलन किया। इस आन्दोलन को 'जियालरंग आन्दोलन' के नाम से जाना जाता है। मदोनांग पर हत्या का आरोप लगाकर फाँसी दे दी गई। इसके बाद उसकी बहन गाइदिनल्यू ने नागा विद्रोह की बागडोर संभाली। इसे गिरफ्तार कर आजीवन कारावास दे दिया गया। जवाहरलाल नेहरू ने गाइदिनल्यू को 'रानी' की उपाधि प्रदान की। इसके बारे में जवाहरलाल नेहरू ने लिखा है कि- "एक दिन ऐसा आयेगा, जब भारत इन्हें स्नेहपूर्ण स्मरण करेगा।"

दमन चक्र का भयानक रूप
बम्बई के इस आन्दोलन का केंन्द्र 'धरासना' था, जहाँ पर सरकार दमन चक्र का सबसे भयानक रूप देखने का मिला। सरोजनी नायडू, इमाम साहब और मणिलाल के नेतृत्व में लगभग 25 हज़ार स्वयं सेवकों को धरासना नामक कारखाने पर धावा बोलने से पूर्व ही लाठियों से पीटा गया। धरासना के भयानक रूप का उल्लेख करते हुए अमेरिका के न्यू फ़्रीमैन अख़बार के पत्रकार मिलर ने लिखा है कि- "संवाददाता के रूप में पिछले 18 वर्ष में असंख्य नागरिक विद्रोह देखें हैं, दंगें, गली कूचों में मार-काट एवं विद्रोह देखे हैं, लेकिन धरासना जैसा भयानक दृश्य मैंने अपने जीवन में कभी नहीं देखा।"

अन्य गतिविधियाँ
'सविनय अवज्ञा आन्दोलन' के दौरान, मुख्य रूप से बिहार में 'कर न अदायगी' का आन्दोलन चलाया गया। बिहार के सारन, मुंगेर तथा भागलपुर के जिलों में 'चौकीदारी कर न अदा करने' का आन्दोलन चलाया गया। मुंगेर के बहरी नामक स्थान पर सरकार का शासन समाप्त हो गया। इस समय मध्य प्रान्त, महाराष्ट्र और कर्नाटक में कड़े वन नियमों के विरुद्व 'वन सत्याग्रह' चलाया गया। 'सविनय अवज्ञा आन्दोलन' के समय ही लड़कियों ने 'माजेरी सेना' तथा बच्चों ने 'वानर सेना' का गठन किया। महात्मा गाँधी की दांडी यात्रा के बारे में सुभाषचन्द्र बोस ने लिखा है- "महात्मा जी की दांडी मार्च की तुलना 'इल्बा' से लौटने पर नेपोलियन के 'पेरिस मार्च' और राजनीतिक सत्ता प्राप्त करने के लिए मुसोलिनी के 'रोम मार्च' से की जा सकती है।"

आन्दोलन की व्यापकता
1930 ई. के 'सविनय अवज्ञा आन्दोलन' के समय ही उत्तर पश्चिमी सीमा प्रदेश के कबायली लोगों ने गाँधी जी को 'मलंग बाबा' कहा। आन्दोलन क्रमशः व्यापक रूप से पूरे भारत में फैल गया। महिलाओं ने पर्दे से बाहर आकर सत्याग्रह में सक्रिय रूप से हिस्सा लिया। विदेशी कपड़ों की अनेक स्थानों पर होलियाँ जलाई गयीं। महिला वर्ग ने शराब की दुकानों पर धरना दिया तथा कृषकों ने कर अदायगी से इंकार कर दिया। 'सविनय अवज्ञा आन्दोलन' की मुख्य विशेषता थी 'बड़े पैमाने पर पहली बार किसी आन्दोलन में महिलाओं की मुख्य सहभागिता'। इसके पूर्व बहुत कम औरतों ने सार्वजनिक किस्म के राजनीतिक प्रदर्शनों में हिस्सा लिया था। उनमें से भी अधिकतक या तो चितरंजन दास या मोतीलाल नेहरू जैसे राष्ट्रीय नेताओं के परिवारों से संबंद्ध थीं या कॉलेज की छात्रायें थीं।

सरकार की झल्लाहट
चारों तरफ फैली इस असहयोग की नीति से अंग्रेज ब्रिटिश हुकूमत बुरी तरह से झल्ला गयी। 5 मई, 1930 ई. को गाँधी जी को गिरफ्तार कर लिया गया। आन्दोलन की प्रचण्डता का अहसास कर तत्कालीन वायसराय लॉर्ड इरविन ने गाँधी जी से समझौता करना चाहा।

गाँधीजी का कथन
गाँधी जी ने यात्रा के लिए और जेल जाने के लिए अलग-अलग दो थैले तैयार किए थे, जो उनकी यात्रा की तस्वीरों में देखे जा सकते हैं, क्योंकि समग्र यात्रा के दौरान कब जेल जाना पड़ जाए, यह तय नहीं था। 16 मार्च को गाँधी जी ने नवजीवन में लिखा था- "ब्रिटिश शासन ने सयानापन दिखाया, एक भी सिपाही मुझे देखने को नहीं मिला। जहाँ लोग उत्सव मनाने आए हों, वहाँ सिपाही का क्या काम? सिपाही क्या करे? पूर्ण स्वराज्य यदि हमारा जन्म सिद्ध अधिकार है, तो हमें यह अधिकार प्राप्त करने में कितना समय लगना चाहिए? 30 कोटि मनुष्य जब स्वतंत्रता प्राप्ति का संकल्प करें, तो वह उसे मिलती ही है। 12 मार्च की सुबह का वह दृश्य उसी संकल्प का एक सुहाना रूप था।"
नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने कहा कि "महात्मा जी के त्याग और देशप्रेम को हम सभी जानते ही हैं, पर इस यात्रा के द्वारा हम उन्हें एक योग्य और सफल रणनीतिकार के रूप में पहचानेंगे।"

यात्रा के मुख्य बिंदु
  • आणंद से लगे सरदार पटेल की कर्मभूमि करमसद और बारदोली से इस आंदोलन की नींव पड़ी। इलाके और आसपास के किसानों ने सरदार को अपनी समस्याएं बताईं, तो उन्होंने पूरे क्षेत्र का दौरा किया। इससे किसानों और गांव के लोगों से सीधा जुड़ाव हुआ। किसानों से सरदार का सीधा संपर्क होने के कारण ही गाँधी जी ने नमक सत्याग्रह की पूरी बागडोर उन्हें सौंपी। इसकी पूरी योजना और मार्ग का निर्धारण पटेल ने किया था।
  • यात्रा की सफलता के लिए सरदार पटेल मार्च से पहले गांवों के दौरे पर निकल गए थे। सरदार की इस रणनीति से घबराए अंग्रेज़ों ने उन्हें 7 मार्च को गिरफ्तार कर लिया, ताकि गाँधी जी का मनोबल टूट जाए। लेकिन ऐसा हुआ नहीं, क्योंकि तब तक आंदोलन ने गति पकड़ ली थी।
  • 12 मार्च, 1930 को गाँधी जी ने साबरमती में अपने आश्रम से समुद्र की ओर चलना शुरू किया। इस आंदोलन की शुरूआत में 78 सत्याग्रहियों के साथ दांडी कूच के लिए निकले बापू के साथ दांडी पहुंचते-पहुंचते पूरा आवाम जुट गया था।
  • अंग्रेजों के खिलाफ नमक आंदोलन में दांडी पहुंचने से पहले गाँधी जी ने सूरत को अपना पड़ाव बनाया।
  • इसके बाद गाँधे जी ने डिंडौरी, वांज, धमन के बाद नवसारी को यात्रा के आखिरी दिनों में अपना पड़ाव बनाया।
  • नवसारी से चलकर गाँधी जी कराडी पहुँचे। उन्होंने कराडी में दोपहर और रात का विश्राम किया।
  • गाँधी जी ने कंकापुरा से दांडी के लिए अगले पड़ाव का सफर महिसागर तट से पूरा किया। नाव से 9 कि.मी. की यात्रा करने के बाद उन्होंने करेली में रात्रि विश्राम किया।
  • 24 दिन बाद 6 अप्रैल, 1930 ई. को दांडी पहुँचकर उन्होंने समुद्रतट पर नमक कानून को तोड़ा।


पटेल को सफलता का श्रेय
गाँधी जी ने अपने आंदोलन की सफलता का श्रेय सरदार पटेल को देते हुए कहा था कि "ये मेरा सरदार है। ये नहीं होते तो शायद मेरा आंदोलन सफल नहीं हो पाता।" उनकी इस बात का प्रमाण आणंद में देखने को मिलता है। जहां उन्होंने किसानों को एकजुट कर ऐसी संस्था की नींव रखी, जिसका देश-दुनिया में बड़ा नाम है। सरदार पटेल ने किसानों को सुझाव दिया था कि "बिचौलिए और हुकूमत उनके उत्पाद का मूल्य नहीं देती है। उन्हें उत्पाद देना बंद कर दो। भले इससे उन्हें नुकसान उठाना पड़े, लेकिन किसानों और उत्पादकों को उनका वास्तविक मूल्य मिलना ही चाहिए।" उनके इस सूत्र ने मैंनेजमेंट की ऐसी मिसाल पेश की, जिसे सिद्धांत मानकर बड़े- बड़े मैंनेजमेंट गुरू काम कर रहे हैं।

गाँधी जी की गिरफ्तारी
आंदोलन की समाप्ति के बाद महात्मा गाँधी कराडी की झोपड़ी में ही रहने लगे थे। कराडी में आम के पेड के नीचे खजूर के पत्तों से बनी झोपड़ी को अपना ठिकाना बनाया। वे यहां लंबे समय तक रहे। वे लगभग 20 दिनों तक यहाँ रहे थे। सत्याग्रह पर निकलने से पहले गाँधीजी ने प्रण लिया था कि वे देश को आजाद कराए बिना साबरमती आश्रम नहीं लौटेंगे। इसके बाद उन्होंने आंदोलन का विस्तार करते हुए कराडी से धरासणा कूच करने का ऐलान किया। धरासणा में नमक का कारखाना लूटने की घोषणा की थी। इससे अंग्रेज सरकार सकते में आ गई थी और 4 मई की आधी रात को कराडी की झोपड़ी से उन्हें गिरफ्तार कर लिया।

जानें आखिर कैसे, इजराइल के किसान रेगिस्तान में पालते हैं मछलियां और गर्मी में उगाते हैं आलू


दुनिया में सबको भरपेट खाना मिले और जो खेतों में उगाया जा रहा है उसे सुरक्षित रखा जा सके ये बहुत बड़ी समस्या है। अकेले भारत में हर साल बिना रखरखाव के अरबों रुपये का अन्न बर्बाद हो जाता है। कभी सूखे से बिना पानी फसलें सूख जाती हैं तो कभी बाढ़ के सैलाब में खेत के खेत बर्बाद हो जाते हैं। जैसे-जैसे आबादी बढ़ रही है, वैसे-वैसे मांग भी बढ़ रही है। ऐसे में खेती और खाद्य सुरक्षा जरूरी होता जा रही है।

भारत ही नहीं दुनिया का लगभग हर देश इन समस्याओं से जूझ रहा है। लेकिन युवा किसानों का देश कहे जाने वाले इजराइल ने खेती से जुड़ी कई समस्याओं पर न सिर्फ विजय पाई है बल्कि दुनिया के सामने खेती को फायदे का सौदा बनाने के उदाहरण रखे हैं। 1950 से हरित क्रांति के बाद इस देश ने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा।

इजराइल ने केवल अपने मरुस्थलों को हराभरा किया, बल्कि अपनी खोजों को चैनलों और एमएएसएचएवी (MASHAV, विदेश मामलों का मंत्रालय) के माध्यमों से प्रसारित किया ताकि अन्य देशों के लोग भी इसका लाभ उठा पाएं। इजरायल-21 सी न्यूज पार्टल ने ऐसे की कुछ प्रमुख मुद्दों को उठाया है जिससे अन्न उत्पादन और उसके रखरखाव के लिए पूरे विश्व में इजरायल की तूती बोल रही है।

1-टपकन सिंचाई (ड्रिप इरगेशन)- पानी और पैसा दोनों बचाइए
इस मामले कोई आधुनिक और ज्यादा कारगर खोज अभी तक नहीं हो पाई है। इजराइल में भी ये प्रथा पहले से ही अस्तित्व में थी। इजराइल की वाटर इंजीनियर सिम्चा ब्लास ने इस पद्धति में नई क्रांति ला दी। सिम्चा ने खोज की कि अगर ड्रिप को धीमा और संतुलित कर दिया जाए तो उत्पादन क्षमता बढ़ सकती है। उन्होंने ऐसे ट्यूब का निर्माण किया, जिससे पानी की मात्रा कम होकर गिरने लगी, ये ज्यादा कारगर साबित हुआ। इस पद्धति पर उन्होंने काम शुरू किया इससे संबंधित फर्म भी बनाया। इजराइल की ये टपका सिंचाई विधि अब कई देशों में इस्तेमाल की जा रही है। इस विधि से इजरायल से बाहर लगभग 700 ऐसे किसान परिवार हैं जो साल में अब तीन फसलें पैदा कर रहे हैं जो कि पहले एक बार ही होता।

2-अन्न कोष- सुरक्षित रखे जा सकते हैं अनाज
इस बैग में रखा अनाज लंबे समय तक फ्रेश रहता है और खराब भी नहीं होता।

इजराइल ने एक ऐसे अन्न कोष का निर्माण किया है जिसमें किसान कम खर्चों में ही अपनी फसल को ताजा और सुरक्षित रख सकते हैं। इंटरनेशनल फूड टेक्नोलॉजी कंसलटेंट प्रोफेसर श्लोमो नवार्रो ने इस बड़े बैग को बनाया है। ये बैग हवा और पानी, दोनों से सुरक्षित रहेगा। बैग का प्रयोग पूरे अफ्रीका के साथ-साथ कई सम्पन्न देशों में किया जा रहा है। पाकिस्तान ने भी इस बैग के लिए इजराइल के साथ समझौता किया है। 50 प्रतिशत से ज्यादा फसलें उत्पादन के बाद कीड़े और फफूंद की वजह से खराब हो जाती हैं। ऐसे में ये बैग उपज की सुरक्षा के लिए कारगार साबित हो रहा है। भीषण गर्मी और सीलने होने के बाद भी इस बैग में रखी फसलें सुरक्षित रहती हैं।

3- जैविक कीट नियंत्रण- शत्रु कीटों पर हमला, मित्र कीटों का संरक्षण
बायो-बी नामक कंपनी ने ऐसे कीट नियंत्रक दवा का निर्माण किया है जिसके छिड़काव से कीड़े तो दूर रहते हैं लेकिन इससे मक्खी और भौरों को कोई नुकसान नहीं होता। कंपनी परागण के लिए भौरों का भी प्रयोग करती है। ऐसे में परागण की प्रक्रिया प्रभावित नहीं होती। कंपनी के मैनेजर डॉ शीमोन ने बताया कि हमारी कंपनी कीटनाशक दवाओं की बिक्री के मामले प्रमुख कंपनियों में से एक है। कैलिफोर्निया में पैदा होने वाले 60 फीसदी स्ट्राबेरी पर 1990 से इसी दवा का छिड़काव किया जा रहा है, और इसके प्रयोग के बाद से पैदावार में 75 प्रतिशत तक की वृद्धि हुई है। बायो बी की दवा और भौरों का प्रयोग इस समय 32 देशों में किया जा रहा है, जिसमें जापान और चिली भी शामिल हैं।

4-डेयरी फार्मिंग
आधुनिक डेयरीफार्म का एक दृश्य।आधुनिक डेयरीफार्म का एक दृश्य।
होफ हैशरोन डेयरी फार्म (Hof Hashron), एसएई एफिकिम (SAE Afikim) और एससीआर प्रीसाइज डेयरी फार्म (SCR Precies Dairy Farming) ने मवेशियों के झुंड प्रबंधन की नई तकनीकी ईजाद की और इसका प्रयोग अपने डेयरी उत्पादन में बखूबी कर रहे हैं। एसएई एफिकिम वियतनाम में चल रहे उस पांच साल के प्रोजेक्ट का भी हिस्सा है जिसका लक्ष्य 5 लाख मिलियन डेयरी फार्म का है, जो दुनिया का सबसे बड़ा प्रोजेक्ट है। प्रोजेक्ट के चैनल में 30 हजार गायों को जोड़ा जा चुका है, कार्यक्षेत्र 12 राज्यों में फैला हुआ है। इसके माध्यम से प्रतिदिन 3 लाख लीटर दूध की सप्लाई की जा रही है। चायना ने इससे प्रभावित होकर इससे संबधित मंत्रालयों को लोगों को इजरायल भेजता है और कहता है कि इजराय से सीखने लायक है कि कैसे दुग्ध उत्पादन बढ़ाया जाए।

5-सॉफ्टवेयर से किसानों की मदद
एग्रीकल्चर नॉलेज ऑनलाइन (AKOL) ने एक ऐसा सॉफ्टवेयर बनाया है जहां किसानों की हर समस्या कस हल होता है। आईबीएम द्वारा संचालित इस सॉफ्टवेयर के माध्यम से दुनिया के किसी भी कोने में बैठा किसान इजरायल के विशेषज्ञों से मदम ले सकता है। सॉफ्टवेयर के माध्यम से किसान अपनी फसले तो बेच ही सकते है साथ ही ग्रुप के साथ चर्चा भी कर सकते हैं। कंपनी के सीईओ रॉन शानी बताते हैं कि सॉफ्टवेयर किसानों की मदद फसल बोते समम, काटते समय और बेचते समय, हर तरह की मदद करता है, साथ ही किसानों को आधुनिक ज्ञान भी दिया जाता है।

6-गर्मी में पैदा कर रहे आलू
लगभग 30 साल के शोध के बाद हिब्रू विश्वविद्यालस के प्रोफेसर डेविड लेवी ने आलू की एक ऐसी प्रजाति ईजाद की जो कि भीषण गर्मी में भी पैदा होती है। आलू दुनिया में खाई जाने वाली प्रमुख खाद्य फसलों में से एक है लेकिन गर्मी में इसकी पैदावार नहीं हो पाती खासकर मिडिल ईस्ट में, लेकिन अब ऐसी जगहों पर भी आलू की बढ़िया पैदावार हो रही है और किसान लाभ कमा रहे हैं। लेवी इजरायल-21सी को बताया कि हम नई तकनीक से अन्य देशों के बीच नए संबंध बनाने का प्रयास कर रहे हैं, हम चाहते हैं हर देश का किसान लाभान्वित हो।

7- हवा से निचोड़ रहे पानी की हर बूंद (ओस की बूंदों से सिंचाई)
ताल-या वाटर टेक्नोलाजी ने दोबारा प्रयोग में लिए जाने वाले ऐसे प्लास्टिक ट्रे का निर्माण किया है जिससे हवा से ओस की बूंदे एकत्र की जा सकती है। दांतेदार आकार का ये ट्रे प्लास्टिक को रीसाइकिल करके बनाया जाता है। इसमें यूवी फिल्टर और चूने का पत्थर लगाकर पेड़ों के आसपास इसे लगाया जाता है। रात को ये ट्रे ओस की बूंदों को साख लेता है और बूंदों को पौधों की जड़ों तक पहुंचाता है। इसके निर्माता अवराहम तामिर बताते हैं ट्रे कड़ी धूप से भी पौधों को बचाता है। इस विधि से पौधों की 50 प्रतिशत पानी की जरूरत पूरी हो जाती है।

8- अनूठे तरीके से फसलों का बचाव
हिब्रू विश्वविद्यालय की तकनीकी टीम ने मैक्हेटेसहिम एगन ने (फसल सुरक्षा की बड़ी कंपनी), व्यवसायीकरण के लिए ऐसे कीटनाशक की खोज की जो फादेमंद कीटों को नुकसान नहीं पहुंचाता और फसलों को सुरक्षित भी रखता है। कीटनाशकों को बाजार लगभग 1500 करोड़ रुपए का है। ज्यादातर कीटनाशक मीट्टी मे मिला दिए जाते हैं। लेकिन इजरायल ऐसा कीटनाशक तैयार किया तो बहुत ही मंद गति से नुकसानदायक कीड़ों को मारता है, जिससे मिट्टी की उर्वरकता बनी रहती है। पौधों को उतना ही डोज दिया जाता है जितनी उसे जरूरत रहती है।

9-रेगिस्तान में पालते हैं मछलियां
मछलियों को अत्यधिक पकड़ाजाना खाद्य सुरक्षा के लिए चिंता का विषय बन जाता है, वो भी ऐसे में जब मछली ही हजारों लोगों के लिए प्रोटीन का मुख्य जरिया हो। इजराइल में भी ऐसी समस्या थी। लेकिन अब इजराइल में अब कहीं भी मछलियां मिल जाती है। इसे संभव बनाया जीएफए (ग्रो फिश एनव्हेयर) के एडवांस्ड तकनीकी ने। इजरायल के जीरो डिस्चार्ज सिस्टम ने मछली पालन के लिए बिजली और मौसम की बाध्यता को खत्म कर दिया। बिजली और मौसम मछली पालन के लिए बड़ी समस्या बन रहे थे। इस तकनीकी में एक ऐसा टैंकर बनाया जाता है जिनपर इस समस्याओं का असर नहीं पड़ता। अमेरिका में इस तकनीकी का प्रयोग बड़ी संख्या में किया जा रहा है।

Saturday 20 January 2018

काकोरी कांड : जिसने देश में क्रांतिकारियों के प्रति जनता का नजरिया बदल दिया था



नौ अगस्त 1925 को हुए काकोरी कांड का मुकदमा 10 महीने तक चला था जिसमें रामप्रसाद ‘बिस्मिल’, राजेंद्रनाथ लाहिड़ी, रोशन सिंह और अशफाक उल्लाह खां को फांसी की सजा हुई

भारत के स्वाधीनता आंदोलन में काकोरी कांड की भी महत्वपूर्ण भूमिका रही है लेकिन इसके बारे में बहुत ज्यादा जिक्र सुनने को नहीं मिलता इसकी वजह यह है कि इतिहासकारों ने काकोरी कांड को बहुत ज्यादा अहमियत नहीं दी लेकिन यह कहना गलत नहीं होगा कि काकोरी कांड ही वह घटना थी जिसके बाद देश में क्रांतिकारियों के प्रति लोगों का नजरिया बदलने लगा था और वे पहले से ज्यादा लोकप्रिय होने लगे थे

भारत के स्वतंत्रता आंदोलन पर शोध करने वाली डॉ. रश्मि कुमारी लिखती हैं, ‘1857 की क्रांति के बाद उन्नीसवीं सदी के उत्तरार्ध में चापेकर बंधुओं द्वारा आर्यस्ट व रैंड की हत्या के साथ सैन्यवादी राष्ट्रवाद का जो दौर प्रारंभ हुआ, वह भारत के राष्ट्रीय फलक पर महात्मा गांधी के आगमन तक निर्विरोध जारी रहा. लेकिन फरवरी 1922 में चौरा-चौरी कांड के बाद जब गांधी जी ने असहयोग आंदोलन को वापस ले लिया, तब भारत के युवा वर्ग में जो निराशा उत्पन्न हुई उसका निराकरण काकोरी कांड ने ही किया था’

1922 में जब देश में असहयोग आंदोलन अपने चरम पर था, उसी साल फरवरी में ‘चौरा-चौरी कांड’ हुआगोरखपुर जिले के चौरा-चौरी में भड़के हुए कुछ आंदोलकारियों ने एक थाने को घेरकर आग लगा दी थी जिसमें 22-23 पुलिसकर्मी जलकर मर गए थे इस हिंसक घटना से दुखी होकर महात्मा गांधी ने असहयोग आंदोलन को वापस ले लिया था, जिससे पूरे देश में जबरदस्त निराशा का माहौल छा गया था आजादी के इतिहास में असहयोग आंदोलन के बाद काकोरी कांड को एक बहुत महत्वपूर्ण घटना के तौर पर देखा जा सकता हैक्योंकि इसके बाद आम जनता अंग्रेजी राज से मुक्ति के लिए क्रांतिकारियों की तरफ और भी ज्यादा उम्मीद से देखने लगी थी

नौ अगस्त 1925 को क्रांतिकारियों ने काकोरी में एक ट्रेन में डकैती डाली थी इसी घटना को ‘काकोरी कांड’ के नाम से जाना जाता है क्रांतिकारियों का मकसद ट्रेन से सरकारी खजाना लूटकर उन पैसों से हथियार खरीदना था ताकि अंग्रेजो के खिलाफ युद्ध को मजबूती मिल सके काकोरी ट्रेन डकैती में खजाना लूटने वाले क्रांतिकारी देश के विख्यात क्रांतिकारी संगठन ‘हिंदुस्तान रिपब्लिक एसोसिएशन’ (एचआरए) के सदस्य थे

एचआरए की स्थापना 1923 में शचीन्द्रनाथ सान्याल ने की थी इस क्रांतिकारी पार्टी के लोग अपने कामों को अंजाम देने के लिए धन इकट्ठा करने के उद्देश्य से डाके डालते थे इन डकैतियों में धन कम मिलता था और निर्दोष व्यक्ति मारे जाते थे इस कारण सरकार क्रांतिकारियों को चोर-डाकू कहकर बदनाम करती थी धीरे-धीरे क्रांतिकारियों ने अपनी लूट की रणनीति बदली और सरकारी खजानों को लूटने की योजना बनाई काकोरी ट्रेन की डकैती इसी दिशा में क्रांतिकारियों का पहला बड़ा प्रयास था

बताते हैं कि काकोरी षडयंत्र के संबंध में जब एचआरए दल की बैठक हुई तो अशफाक उल्लाह खां ने ट्रेन डकैती का विरोध करते हुए कहा, ‘इस डकैती से हम सरकार को चुनौती तो अवश्य दे देंगे, परंतु यहीं से पार्टी का अंत प्रारंभ हो जाएगा. क्योंकि दल इतना सुसंगठित और दृढ़ नहीं है इसलिए अभी सरकार से सीधा मोर्चा लेना ठीक नहीं होगा’ लेकिन अंततः काकोरी में ट्रेन में डकैती डालने की योजना बहुमत से पास हो गई

इस ट्रेन डकैती में कुल 4601 रुपये लूटे गए थे इस लूट का विवरण देते हुए लखनऊ के पुलिस कप्तान मि. इंग्लिश ने 11 अगस्त 1925 को कहा, ‘डकैत (क्रांतिकारी) खाकी कमीज और हाफ पैंट पहने हुए थे उनकी संख्या 25 थी यह सब पढ़े-लिखे लग रहे थे पिस्तौल में जो कारतूस मिले थे, वे वैसे ही थे जैसे बंगाल की राजनीतिक क्रांतिकारी घटनाओं में प्रयुक्त किए गए थे।'

इस घटना के बाद देश के कई हिस्सों में बड़े स्तर पर गिरफ्तारियां हुई हालांकि काकोरी ट्रेन डकैती में 10 आदमी ही शामिल थे, लेकिन 40 से ज्यादा लोगों को गिरफ्तार किया गया अंग्रेजों की इस धरपकड़ से प्रांत में काफी हलचल मच गई जवाहरलाल नेहरू, गणेश शंकर विद्यार्थी आदि बड़े-बड़े लोगों ने जेल में क्रांतिकारियों से मुलाकात की और मुकदमा लड़ने में दिलचस्पी दिखाई वे चाहते थे कि उनका मुकदमा सुप्रसिद्ध वकील गोविंद वल्लभ पंत लडे़ लेकिन उनकी फीस ज्यादा होने के कारण अतंतः यह मुकदमा कलकत्ता के बीके चौधरी ने लड़ा

काकोरी कांड का ऐतिहासिक मुकदमा लगभग 10 महीने तक लखनऊ की अदालत रिंग थियेटर में चला (आजकल इस भवन में लखनऊ का प्रधान डाकघर है) इस पर सरकार का 10 लाख रुपये खर्च हुआ 6 अप्रैल 1927 को इस मुकदमे का फैसला हुआ जिसमें जज हेमिल्टन ने धारा 121अ, 120ब, और 396 के तहत क्रांतिकारियों को सजाएं सुनाईं इस मुकदमे में रामप्रसाद ‘बिस्मिल’, राजेंद्रनाथ लाहिड़ी, रोशन सिंह और अशफाक उल्ला खां को फांसी की सजा सुनाई गई शचीन्द्रनाथ सान्याल को कालेपानी और मन्मथनाथ गुप्त को 14 साल की सजा हुई. योगेशचंद्र चटर्जी, मुकंदीलाल जी, गोविन्द चरणकर, राजकुमार सिंह, रामकृष्ण खत्री को 10-10 साल की सजा हुई विष्णुशरण दुब्लिश और सुरेशचंद्र भट्टाचार्य को सात और भूपेन्द्रनाथ, रामदुलारे त्रिवेदी और प्रेमकिशन खन्ना को पांच-पांच साल की सजा हुई

फांसी की सजा की खबर सुनते ही जनता आंदोलन पर उतारू हो गई अदालत के फैसले के खिलाफ शचीन्द्रनाथ सान्याल और भूपेन्द्रनाथ सान्याल के अलावा सभी ने लखनऊ चीफ कोर्ट में अपील दायर की, लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ 17 दिसंबर 1927 को सबसे पहले गांडा जेल में राजेंद्रनाथ लाहिड़ी को फांसी दी गई. फांसी के कुछ दिनों पहले एक पत्र में उन्होंने अपने मित्र को लिखा था, ‘मालूम होता है कि देश की बलिवेदी को हमारे रक्त की आवश्यता है मृत्यु क्या है? जीवन की दूसरी दिशा के अतिरिक्त कुछ भी नहीं। यदि यह सच है कि इतिहास पलटा खाया करता है तो मैं समझता हूँ, हमारी मृत्यु व्यर्थ नहीं जाएगी, सबको अंतिम नमस्ते

19 दिसंबर, 1927 को पं. रामप्रसाद बिस्मिल को गोरखपुर जेल में फांसी दी गई उन्होंने अपनी माता को एक पत्र लिखकर देशवासियों के नाम संदेश भेजा और फांसी के तख्ते की ओर जाते हुए जोर से ‘भारत माता’ और ‘वंदेमातम्’ की जयकार करते रहे चलते समय उन्होंने कहा -

मालिक तेरी रजा रहे और तू ही रहे, 
बाकी न मैं रहूं, न मेरी आरजू रहे 
जब तक कि तन में जान, रगों में लहू रहे 
तेरा हो जिक्र या, तेरी ही जुस्तजू रहे

फांसी के दरवाजे पर पहुँचकर  बिस्मिल ने कहा, ‘मैं ब्रिटिश साम्राज्य का विनाश चाहता हूँ’ और फिर फांसी के तख्ते पर खड़े होकर प्रार्थना और मंत्र का जाप करके वे फंदे पर झूल गए गोरखपुर की जनता ने उनके शव को लेकर आदर के साथ शहर में घुमाया उनकी अर्थी पर इत्र और फूल बरसाए

काकोरी कांड के तीसरे शहीद थे, ठाकुर रोशन सिंह जिन्हें इलाहाबाद में फांसी दी गई उन्होंने अपने मित्र को पत्र लिखते हुए कहा था, ‘हमारे शास्त्रों में लिखा है, जो आदमी धर्मयुद्ध में प्राण देता है, उसकी वही गति होती है जो जंगल में रहकर तपस्या करने वालों की

अशफाक उल्ला खां काकोरी कांड के चौथे शहीद थे उन्हें फैजाबाद में फांसी दी गई वे बहुत खुशी के साथ कुरान शरीफ का बस्ता कंधे पर लटकाए हाजियों की भांति ‘लवेक’ कहते और कलाम पढ़ते फांसी के तख्ते पर गए तख्ते का उन्होंने चुंबन किया और उपस्थित जनता से कहा, ‘मेरे हाथ इंसानी खून से कभी नहीं रंगे, मेरे ऊपर जो इल्जाम लगाया गया, वह गलत है खुदा के यहाँ मेरा इंसाफ होगा’ और फंदे पर झूल गए उनका अंतिम गीत था -

तंग आकर हम भी उनके जुल्म से बेदाद से 
चल दिए सुए अदम जिंदाने फैजाबाद से

19 दिसंबर को उनका पार्थिव शरीर मालगाड़ी से शाह्जाहंपुर ले जाते समय गाड़ी लखनऊ बालामऊ स्टेशन पर रुकी जहाँ पर एक साहब सूट-बूट में गाड़ी के अंदर आए और कहा, ‘हम शहीद-ए-आजम को देखना चाहते हैं’ उन्होंने पार्थिव शरीर के दर्शन किए और कहा, ‘कफन बंद कर दो, मैं अभी आता हूँ’ यह साहब कोई और नहीं चन्द्रशेखर आजाद थे काकोरी कांड में अंग्रेजों ने चन्द्रशेखर आजाद को भी बहुत ढूंढ़ा वे हुलिया बदल-बदल कर बहुत समय तक अंग्रेजों को धोखा देने में सफल होते रहे अंततः 27 फरवरी 1931 को इलाहाबाद के अल्फ्रेड पार्क में अंग्रेजों का सामना करते हुए वे अपनी ही गोली से शहीद हो गए

Friday 19 January 2018

Current Affairs in Hindi (भाग-81)


  • वह राज्य जिसने अनाथ बच्चों को सरकारी नौकरी में 1% आरक्षण देने का निर्णय लिया – महाराष्ट्र
  • वह देश जिसने हाल ही में अकेलापन दूर करने के लिए एक मंत्रालय का गठन किया गया – ब्रिटेन
  • भारतीय मूल के पहले सिख व्यक्ति जिन्हें न्यू जर्सी का अटॉर्नी जनरल बनने का अवसर प्राप्त हुआ – गुरबीर सिंह ग्रेवाल
  • वह खिलाड़ी जिन्हें आईसीसी क्रिकेटर ऑफ़ द इयर पुरस्कार से सम्मानित किया गया – विराट कोहली
  • वह खिलाड़ी जिसे हाल ही में टेस्ट क्रिकेटर ऑफ़ द इयर चुना गया – स्टीव स्मिथ
  • उत्तर कोरिया और दक्षिण कोरिया इन खेलों के लिए एक झंडे के तले मार्च के लिए सहमत हो गये हैं – शीतकालीन ओलंपिक
  • सुप्रीम कोर्ट के एक फैसले के अनुसार यह फिल्म सभी राज्यों में 25 जनवरी को रिलीज होगी – पद्मावत
  • पांच हजार किलोमीटर तक की मारक क्षमता वाली इस स्वदेशी मिसाइल का हाल ही में सफल परीक्षण हुआ – पृथ्वी
  • वह राज्य जिसने हाल में स्वयं को खुले में शौच की कुप्रथा से मुक्त राज्य घोषित किया – अरुणाचल प्रदेश
  • इन्हें हाल ही में अरब प्लेयर ऑफ\ ईयर पुरस्कार से सम्मानित किया गया – मोहम्मद सालेह  
  • जिस शहर में स्थित तीन मूर्ति चौक का नाम बदलकर तीन मूर्ति हाइफा चौक किया गया है- दिल्ली
  • हाल ही में भारत और जिस देश ने अवैध प्रवासियों की वापसी और आपराधिक रिकॉर्ड साझा करने हेतु एक एमओयू पर हस्ताक्षर किये हैं- ब्रिटेन
  • टी 20 क्रिकेट में सबसे तेज शतक लगाने वाले भारतीय बल्लेबाज का नाम है- ऋषभ पंत
  • भारत और इज़राइल के मध्य आतंकवाद के खिलाफ साझा तंत्र बनाने को लेकर हुई बैठक में इस मिसाइल के सौदे पर चर्चा की गई – बराक
  • पंजाब सरकार के ऊर्जा एवं सिंचाई विभाग मंत्री जिन्होंने हाल ही में इस्तीफा दिया – राणा गुरजीत सिंह
  • सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश ने हाल ही में इतने जजों की संवैधानिक पीठ का गठन किया – पांच
  • हाल ही में दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल द्वारा प्रस्तावित इस योजना को उपराज्यपाल ने मंजूरी प्रदान की – डोर स्टेप डिलीवरी योजना
  • भारत और इज़राइल के बीच फिल्मल-सह-उत्पाजदन पर हुए समझौते पर इज़राइल की ओर से इनके हस्ताक्षर किये गये - डेनियल कारमॉन (भारत में इजराइल के राजदूत)
  • भारत का वह पड़ोसी देश जिसमें महिलाओं को शराब खरीदने की अनुमति देने वाले प्रस्ताव पर राष्ट्रपति द्वारा रोक लगाई गयी – श्रीलंका
  • जिस राज्य सरकार ने 1 अप्रैल से विभिन्न क्षेत्रों में उत्कृष्टता हेतु अपने प्रत्येक गांव की अलग-अलग रंगों में स्टार रेटिंग करेगी- हरियाणा सरकार
  • केंद्र सरकार के कार्मिक मंत्रालय ने 'दिव्यांगों के अधिकार अधिनियम 2016' के तहत तेज़ाब हमला पीड़ितों को सरकारी नौकरियों में जितने प्रतिशत आरक्षण देने संबंधी दिशा-निर्देश जारी किए हैं-1%
  • सेना दिवस जिस तारीख को मनाया जाता है-15 जनवरी
  • हाल ही में प्रसिद्द संगीतकार एआर रहमान को जिस राज्य का ब्रांड एम्बेस्डर नियुक्त किया गया- सिक्किम
  • जिस राज्य की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने अपने राज्य के आधिकारिक प्रतीक चिह्न का अनावरण किया है- बंगाल
  • वह देश जो पुरुषों और महिलाओं हेतु समान वेतन वैध बनाने वाला पहला देश बना है- आइसलैंड
  • हाल ही में जिस राज्य की सरकार ने बस, मेट्रो में यात्रा करने के लिए कॉमन कार्ड शुरू किया है- दिल्ली
  • भारत के इस प्रसिद्ध ऐतिहासिक शैव आचार्य के बारे में मध्य प्रदेश के स्कूलों में पढ़ाया जाना अनिवार्य कर दिया गया है – आदि शंकराचार्य
  • इस प्रकार के तिरंगे पर सरकार ने उपयोग किये जाने हेतु प्रतिबंध लगा दिया – प्लास्टिक से बना तिरंगा
  • भारत की नौसैन्य शक्ति प्रदर्शन की अध्यक्षता करते हुए रक्षा मंत्री निर्मला सीमारमण हाल ही में इस युद्धपोत पर सवार हुईं - आईएनएस कोलकाता
  • वह देश जिसने हाल ही में कॉटन बड्स पर रोक लगाई – इंग्लैंड
  • इन्हें हाल ही में भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड के महाप्रबंधक के रूप में नियुक्त किया गया है – सबा करीम
  • वह देश जहां स्पेशल इफेक्ट वाला पहला ट्रांसपैरेंट वॉकवे ग्लास ब्रिज आरंभ किया गया – चीन
  • प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जिस शहर में प्रवासी भारतीय केंद्र में प्रथम प्रवासी सांसद सम्मेलन का शुभारंभ किया- नई दिल्ली
  • केन्द्रीय पृथ्वी विज्ञान मंत्री डॉ. हर्षवर्धन ने जिस शहर में भारत का सबसे तेज और सुपर कंप्यूटर देश को समर्पित किया है- पुणे