हाइफा का इतिहास
इजरायल में हाइफा नामक जगह है, ये जगह भारत और इजरायल के सौ साल पुराने रिश्ते को जोड़ता है। पहले विश्वयुद्ध के वक्त यानी 100 साल पहले हिंदुस्तान के वीर योद्धाओं ने हाइफा को तुर्कों से मुक्त कराया था। हाइफा इजरायल में समुद्र के किनारे बसा एक छोटा सा शहर है। लेकिन इस समय ये शहर दुनिया के दो मजबूत लोकतंत्रों को जोड़ने वाली सबसे बड़ी कड़ी बन गया है। 100 साल पुराने युद्ध में हिंदुस्तानी वीरता ने इन्हें और मजबूती से जोड़ा है।
हाइफा का युद्ध 23 Sep.1918
1918 में भारतीय सेना ने ब्रिटिश सेना की सहयोगी सेना के रूप में विश्व युद्ध लड़ा था। उस समय ब्रिटिश सेना पश्चिम एशिया के बड़े भाग पर शासन करने वाले ऑटोमन साम्राज्य व जर्मन की सयुक्त सेना के साथ युद्ध कर रही थी। हाइफा इसी साम्राज्य के अधीन था। भारतीय सैनिकों ने पहले विश्व युद्ध के दौरान हाइफा शहर को तुर्की से आजाद कराया था। इस शहर पर तुर्की का 402 साल से कब्जा था। भारतीय जवान उस समय भाले और तलवार की मदद से ही तुर्की सैनिकों को परास्त कर दिया था। ब्रिटिश सेना ने 15वीं इंपीरियल सर्विस कैवलरी ब्रिगेड को ऑटोमन और जर्मन सेनाओं से लड़ने के लिए हाइफा भेजा। इस सेना में जोधपुर, मैसूर और हैदराबाद की रियासतों से भारतीय सैनिक शामिल हुए। हैदराबाद रियासत के सैनिक मुस्लिम थे, इसलिए अंग्रेजों ने उन्हें तुर्की के खलीफा के विरुद्ध युद्ध में हिस्सा लेने से रोक दिया. केवल जोधपुर व मैसूर के रणबांकुरों को युद्ध लड़ने का आदेश दिया।
माना जाता है कि इजरायल की आजादी का रास्ता हाइफा की लड़ाई से ही खुला था, जब भारतीय सैनिकों ने सिर्फ भाले, तलवारों और घोड़ों के सहारे ही जर्मनी-तुर्की की मशीनगन से लैस सेना को धूल चटा दी थी। इस युद्ध में भारत के 44 सैनिक शहीद हुए थे।
जांबाज भारतीय जवान
दुश्मन कैंप में भारी-भरकम हथियारों को देखकर ब्रिटिश कमांडर हाइफा के लिए युद्ध करने से कतरा रहे थे क्योंकि भारतीय जवानों के हथियार अधिक कारगर नहीं थे। लेकिन भारतीय जवानों ने पीछे हटने से मना कर दिया। मेजर दलपत सिंह शेखावत के नेतृत्व में भारतीय सेना ने यह युद्ध जीत लिया। मेजर दलपत सिंह इस युद्ध में शहीद हुए जिसके बाद उन्हें हीरो ऑफ हाइफा का दर्जा दिया गया।
साहस की गौरवगाथा
हाइफा युद्ध में भारतीय सैनिकों ने साहस और युद्ध कौशल का अदम्य परिचय दिया। भारतीय सेना ने 1350 जर्मन सैनिकों को बंदी बनाने के साथ 17 बंदूकें, 11 मशीन गन बरामद किए।
अंतिम कैवलरी अभियान
हाइफा युद्ध ऐसा अंतिम युद्ध था जिसमें कैवलरी (घुड़सवार सैनिक दल) के इस्तेमाल से युद्ध जीता गया। प्रथम विश्व युद्ध के समय ऐसे आधुनिक हथियार चलन में आ गए थे, जो कैवलरी से कहीं अधिक सक्षम थे। प्रथम विश्व युद्ध के बाद कैवलरी सैन्य प्रणाली समाप्त हो गई।
पाठ्यक्रम में शामिल शहादत
2012 में हाइफा नगरपालिका ने भारतीय सैनिकों की शहादत को अमर बनाने के लिए उनकी वीरगाथा को स्कूली पाठ्यक्रम में शामिल करने का निर्णय लिया। भारतीय सेना के प्रति सम्मान प्रकट करने के लिए हाइफा में सालाना कार्यक्रम का आयोजन किया जाता है।
तीन मूर्ति चौक
युद्ध समाप्त होने के बाद ब्रिटिश मूर्तिकार लियोनार्ड जेनिंग्स ने 1922 में लुटियन दिल्ली में तीन मूर्ति चौक बनाया। यहाँ लगी तीन मूर्तियाँ जोधपुर, मैसूर और हैदराबाद की सेनाओं की प्रतीक हैं।
दिल्ली के तीन मूर्ति चौक को अब तीन मूर्ति हाइफा के नाम से जाना जाएगा। इसे भारत और इजरायल के संबंधों में मजबूती देने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा एक कदम कहा जा सकता है।
इससे पहले पीएम मोदी ने इजरायल की अपनी ऐतिहासिक यात्रा के अंतिम दिन हाइफा शहर में भारतीय शहीदों को श्रद्धांजलि दी थी। उसके बाद से ही तीन मूर्ति का नाम बदलकर तीन मूर्ति हाइफा करने की बात चल रही थी।
भारतीय सेना हर साल 23 सितंबर को हाइफा दिवस के रूप में मनाती है।