Monday, 15 January 2018

दूसरा दिल्ली दरबार, 1903


सन 1903 में दिल्ली दरबार लॉर्ड कर्जन द्वारा आयोजित किया गया था, जिसमें बादशाह एडवर्ड सप्तम की ताजपोशी की घोषणा की गई। यह दरबार पहले से भी ज्यादा खर्चीला सिद्ध हुआ। इसका कुछ नतीजा नहीं निकला। यह केवल ब्रिटिश सरकार का शक्ति प्रदर्शन ही था।

इतिहास
दूसरा दिल्ली दरबार एडवर्ड सप्तम एवं महारानी एलेक्जैंड्रा को भारत के सम्राट एवं सम्राज्ञी घोषित करने हेतु लगा था। लॉर्ड कर्जन द्वारा दो पूरे सप्ताहों के कार्यक्रम आयोजित करवाये गये थे। यह शान शौकत के प्रदर्शन का एक बड़ा मौका था। इस धूम धाम का मुकाबला ना तो 1877 का, ना ही आने वाला 1911 का दरबार कर पाया। 1902 के अंतिम कुछ ही महीनों में, एक निर्वासित समतल मैदान को एक सुंदर भव्य अस्थायी नगर में परिवर्तित कर दिया गया। इसमें एक अस्थायी छोटी रेलगाड़ी प्रणाली लोगों की बड़ी भीड़ को दिल्ली के बाहर से यहां तक लाने-ले जाने हेतु चलायी गयी थी। एक पोस्ट ऑफिस, जिसकी अपनी मुहर थी; दूरभाष एवं बेतार सुविधाएं, विशेष रूप से निर्धरित वर्दी में एक पुलिस बल, तरह-तरह की दुकानें, अस्पताल, मैजिस्ट्रेट का दरबार, जटिल स्वच्छता प्रणाली, विद्युत प्रकाश प्रयोजन, इत्यादि, बहुत कुछ यहाँ था। इस कैम्प मैदान के स्मरणीय नक्शे एवं मार्गदर्शिकाएँ बांटे गये। विशेष कार्यों के लिये पदक निर्धारण, प्रदर्शनियां, अतिशबाजी एवं भड़कीले नृत्य आयोजन भी किये गये।

हीरे जवाहरातों का प्रदर्शन
लेकिन लॉर्ड कर्जन को गहन निराशा हुई, जब एडवर्ड सप्तम ने इस आयोजन में स्वयं ना आकर, अपने भाई, ड्यूक ऑफ कनाट को भेज दिया। वह बम्बई (वर्तमान मुम्बई) से ट्रेन द्वारा, कई बड़ी हस्तियों सहित एकदम तभी आया, जब कर्जन और उसकी सरकार के लोग दूसरी दिशा से कलकत्ता (वर्तमान कोलकाता) से पहुंचे। उनकी प्रतीक्षारत समूह में हीरे जवाहरातों का शायद सबसे बड़ा प्रदर्शन उपस्थित था। प्रत्येक भारतीय राजकुमार एवं राजा सदियों से संचित जवाहरातों से सजे हुए थे। ये सभी महाराजागण भारत के सभी प्रांतों से आये हुए थे, कई तो आपस में पहली बार मिल रहे थे। वहीं भारतीय सेना ने अपने सेनाध्यक्ष की अगुवाई में परेड निकाली, बैण्ड बजाये एवं जनसाधारण की भीड़ को संभाला।

दरबार की धूमधाम
प्रथम दिन कर्जन इस धूमधाम में हाथी पर सवार महाराजाओं सहित निकला। इनमें से कई हाथियों के दांतों पर सोना मढ़ा हुआ था। दरबार की रस्म नववर्ष के दिन पड़ी, जिसके बाद कई दिनों तक पोलो क्रीड़ा, अन्य खेल, महाभोज, बॉल नृत्य, सेना अवलोकन, बैण्ड, प्रदर्शनियों का तांता चला। इस घटना की चलचित्र स्मृति भारत के सिनेमाघरों में कई दिनों तक चली। यही शायद देश में आरम्भिक फिल्म उद्योग का कारण रहा। आगा खाँ तृतीय ने इस अवसर को भारत पर्यन्त शिक्षण सुविधाओं के प्रसार के बारे में बोलने के लिये प्रयोग किया।

यह घटना अपनी पराकाष्ठा पर तब पहुंची, जब एक महा नृत्य सभा का आयोजन हुआ, जिसमें सभी उच्च श्रेणी के अतिथियों ने भाग लिया एवं स्बसे ऊपर लॉर्ड कर्जन एवं लेडी कर्जन ने अपने जगर-मगर करते जवाहरातों से परिपूर्ण शाही मयूर चोगे में नृत्य किया।