Thursday 29 June 2017

जानें ऑक्सीजन के बारे में




जन्म से 6 सप्ताह तक: 30-60 साँस प्रति मिनट
➢6 महीने: 25-40 साँस प्रति मिनट
➢3 साल: 20-30 साँस प्रति मिनट
➢6 साल: 18-25 साँस प्रति मिनट
➢10 साल: 15-20 साँस प्रति मिनट
➢वयस्क (जवान): 12-20 साँस प्रति मिनट

यदि ऑक्सीजन आज की तुलना में दोगुनी हो जाये तो क्या होगा ?
  1. कागज से बने हवाई जहाज ज्यादा देर तक उडेंगे
  2. हमारी गाड़ियाँ कम पेट्रोल-डीजल में ज्यादा दूर तक जाने लगेगी
  3. हम आज की तुलना में ज्यादा खुश और एक्टिव रहेगे. मतलब, सुस्ती खत्म. खेल-कूद में बने अब तक के सारे रिकाॅर्ड टूट जाएगे
  4. कीड़ो का आकार बहुत बड़ा हो जाएगा, क्योंकि कीटों का आकार ऑक्सीजन पर निर्भर करता है
  5. हम कम बीमार पडेंगे क्योंकि इम्यून सिस्टम और ताकतवर हो जाएगा लेकिन हम बूढ़े जल्दी होने लगेंगे
25. यदि 5 सेकंड के लिए धरती से ऑक्सीजन गायब हो जाए तो क्या होगा ?
  1. 5 सेकंड के लिए धरती बहुत, बहुत ठंडी हो जाएगी
  2. जितने भी लोग समुद्र किनारे लेटे है उन्हें तुरंत सनबर्न होने लगेगा
  3. दिन में भी अंधेरा छा जाएगा
  4. हर वह इंजन रूक जाएगा जिनमें आंतरिक दहन होता है रनवे पर टेक ऑफ कर चुका प्लेन वही क्रैश हो जाएगा
  5. धातुओ के टुकड़े बिना वैल्डिंग के ही आपस में जुड़ जाएगे ऑक्सीजन न होने का यह बहुत रोचक साइड इफेक्ट होगा
  6. पूरी दुनिया में सबके कानों के पर्दे फट जाएगे क्योंकि 21% ऑक्सीजन के अचानक लुप्त होने से हवा का दबाव घट जाएगा सभी का बहरा होना पक्का है
  7. कंक्रीट से बनी हर बिल्डिंग ढेर हो जाएगी
  8. हर जीवित कोशिका फूलकर फूट जाएगी। पानी में 88.8% ऑक्सीजन होती है। ऑक्सीजन ना होने पर हाइड्रोजन गैसीय अवस्था में आ जाएगी और इसका वाॅल्यूम बढ़ जाएगा। हमारी साँसे बाद में रूकेगी, हम फूलकर पहले ही फट जाएँगे
  9. समुंद्रो का सारा पानी भाप बनकर उड़ जाएगा क्योंकि बिना ऑक्सीजन पानी हाइड्रोजन गैस में बदल जाएगा और यह सबसे हल्की गैस होती है तो इसका अंतरिक्ष में उड़ना लाजिमी है
  10. ऑक्सीजन के अचानक गुम होने से हमारे पैरों तले की जमीन खिसककर 10-15 किलोमीटर नीचे चली जाएगी

Tuesday 27 June 2017

सामान्य विज्ञान (भाग-12)




SCIENCE NAME
1.मनुष्य---होमो सैपियंस
2.मेढक---राना टिग्रिना
3.बिल्ली---फेलिस डोमेस्टिका
4.कुत्ता---कैनिस फैमिलियर्स
5.गाय---बॉस इंडिकस
6.भैँस---बुबालस बुबालिस
7.बैल---बॉस प्रिमिजिनियस टारस
8.बकरी---केप्टा हिटमस
9.भेँड़---ओवीज अराइज
10.सुअर---सुसस्फ्रोका डोमेस्टिका
11.शेर---पैँथरा लियो
12.बाघ---पैँथरा टाइग्रिस
13.चीता---पैँथरा पार्डुस
14.भालू---उर्सुस मैटिटिमस कार्नीवेरा
15.खरगोश---ऑरिक्टोलेगस कुनिकुलस
16.हिरण---सर्वस एलाफस
17.ऊँट---कैमेलस डोमेडेरियस
18.लोमडी---कैनीडे
19.लंगुर---होमिनोडिया
20.बारहसिँघा---रुसर्वस डूवासेली
21.मक्खी---मस्का डोमेस्टिका
22.आम---मैग्नीफेरा इंडिका 

INSTRUMENTS
1) अल्टीमीटर → उंचाई सूचित करने हेतु वैज्ञानिक यंत्र
2) अमीटर → विद्युत् धारा मापन
3) अनेमोमीटर → वायुवेग का मापन
4) ऑडियोफोन → श्रवणशक्ति सुधारना
5) बाइनाक्युलर → दूरस्थ वस्तुओं को देखना
6) बैरोग्राफ → वायुमंडलीय दाब का मापन
7) क्रेस्कोग्राफ → पौधों की वृद्धि का अभिलेखन
8) क्रोनोमीटर → ठीक ठीक समय जान्ने हेतु जहाज में लगायी जाने वाली घड़ी
9) कार्डियोग्राफ → ह्रदयगति का मापन
10) कार्डियोग्राम → कार्डियोग्राफ का कार्य में सहयोगी
11) कैपिलर्स → कम्पास
12) डीपसर्किल → नतिकोण का मापन
13) डायनमो→ यांत्रिक ऊर्जा को विद्युत् उर्जा में बदलना
14) इपिडियास्कोप → फिल्मों का पर्दे पर प्रक्षेपण
15) फैदोमीटर → समुद्र की गहराई मापना
16) गल्वनोमीटर → अति अल्प विद्युत् धारा का मापन

Monday 26 June 2017

नदी संरक्षण परियोजनाएं


पृष्ठभूमि
भारतीय संस्कृति में जल के विभिन्न स्रोतों में नदियों को जहाँ सांस्कृतिक रूप से अत्यंत महत्वपूर्ण माना गया है वहीं इसका आध्यात्मिक, सामाजिक और आर्थिक महत्व भी रहा है। वर्तमान में नदियों के प्रवाह क्षेत्र में सिंचाई के लिए भू-जल का अंधाधुंध दोहन, नदियों के किनारे बसे महानगरों एवं कारखानों से उत्सर्जित प्रदूषण तथा जलीय अपशिष्ट के कारण इन नदियों का अस्तित्व खतरे में पड़ गया है। नदियों में प्रदूषण स्तर को कम करने तथा इनके प्रवाह क्षेत्र से भू-जल के दोहन को युक्ति संगत बनाने के लिए सरकार द्वारा चरणबद्ध योजना बनाकर नदियों के संरक्षण का प्रयास किया गया है। नदी संरक्षण परियोजना के अंतर्गत सरकार द्वारा विभिन्न नदियों को संरक्षित करने के लिए अलग-अलग कार्ययोजना का क्रियान्वयन किया जा रहा है। जैसे-नमामि गंगे परियोजना द्वारा गंगा का सफाई अभियान, यमुना एवं उसकी सहायक नदी हिंडन का सफाई अभियान तथा नर्मदा सेवा यात्रा के द्वारा नर्मदा का संरक्षण आदि।

गंगा-कार्ययोजना
  • गंगा नदी का उद्गम गंगोत्री (उत्तराखंड) से होता है। यह नदी चार राज्यों (उ.प्र., उत्तराखंड, बिहार, प. बंगाल) से होकर 2525 किमी. लंबी यात्रा के पश्चात् बंगाल की खाड़ी में मिल जाती है। गंगा के किनारे बसे 25 बड़े नगरों (आबादी एक लाख से अधिक) से नदी के कुल प्रदूषण का तीन-चौथाई भाग घरेलू तथा औद्योगिक कचरे के रूप में आता है। केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड द्वारा वर्ष 1980 में तैयार की गई सर्वेक्षण रिपोर्ट के आधार पर एवं गंगा के प्रदूषण को कम करने के उद्देश्य से भारत सरकार ने फरवरी, 1985 में प्रधानमंत्री राजीव गांधी की अध्यक्षता में केंद्रीय गंगा नदी प्राधिकरण का गठन किया। इस प्राधिकरण में उ.प्र., उत्तराखंड, बिहार एवं बंगाल के मुख्यमंत्रियों को भी शामिल किया गया। इस प्राधिकरण को निम्नलिखित दायित्व सौंपा गया-
  • नदी जल की गुणवत्ता में वृद्धि के लिए नदी में प्रदूषण स्तर को कम करना।
  • नदी की जैव-विविधता को संरक्षित करना तथा समन्वित नदी प्रवाह व्यवस्था के प्रस्ताव को अपनाना।
  • नदी संरक्षण के लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए अनुसंधान करना।
  • अन्य प्रदूषित नदियों के लिए समान कार्ययोजना अपनाने के लिए अनुभव प्राप्त करना।
नमामि गंगे
  • सरकार ने गंगा नदी के प्रदूषण को समाप्त करने और नदी को पुनर्जीवित करने के लिए ‘नमामि गंगे’ नामक एक एकीकृत गंगा संरक्षण मिशन का शुभारंभ किया। केंद्रीय मंत्रिमंडल ने नदी की सफाई के लिए बजट को चार गुना करते हुए वर्ष 2020 तक नदी की सफाई पर 20,000 करोड़ रुपये खर्च करने के लिए केंद्र सरकार की प्रस्तावित कार्ययोजना को मंजूरी दे दी और इसे 100 प्रतिशत केंद्रीय हिस्सेदारी के साथ एक केंद्रीय योजना का रूप दिया गया है।
  • नमामि गंगे कार्यक्रम के तहत 7 जुलाई, 2016 को लघु अवधि एवं मध्यम अवधि की 231 परियोजनाएं शुरू की गई।
  • इस परियोजना के पहले चरण में स्कीमर से इलाहाबाद समेत चार जिलों में गंदगी साफ की जा रही है।
  • नमामि गंगे कार्यक्रम की 20,000 करोड़ रुपये की लागत में 7272 करोड़ रुपये नए कार्यक्रमों के लिए हैं।
  • गंगा सफाई अभियान को सफल बनाने के लिए उत्तर प्रदेश सरकार कानपुर, उन्नाव और कन्नौज के चमड़ा कारखानों को दूसरी जगह स्थानांतरित करने जा रही है।
  • नमामि गंगे परियोजना के तहत गंगा की सफाई 18 से 48 माह के बीच पूरा करने का लक्ष्य है।
  • राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन (NMCG) के तहत 2000 करोड़ रुपये की 26 परियोजनाओं को मंजूरी दी गई।
यमुना-कार्ययोजना
  • यमुना नदी यमुनोत्री ग्लेशियर से निकली है। यमुनोत्री उत्तराखंड राज्य के उत्तर काशी जिले में स्थित है। यमुना नदी की लंबाई इलाहाबाद में मिलने से पहले 1376 किमी. है। यमुना नदी के तट पर बसे शहरों में दिल्ली, आगरा, इटावा, इलाहाबाद प्रमुख हैं। इन औद्योगिक शहरों से निकलने वाला घरेलू एवं औद्योगिक अपशिष्ट यमुना को अत्यधिक प्रदूषित कर रहा है।
    यमुना-कार्ययोजना के अंतर्गत 81 लघु एवं मध्यम औद्योगिक इकाइयों को चिह्नित किया गया है? इन 81 इकाइयों में से 22 हरियाणा में, 42 दिल्ली में और 17 उत्तर प्रदेश में स्थित हैं। इन औद्योगिक इकाइयों में कागज, चीनी, रासायनिक पदार्थ, चमड़ा एवं मदिरा आदि बनाए जाते हैं। इन उद्योगों से निकलने वाला औद्योगिक कचरा एवं दूषित पानी यमुना नदी को विषाक्त बना रहा है। इसलिए यमुना को प्रदूषण से मुक्त करने के लिए निम्नलिखित कार्य प्रस्तावित हैं-
  • नदी के जल का उपचार कर शुद्ध करना।
  • नगर के प्रदूषित जल को नदी में मिलने से रोकना।
  • नदी के किनारे मल-सफाई (Sanitation) का समुचित प्रबंध करना।
  • यमुना के किनारे स्थित दाह-संस्कार स्थल का सुधार करना।
  • नदी के तट पर वृक्षारोपण करना।
  • सामुदायिक हिस्सेदारी के माध्यम से जन-जागरूकता को बढ़ावा देना।
नर्मदा सेवा यात्रा
  • नर्मदा नदी अमरकंटक से शुरू होकर पूर्व-पश्चिम दिशा में विंध्य व सतपुड़ा की पहाड़ियों से गुजरकर अरब सागर में मिलती है। नर्मदा नदी की कुल लंबाई 1289 किमी. है। वर्तमान में नर्मदा नदी से संबंधित संसाधनों के अत्यधिक उपयोग के कारण नदी के संरक्षण हेतु प्रयास किया जाना अत्यंत आवश्यक है। नर्मदा नदी के महत्व एवं संरक्षण की आवश्यकता को दृष्टिगत रखते हुए मध्य प्रदेश शासन द्वारा एक विशेष यात्रा के रूप में ‘नमामि देवि नर्मदे’ का संचालन किए जाने की योजना तैयार की गई है। नर्मदा सेवा यात्रा नर्मदा नदी के उद्गम स्थल अमरकंटक से 11 दिसंबर, 2016 से प्रारंभ होकर अलीराजपुर के सोंडवा से होते हुए अमरकंटक में 15 मई, 2017 को 148 दिनों में समाप्त हुई।
    सर्वेक्षण के अनुसार, नर्मदा नदी के तट पर बसे नगरों और बड़े गांवों के पास लगभग 100 नाले नर्मदा नदी में मिलते हैं। इन नालों से प्रदूषित जल के साथ-साथ शहर का गंदा पानी भी बहकर नदी में मिल जाता है। प्रदूषण की इस समस्या को ध्यान से रखकर मध्य प्रदेश सरकार 4,000 करोड़ रुपये के बजट से नर्मदा की सफाई को लेकर अभियान चला रही है।
    भारत सरकार द्वारा आरंभ की गई कार्य योजना के अंतर्गत नदियों में प्रवाहित किए जाने वाले शहरी एवं औद्योगिक कचरे का प्रबंधन, नदियों के प्रवाह में परिवर्तन तथा जल शोधन पर विशेष बल दिया गया है। इनको साकार रूप प्रदान करने के लिए निम्नलिखित उपाय किए जाने की आवश्यकता है-
  • नदियों के किनारे स्थित शहरों विशेष रूप से नदी तट पर बसे गांवों में सामुदायिक शौचालयों के निर्माण तथा रख-रखाव पर विशेष ध्यान देने की आवश्यकता है।
  • स्वच्छता से संबंधित विभिन्न योजनाओं के अंतर्गत उपलब्ध संसाधनों को नदी कार्ययोजना से समन्वित किया जाना चाहिए।
  • जिन शहरों में सीवर प्रणाली (मल-जल प्रणाली) 40 से 50 प्रतिशत क्षेत्रों में ही उपलब्ध है वहाँ पर सीवर प्रणाली को विकसित करने का प्रयास किया जाना चाहिए।
  • अधिकांश मल-निस्तारण संयंत्रों की क्षमता इनकी योजना बनाने के समय तात्कालिक तौर पर उपलब्ध सीवेज के आधार पर निर्धारित की जाती हैं किंतु पूर्ण होने तक वह क्षमता सामान्यतया कम पड़ जाती है। अतः इसकी क्षमता की
  • परिकल्पना कम-से-कम 10 से 15 वर्षों के लिए की जानी चाहिए।

Friday 23 June 2017

अंतरिक्ष में ISRO ने फिर बनाया इतिहास, एक साथ 31 उपग्रह का प्रक्षेपण सफल


भारत अंतरिक्ष संगठन (इंडियन स्पेस रिसर्च ऑर्गनाइजेशन) (ISRO) ने शुक्रवार को एक और सफल उपग्रह प्रक्षेपण किया। श्रीहरिकोटा स्थित लॉन्चपैड से कार्टोसैट-2s उपग्रह के साथ 30 नैनो उपग्रह को PSLV-C38 लॉन्च वीइकल से छोड़ा गया। प्रक्षेपण के समय इसरो के चेयरमैन एएस किरन कुमार भी मौजूद थे। उन्होंने साथी वैज्ञानिकों को बधाई दी। इस प्रक्षेपण के साथ ही इसरो की ओर से कुल अंतरिक्ष अभियानों की संख्या 90 हो गई। 
धरती पर नजर रखने के लिए प्रक्षेपण किए गए 712 किलोग्राम वजनी कार्टोसैट-2 श्रृंखला के इस उपग्रह के साथ करीब 243 किलोग्राम वजनी 30 अन्य नैनो उपग्रह को एक साथ प्रक्षेपित किया गया। सभी उपग्रहों का कुल वजन करीब 955 किलोग्राम है। साथ भेजे जा रहे इन उपग्रहों में भारत के अलावा ऑस्ट्रिया, बेल्जियम, चिली, चेक गणराज्य, फिनलैंड, फ्रांस, जर्मनी, इटली, जापान, ब्रिटेन और अमेरिका समेत 14 देशों के नैनो उपग्रह शामिल हैं। 29 विदेशी, जबकि एक नैनो उपग्रह भारत का है। भारत के नैनौ उपग्रह का नाम NIUSAT है, जिसका वजन महज 15 किलोग्राम है। यह खेती के क्षेत्र में निगरानी और आपदा प्रबंधन में काम आएगा। बता दें कि भारतीय सेना को भी इस उपग्रह प्रक्षेपण से फायदा होगा। निगरानी से जुड़ी ताकत बढ़ेगी। आतंकी कैंपों और बंकर्स की पहचान उनपर नजर रखने में मदद मिलेगी। 
एक बार कक्षा में स्थापित हो जाने के बाद इसरो का मकसद इन सभी उपग्रह को चालू कर देना है। हालांकि, इन अंतरिक्ष यानों को स्पेस में घूम रहे मलबों से टकराने से रोकना एजेंसी की सर्वोच्च प्राथमिकता है। यह मलबा पुराने खराब हो चुके उपग्रह, रॉकेट के हिस्से, अंतरिक्ष यान के विभिन्न चरणों के प्रक्षेपण के दौरान अलग हुए टुकड़े आदि होता है। अंतरिक्ष में तैरते ये मलबे बेहद खतरनाक होते हैं क्योंकि इनकी रफ्तार 30 हजार किमी प्रति घंटे तक होती है। कभी-कभी ये इतने छोटे या नुकीले होते हैं, जो उपग्रह, अंतरिक्ष यानों और यहां तक कि अंतरिक्ष स्टेशनों तक के लिए बेहद खतरनाक होते हैं। 
इन उपग्रह की हिफाजत के लिए इसरो कई जरूरी कदम उठाता है। भारतीय एजेंसी अंतरराष्ट्रीय इंटर एजेंसी स्पेस डेबरीज कोऑर्डिनेशन कमिटी (IADC) का सदस्य है। यह कमिटी मानव निर्मित और प्राकृतिक अंतरिक्ष मलबे को कम करने की दिशा में काम करती है। इसका मकसद एजेंसियों के बीच मलबों से जुड़ी जानकारी का आदान-प्रदान है। इसके अलावा, मलबे की पहचान और इनसे जुड़ी रिसर्च को भी बढ़ावा देना है।
इन मलबों पर नजर रखने के लिए इसरो मल्टी ऑब्जेक्ट ट्रैकिंग रेडार (MOTR) पर भी निर्भर है। यह 2015 से काम कर रहा है। यह रेडार एक साथ 30 सेमीx30 सेमी साइज के 10 टुकड़ों को 800 किमी की दूरी से ट्रैक कर सकता है। अगर टुकड़ों की साइज 50x50 सेमी है तो उनकी पहचान 1000 किमी की दूरी से किया जा सकता है। जानकारों का मानना है कि भारत जिस तरह एक प्रक्षेपण में कई उपग्रह छोड़ रहा है, इससे भी अंतरिक्ष में मलबे की तादाद कम हो रही है।

जानें GST को सरल रूप में



वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) एकीकृत कर प्रणाली है। इसमें सभी अप्रत्यक्ष कर को मिला दिया गया है। अब हर राज्य में अलग-अलग कर नहीं लगेगा बल्कि देशभर के लिए एक जीएसटी होगा।

क्या जीएसटी उपभोक्ता को भी देना होगा?
इसमें सेवा कर भी शामिल है। इसलिए एसी रेस्त्रां में खाने, ट्रेन-हवाई यात्रा और अन्य सेवाओं पर उपभोक्ता को भी जीएसटी चुकाना होगा। लेकिन इसे संबंधित सेवा प्रदाता वसूलेंगे और जमा करेंगे।

क्या जीएसटी में सबको रिटर्न भरना होगा?
नहीं। केवल 20 लाख रुपये से अधिक का कारोबार करने वाले व्यक्ति या संस्थाएं ही जीएसटी चुकाएंगी।

आम आदमी को जीएसटी से कैसे फायदा होगा?
एक कर होने से कर के ऊपर कर नहीं चुकाना पड़ेगा। इससे वस्तु एवं सेवाएं सस्ती होंगी।

क्या बिक्री कर और वैट अलग से चुकाना होगा?
नहीं। जीएसटी में बिक्री कर, उत्पाद शुल्क, और मूल्यवर्द्धित कर (वैट) सबको मिल दिया गया है। इसलिए इन्हें अलग से चुकाने की जरूरत नहीं होगी।

क्या जीएसटी से चुंगी कर खत्म हो जाएगा?
हाँ। अब राज्यों में प्रवेश कर (चुंगी) खत्म हो जाएगा। इसे भी जीएसटी में मिला दिया गया है।

जीएसटी से मकान के दाम बढ़ेंगे या कम होंगे?
इससे मकान के दाम घटेंगे। वर्तमान में निर्माणाधीन मकान पर 4.5 फीसदी का सेवा कर लगता है जो जीएसटी में बढ़कर 12 फीसदी हो जाएगा। इसके बावजूद मकान के दाम घटेंगे क्योंकि अभी निर्माण सामग्री पर उत्पाद शल्क, वैट और चुंगी कर है। लेकिन वतर्मान समय में इनका कोई इनपुट क्रेडिट (रिफंड) नहीं मिलता है। जबकि जीएसटी में पूरा क्रेडिट मिलेगा और बिल्डर इन सब चीजों पर जो कर चुकाएगा वह उसे वापस मिल जाएगा।

हर माह की बिक्री का रिटर्न भरने की तारीख क्या होगी?
जीएसटी कानून के तहत एक महीने में की गई सभी प्रकार की बिक्री या कारोबार के लिए रिटर्न अगले महीने की 10 तारीख तक भरनी है। इसीलिए अगर जीएसटी 1 जुलाई से लागू होता है, तो बिक्री का आंकड़ा 10 अगस्त तक अपलोड करना है।

क्या रिटर्न के लिए कोई प्रारूप है जिसे देखकर रिटर्न भरा जा सकेगा?
25 जून तक जीएसटीएन पोर्टल पर एक्सेल शीट जारी की जाएगी। इससे करदाताओं को उस प्रारूप के बारे में पता चलेगा जिसमें सूचना देनी है।

रिटर्न का ब्योरा भरने का तरीका क्या होगा?
एक्सेल शीट में कंपनियों को रसीद (इनवायस) संख्या, खरीदार का जीएसटीआईएन, बेचे गये सामान या सेवाएं, वस्तुओं का मूल्य या बिक्री की गई सेवाएं, कर प्रभाव तथा भुगतान किए गये कर जैसे लेन-देन का ब्योरा देना होगा।

रिटर्न फॉर्म कब से मिलना शुरू होगा?
जीएसटी रिटर्न फार्म जुलाई के मध्य में उपलब्ध कराया जाएगा।

किराने की दुकान में ग्राहक पांच-10 रुपए का भी सामान खरीदते हैं। क्या उनका भी बिल बनाना पड़ेगा?
खरीदार बिल मांगता है तो उसे देना पड़ेगा। नहीं चाहिए तो 200 रुपए से कम के सभी लेन-देन के बदले पूरे दिन में एक बिल बना सकते हैं। इनके खरीदार आम ग्राहक यानी अनरजिस्टर्ड होने चाहिए।

क्या सबको एक जैसा बिल बनाना है?
नहीं। जीएसटी करदाता इसका डिजाइन तैयार करने के लिए स्वतंत्र हैं। हालांकि, बिल बनाने के नियम के मुताबिक कुछ जरूरी जानकारियां उस पर होनी चाहिए।

जीएसटीएन पर पंजीकरण दोबारा कब शुरू होगा?
25 जून से जीएसटीएन पर पंजीकरण शुरू होगा।

क्या जीएसटी के लिए हमेशा इंटरनेट की जरूरत?
नहीं। केवल जीएसटी रिटर्न के लिए महीने में एक बार इंटरनेट की जरूरत होगी। हर रोज कंप्यूटर पर ब्योरा दर्ज करने की भी जरूरत नहीं है।

बिल ऑफ सप्लाई क्या है? कौन जारी करेगा?
कर से छूट वाली वस्तुएं एवं सेवाओं के लिए जो बिल बनेगा उसे बिल ऑफ सप्लाई कहा जाएगा। पंजीकृत व्यक्ति बिल की जगह इसे जारी करेगा। इसमें भी आम ग्राहक (अनरजिस्टर्ड ) व्यक्ति को 200 रुपए से कम की आपूर्ति के लिए बिल जरूरी नहीं है।

रिसीट और रिफंड वाउचर क्या है?
पंजीकृत कारोबारी को किसी वस्तु एवं सेवा के लिए अग्रिम (एडवांस) भुगतान मिलता है तो उसके बदले उसे रिसीट वाउचर बनाना पड़ेगा। बाद में वस्तु एवं सेवा की आपूर्ति नहीं हुई तो पैसे लौटाते वक्त रिफंड वाउचर बनेगा।

क्रेडिट और डेबिट नोट कब जारी होंगे?
आपूर्तिकर्ता ने जिस कीमत का कर का बिल बनाया और बाद में पता चला कि कीमत कम है। तब वह क्रेडिट नोट जारी करेगा। इसी तरह यदि बाद में पता चलता है कि कीमत ज्यादा है तो डेबिट नोट जारी होगा। इसी तरह खरीदार ने सामान लौटाया या सामान की मात्रा कम निकली तब भी आपूर्तिकर्ता क्रेडिट नोट जारी करेगा।

क्या छोटे कारोबारियों के लिए बिल पर प्रोडक्ट कोड नंबर (एचएसएन) लिखना जरूरी है?
नहीं। जिनका सालाना कारोबार 1.5 करोड़ रुपए तक है उन्हें बिल पर एचएसएन कोड लिखने की जरूरत नहीं है।

Thursday 22 June 2017

Current Affairs in Hindi, (भाग-49)


"जीएसटी"


जीएसटी यानि गुड्स एंड सर्विसेज टैक्स अब हकीकत बनने के बेहद करीब है। ये एक ऐसा टैक्स है जो टैक्स के भारी जाल से मुक्ति दिलाएगा। जीएसटी आने के बाद बहुत सी चीजें सस्ती हो जाएगी, हांलाकि कुछ जेब पर भारी भी पड़ेंगी। लेकिन सबसे बड़ा फायदा होगा कि टैक्स का पूरा सिस्टम आसान हो जाएगा। 18 से ज्यादा टैक्सों से मिलेगी मुक्ति और पूरे देश में होगा सिर्फ एक टैक्स जीएसटी। जाहिर है जीएसटी को लेकर सभी के मन में ढेर सारे सवाल उठ रहे होंगे कि आखिर कैसे काम करेगा ये जीएसटी।
अगर हम कहें कि कार सस्ती हो जाएगी। रेस्तरां में खाना जेब पर भारी नहीं पड़ेगा। तो शायद आप यकीन नहीं करेंगे। क्योंकि इस महंगाई के दौर में हर चीजें महंगी हो रही हैं तो ये सब सस्ता कैसे हो जाएगा। लेकिन ऐसा मुमकिन है। और वो सब जीएसटी यानी गुड्स एंड सर्विस टैक्स की बदौलत। जी हाँ ये वही जीएसटी है जिसे लेकर इन दिनों संसद से लेकर सड़क तक चर्चा हो रही है। लेकिन आखिर ये जीएसटी है क्या और इससे हमारी आपकी जिदंगी पर क्या असर पड़ने वाला है। ये जानना बेहद जरूरी है। हम बेहद आसान तरीके से समझा रहे हैं जीएसटी की बारीकियाँ।
क्या आपने कभी सोचा है कि जो सामान आप खरीदते हैं उसपर आप कितना टैक्स भरते हैं। और कितने तरह के टैक्स भरते हैं। शायद नहीं। जानेंगे तो शायद आप हैरान रह जाएंगे। आप तक पहुंचने से पहले सामान पहले फैक्ट्री में बनता है। फैक्ट्री से निकलते ही इस पर सबसे पहले लगती है एक्साइज ड्यूटी। कई मामलों में एडिशनल एक्साइज ड्यूटी भी लगती है। इसके अलावा आपके टैक्स का एक बड़ा हिस्सा होता है सर्विस टैक्स। अगर रेस्तरां में खाना खाते हैं, मोबाइल बिल मिलता है या क्रेडिट कार्ड का बिल आता है, तो हर जगह ये लगाया जाता है जो 14.5 फीसदी तक होता है।
जैसे ही सामान एक राज्य से दूसरे राज्य में जाता है तो सबसे पहले देना होता है एंट्री टैक्स। इसके अलावा अलग-अलग मामलों में अलग-अलग सेस भी लगता है। एंट्री टैक्स के बाद उस राज्य में वैट यानी सेल्स टैक्स लगता है। जो अलग-अलग राज्य में अलग-अलग होता है। इसके अलावा अगर इन सामान का नाता रिश्ता अगर एंटरटेनमेंट से है तो एंटरटेनमेंट या लग्जरी टैक्स भी लगता है। साथ ही कई मामलों में परचेज टैक्स भी देना होता है।
टैक्स का सिलसिला यहीं नही रुकता। अभी तो हमने सिर्फ वो टैक्स बताएं हैं जो बड़े-बड़े हैं। बल्कि कई टैक्स तो ऐसे हैं जो हमने गिनाए ही नहीं। एक रिपोर्ट के मुताबिक अलग-अलग 18 टैक्स आमतौर पर लगते हैं। लेकिन जीएसटी आने के बाद ही ये सारे टैक्स एक झटके में खत्म हो जाएंगे। और इसकी जगह लगेगा सिर्फ और सिर्फ एक टैक्स जीएसटी यानी गुड्स एंड सर्विस टैक्स।
अब आप पूछेंगे कि क्या सिर्फ टैक्स की संख्या कम होगी या टैक्स भी कम होगा। सरकार ने पिछले दिनों एक रिपोर्ट तैयार कराई थी उसमें कहा गया था कि अभी औसतन 24 फीसदी टैक्स सामान पर लगता है। लेकिन जीएसटी के बाद अगर स्टैंडर्ड रेट लगाएं तो ये 17-18 फीसदी रह जाएगा। है ना काम की बात।
जीएसटी लागू होने से क्या सस्ता होगा और क्या महंगा। ये तो तब फाइनल होगा जब सरकार ये तय कर देगी कि किस सामान पर जीएसटी के तहत टैक्स की दरें क्या होंगी। इस बीच काफी हद तक संभावना है कि सरकार अरविंद सुब्रह्मणियम कमेटी की सिफारिशों को ही आधार बनाए। कमेटी के मुताबिक जीएसटी के तहत टैक्स की न्यूनतम दर 12 फीसदी रखी जाए। और टैक्स छूट का दायरा कम किया जाए। इन सिफारिशों को अगर मान लिया गया तो कई सामान पर जिन पर अभी टैक्स नहीं लगता है या फिर बहुत कम टैक्स लगता है वो महंगी हो जाएंगी।
मसलन, चाय, कॉफी, कई डब्बा बंद फूड प्रोडक्ट महंगे हो सकते हैं। इन प्रोडक्ट पर अभी या तो ड्यूटी नहीं लगती है या फिर जहां लगती है वो मुश्किल से 4-6 फीसदी तक होती है। लेकिन अगर सरकार लोअर रेट पर भी जीएसटी लगती है तो वो 12 फीसदी हो जाएगी। इसी तरह जेम्स एंड ज्वैलरी महंगी हो सकती है। जिस पर अभी मुश्किल से कुल ड्यूटी 3 फीसदी लगती है। रेडिमेड गारमेंट महंगे हो सकते हैं क्योंकि अभी इन पर 4-5 फीसदी का स्टेट वैट लगता है।
एक और चीज जिसका महंगा होना लगभग तय है वो है सर्विसेज। यानी मोबाइल फोन का बिल, क्रेडिट कार्ड का बिल या फिर ऐसी दूसरी सेवाएं महंगी हो सकती हैं। क्योंकि अभी सर्विसेज पर अधिकतम 14.5 फीसदी सर्विस टैक्स लगता है। लेकिन जीएसटी लागू होने के बाद ये 18 फीसदी तक हो सकता है।
इतना ही नहीं आप अभी कंपनियों के भारी भरकम डिस्काउंट का जितना फायदा उठाते हैं जीएसटी लागू होने के बाद उतना फायदा नहीं उठा सकेंगे। क्योंकि अभी डिस्काउंट के बाद जो कीमत होती है उस पर टैक्स लगता है। लेकिन जीएसटी के तहत छूट के बाद की कीमत पर नहीं बल्कि एमआरपी पर टैक्स लगेगा। मसलन, अगर 10000 रुपये का सामान कंपनी आपको 5000 रुपये में देती है तो अभी आपको करीब 600 रुपये टैक्स देने पड़ता है लेकिन जीएसटी लागू होने के बाद आपको 1200 रुपये टैक्स चुकाना पड़ सकता है।
अब बारी है सस्ते सामानों की। अगर आप छोटी कारें या फिर मिनी एसयूवी खरीदना चाहते हैं तो बता दें कि जीएसटी लागू होने के साथ ये 45000 रुपये तक सस्ती हो जाएंगी। क्योंकि अभी इन गाड़ियों पर कुल 30-44 फीसदी तक टैक्स लगता है। लेकिन जीएसटी के तहत इन पर स्टैंडर्ड रेट 18 फीसदी टैक्स लगने की संभावना है। रेस्तरां का बिल भी कम हो जाएगा। क्योंकि अभी रेस्तरां में वैट और सर्विस टैक्स दोनों लगता है। लेकिन जीएसटी के तहत सिर्फ एक टैक्स लगेगा।
इसी तरह घर खरीदना हो या फिर ऐसी कोई दूसरी लेनदेन करनी हो जहां वैट और सर्विस टैक्स दोनों लगते हैं, जीएसटी लगने के बाद ये सस्ता हो सकता है। एयरकंडीशन, पंखे, माइक्रोवेव ओवन, फ्रीज, वाशिंग मशीन जैसे कंज्यूमर ड्यूरेबल्स सस्ते हो सकते हैं। क्योंकि अभी इन पर सामान्य तौर पर 12.5 फीसदी एक्साइज ड्यूटी लगती है जबकि 14.5 फीसदी तक वैट लगता है जबकि जीएसटी लागू होने के बाद सिर्फ एक टैक्स 17-18 फीसदी लगेगा। हालांकि किस सामान पर कितना टैक्स लगाया जाएगा ये फैसला जीएसटी काउंसिल करेगी। जिसमें केंद्र और राज्य के प्रतिनिधि भी शामिल होंगे। और इसपर अभी लंबी चौड़ी बहस होना बाकी है।

वन बेल्ट वन रोड (OBOR) परियोजना क्या है और भारत इसका विरोध क्यों कर रहा है?


OBOR परियोजना 
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OBOR परियोजना (इसे सदी की सबसे बड़ी परियोजना भी कहा जा रहा है) में दुनिया के 65 देशों को कई सड़क मार्गों, रेल मार्गों और समुद्र मार्गों से देशों को जोड़ने का प्रस्ताव हैl इन 65 देशों में विश्व की आधे से ज्यादा (करीब 4.4 अरब) आबादी रहती हैl वन बेल्ट वन रोड परियोजना का उद्देश्य एशियाई देशों, अफ्रीका, चीन और यूरोप के बीच कनेक्टिविटी और सहयोग में सुधार लाना है। यह रास्ता चीन के जियान प्रांत से शुरू होकर रुस, उज्बेकिस्तान, कजाकस्तान, ईरान, टर्की, से होते हुए यूरोप के देशों पोलैंड उक्रेन, बेल्जियम, फ़्रांस को सड़क मार्ग से जोड़ते हुए फिर समुद्र मार्ग के जरिए एथेंस, केन्या, श्रीलंका, म्यामार, जकार्ता, कुआलालंपुर होते हुए जिगंझियांग (चीन) से जुड़ जाएगा। इस प्रोजेक्ट के पूरा होने में करीब 30 साल लग सकते हैं और इसके 2049 तक पूरा होनी की उम्मीद हैl

OBOR में कितनी लागत आयेगी
रेशम मार्ग कोष का गठन 2014 में में किया गया जिसका मकसद बुनियादी ढांचा परियोजनाओं के लिए धन की व्यवस्था करना था l ‘वन बेल्ट वन रोड’ परियोजना में कुल खर्च 1400 अरब डॉलर आएगा l चीन रेशम मार्ग कोष के लिये 100 अरब यूआन (14.5 अरब डालर) का योगदान करेगाl इस योगदान के साथ इसका आकार 55 अरब डालर हो जाएगा तथा 8.75 अरब डालर की वित्तीय सहायता ‘वन बेल्ट वन रोड’ प्रोजेक्ट में शामिल देशों को दी जाएगीl

OBOR परियोजना पर भारत की क्या आपत्ति है?
चीन की ‘वन बेल्ट वन रोड’ परियोजना को लेकर भारत के विरोध की प्रमुख वजह चीन-पाकिस्तान आर्थिक कॉरिडोर (सीपीईसी) है, जो कि ओबीओआर (OBOR) प्रोजेक्ट का एक हिस्सा है। यह कॉरिडोर पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर (POK) के गिलगित- बाल्टिस्तान से होकर गुजरता है, जिस पर भारत अपना हक जताता रहा है और चीन ने इस गलियारे के लिए भारत से इजाजत नहीं ली, जो कि भारत की संप्रभुता का उल्लंघन है।
OBOR प्रोजेक्ट में चीन को भारत के सहयोग की सख्त जरुरत इसलिए है क्योंकि वर्तमान में भारत के अमेरिका के साथ मधुर रिश्ते हैं और भारत इस मधुरता के कारण यूरोप के कई देशों को इस परियोजना में शामिल न होने के लिए राजी कर सकता है क्योंकि यूरोप के ज्यादात्तर देश अमेरिका की बात मानते हैl यूरोपियन यूनियन के सदस्य फ्रांस, जर्मनी, एस्टोनिया, यूनान, पुर्तगाल और ब्रिटेन यूरोपीय संघ के उन देशों में से हैं जिन्होंने इस मसौदे को अस्वीकार कर दिया हैl अपुष्ट खबरों में यह भी सामने आया है कि सभी यूरोपीय देशों ने निर्णय किया है कि वे इस मसौदे को अस्वीकार करेंगे क्योंकि उनका मानना है कि इसमें यूरोपीय संघ की सामाजिक और पर्यावरणीय मानकों से संबद्ध चिंताओं को नहीं सुलझाया गया हैl

सिल्क रूट क्या है?
सिल्क रूट को प्राचीन चीनी सभ्यता के व्यापारिक मार्ग के रूप में जाना जाता हैl 200 साल ईसा पूर्व से दूसरी शताब्दी के बीच हन राजवंश के शासन काल में रेशम का व्यापार बढ़ाl 5वीं से 8वीं सदी तक चीनी, अरबी, तुर्की, भारतीय, पारसी, सोमालियाई, रोमन, सीरिया और अरमेनियाई आदि व्यापारियों ने इस सिल्क रूट का काफी इस्तेमाल किया। ज्ञातब्य है कि इस मार्ग पर केवल रेशम का व्यापार नहीं होता था बल्कि इससे जुड़े सभी लोग अपने-अपने उत्पादों जैसे घोड़ों इत्यादि का व्यापार भी करते थे l
कालांतर में जब सड़क के रास्ते व्यापार करना खतरनाक हो गया तो यह व्यापार समुद्र के रास्ते होने लगाl साल 2014 में यूनेस्को ने इसी पुराने सिल्क रूट के एक हिस्से को विश्व धरोहर के रूप में मान्यता भी दी।

प्रोजेक्ट में कौन कौन सी मुश्किलें होंगी
OBOR के समंदर मार्ग पर साउथ एशिया सी के विवाद का साया होगाl साउथ एशिया सी को लेकर चीन का जापान समेत कई देशों के साथ विवाद हैl प्रोजेक्ट के लिहाज से एक बड़ा खतरा सुरक्षा का भी हैl चीन पाकिस्तान आर्थिक गलियारा के लिए तालिबान समेत कई आतंकी संगठन भी बड़ा खतरा बन सकते हैंl यूरोप के कई बड़े देश इस परियोजना से दूरी बनाने पर विचार कर रहे हैं क्योंकि उनके आर्थिक और पर्यावरणीय हितों का ध्यान नही रखा गया हैl


भारत OBOR परियोजना का हिस्सा नही बना है और एशिया महाद्वीप में भारत अकेला न पड़े इसलिए उसने रूस के साथ 7200 किलोमीटर लंबा ग्रीन कॉरिडोर बनाने की तैयारी शुरू कर दी हैl यह ग्रीन कॉरिडोर भारत और रूस की दोस्ती के 70 साल पूरे होने के मौके पर शुरू होगाl यह ग्रीन कॉरिडोर ईरान होते हुए भारत और रूस को जोड़ेगाl इसके साथ ही भारत यूरोप से भी जुड़ेगाl