Thursday 22 June 2017

वन बेल्ट वन रोड (OBOR) परियोजना क्या है और भारत इसका विरोध क्यों कर रहा है?


OBOR परियोजना 
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OBOR परियोजना (इसे सदी की सबसे बड़ी परियोजना भी कहा जा रहा है) में दुनिया के 65 देशों को कई सड़क मार्गों, रेल मार्गों और समुद्र मार्गों से देशों को जोड़ने का प्रस्ताव हैl इन 65 देशों में विश्व की आधे से ज्यादा (करीब 4.4 अरब) आबादी रहती हैl वन बेल्ट वन रोड परियोजना का उद्देश्य एशियाई देशों, अफ्रीका, चीन और यूरोप के बीच कनेक्टिविटी और सहयोग में सुधार लाना है। यह रास्ता चीन के जियान प्रांत से शुरू होकर रुस, उज्बेकिस्तान, कजाकस्तान, ईरान, टर्की, से होते हुए यूरोप के देशों पोलैंड उक्रेन, बेल्जियम, फ़्रांस को सड़क मार्ग से जोड़ते हुए फिर समुद्र मार्ग के जरिए एथेंस, केन्या, श्रीलंका, म्यामार, जकार्ता, कुआलालंपुर होते हुए जिगंझियांग (चीन) से जुड़ जाएगा। इस प्रोजेक्ट के पूरा होने में करीब 30 साल लग सकते हैं और इसके 2049 तक पूरा होनी की उम्मीद हैl

OBOR में कितनी लागत आयेगी
रेशम मार्ग कोष का गठन 2014 में में किया गया जिसका मकसद बुनियादी ढांचा परियोजनाओं के लिए धन की व्यवस्था करना था l ‘वन बेल्ट वन रोड’ परियोजना में कुल खर्च 1400 अरब डॉलर आएगा l चीन रेशम मार्ग कोष के लिये 100 अरब यूआन (14.5 अरब डालर) का योगदान करेगाl इस योगदान के साथ इसका आकार 55 अरब डालर हो जाएगा तथा 8.75 अरब डालर की वित्तीय सहायता ‘वन बेल्ट वन रोड’ प्रोजेक्ट में शामिल देशों को दी जाएगीl

OBOR परियोजना पर भारत की क्या आपत्ति है?
चीन की ‘वन बेल्ट वन रोड’ परियोजना को लेकर भारत के विरोध की प्रमुख वजह चीन-पाकिस्तान आर्थिक कॉरिडोर (सीपीईसी) है, जो कि ओबीओआर (OBOR) प्रोजेक्ट का एक हिस्सा है। यह कॉरिडोर पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर (POK) के गिलगित- बाल्टिस्तान से होकर गुजरता है, जिस पर भारत अपना हक जताता रहा है और चीन ने इस गलियारे के लिए भारत से इजाजत नहीं ली, जो कि भारत की संप्रभुता का उल्लंघन है।
OBOR प्रोजेक्ट में चीन को भारत के सहयोग की सख्त जरुरत इसलिए है क्योंकि वर्तमान में भारत के अमेरिका के साथ मधुर रिश्ते हैं और भारत इस मधुरता के कारण यूरोप के कई देशों को इस परियोजना में शामिल न होने के लिए राजी कर सकता है क्योंकि यूरोप के ज्यादात्तर देश अमेरिका की बात मानते हैl यूरोपियन यूनियन के सदस्य फ्रांस, जर्मनी, एस्टोनिया, यूनान, पुर्तगाल और ब्रिटेन यूरोपीय संघ के उन देशों में से हैं जिन्होंने इस मसौदे को अस्वीकार कर दिया हैl अपुष्ट खबरों में यह भी सामने आया है कि सभी यूरोपीय देशों ने निर्णय किया है कि वे इस मसौदे को अस्वीकार करेंगे क्योंकि उनका मानना है कि इसमें यूरोपीय संघ की सामाजिक और पर्यावरणीय मानकों से संबद्ध चिंताओं को नहीं सुलझाया गया हैl

सिल्क रूट क्या है?
सिल्क रूट को प्राचीन चीनी सभ्यता के व्यापारिक मार्ग के रूप में जाना जाता हैl 200 साल ईसा पूर्व से दूसरी शताब्दी के बीच हन राजवंश के शासन काल में रेशम का व्यापार बढ़ाl 5वीं से 8वीं सदी तक चीनी, अरबी, तुर्की, भारतीय, पारसी, सोमालियाई, रोमन, सीरिया और अरमेनियाई आदि व्यापारियों ने इस सिल्क रूट का काफी इस्तेमाल किया। ज्ञातब्य है कि इस मार्ग पर केवल रेशम का व्यापार नहीं होता था बल्कि इससे जुड़े सभी लोग अपने-अपने उत्पादों जैसे घोड़ों इत्यादि का व्यापार भी करते थे l
कालांतर में जब सड़क के रास्ते व्यापार करना खतरनाक हो गया तो यह व्यापार समुद्र के रास्ते होने लगाl साल 2014 में यूनेस्को ने इसी पुराने सिल्क रूट के एक हिस्से को विश्व धरोहर के रूप में मान्यता भी दी।

प्रोजेक्ट में कौन कौन सी मुश्किलें होंगी
OBOR के समंदर मार्ग पर साउथ एशिया सी के विवाद का साया होगाl साउथ एशिया सी को लेकर चीन का जापान समेत कई देशों के साथ विवाद हैl प्रोजेक्ट के लिहाज से एक बड़ा खतरा सुरक्षा का भी हैl चीन पाकिस्तान आर्थिक गलियारा के लिए तालिबान समेत कई आतंकी संगठन भी बड़ा खतरा बन सकते हैंl यूरोप के कई बड़े देश इस परियोजना से दूरी बनाने पर विचार कर रहे हैं क्योंकि उनके आर्थिक और पर्यावरणीय हितों का ध्यान नही रखा गया हैl


भारत OBOR परियोजना का हिस्सा नही बना है और एशिया महाद्वीप में भारत अकेला न पड़े इसलिए उसने रूस के साथ 7200 किलोमीटर लंबा ग्रीन कॉरिडोर बनाने की तैयारी शुरू कर दी हैl यह ग्रीन कॉरिडोर भारत और रूस की दोस्ती के 70 साल पूरे होने के मौके पर शुरू होगाl यह ग्रीन कॉरिडोर ईरान होते हुए भारत और रूस को जोड़ेगाl इसके साथ ही भारत यूरोप से भी जुड़ेगाl