Monday, 26 June 2017

नदी संरक्षण परियोजनाएं


पृष्ठभूमि
भारतीय संस्कृति में जल के विभिन्न स्रोतों में नदियों को जहाँ सांस्कृतिक रूप से अत्यंत महत्वपूर्ण माना गया है वहीं इसका आध्यात्मिक, सामाजिक और आर्थिक महत्व भी रहा है। वर्तमान में नदियों के प्रवाह क्षेत्र में सिंचाई के लिए भू-जल का अंधाधुंध दोहन, नदियों के किनारे बसे महानगरों एवं कारखानों से उत्सर्जित प्रदूषण तथा जलीय अपशिष्ट के कारण इन नदियों का अस्तित्व खतरे में पड़ गया है। नदियों में प्रदूषण स्तर को कम करने तथा इनके प्रवाह क्षेत्र से भू-जल के दोहन को युक्ति संगत बनाने के लिए सरकार द्वारा चरणबद्ध योजना बनाकर नदियों के संरक्षण का प्रयास किया गया है। नदी संरक्षण परियोजना के अंतर्गत सरकार द्वारा विभिन्न नदियों को संरक्षित करने के लिए अलग-अलग कार्ययोजना का क्रियान्वयन किया जा रहा है। जैसे-नमामि गंगे परियोजना द्वारा गंगा का सफाई अभियान, यमुना एवं उसकी सहायक नदी हिंडन का सफाई अभियान तथा नर्मदा सेवा यात्रा के द्वारा नर्मदा का संरक्षण आदि।

गंगा-कार्ययोजना
  • गंगा नदी का उद्गम गंगोत्री (उत्तराखंड) से होता है। यह नदी चार राज्यों (उ.प्र., उत्तराखंड, बिहार, प. बंगाल) से होकर 2525 किमी. लंबी यात्रा के पश्चात् बंगाल की खाड़ी में मिल जाती है। गंगा के किनारे बसे 25 बड़े नगरों (आबादी एक लाख से अधिक) से नदी के कुल प्रदूषण का तीन-चौथाई भाग घरेलू तथा औद्योगिक कचरे के रूप में आता है। केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड द्वारा वर्ष 1980 में तैयार की गई सर्वेक्षण रिपोर्ट के आधार पर एवं गंगा के प्रदूषण को कम करने के उद्देश्य से भारत सरकार ने फरवरी, 1985 में प्रधानमंत्री राजीव गांधी की अध्यक्षता में केंद्रीय गंगा नदी प्राधिकरण का गठन किया। इस प्राधिकरण में उ.प्र., उत्तराखंड, बिहार एवं बंगाल के मुख्यमंत्रियों को भी शामिल किया गया। इस प्राधिकरण को निम्नलिखित दायित्व सौंपा गया-
  • नदी जल की गुणवत्ता में वृद्धि के लिए नदी में प्रदूषण स्तर को कम करना।
  • नदी की जैव-विविधता को संरक्षित करना तथा समन्वित नदी प्रवाह व्यवस्था के प्रस्ताव को अपनाना।
  • नदी संरक्षण के लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए अनुसंधान करना।
  • अन्य प्रदूषित नदियों के लिए समान कार्ययोजना अपनाने के लिए अनुभव प्राप्त करना।
नमामि गंगे
  • सरकार ने गंगा नदी के प्रदूषण को समाप्त करने और नदी को पुनर्जीवित करने के लिए ‘नमामि गंगे’ नामक एक एकीकृत गंगा संरक्षण मिशन का शुभारंभ किया। केंद्रीय मंत्रिमंडल ने नदी की सफाई के लिए बजट को चार गुना करते हुए वर्ष 2020 तक नदी की सफाई पर 20,000 करोड़ रुपये खर्च करने के लिए केंद्र सरकार की प्रस्तावित कार्ययोजना को मंजूरी दे दी और इसे 100 प्रतिशत केंद्रीय हिस्सेदारी के साथ एक केंद्रीय योजना का रूप दिया गया है।
  • नमामि गंगे कार्यक्रम के तहत 7 जुलाई, 2016 को लघु अवधि एवं मध्यम अवधि की 231 परियोजनाएं शुरू की गई।
  • इस परियोजना के पहले चरण में स्कीमर से इलाहाबाद समेत चार जिलों में गंदगी साफ की जा रही है।
  • नमामि गंगे कार्यक्रम की 20,000 करोड़ रुपये की लागत में 7272 करोड़ रुपये नए कार्यक्रमों के लिए हैं।
  • गंगा सफाई अभियान को सफल बनाने के लिए उत्तर प्रदेश सरकार कानपुर, उन्नाव और कन्नौज के चमड़ा कारखानों को दूसरी जगह स्थानांतरित करने जा रही है।
  • नमामि गंगे परियोजना के तहत गंगा की सफाई 18 से 48 माह के बीच पूरा करने का लक्ष्य है।
  • राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन (NMCG) के तहत 2000 करोड़ रुपये की 26 परियोजनाओं को मंजूरी दी गई।
यमुना-कार्ययोजना
  • यमुना नदी यमुनोत्री ग्लेशियर से निकली है। यमुनोत्री उत्तराखंड राज्य के उत्तर काशी जिले में स्थित है। यमुना नदी की लंबाई इलाहाबाद में मिलने से पहले 1376 किमी. है। यमुना नदी के तट पर बसे शहरों में दिल्ली, आगरा, इटावा, इलाहाबाद प्रमुख हैं। इन औद्योगिक शहरों से निकलने वाला घरेलू एवं औद्योगिक अपशिष्ट यमुना को अत्यधिक प्रदूषित कर रहा है।
    यमुना-कार्ययोजना के अंतर्गत 81 लघु एवं मध्यम औद्योगिक इकाइयों को चिह्नित किया गया है? इन 81 इकाइयों में से 22 हरियाणा में, 42 दिल्ली में और 17 उत्तर प्रदेश में स्थित हैं। इन औद्योगिक इकाइयों में कागज, चीनी, रासायनिक पदार्थ, चमड़ा एवं मदिरा आदि बनाए जाते हैं। इन उद्योगों से निकलने वाला औद्योगिक कचरा एवं दूषित पानी यमुना नदी को विषाक्त बना रहा है। इसलिए यमुना को प्रदूषण से मुक्त करने के लिए निम्नलिखित कार्य प्रस्तावित हैं-
  • नदी के जल का उपचार कर शुद्ध करना।
  • नगर के प्रदूषित जल को नदी में मिलने से रोकना।
  • नदी के किनारे मल-सफाई (Sanitation) का समुचित प्रबंध करना।
  • यमुना के किनारे स्थित दाह-संस्कार स्थल का सुधार करना।
  • नदी के तट पर वृक्षारोपण करना।
  • सामुदायिक हिस्सेदारी के माध्यम से जन-जागरूकता को बढ़ावा देना।
नर्मदा सेवा यात्रा
  • नर्मदा नदी अमरकंटक से शुरू होकर पूर्व-पश्चिम दिशा में विंध्य व सतपुड़ा की पहाड़ियों से गुजरकर अरब सागर में मिलती है। नर्मदा नदी की कुल लंबाई 1289 किमी. है। वर्तमान में नर्मदा नदी से संबंधित संसाधनों के अत्यधिक उपयोग के कारण नदी के संरक्षण हेतु प्रयास किया जाना अत्यंत आवश्यक है। नर्मदा नदी के महत्व एवं संरक्षण की आवश्यकता को दृष्टिगत रखते हुए मध्य प्रदेश शासन द्वारा एक विशेष यात्रा के रूप में ‘नमामि देवि नर्मदे’ का संचालन किए जाने की योजना तैयार की गई है। नर्मदा सेवा यात्रा नर्मदा नदी के उद्गम स्थल अमरकंटक से 11 दिसंबर, 2016 से प्रारंभ होकर अलीराजपुर के सोंडवा से होते हुए अमरकंटक में 15 मई, 2017 को 148 दिनों में समाप्त हुई।
    सर्वेक्षण के अनुसार, नर्मदा नदी के तट पर बसे नगरों और बड़े गांवों के पास लगभग 100 नाले नर्मदा नदी में मिलते हैं। इन नालों से प्रदूषित जल के साथ-साथ शहर का गंदा पानी भी बहकर नदी में मिल जाता है। प्रदूषण की इस समस्या को ध्यान से रखकर मध्य प्रदेश सरकार 4,000 करोड़ रुपये के बजट से नर्मदा की सफाई को लेकर अभियान चला रही है।
    भारत सरकार द्वारा आरंभ की गई कार्य योजना के अंतर्गत नदियों में प्रवाहित किए जाने वाले शहरी एवं औद्योगिक कचरे का प्रबंधन, नदियों के प्रवाह में परिवर्तन तथा जल शोधन पर विशेष बल दिया गया है। इनको साकार रूप प्रदान करने के लिए निम्नलिखित उपाय किए जाने की आवश्यकता है-
  • नदियों के किनारे स्थित शहरों विशेष रूप से नदी तट पर बसे गांवों में सामुदायिक शौचालयों के निर्माण तथा रख-रखाव पर विशेष ध्यान देने की आवश्यकता है।
  • स्वच्छता से संबंधित विभिन्न योजनाओं के अंतर्गत उपलब्ध संसाधनों को नदी कार्ययोजना से समन्वित किया जाना चाहिए।
  • जिन शहरों में सीवर प्रणाली (मल-जल प्रणाली) 40 से 50 प्रतिशत क्षेत्रों में ही उपलब्ध है वहाँ पर सीवर प्रणाली को विकसित करने का प्रयास किया जाना चाहिए।
  • अधिकांश मल-निस्तारण संयंत्रों की क्षमता इनकी योजना बनाने के समय तात्कालिक तौर पर उपलब्ध सीवेज के आधार पर निर्धारित की जाती हैं किंतु पूर्ण होने तक वह क्षमता सामान्यतया कम पड़ जाती है। अतः इसकी क्षमता की
  • परिकल्पना कम-से-कम 10 से 15 वर्षों के लिए की जानी चाहिए।