Friday, 23 June 2017

अंतरिक्ष में ISRO ने फिर बनाया इतिहास, एक साथ 31 उपग्रह का प्रक्षेपण सफल


भारत अंतरिक्ष संगठन (इंडियन स्पेस रिसर्च ऑर्गनाइजेशन) (ISRO) ने शुक्रवार को एक और सफल उपग्रह प्रक्षेपण किया। श्रीहरिकोटा स्थित लॉन्चपैड से कार्टोसैट-2s उपग्रह के साथ 30 नैनो उपग्रह को PSLV-C38 लॉन्च वीइकल से छोड़ा गया। प्रक्षेपण के समय इसरो के चेयरमैन एएस किरन कुमार भी मौजूद थे। उन्होंने साथी वैज्ञानिकों को बधाई दी। इस प्रक्षेपण के साथ ही इसरो की ओर से कुल अंतरिक्ष अभियानों की संख्या 90 हो गई। 
धरती पर नजर रखने के लिए प्रक्षेपण किए गए 712 किलोग्राम वजनी कार्टोसैट-2 श्रृंखला के इस उपग्रह के साथ करीब 243 किलोग्राम वजनी 30 अन्य नैनो उपग्रह को एक साथ प्रक्षेपित किया गया। सभी उपग्रहों का कुल वजन करीब 955 किलोग्राम है। साथ भेजे जा रहे इन उपग्रहों में भारत के अलावा ऑस्ट्रिया, बेल्जियम, चिली, चेक गणराज्य, फिनलैंड, फ्रांस, जर्मनी, इटली, जापान, ब्रिटेन और अमेरिका समेत 14 देशों के नैनो उपग्रह शामिल हैं। 29 विदेशी, जबकि एक नैनो उपग्रह भारत का है। भारत के नैनौ उपग्रह का नाम NIUSAT है, जिसका वजन महज 15 किलोग्राम है। यह खेती के क्षेत्र में निगरानी और आपदा प्रबंधन में काम आएगा। बता दें कि भारतीय सेना को भी इस उपग्रह प्रक्षेपण से फायदा होगा। निगरानी से जुड़ी ताकत बढ़ेगी। आतंकी कैंपों और बंकर्स की पहचान उनपर नजर रखने में मदद मिलेगी। 
एक बार कक्षा में स्थापित हो जाने के बाद इसरो का मकसद इन सभी उपग्रह को चालू कर देना है। हालांकि, इन अंतरिक्ष यानों को स्पेस में घूम रहे मलबों से टकराने से रोकना एजेंसी की सर्वोच्च प्राथमिकता है। यह मलबा पुराने खराब हो चुके उपग्रह, रॉकेट के हिस्से, अंतरिक्ष यान के विभिन्न चरणों के प्रक्षेपण के दौरान अलग हुए टुकड़े आदि होता है। अंतरिक्ष में तैरते ये मलबे बेहद खतरनाक होते हैं क्योंकि इनकी रफ्तार 30 हजार किमी प्रति घंटे तक होती है। कभी-कभी ये इतने छोटे या नुकीले होते हैं, जो उपग्रह, अंतरिक्ष यानों और यहां तक कि अंतरिक्ष स्टेशनों तक के लिए बेहद खतरनाक होते हैं। 
इन उपग्रह की हिफाजत के लिए इसरो कई जरूरी कदम उठाता है। भारतीय एजेंसी अंतरराष्ट्रीय इंटर एजेंसी स्पेस डेबरीज कोऑर्डिनेशन कमिटी (IADC) का सदस्य है। यह कमिटी मानव निर्मित और प्राकृतिक अंतरिक्ष मलबे को कम करने की दिशा में काम करती है। इसका मकसद एजेंसियों के बीच मलबों से जुड़ी जानकारी का आदान-प्रदान है। इसके अलावा, मलबे की पहचान और इनसे जुड़ी रिसर्च को भी बढ़ावा देना है।
इन मलबों पर नजर रखने के लिए इसरो मल्टी ऑब्जेक्ट ट्रैकिंग रेडार (MOTR) पर भी निर्भर है। यह 2015 से काम कर रहा है। यह रेडार एक साथ 30 सेमीx30 सेमी साइज के 10 टुकड़ों को 800 किमी की दूरी से ट्रैक कर सकता है। अगर टुकड़ों की साइज 50x50 सेमी है तो उनकी पहचान 1000 किमी की दूरी से किया जा सकता है। जानकारों का मानना है कि भारत जिस तरह एक प्रक्षेपण में कई उपग्रह छोड़ रहा है, इससे भी अंतरिक्ष में मलबे की तादाद कम हो रही है।