Friday, 16 June 2017

"मनुष्य, विचार व खेल"



                            इस खेल में मनुष्य को दुश्मनों से बच कर रहना पड़ता है। मनुष्य अपने दुश्मनों से तब तक नहीं बच सकता जब तक मनुष्य के मित्र उसके साथ नहीं है और मनुष्य का सबसे बड़ा दुश्मन भी विचार है। मनुष्य के मित्र को सकारात्मक विचार (Positive Thought) और मनुष्य के दुश्मनों को नकारात्मक विचार  (Negative Thought) कहा जाता है। सकारात्मक विचार व नकारात्मक विचार के खेल को हम इस तरह से भी समझ सकते हैं। जैसे हमलोगों को अकसर सपना आता है व सपने में कोई ऐसी घटना घटती है जिससे हमारे वास्तविक जीवन में प्रभाव दिखने लगते है। लेकिन क्या सपने में घटी घटना सच थी नहीं न फिर भी अपना प्रभाव दिखाती है। चाहे वह अच्छी प्रभाव हो या फिर ......... प्रभाव। कभी-कभी तो सपने के प्रभाव (Heart attack) से मृत्यु तक हो जाती है ।
                             मनुष्य दिन में 60,000 से 90,000 विचारों के साथ रहता है। मनुष्य का जीवन विचारों के चयन का खेल है। इस खेल में मनुष्य को यह पहचानना होता है कि कौन सा विचार उसका दुश्मन है व कौन सा उसका दोस्त और फिर मनुष्य को अपने दोस्त को चुनना होता है। हर एक दोस्त अपने साथ कई अन्य दोस्त को लाता है और हर एक दुश्मन (one negative thought) अपने साथ दुश्मनों (negative thoughts) को लाता है। इस खेल का मूल मंत्र यही है कि मनुष्य जब निरंतर दुश्मनों को चुनता है तो उसे इसकी आदत पड़ जाती है और अगर वह निरंतर दोस्तों (Positive thoughts) को चुनता है तो उसे इसकी आदत पड़ जाती है।
                          जब भी मनुष्य कोई गलती करता है और कुछ दुश्मनों को चुन लेता है तो वह दुश्मन, मनुष्य को भ्रमित कर देते हें और फिर मनुष्य को निरंतर अपने दुश्मनों को चुनता रहता है। इसके विपरीत मनुष्य के पास जब ज्यादा मित्र रहते हैं तो मनुष्य निरंतर इस खेल को जीतता रहता है। मनुष्य जब जीतता है तो वह अच्छे कार्य करने लगता है व सफलता उसके कदम चूमती है। सभी उसकी तारीफ करते हैं और खुश रहता है। लेकिन जब मनुष्य के दुश्मन, मनुष्य के मित्रों से मजबूत हों जाते हैं तो हर पल इस खेल को हारता जाता है और निराशा एंव क्रोधित रहने लगता है। मनुष्य को विचारों के चयन में बड़ी सावधानी बरतनी पड़ती है क्योंकि मनुष्य को लगता है कि वही उसके दोस्त है। जो लोग इस खेल को खेलना सीख जाते हें वे सफल हो जाते हें व जो लोग इस खेल को समझ नहीं पाते हैं वे बरबाद हो जाते हैं फिर उनके मन में कुछ इस तरह के भाव उत्पन्न होते हैं।
                          थक गया हूँ......ढूंढते-ढूंढते, जिस्म टूट गया है, इंतजार न होगा खत्म, 
                          शायद समय ही रूठ गया है?  अब सोचता हूँ की मन की किवाड़ भी बंद कर लूँ,
                          लगा लूँ सांकर, अब न कभी खोलूँगा इनको, कितना भी खटखटाए कोई आकर.......।

                         समय कुछ मेरे साथ-साथ ऐसा चला की,
                         मेरे हिस्से का सोना लुटता रहा और मैं धूल बटोरता रह गया।
इस खेल में ज्यादातर लोगों की समस्या यह नहीं है कि वे अपने दोस्तों और दुश्मनों को पहचानते नहीं बल्कि समस्या यह है कि वे दुश्मनों को पहचानते हुए भी उन्हें चुन लेते हैं।
                                                      आपने धैर्यपूर्वक पूरा लेख पढ़ा धन्यवाद।