Monday, 12 June 2017

"हड़प्पा सभ्यता"


खोजः- सबसे पहले हड़प्पा सभ्यता के विषय में जानकारी 1826 ई0 में चाल्र्स मैसन ने दी। 1852 और 1856 ई0 में जान ब्रिन्टन एवं विलियम ब्रिन्टन नामक इंजीनियर बन्धुओं ने करांची से लाहौर रेलवे लाइन निर्माण के समय यहाँ के पुरातात्विक सामाग्रियों को तत्कालीन पुरातत्व विभाग के प्रमुख कनिंघम से मूल्यांकन करवाया। कनिघंम को भारतीय पुरातत्व विभाग का जनक कहा जाता है। भारतीय पुरातत्व विभाग की स्थापना लार्ड कर्जन के समय में अलिक्जेन्डर कनिंघम ने की थी। जब पुरातत्व विभाग के निर्देंशक जान मार्शल थे तभी दयाराम साहनी ने 1921 ई0 में हड़प्पा स्थल की खोज की। अगले ही वर्ष 1922 ई0 में राखलदास बनर्जी ने इसके दूसरे स्थल मोहनजोदड़ों की खोज की।








सिन्धु सभ्यता का विस्तारः- सिन्धु सभ्यता का विस्तार आधुनिक तीन देशों भारत, पाकिस्तान, अफगानिस्तान में मिलता है। अफगानिस्तान के प्रमुख स्थलों में मुण्डीगाक एवं शुर्तगोई हैं। इस सभ्यता का सर्वाधिक पश्चिमी पुरास्थल सुत्कांगेडोर (ब्लुचिस्तान) पूर्वी पुरास्थल आलमगीरपुर, उत्तरी पुरास्थल मांडा (जम्मू कश्मीर) तथा दक्षिणी पुरास्थल दैमाबाद। सैन्धव स्थलों का विस्तार त्रिभुजाकार आकृति लिए हुए हैं। जिनका क्षेत्रफल लगभग 20 लाख वर्ग किलोमीटर है।

(1) हड़प्पा:- हड़प्पा पंजाब के मांटगोमरी जिले में स्थित है। इसका सर्वप्रथम उल्लेख चाल्र्स मैशन ने किया जबकि पुरातत्व विभाग के निदेशक जान मार्शल के समय में 1921 में दयाराम साहनी ने इस स्थल की खोज अन्तिम रूप से की। इस स्थल की खोज से माधोस्वरूप वत्स (1926) तथा मर्टिमर ह्वीलर (1946) भी सम्बन्धित थे। हड़प्पा से प्राप्त दो टीलों में पूर्वी टीलें को नगर टीले तथा पश्चिमी टीले को दुर्ग टीला के नाम से जाना जाता है। यहाँ पर एक 12 कक्षों वाला अन्नागार प्राप्त हुआ है। हड़प्पा के सामान्य आवास क्षेत्र के दक्षिण में एक ऐसा कब्रिस्तान स्थित है जिसे समाधि आर-37 कहा जाता है। यहाँ अभिलेखयुक्त मुहरें भी प्राप्त हुई हैं। कुछ महत्वपूर्ण अवशेषों में एक बर्तन पर बना मछुआरे का चित्र, शंख का बना बैल, स्त्री से गर्भ से निकलता हुआ पौधा, पीतल का बना इक्का, ईंटों के वृत्ताकार चबूतरे, गेहूँ तथा जौ के दाने प्राप्त हुए हैं।

(2) मोहनजोदड़ोंः- सिन्धु नदी के दायें तट पर सिन्धु प्राप्त के लरकाना जिले में स्थित मोहनजोदड़ों की खोज 1922 ई0 में राखालदास बनर्जी ने किया। सिन्धी भाषा में मोहनजोदड़ों को मृतकों या मुर्दों का टीला कहा जाता है। मोहनजोदड़ों का सबसे महत्वपूर्ण स्थल विशाल स्नानागार है। इस स्नानागार को मार्शल ने तात्कालीन विश्व का आश्चर्य बताया है।



(3) चान्हूदड़ोंः- सिन्धु नदी के बांये तरफ स्थित जिसकी खोज 1931 में एम0जी0 मजूमदार ने की। यह नगर अन्य नगरों की तरह दुर्गीकृत नहीं था। यहाँ से हड़प्पोत्तर अवस्था की झूकर-झाकर संस्कृति का प्रमाण प्राप्त हुआ है। यहाँ के निवासी मनके, सीप, अस्थि तथा मुद्रा की कारीगरी में बहुत कुशल थे। यहाँ के प्रमुख अवशेषों में अलंकृत हाथी, कुत्ता द्वारा दौड़ाई गयी बिल्ली, लिपिस्टिक, विभिन्न प्रकार के खिलौने प्रमुख हैं।


यह स्थल पश्चिम एशिया से व्यापार का प्रमुख बन्दरगाह था। फारस की मुद्रा शील या पक्के रंगों में रंगे पात्रों के अवशेषों से यह पता चलता है कि लोथल एक सामुद्रिक व्यापारिक केन्द्र था। यहाँ से धान और बाजरे का साक्ष्य, फारस की मुहर, घोड़े की लघु मृण्यमूर्ति, तीन युगल समाधि, मुहरें, बाट-माप आदि पुरातात्विक अवशेष प्राप्त हुए हैं।

(5) कालीबंगाः- कालीबंगा राजस्थान के गंगा नगर जिले में सरस्वती दृश्यद्वती नदियों के किनारे स्थित था इसकी खोज अमलानन्द घोष ने 1951 में की। यहाँ के पश्चिमी और पूर्वी टीले दोनों अलग-अलग रक्षा प्राचीर से घिरे हुए थे। यहाँ के मकान कच्ची ईंटों से निर्मित हुए थे जबकि नालियों में पक्की ईंटों का प्रयोग मिलता है। जुते हुए खेत, हवनकुण्ड, अलंकृत ईंट, बेलनाकार मुहर, युगल तथा प्रतीकात्मक समाधियां आदि कालीबंगा से प्राप्त प्रमुख पुरातात्विक साक्ष्य हैं। कालीबंगा में अन्तमष्टि संस्कार हेतु तीन विधियां जिसमें पूर्ण समाधीकरण, आंशिक समाधीकरण एवं दाह संस्कार प्रचलित थी। कालीबंगा से भूकम्प आने से प्राचीनतम साक्ष्य प्राप्त हुए हैं। यहाँ से एक ही खेत में एक साथ दो फसलों का उगाया जाना तथा लकड़ी को कुरेद कर नाली बनाना आदि प्रमुख साक्ष्य मिले हैं।

(6) बनवाली:- यह स्थल हरियाणा के हिसार जिले में सरस्वती नदी के किनारे स्थित था इसकी खोज 1974 ई0 में आर0एस0 विष्ट ने की थी। यहाँ पर जल निकासी का अभाव दिखता है। पुरातात्विक साक्ष्यों में मिट्टी के बर्तन, सेलखड़ी की मुहर, हड़प्पा कालीन विशिष्ट लिपि से युक्त मिट्टी की मुहर, फल की आकृति, तिल, सरसों का ढेर, अच्छे किस्म का जौ, मातृ देवी की मृण्ड मूर्ति, तांबे के वावांग, चर्ट के फलक आदि प्रमुख हैं।












(18) रंगपुरा:- यह स्थल अहमदाबाद जिले में स्थित है यहाँ पर 1931 ई0 एम0एस0 वत्स तथा 1953 में एस0आर0 राव ने खुदाई करवायी। यहाँ सैन्धव संस्कृति के उत्तरा अवस्था के दर्शन होते हैं। यहाँ से मातृ देवी तथा मुद्रा का कोई साक्ष्य नहीं मिला है। यहाँ धान की भूसी के ढेर, कच्ची ईंटो के दुर्ग, नालियां, मृदभाण्ड, पत्थर के फलक आदि मिले हैं।