Friday 5 May 2017

इग्लैंड में समाजकार्य का इतिहास


मानव समाज के इतिहास में प्रत्येक युग और समाज में दुर्बल, निर्धन,निराश्रित व्यक्ति की सहायता व्यक्ति करता रहा है। यह सहायता धार्मिक भावनाओं, ईश्वर की कृपा प्राप्त करने की इच्छा ने सहायता और दान को प्रोत्साहित किया। इसे ईश्वर का आदेश माना जाता रहा है। उस समय यूरोप में चर्च द्वारा ही सहायता दी जाती रही। जिससे चर्च के मठों में निर्धनों के लिए संस्थायें स्थापित की गयी। जो इन कमजोर, निर्धन, अपंग की सहायता करते थे। इसका दुष्प्रभाव ये हुआ कि पूरे यूरोप में भिखारियों की संख्या बढ़ गई, भीख मांगना एक आसान साधन था।ये राज्य को अच्छा नहीं लगा। इसलिए पूरे यूरोप में कड़े कानून बनाए गए, परन्तु भिक्षावृत्ति, आवारगी कम नहीं हुई।
इंग्लैंड में इसका प्रभाव पड़ा, वहां भी निर्धनों, अपंग, अनाथ व्यक्ति की इसी तरह सहायता की जाती रही थी परन्तु सामाजिक दशाओं को बदलने का कार्य नहीं हुआ। 14 वी शताब्दी के बाद जागीरदारी प्रथा के समाप्त होने और नयी आर्थिक नीति लागू होने से दास मुक्त हो गये और ग्रामीण मजदूरों की संख्या बढ़ गयी। जिससे ये भी भिक्षा मागने के लिए मजबूर हो गए। इसके बाद राज्य ने हस्तक्षेप किया और Edward 3 कानून बनाया, जिसमें राज्य ने चर्च से शक्ति ग्रहण कर ली।इसका उद्देश्य भिक्षावृत्ति, आवारगी को रोकना तथा श्रमिकों को जागीर में रोकना। इस कानून का उल्लंघन करने पर कठोर दंड दिया जाता था। लेकिन उसी समय इंग्लैंड में अकाल, युद्ध तथा ऊपजाऊ भूमि पर भेड़ो के चारागाह बन जाने से निर्धनता बढती जा रही थी।150 वर्षो तक ये समस्या बनी रही।
हेनरी अष्टम 1531 के समय नया कानून बना, ये पहला कानून था जिसमें निर्धनता को दूर करने के लिए रचनात्मक कार्य को महत्व दिया गया। इसमें निर्धनों की समस्या को मान्यता दी तथा उनकी सहायता का उत्तरदायित्व सरकार ने ली।इसके बाद सरकार ने दान के अतिरिक्त कोई अन्य साधन भी जुटाना आवश्यक समझा। इसके बाद 1536 में एक कानून बना, जिसमें 1,सरकार निर्धन, दुर्बल, रोगी की सहायता भिक्षावृत्ति को कम करने। 2,बच्चों को भीख मांगने पर उन्हें उनके माता-पिता से लेकर किसी और को दे दिया जाय जो उन्हें आजीविका कमाने के लिए प्रशिक्षण दे सके। 3,स्वस्थ एवं आवारा भिखारियों को कोड़े लगाने तथा यदि दुबारा पकड़े जाने पर हाथ पैर काट लिया जाय। ऐसा कठोर कानून बना।लेकिन इसका भी व्यवहारिक अनुभव अच्छा नहीं रहा।ये निष्कर्ष निकाला कि निर्धनों में हीनता विघमान है इसे दड़ द्वारा दूर नहीं किया जा सकता है।
1601 ईस्वी में The Elizabeth poor law, 1601 बना। यह एक दूरगामी कानून था।इस कानून में निर्धनों की देखभाल का उनकी संतान का दायित्व माना गया यदि वे नहीं कर पा रहे हैं तो उस गांव का दायित्व थी जहां वे निवास करते थे। स्वस्थ निर्धन को कार्य गृहो में रखा गया यदि वे न माने तो कारावास की सजा। लाचार निर्धन को भिक्षागृह में तथा बेसहारा बच्चों को किसी नागरिक के पास जो घरेलू कार्य करे जो बच्चे कही नहीं जाना चाहते उनके माता-पिता की आर्थिक सहायता जिससे वे आजीविका कमा सके। फिर 1905 में Poor law commission बना जिसमें सहायता के साथ सामाजिक बीमा प्रारंभ किया गया।
द्वितीय विश्व युद्ध के समय समस्या में भारी वृद्धि हुई।तब 1941 में कल्याण कार्यक्रम की शुरुआत हुई, ये व्रेबरिज रिपोर्ट पर आधारित थी, इस रिपोर्ट में व्यक्ति की निर्धनता के लिए आवश्यकता के चार बुराई को जिम्मेदार माना, ये है।1,बिमारी 2,अज्ञानता 3,गंदगी 4,निष्क्रियता। इसके फलस्वरूप पाँच सहायता कार्यक्रम शुरू किए गए।ये पांच कार्यक्रम 1,सामाजिक बीमा 2,जन सहायता 3,बच्चों के लिए भत्ता/पारिवारिक भत्ता 4,निशुल्क स्वास्थ्य एवं पुनर्वास सेवाएं 5,पूर्ण रोजगार का अनुरक्षण। सामाजिक सुरक्षा कार्यक्रम के 6 सिद्धांत बनाये गये। जिसके आधार पर सामाजिक सुरक्षा कार्यक्रम इंग्लैंड में चलाए गए। बैवरिज रिपोर्ट ग्रेट ब्रिटेन के आधुनिक समाज कल्याण विभाग का आधार बनी और कई देशों के लिए आदर्श बन गई।
ये आन्दोलन भी इंग्लैंड में समाजकार्य के विकास में महत्वपूर्ण योगदान दिया है। यह आन्दोलन 1869 ई में लंदन नगर में एक संगठन द्वारा प्रारंभ हुआ। जिसे Society for Organization Charitable Relief and Repressing Mendicity कहा गया। जिसे बाद में Charity organization society कहा गया। यह संगठन थामस चामर्स के विचारों से प्रभावित था।चामर्स के अनुसार व्यक्ति के पुनर्वास के लिए उसमें आत्मनिर्भरता लाना आवश्यक है तथा व्यक्ति अपनी निर्धनता के लिए स्वयं उत्तरदायी है और सहायता प्राप्त करना उसके आत्मसम्मान को नष्ट करता है, व्यक्ति को अपना भरण-पोषण अपनी योग्यता का प्रयोग करके किया जाना चाहिए। इस आधार पर COS ने एक पूछताछ विभाग खोला, जिसमें ये जानकारी हुई कि कुछ लोग भिक्षावृत्ति को व्यवसाय बना लिए हैं तथा कई सहायता संस्थाओ से सहायता प्राप्त कर रहे हैं। इसके बाद COS ने पूरे नगर को जनपदों में बाट दिया तथा वहां पर स्वयंसेवक कार्य करने लगे। इन स्वयं सेवक के अधीन निर्धन परिवार रखे गए उनके साथ रहने से ये उनकी सहायता में व्यक्तिगत रूचि लेने लगे, जिससे परिवारों की जीवन बदलने लगा, बाद में COS ने वैतनिक कर्मचारियों की नियुक्ति की। यह संगठन सरकारी सहायता के विरुद्ध था गैर सरकारी प्रयासों को बढ़ावा देने लगा। धीरे-धीरे ये आन्दोलन पूरे इंग्लैंड के बाद अमेरिका तक पहुँच  गया।