Monday, 1 May 2017

राष्‍ट्रीय पाठ्यचर्या 2005 क्‍या कहती है: एक नजर में


विषय प्रवेश
यह विद्यालयी शिक्षा का अब तक का नवीनतम राष्ट्रीय दस्तावेज है।
  • इसे अन्तर्राष्ट्रीय स्तर के के शिक्षाविदों, वैज्ञानिकों, विषय विशेषज्ञों व अध्यापकों ने मिलकर तैयार किया है।
  • मानव विकास संसाधन मंत्रालय की पहल पर प्रो0 यशपाल की अध्यक्षता में देश के चुने हुए विद्वानों ने शिक्षा को नई राष्ट्रीय चुनौतियों के रूप में देखा।
मार्गदर्शी सिद्धान्त
  • ज्ञान को स्कूल के बाहरी जीवन से जोड़ा जाए।
  • पढाई को रटन्त प्रणाली से मुक्त किया जाए।
  • पाठ्यचर्या पाठ्यपुस्तक केन्द्रित न रह जाए।
  • कक्षाकक्ष को गतिविधियों से जोड़ा जाए।
  • राष्ट्रीय मूल्यों के प्रति आस्थावान विद्यार्थी तैयार हो।
प्रमुख सुझाव

  • शिक्षण सूत्रों जैसे-ज्ञात से अज्ञात की ओर, मूर्त से अमूर्त की ओर आदि का अधिकतम प्रयोग हो।
  • सूचना को ज्ञान मानने से बचा जाए।
  • विशाल पाठ्यक्रम व मोटी किताबें शिक्षा प्रणाली की असफलता का प्रतीक है।
  • मूल्यों को उपदेश देकर नहीं वातावरण देकर स्थापित किया जाए।
  • अच्छे विद्यार्थी की धारणा में बदलाव आवश्यक है अर्थात् अच्छा विद्यार्थी वह है जो तर्क पूर्ण बहस के द्वारा अपने मौलिक विचार शिक्षक के सामने प्रस्तुत करता है।
  • अभिभावकों को सख्त सन्देश दिया जाए कि बच्चों को छोटी उम्र में निपुण बनाने की आकांक्षा रखना गलत है।
  • बच्चों को स्कूल से बाहरी जीवन में तनावमुक्त वातावरण प्रदान करना।
  • “कक्षा में शान्ति” का नियम बार-बार ठीक नहीं अर्थात् जीवन्त कक्षागत वातावरण को प्रोत्साहित किया जाना चाहिए।
  • सहशैक्षिक गतिविधियों में बच्चों के अभिभावकों को भी जोड़ा जाए।
  • समुदाय को मानवीय संसाधन के रूप में प्रयुक्त होने का अवसर दें।
  • खेल आनन्द व सामूहिकता की भावना के लिए है, रिकार्ड बनाने व तोड़ने की भावना को प्रश्रय न दे।
  • बच्चों की अभिव्यक्ति में मातृ भाषा महत्वपूर्ण स्थान रखती है। शिक्षक अधिगम परिस्थितियों में इसका उपयोग करें।
  • पुस्तकालय में बच्चों को स्वयं पुस्तक चुनने का अवसर दें।
  • वे पाठ्यपुस्तकें महत्वपूर्ण होती है जो अन्तःक्रिया का मौका दें।
  • कल्पना व मौलिक लेखन के अधिकाधिक अवसर प्रदान करावें।
  • सजा व पुरस्कार की भावना को सीमित रूप में प्रयोग करना चाहिए।
  • बच्चों के अनुभव और स्वर को प्राथमिकता देते हुए बाल केन्द्रित शिक्षा प्रदान की जाए।
  • सांस्कृतिक कार्यक्रमों में मनोरंजन के स्थान पर सौन्दर्यबोध को प्रश्रय दे।
  • शिक्षक प्रशिक्षण व विद्यार्थियों के मूल्यांकन को सतत प्रक्रिया के रूप में अपनाया जाए।
  • शिक्षकों को अकादमिक संसाधन व नवाचार आदि समय पर पहुँचाएँ जाएँ।