Thursday 4 May 2017

भारत मे समाजकार्य की व्यवसायिक स्थिति।


भारत में समाजकार्य किस सीमा तक व्यवसाय के मापदंडों को पूरा करता है, इसके लिए व्यवसाय के जो 6 मुख्य गुण है, उसी पर परखना होगा।
भारत में भी समाजकार्य के वही मौलिक सिद्धांत है जो विकसित देशों में है। जो भी नया ज्ञान अमेरिका या किसी अन्य देश में आता है वो भारत में सम्मिलित हो जाता है। भारत के अभ्यास कर्ताओं द्वारा जो भी शोध द्वारा या नवीन अनुभव आता है। उसे समाजकार्य का शिक्षण, प्रशिक्षण के पाठ्यक्रम का भाग बनाकर दूसरे को हस्तांतरित किया जाता है। 


भारत में समाजकार्य की औपचारिक शिक्षा का आरम्भ 1936 में बम्बई में ग्रेजुएट स्कूल आफ सोशल वर्क की स्थापना हुई। लेकिन आजादी के बाद ही भारत में समाजकार्य विकास तेजी से हुआ। 1958 में 6 विघालय समाजकार्य के थे।अब लगभग 100 से अधिक विघालय या संस्थायें है जो समाजकार्य में शिक्षण प्रशिक्षण दे रही है। इनमें से एक तिहाई विश्वविद्यालय में पीएचडी की डिग्री तथा कुछ में डी.लिट की उपाधि मिल रही है। धीरे-धीरे समाजकार्य की संस्थाओ की वृद्धि हो रही है।


भारत में व्यवसायिक संगठन तो है परन्तु ये बहुत दुर्बल है। बहुत कम व्यवसायिक समितियां है जो है भी वो केवल चुनाव तक सीमित रही है। लेकिन 1951 में इंडियन एसोसिएशन आफ द एलुमिनाई आफ स्कूल आफ सोशल वर्क नामक समिति बनी। जिसे अन्तराष्ट्रीय समाज कार्यकर्ता संघ की मान्यता प्राप्त है। यह समिति भारत में समाजकार्य के व्यवसायिक स्तर को ऊंचा करने का प्रयास करती है। केवल वही व्यक्ति इस संस्था का सदस्य हो सकता है जिसने मान्यता प्राप्त विघालय से समाजकार्य में स्नातकोत्तर की डिग्री ली है। धीरे-धीरे भारत के कई विघालय अपनी पत्रिका एवं जनरल निकाल रहे हैं। इसमें लखनऊ विश्वविद्यालय, काशीविधापीठ, टाटा इंस्टीट्यूट शामिल हैं। लेकिन अभी भी भारत में उस स्तर का संगठन नहीं है जो कार्यकर्ता के व्यवहार पर नियंत्रण कर सके।




भारत में समाजकार्य को उस स्तर का अनुमोदन प्राप्त नहीं है जैसा अमेरिका या अन्य देश में है।लेकिन धीरे-धीरे भारत में मान्यता प्राप्त होने लगी है। फैक्ट्रीज एक्ट के अनुसार, औघोगिक कारखानों में श्रमिकों की संख्या के अनुसार श्रम कल्याण अधिकारी की नियुक्ति करना अनिवार्य है। कई जगहों पर जैसे, शिशु कल्याण, महिला कल्याण, परिवार कल्याण, परिवार नियोजन आदि जगहों पर प्रशिक्षण प्राप्त कार्यकर्ता की नियुक्ति हो रही है। चिकित्सालयों में इनकी नियुक्ति हो रही है। बहुत सी अनुसंधान संस्थाओं में सामाजिक, आर्थिक, जनसंख्या अध्यक्ष के लिए समाज कार्य के प्रशिक्षण प्राप्त लोगों की नियुक्ति में प्राथमिकता दी जाएगी रही है। 


नोट, इसमें तीन प्रश्न बनते हैं। 
1,भारत में समाजकार्य की स्थिति। 
2,भारत में समाजकार्य अर्द्ध व्यवसाय है।
3,भारत में समाजकार्य की व्यवसायिक स्थिति की आलोचना या कमियां। 
और भी प्रश्न बन सकते हैं।