Friday 5 May 2017

प्रतियोगी छात्र और सोशल मीडिया: सहायक या बाधक


तकनीकी प्रगति एवं नवोन्मेषन की सहज मानवीय प्रवृत्ति ने विकास पथ पर नित नए आयाम गढे हैं। इसी अनुक्रम में सोशल मीडिया के प्रादुर्भाव ने समाज के प्रत्येक पक्ष को प्रभावित किया। युवाओं में सोशल मीडिया के क्रेज को स्वतः देखा जा सकता है। एक ओर मुक्त मीडिया का यह मंच जहाँ हमारे ज्ञान, बोध, चिंतन को पुष्ट करने में सहायक है वहीं इसके नकारात्मक प्रभाव को भी नकारा नहीं जा सकता। हमारा उद्देश्य इस पोस्ट के माध्यम से सोशल मीडिया के स्वस्थ प्रयोग को प्रोत्साहित करना है।
युवा वर्ग जिसमे विशेषतः विद्यार्थी समूह के लोग इस मंच पर विशेष सहभागिता करते नजर आते हैं। अध्ययन हेतु अनेक ग्रुप और पेज के माध्यम से वे अध्ययन सामग्री और विचार जुटाकर अपने उद्देश्य के करीब जाने की कोशिश करते हैं, लेकिन इस दौरान देखा गया है कि इस लालसा में विद्यार्थी अपना अधिकांश समय सोशल मीडिया पर ही व्यतीत करते हैं। ये ठीक है कि शायद आप इस दौड़ में शामिल हो अपने लिए अध्ययन सामग्री जुटा ले जाते हैं लेकिन जरा सोचिये कि पीडीएफ फॉर्म में जुटाई गयी सामग्री का इलेक्ट्रानिक डिवाइस के माध्यम से कितना अध्ययन कर पाते हैं? आप आत्ममूल्यांकन करें कि कितनी ऐसी फ़ाइल आपके फोन या लैपटॉप में पड़ी हैं जिनका आपने पूर्ण अध्ययन किया है? मूर्त पुस्तक से बेहतर कोई अध्ययन विकल्प नही जिसको हम कहीं न कहीं इग्नोर करते जा रहे हैं। 
दूसरी बात सोशल मीडिया के उपयोग का हमारा समय निश्चित नहीं है हम असमय ही इसके प्रयोग से अपनी दिनचर्या को बाधित करते रहते हैं। पूरे चौबीस घण्टे में सर्वाधिक महत्वपूर्ण समय सुबह जगने के बाद और रात में सोने से पहले का ही होता है आप इस समय जो भी कार्य करते हैं समझ लीजिये वो कार्य आपके जीवन में प्राथमिकताओं पर है, अब इसका आत्ममूल्यांकन आप स्वयं कर सकते हैं कि इस अवधि में आप क्या कार्य करते हैं। अधिकांश विद्यार्थी अपना यह समय सोशल मीडिया को दे देते हैं जो कि उचित नही है। आप इस मंच का लाभ उठाइये लेकिन बीच दिन में ही सीमित समय के लिए ही इसका प्रयोग कीजिये।
अमेरिकी मनोवैज्ञानिको ने अपने एक शोध के माध्यम से बताया कि सोशल मीडिया की लत नशे की लत की तरह ही व्यक्ति के मन पर प्रभाव जमाती है। यदि आपने कोई पोस्ट डाली या फोटो अपलोड की तो बार-बार मन वहीं जाने को तत्पर रहेगा, यहाँ तक कि यदि आपकी नींद रात में दो बजे भी खुलती है तो आपका मन आपको सोशल मीडिया खोलने पर मजबूर करता है कि देखे कितने लाइक्स कितने कमेंट आये। यदि आपमें भी सोशल मीडिया के प्रयोग का यह स्तर है तो यह घातक साबित हो सकता है।
केवल इस मंच पर व्यतीत करने वाला समय ही इसे हम नही देते बल्कि सोशल मीडिया के उपयोग के बाद यहाँ मिलने वाली दूषित/उन्मादी/सांप्रदायिक सामग्री हमारे चिंतन पर कब्जा जमाती है और हमारे विचारों को भी दूषित बनाने की सम्भावना लिए होती है, हम स्वयं उसके पक्ष या विपक्ष में तर्क गढ़ने लगते हैं जो कि एक विद्यार्थी के चिंतन को नकारात्मक दिशा में ले जाती है।
निसंदेह अध्येताओं के अकादमिक तथा व्यक्तिगत विकास में ऐसे सार्वजनिक मंचों की विशेष भूमिका है लेकिन यह तभी सम्भव होगा जब हम इसके स्वस्थ उपयोग को सीख पाएंगे।