प्रमुख बिंदु
- यह देश की ऐसी पहली सुविधा होगी| इसका उद्देश्य राजस्थान के राज्य-पक्षी ‘द ग्रेट इंडियन बस्टर्ड’ का संरक्षण करनाहोगा| राजस्थान में शेष बची हुई इस पक्षी की अंतिम आबादी( मात्र 90) सम्पूर्ण देश में उपस्थित इनकी कुल आबादी का 95% है।
- इस प्रजनन केंद्र की स्थापना कोटा जिले में स्थित शोरसन (Sorsan) में की जाएगी जबकि अंडे सेने वाले एक स्थान(hatchery) की स्थापना अगले वर्षजैसलमेर जिले में स्थित मोखाला (Mokhala) में की जाएगी।
- केन्द्रीय पर्यावरण एवं वन मंत्रालय ने इन दोनों केन्द्रों की स्थापना के लिये 33.85 करोड़ रुपये की धनराशि को स्वीकृति प्रदान की है तथा इसके वैज्ञानिक शाखा के रूप में भारतीय वन्यजीव संस्थान(Wildlife Institute ofIndia -WII) को अधिकृत किया है।
- प्रजनन केंद्र के लिये शोरसन के नमी वाले आवास का चुनाव किया जाएगा| इस क्षेत्र में अच्छी वर्षा होती है,यह वन भूमि से अलग है और यह दो दशकों तक बस्टर्ड का आवास स्थल भी रहा है। चूजों के बड़े हो जाने के पश्चात उन्हें पुनः डेजर्ट नेशनल पार्क में भेज दिया जाएगा।
- रेड्डी के अनुसार, दो सुविधाओं की स्थापना करने के उद्देश्य से अगले दो माह में केंद्र सरकार, भारतीय वन्यजीव संस्थान और राज्य सरकार के मध्य एक समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किये जाएंगे।
- इस समझौता ज्ञापन के अंतर्गत शामिल कार्य निम्नलिखित होंगे- अण्डों की सोर्सिंग, परिवहन,चूजों का पालन-पोषण और युवा पक्षियों को प्रशिक्षण देकर उन्हें डेजर्ट नेशनल पार्क में छोड़ना।
- गौरतलब है कि एक मादा बस्टर्ड एक मौसम में केवल एक ही अंडा देती है। यदि ऐसे वैज्ञानिक तरीके विकसित कर लिये जाएँ जिनसे वह एक बार में ही कई अंडे देने में सक्षम हो तो यह इनके सरंक्षण में महत्त्वपूर्ण प्रमाणित होगा।
ग्रेट इंडियन बस्टर्ड से संबंधित महत्त्वपूर्ण तथ्य
- जब भारत के ‘राष्ट्रीय पक्षी’ के नाम पर विचार किया जा रहा था, तब ‘ग्रेट इंडियन बस्टर्ड’ का नाम भी प्रस्तावित किया गया था जिसका समर्थन प्रख्यात भारतीय पक्षी विज्ञानी सालिम अली ने किया था।
- लेकिन ‘बस्टर्ड’ शब्द के गलत उच्चारण कीआशंका के कारण ‘भारतीय मोर’ को राष्ट्रीय पक्षी चुना गया था।
- ‘ग्रेट इंडियन बस्टर्ड’ भारत और पाकिस्तान की भूमि पर पाया जाने वाला एक विशाल पक्षी है। यह विश्व में पाए जाने वाली सबसे बड़े उड़ने वाले पक्षी प्रजातियों में से एक है।
- ‘ग्रेट इंडियन बस्टर्ड’ को भारतीय चरागाहों की पताका प्रजाति (Flagship species) के रूप में जाना जाता है।
- इस पक्षी का वैज्ञानिक नाम आर्डीओटिस नाइग्रीसेप्स (Ardeotis nigriceps) है, जबकि मल्धोक, घोराड येरभूत, गोडावण, तुकदार, सोन चिरैया आदि इसके प्रचलित स्थानीय नाम हैं।
- ‘ग्रेट इंडियन बस्टर्ड’ राजस्थान का राजकीय पक्षी भी है, जहाँ इसे गोडावण नाम से भी जाना जाता है।
- ‘ग्रेट इंडियन बस्टर्ड’ की जनसंख्या में अभूतपूर्व कमी के कारण अन्तर्राष्ट्रीय प्रकृति एवं प्राकृतिक संसाधन संरक्षण संघ (International Union for Conservation of Nature and Natural Resources) ने इसे संकटग्रस्त प्रजातियों में भी ‘गंभीर संकटग्रस्त’ (Critically Endangered) प्रजाति के तहत सूचीबद्ध किया है।