Thursday 11 May 2017

भारत के श्रम बल में महिलाओं की भागीदारी


सर्वेक्षण के प्रमुख बिंदु
  • शहरी श्रम बल में महिलाओं का अनुपात 24% है, जबकि ग्रामीण श्रम बल में उनकाअनुपात 29% है।
  • सर्वेक्षण में 61,000 परिवारों के नमूने लिये गए थे जिससे यह सर्वेक्षण वर्ष 2011-12 में राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण कार्यालय द्वारा किये गए सर्वेक्षण के समान ही विस्तृत हो गया था।
  • भारत के श्रम बल (ग्रामीण और शहरी को मिलाकर) में महिलाओं की कुल भागीदारी 27.4% है। देश के श्रम बल में प्रत्येक 10 व्यक्तियों में से केवल 2 ही महिलाएँ होती हैं।
  • अपने एशियायी साथियों (जहाँ महिलाओं कीश्रम में भागीदारी बढ़ी है) के विपरीत भारतीय अर्थव्यवस्था में महिलाओं की भागीदारी में कमी आ रही है जबकि इसकी विकास दर तीव्र है।
  • भारत में श्रम बल में महिलाओं की भागीदारी दर विश्व में सबसे कम है तथा यह इसके एशियाई साथियों- चीन (63.9%) और नेपाल(79.9%) से भी कम है। केवल पाकिस्तान (24.6%)और अरब जगत (23.3%) में ही श्रम बल में महिलाओं की भागीदारी कम है।
  • महिलाओं की श्रम बल में भागीदारी का यह स्वरूप तब और भी अधिक भयावह हो जाता है जब महिलाओं की शैक्षणिक विशेषताओं को संज्ञान में लिया जाता है।
  • इस सर्वेक्षण से यह प्रदर्शित किया गयाकि 71% निरक्षर महिलाएँ घरेलू कार्यों को वरीयता देती हैं। यह दर शहरीहाई स्कूल पास महिलाओं (82%) के लिये उच्च है जबकि शहरी स्नातक महिलाओं (68%) के लिये कम है।
  • औसत रूप में, शहरी भारत में 76% महिलाएँ घरेलू कार्यों में संलग्न हैं जबकि ग्रामीण भारत में ऐसे कार्यों में संलग्न महिलाओं की दर 71% है।
  • यद्यपि ग्रामीण क्षेत्रों में महिलाओंकी श्रम बल में भागीदारी अधिक है परन्तु वे मुख्यतः अनौपचारिक श्रम में संलग्न हैं।
  • शहरी क्षेत्रों में वेतन पाने वाली महिलाओं की दर अधिक है। क्या है महिलाओं की श्रम में न्यूनतम भागीदारी का कारण?
  • भारतीय श्रम बल में महिलाओं की कम भागीदारी का एक कारण यहाँ शिक्षा की नामांकन दर में होने वाली वृद्धि है जिसके कारण कई युवा महिलाएँ शिक्षा को प्राथमिकता देती हैं।
  • इसका एक अन्य कारण यह भी है कि भारत मेंकई महिला कामगार यह सोचती हैं कि काम केवल तभी किया जा सकता है जब उसकी आवश्यकता हो। वे काम को आर्थिक अवसर नहीं मानती हैं।
  • भारतीय महिलाओं में मुख्यतः गरीब, ग्रामीण और निरक्षर महिलाएँ ही श्रम बलमें भागीदारी करती हैं। वास्तव में, धनीघरों की महिलाएँ इसका एक अपवाद हैं क्योंकि उनमें महिलाओं की आय की दर अधिक पाई गई है।
  • ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में महिलाएँ या तो निरक्षर होती हैं अथवा स्नातक होती हैं। अतः उनके काम करने की सम्भावना अधिक होती है। परन्तु माध्यमिक स्तर की शैक्षणिक विशेषताओं वाली महिलाएँ श्रम बल में भागीदारी नहीं करती हैं।
वस्तुतः एक स्थूल सच्चाई यह है की भारत जैसे पितृसत्तात्मक समाज में महिलाएँ केवल घरेलू कार्य ही करती हैं।

वर्तमान परिदृश्य
  • यद्यपि आज पितृसत्तात्मक समाज के दृष्टिकोणों में बदलाव हो रहा है परन्तु इसकी गति अपेक्षाकृत मंद है।
  • भारत का युवा वर्ग पहले की तुलना में महिलाओं के प्रति अधिक उदार बन चुका है।
  • 35 वर्ष तक की आयु वाले आधे से भी कम युवा पुरुष और महिलाएँ यह विश्वास करते हैं कि महिलाओं के लिये विवाहोपरांत कार्य करना उचित है।
निष्कर्ष
भारत में महिलाओं की स्थिति में सुधार आवश्यक है परन्तु इसके साथ ही यह भी सुनिश्चित करना होगा कि उनके साथ किसी भी प्रकार का भेदभाव न हो तथा वे स्वयं को भारतीय समाज से विलग न समझकर इसका ही एक हिस्सा समझें। उल्लेखनीय है कि भारतीय समाज में आज भी कई ऐसी महिलाएँ हैं जो कुशल होने के बावजूद भी हर क्षेत्र में पिछड़ जाती है। अतः आवश्यकता इस बात की है कि इनमहिलाओं को परिवर्तन की मुख्यधारा में लाया जाए और भारत को श्रेष्ठ से श्रेष्ठतम बनाया जाए।