फसल बीमा योजना की कमियाँ दूर की गयी हैं और प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना नामक नयी योजना देश भर में फसल बीमा लागू करने को मंजूरी प्रदान की गयी है।
- प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना खरीफ 2016 से देश भर में लागू करने को मंजूरी प्रदान की गयी है।
- प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना के अंतर्गत वर्ष 2016-17 के बजट में 5500 करोड़ रुपये का आवंटन किया गया है, जो पिछले वर्ष में 3185 करोड़ रुपये था। इस योजना में लगभग 73 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। फसल बीमा क्षेत्र में यह केंद्र सरकार की ओर से अब तक की सबसे बड़ी वित्तीय सहायता है।
- फसल बीमा प्राप्त करने के लिए किसानों को अब तक सबसे न्यूनतम प्रीमियम भरना होगा।
- शेष प्रीमियम के बोझ का वहन सरकार द्वारा किया जाएगा-भले ही वह कुल प्रीमियम के 90 प्रतिशत से अधिक हो।
- किसान के लिए समस्त प्रकार के खाद्यान्नों, दालों और तिलहनों की एक सीजन-एक दर होगी।अलग-अलग जिलों के लिए अलग-अलग फसलों की अलग-अलग दरें समाप्त कर दी गयी हैं। किसानों द्वारा खरीफ के लिए अधिकतम 2 प्रतिशत और रबी के लिए अधिकतम 1.5 प्रतिशत प्रीमियम का भुगतान किया जाएगा।
- किसानों को पूर्ण वित्तीय सुरक्षा मिलेगी प्रीमियम दरों पर कोई सीमा नहीं होगी और बीमा राशि में कोई कटौती नहीं होगी।
- खराब मौसम की वजह से किसानों द्वारा बुआईई/रोपाई न किए जाने की स्थिति में, वह मुआवजा प्राप्त करने का हकदार होगा।
- देश भर में पहली बार, कटाई के बाद तूफान, बिना मौसम की बरसात और ओलावृष्टि, भूस्खलन और जलभराव जैसी स्थानीय आपदाओं के कारण 14 दिन के भीतर होने वाले नुकसान कवरेज में शामिल किया गया है।
- पहली बार सही प्राक्कलन और किसानों को मुआवजों का त्वरित भुगतान करने में मोबाइल और उपग्रह तकनीक का उपयोग किया जाएगा।
- इस योजना के अंतर्गत मीडिया के माध्यम से जनता के बीच जागरूकता फैलाने और प्रचार के प्रावधान किए गए हैं, ताकि बीमित किसानों का प्रतिशत अगले 2-3 वर्षों में मौजूदा 20 प्रतिशत से बढ़ाकर 50 प्रतिशत किया जा सके।
आपदा की स्थिति में राहत पहुंचाने के लिए नियमों में बदलाव किए गए हैं -
- आपदा की स्थिति में मुसीबतों से घिरे किसानों को राहत पहुंचाने के लिए, मोदी सरकार ने राहत मुहैया कराने हेतु नियमों में संशोधन किया है।पहले, राहत केवल तभी मुहैया करायी जाती थी, जब आपदा के कारण फसलों को 50 प्रतिशत या उससे अधिक नुकसान पहुंचता था। अब यह राहत फसलों के 33 प्रतिशत नुकसान होने पर भी पहुंचायी जाती है। विभिन्न मदों में मुआवजे की राशि बढ़ाकर 50 प्रतिशत तक कर दी गयी है।
- एक ऐतिहासिक निर्णय लिया गया है, जिसके द्वारा अत्यधिक बारिश के कारण नष्ट होने वाले खाद्यान्नों के लिए पूर्ण न्यूनतम समर्थन मूल्य का भुगतान किया जाएगा। पुराने नियमों के अनुसार, जहां दिवंगत व्यक्तियों के परिजनों को मात्र 1.50 लाख रुपये का मुआवजा प्रदान किया जाता था, वहीं सरकार ने इस राशि को बढ़ाकर 4 लाख रुपये कर दिया है।
- वर्ष 2010- 2015 तक, चार वर्ष की अवधि के लिए राज्य आपदा राहत कोष के लिए 33580.93 करोड़ रुपये की राशि का प्रावधान किया गया था। वर्ष 2015- 2020 की अवधि के लिए इस राशि को बढ़ाकर 61219 करोड़ रुपये कर दिया गया है।
- इसी तरह, चार वर्षों – 2010-11, 2011-12, 2012-13 और 2014-15 के दौरान यूपीए सरकार ने केवल 12516.20 करोड़ रुपये की राहत को मंजूरी दी, जबकि सूखे और ओलावृष्टि से प्रभावित राज्यों ने 92043.49 करोड़ रुपये की राहत प्रदान करने की मांग रखी थी। सरकार ने अकेले वर्ष 2014-15 में ही सूखे और ओलावृष्टि से प्रभावित राज्यों को राहत पहुंचाने के लिए 9017.998 करोड़ रुपये की राशि मंजूर की, जबकि इन प्रभावित राज्यों ने 42021.71 करोड़ रुपये राशि प्रदान करने की मांग की थी। वर्ष 2015-16 के दौरान, 41722.42 करोड़ रुपये की मांग के विपरीत अब तक 13,497.71 करोड़ रुपये की राशि पहले ही मंजूर की जा चुकी है।
- एन.डी.आर.एफ. के अंतर्गत, संघशासित प्रदेशों को राहत मुहैया कराने के लिए कोई भी पृथक योजना नहीं थी। इसी को ध्यान में रखते हुए, सरकार ने वर्ष 2015-16 के दौरान संघशासित प्रदेशों के लिए 50 करोड़ रुपये की राशि का आवंटन किया है।
प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना (पी.एम.के.एस.वाई.)
- पी.एम.के.एस.वाई. का प्रारंभ सूखे के प्रभाव को कम करने का दीर्घकालिक समाधान विकसित करने के उद्देश्य से किया गया है। पी.एम.के.एस.वाई. न केवल सिंचाई के स्रोत तैयार करने पर ध्यान केंद्रित करती है, अपितु यह सूखे के प्रभावों को कम करने और भू-जल में सुधार लाने में सहायता करती है। यह कार्यक्रम तीन मंत्रालयों द्वारा संयुक्त रूप से कार्यान्वित किया जा रहा है।
- यह योजना मिशन के रूप में कार्यान्वित की जाएगी। इसके तहत 28.5 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में सिंचाई की सुविधा उपलब्ध करायी जाएगी, जिसके लिए वर्ष 2016-2017 के लिए 5717 करोड़ रुपये की राशि निर्धारित की गयी है। कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय ने वर्ष 2015-2016 के 1550 करोड़ रुपये की तुलना में 2340 करोड़ रुपये की राशि प्राप्त की है और यह वृद्धि 51 प्रतिशत की है। यह राशि सूक्ष्म सिंचाई (ड्रिप और स्प्रिंकलर), ड्राउट प्रूफिंग और जल संरक्षण गतिविधियों में उपयोग में लायी जाएगी।
- वर्ष 2013-14 और वर्ष 2014-15 के दौरान क्रमश 4.31 लाख हेक्टेयर और 4.25 लाख हेक्टेयर क्षेत्र सूक्ष्म सिंचाई के अंतर्गत लाया गया था।
- वर्ष 2015-16 के दौरान 5.43 लाख हेक्टेयर क्षेत्र सूक्ष्म सिंचाई के अंतर्गत लाया गया। वर्ष 2016-17 के लिए, 7 लाख हेक्टेयर क्षेत्र सूक्ष्म सिंचाई के अंतर्गत लाने का लक्ष्य निर्धारित किया गया है।
- 89 विशाल और मझौली सिंचाई परियोजनाएं 15-20 वर्षों से लंबित पड़ी हैं। 80.6 लाख हेक्टेयर क्षेत्र की सिंचाई के लिए इन परियोजनाओं को पूरा करने के वास्ते अगले पांच वर्षों में 86,500 करोड़ रुपए की राशि की आवश्यकता होगी।
- वर्ष 2016-17 के दौरान 23 सिंचाई योजनाओं को लागू करने के लिए 12517 करोड़ रुपये की राशि व्यय की जाएगी।
- इसके अतिरिक्त, सिंचाई और त्वरित कार्यान्वयन के लिए इस वर्ष नाबार्ड के माध्यम से 20,000 करोड़ रुपये की राशि का कोष तैयार करने का फैसला किया गया है।
- यह कार्यक्रम हर किसान और हर खेत को सिंचाई का पानी उपलब्ध कराने के उद्देश्य से शुरू किया गया है।
- योजना प्रक्रिया में एकरूपता लाने के लिए डीआईपी का खाका विकसित किया गया है और उसे राज्यों के साथ साझा किया गया है।
- 31 मार्च, 2016 तक 235 डीआईपी तैयार किया गया है और 30 सितंबर 2016 तक, जिलों शेष के लिए डीआईपी तैयार हो जाने की संभावना है।
- वर्ष 2015-16 के दौरान राज्यों / संघ राज्य क्षेत्रों को डीआईपी तैयार करने के लिए 65.4 करोड़ रुपये की राशि जारी की गई है ।
- स्थैतिक विशेषताओं के साथ पी.एम.के.एस.वाई. की वेबसाइट का शुभारंभ किया गया है।
- देश में भूजल की समस्या से निपटने के लिए कृषि, सहकारिता और किसान कल्याण विभाग ने वर्ष 2015-16 के दौरान, 175 करोड़ रुपए की राशि आवंटित की है। उक्त राशि का उपयोग केंद्रीय भूजल बोर्ड द्वारा की चिन्हित 150 प्रखंडों में मनरेगा के अंतर्गत पानी से संबंधित कार्यों में सामग्री की पूरक व्यवस्था के लिए किया जाएगा। यह पहल देश में पहली बार की गयी है।
- राज्यों को भूजल पुनर्भरण, भूजल की स्थिति में सुधार, मिट्टी में निहित नमी में सुधार साथ ही साथ सूक्ष्म जल भंडारण स्थिति के लिए 258.9 करोड़ रुपए की राशि जारी की गयी है ताकि देश में सूखा प्रभावित 219 जिलों में समस्याओं से निपटा जा सके।
- ए.टी.एम.ए. कार्यक्रम के माध्यम से प्रशिक्षण के लिए 56.2 करोड़ रुपए की राशि का आवंटन किया गया है, ताकि क्षेत्रीय आधार पर किसानों के लिए पानी का बेहतर इस्तेमाल सुनिश्चित किया जा सके।
मृदा स्वास्थ्य कार्ड योजना
- मृदा स्वास्थ्य कार्ड योजना किसानों को उनकी मिट्टी की उर्वरता की स्थिति के बारे में जानकारी प्रदान करने के लिए सरकार द्वारा पहली बार उठाया गया कदम है। इससे पहले कुछ राज्य अपने स्तर पर अलग अलग तरीकों से इस योजना को लागू कर रहे थे। मृदा स्वास्थ्य कार्ड्स के माध्यम से नमूना संग्रह, परीक्षण और उर्वरक की सिफारिश में कोई एकरूपता नहीं थी। इससे पहले राज्यों को अलग से धनराशि भी प्रदान नहीं की गयी थी।
- इस योजना के अंतर्गत, देश के सभी किसानों को दो साल के अंतराल पर मृदा स्वास्थ्य कार्ड उपलब्ध कराया जाएगा। यह फसलों की पैदावार के लिए उपयोग में लाए जाने वाले पोषक तत्वों की खुराक संबंधी उचित सिफारिश करेगा और किसानों को उनकी मिट्टी का स्वास्थ्य और उसकी ऊर्वरता में सुधार लाने में सक्षम बनाएगा।
- इस योजना के अंतर्गत वर्ष 2015-2016 में आवंटित 142 करोड़ रुपये की राशि की तुलना में वर्ष 2016-17 में 155 प्रतिशत वृद्धि के साथ 360 करोड़ रुपए की राशि आवंटित की गयी है। वर्ष 2015-2016 में संग्रह किए गए 1 करोड़ मिट्टी के नमूनों की तुलना में, 91लाख के नमूने एकत्र किए गए हैं, जिनमें से 4.5 करोड़ कार्ड तैयार किए जाएंगे और किसानों को वितरित किए जाएंगे।
मृदा स्वास्थ्य प्रबंधन योजना
- मृदा स्वास्थ्य प्रबंधन योजना (एस.एच.एम.) पौधों के पोषक तत्वों से संबंधित जैविक और अजैव स्रोतों के संयुक्त उपयोग के माध्यम से मृदा परीक्षण प्रयोगशालाओं की स्थापना/सुदृढ़ीकरण, प्रशिक्षण और उर्वरकों के संतुलित उपयोग के प्रदर्शनों के जरिए मृदा परीक्षण पर आधारित संतुलित एकीकृत पोषक तत्व प्रबंधन को बढ़ावा देने के लिए लागू की जा रही है। पिछले 2 वर्षों के दौरान, 180 (वर्ष 2014-2015 में 79 और वर्ष 2015-2016 में 101) मृदा परीक्षण प्रयोगशालाएं मंजूर की गयीं।
परम्परागत कृषि विकास योजना
- जैविक खेती को बढ़ावा देने के लिए, पहली बार, सरकार द्वारा परम्परागत कृषि विकास योजना का शुभारंभ किया गया है। केन्द्र सरकार द्वारा वर्ष 2016-2017, के दौरान 297 करोड़ रुपये आवंटित किए गए, जिसमें वर्ष 2015-2016 में किए गए 250 करोड़ रुपये के आवंटन में 19 प्रतिशत वृद्धि की गई है। अब तक, राज्य सरकारें 8000 समूह बना चुकी हैं।
- पूर्वोत्तर राज्यों के लिए जैविक मूल्य श्रृंखला पूर्वोत्तर राज्यों और जैविक मूल्य श्रृंखला के विकास हेतु आगामी तीन वर्षों के लिए वर्ष 2015-2016 में 400 करोड़ रूपये की राशि आवंटित की गई। यह योजना वर्ष 2015-2016 में 125 करोड़ रुपये के आवंटन से साथ प्रारंभ की गयी, जो जैविक कृषि योजना के विकास के लिए मार्ग प्रशस्त करेगी। शेष 275 करोड़ रुपये की धनराशि अगले वर्ष (2016-17 और 2017-18) संचालित की जाने वाली परियोजनाओं की जरूरतों को पूरा करेगी। इसके अलावा मनरेगा के अंतर्गत जैविक खाद के लिए 10 लाख वनस्पतिक खाद की खाइयों तैयार की जाएगी।
नीम कोटेड यूरिया
- मोदी सरकार ने नीम कोटेड यूरिया के उत्पादन को 100 प्रतिशत अनिवार्य बना दिया है। सभी आयातित यूरिया पर भी नीम का कोट लगाया जाना आवश्यक है। नीम कोटेड यूरिया का उपयोग करने से, सादे यूरिया की तुलना में 10-15 प्रतिशत बचत होने का अनुमान है।
राष्ट्रीय कृषि मंडी
- किसानों को उनकी उपज के अच्छे दाम मिल सके, इसके लिए भारत सरकार ने 1 जुलाई 2015 को 200 करोड़ रुपये के साथ राष्ट्रीय कृषि मंडी योजना का प्रारंभ किया। इसका उद्देश्य मार्च 2018 तक 585 नियंत्रित मंडियों को सामान्य ई-मार्केट प्लेटफॉर्म के साथ जोड़ना है।
- 12 राज्यों / संघ शासित प्रदेशों यथा-गुजरात, महाराष्ट्र, तेलंगाना, झारखंड, छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश, राजस्थान, चंडीगढ़ (संघ शासित प्रदेश), उत्तर प्रदेश, हरियाणा, आंध्र प्रदेश और हिमाचल प्रदेश की 365 मंडियों को राष्ट्रीय कृषि मंडी (एन.ए.एम.) के साथ जोड़ने के लिए और रणनीतिक साझीदार द्वारा एन.ए.एम. प्लेटफॉर्म के कार्यान्वयन के लिए 30 अप्रैल 2016 तक,159.43 करोड़ रुपये की राशि मंजूर की गई थी।
- माननीय प्रधानमंत्री द्वारा 14 अप्रैल, 2016 को डॉ. भीम राव अम्बेडकर की 100 वीं जयंती के अवसर पर इस योजना के अंतर्गत ई-ट्रेडिंग प्लेटफॉर्म (ई- एन.ए.एम.) को संचालित किया गया है।
- अप्रैल 2016-सितंबर 2016 के बीच, 200 मंडियों को इस ई-ट्रेडिंग पोर्टल के साथ जोड़ा जाएगा।
- 31 मार्च 2017 तक, 200 मंडियों के अगले बैच के इस ई-ट्रेडिंग पोर्टल के साथ जोड़ा जाएगा।
- शेष 185 मंडियों को 31 मार्च 2018 तक इस ई-ट्रेडिंग पोर्टल के साथ जोड़ा जाएगा।
कृषि के क्षेत्र में वित्तीय प्रवाह
- कृषि क्षेत्र में वित्तीय प्रवाह वर्ष 2015-16 के 8.5 लाख करोड़ रुपये से बढ़ा कर वर्ष 2016-17 में 9 लाख रुपये कर दिया गया है, ताकि ऋण तक पहुंच बढ़ायी जा सके।
कृषि शिक्षा और अनुसंधान
- पूर्वोत्तर भारत की अपार संभावनाओं को पहचानते हुए सरकार द्वारा केन्द्रीय कृषि विश्वविद्यालय इम्फाल के अंतर्गत छह नए महाविद्यालय, खोले गए। इसके कारण, पूर्वोत्तर क्षेत्र में कृषि महाविद्यालयों की संख्या में पिछले दो साल में लगभग 85 प्रतिशत वृद्धि हुई है।
- इसी तरह, बुंदेलखंड क्षेत्र में, रानी लक्ष्मीबाई केंद्रीय कृषि विश्वविद्यालय, झांसी के अंतर्गत 4 नए महाविद्यालय खोले गए।
- पूसा अनुसंधान संस्थान, नई दिल्ली, की तर्ज पर 68 वर्षों में पहली बार, भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (आई.ए.आर.आई.) बरही, झारखंड में स्थापित किया गया और अब एक और संस्थान असम में स्थापित किया जा रहा है। सरकार ने विभिन्न राज्यों में उच्च कृषि शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए, आठ नए कृषि विश्वविद्यालयों की स्थापना में सहायता प्रदान की है। नई सरकार के प्रयासों के फलस्वरूप, वर्ष 2013 की तुलना में वर्ष 2015 में राज्य कृषि विश्वविद्यालयों में आई.सी.ए.आर. के माध्यम से छात्रों की भर्ती में लगभग 41 प्रतिशत वृद्धि हुई।
- ग्रामीण कृषि कार्य अनुभव (आर.ए.डब्ल्यू.ई.) का लक्ष्य किसानों के साथ काम करने का वास्तविक अनुभव प्रदान कराना, उत्पादन, संरक्षण और विपणन संबंधी अवरोधों की पहचान कराना, औद्योगिक सम्बद्धता, व्यवहारिक प्रशिक्षण आदि उपलब्ध कराना है। वर्ष 2016 से छात्रों के लिए छात्रवृत्ति 750 रुपये प्रति माह से बढ़कर 3000 रुपये प्रति माह कर दी गई है ।
- राष्ट्रीय प्रतिभा छात्रवृत्ति (एन.टी.एस.) के अंतर्गत स्नातक की पढ़ाई करने वाले छात्रों को वित्तीय सहायता 1000 रुपये प्रतिमाह से बढ़ाकर 2000 रुपये प्रति माह कर दी गई है और वर्ष 2016 से अन्य राज्य में पढ़ने जाने वाले स्नातकोत्तर छात्रों के लिए 3000 रुपये प्रतिमाह छात्रवृत्ति की एक नई पहल की गयी है।
- कृषि महाविद्यालयों में अनुभवजन्य शिक्षण इकाइयों की संख्या में वर्ष 2013 की तुलना में लगभग 50 प्रतिशत वृद्धि हुई है।
- दक्षता बढ़ाने और खेती की कुल लागत में कमी लाने के लिए नए कृषि उपकरणों के कुल 9067 प्रोटोटाइप विकसित किए गए। वर्ष 2013 की तुलना के रूप में, इनकी संख्या लगभग दोगुनी हो गई है।
- पूर्वी भारत में दूसरी हरित क्रांति की गति में तेजी लाने के लिए, "राष्ट्रीय समेकित कृषि अनुसंधान केन्द्र" जैसे दूसरे केंद्र की मोतिहारी, बिहार में स्थापना की जा रही है।
- गंगटोक, सिक्किम में प्रथम राष्ट्रीय जैव कृषि अनुसंधान संस्थान स्थापित करने का निर्णय किया गया है।
- सूखा, बाढ़, कोहरा, तूफान, आदि जैसी प्राकृतिक आपदाओं से किसानों की आजीविका को बचाने और इनका प्रभाव कम करने के लिए 79 नई आकस्मिक योजना विकसित की गई हैं और उन्हें 600 प्रभावित जिलों में लागू किया गया है।
- त्वरित गति से मृदा परीक्षण करने और संतुलित उर्वरकों की सिफारिश करने के लिए नव मृदा परीक्षक किट विकसित की गई है।
वैज्ञानिकों की भर्ती में वृद्धि -
- खुली प्रतियोगिता और महिला वैज्ञानिकों के प्रतिनिधित्व में वृद्धि के माध्यम से भर्ती प्रक्रिया में तेजी लाते हुए वर्ष 2013-14 में हुई मात्र 66 प्रतिशत भर्तियों की तुलना में वर्ष 2014-15 और 2015-16 में 81 प्रतिशत भर्तियां की गईं।
- वर्ष 2015-16 में डी.ए.आर.ई./आई.सी.ए.आर. को कुल 5387.95 करोड़ रुपये के वित्तीय संसाधन उपलब्ध कराये गये, जबकि वर्ष 2016-17 में पिछले साल की तुलना में लगभग 17 प्रतिशत की वृद्धि के साथ 6309.89 करोड़ रुपए के वित्तीय संसाधन उपलब्ध कराये गये हैं, जिससे शिक्षा, अनुसंधान और कृषि विस्तार को बल मिलेगा।
- दालों, तिलहनों और अन्य फसलों की उन्नत किस्मों पर ध्यान केंद्रित किया गया।
- पिछले दो वर्षों के दौरान अनाज, तिलहन, दालों, फाइबर और चारा फसलों सहित विभिन्न फसलों की 155 नई उन्नत किस्में विकसित की गई हैं।
- पिछले दो वर्षों के दौरान रोग प्रतिरोधक क्षमता से युक्त दालों की 20 और तिलहनों की 24 नई अधिक उपज देने वाली किस्में विकसित की गई हैं।
- तिलहनों की इन किस्मों में अधिक उपज के अलावा, तेल की मात्रा भी अधिक है।
- चावल और गेहूं सहित अनाज की 96, फाइबर फसलों की तीन, चारा फसलों की नौ और गन्ने की तीन किस्में विकसित की गई हैं।
- एक नई किस्म 'पूसा मस्टर्ड 30' और उसका तेल 4 फरवरी 2016 व्यावसायिक रूप से लान्च किया गया। इसमें स्वास्थ्य के लिए हानिकारक इरुसिक एसिड की बहुत कम मात्रा है।
- 'खेसारी दाल' की तीन नई किस्में विकसित की गई हैं। इनमें हानिकारक रसायन ओएडीपी नगण्य मात्रा में है। नई और सुरक्षित खेसारी दाल की किस्मों की खेती शुरू करने के लिए पहल की गई है।
पशुपालन, डेयरी और पशु चिकित्सा शिक्षा
- राष्ट्रीय गोकुल मिशन, राष्ट्रीय पशु प्रजनन एवं डेयरी विकास कार्यक्रम के अंतर्गत एक नई पहल है और इसे देशी, गोजातीय नस्लों के संरक्षण और विकास के लिए देशभर में पहली बार शुरू किया गया है।
- देशी नस्लों के विकास के लिए वर्ष 2007-08 से वर्ष 2013-14 तक, केवल 45 करोड़ रुपये की अल्प राशि ही खर्च की गई थी, जबकि वर्तमान सरकार ने दिसंबर 2015 तक, केवल डेढ़ वर्ष की अवधि में ही 27 राज्यों की 29 परियोजनाओं को मंजूरी प्रदान की और 550 करोड़ रुपये की राशि मंजूर की।50 करोड़ रुपये के आवंटन के साथ देश में दो राष्ट्रीय कामधेनु प्रजनन केंद्र- एक उत्तरी क्षेत्र में और एक दक्षिणी क्षेत्र में स्थापित किये जा रहे हैं।
- दुग्ध उत्पादन के क्षेत्र में भारत विश्व में पहले नम्बर पर है। दूध उत्पादन वर्ष 2013-14 के 137,61 मिलियन टन से बढ़कर वर्ष 2014-15 के दौरान 146,31 मिलियन टन हो गया और इसमें 160 मिलियन टन वृद्धि (अनुमानित) है पिछले 10 वर्षों के दौरान, दुनिया के औसत दुग्ध उत्पादन में सालाना 2.2प्रतिशत की वृद्धि हुई है, जबकि भारत में दुग्ध उत्पादन में सालाना 4.2 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। वर्ष 2014-15 और 2015-16 के दौरान देश में दुग्ध उत्पादन में क्रमश 6.3 प्रतिशत और 9 प्रतिशत (अनुमानित) वृद्धि हुई।
- प्रशिक्षित पशु चिकित्सकों की कमी को पूरा करने के लिए, पशु चिकित्सा महाविद्यालयों की संख्या 36 से बढ़ाकर 46 कर दी गई है। विभिन्न पशु चिकित्सा महाविद्यालयों में छात्रों की सीटों की संख्या 60 से बढ़ाकर 100 कर दी गई है। 17 पशु चिकित्सा महाविद्यालयों में सीटों की कुल संख्या 914 से बढ़ाकर 1332 कर दी गई है। पशु चिकित्सा स्नातकों की संख्या में डेढ़ गुना वृद्धि हुई है। इसी प्रकार पशु चिकित्सा महाविद्यालयों में सीटों की संख्या में डेढ़ गुना वृद्धि हुई है। पशु चिकित्सा शिक्षा में स्नातकोत्तर अध्ययन में डेढ़ गुना वृद्धि प्राप्त कर ली गई है। पशु चिकित्सा महाविद्यालयो में सीटों की संख्या में डेढ़ गुना वृद्धि हुई।
- चार नई परियोजनाएं – मवेशी संजीवनी, नकुल स्वास्थ्य पत्र, ई-मवेशी हॉट और राष्ट्रीय देशी नस्ल जिनोमिक केंद्र के लिए नये बजट में 850 करोड़ रुपये का प्रावधान किया गया है।
- पशुपालन, डायरी और मत्स्य पालन के लिए वर्ष 2016-17 के लिए 1600 करोड़ रुपये की राशि आवंटित की गई है, जबकि वर्ष 2015-16 में यह राशि 1491 करोड़ रूपये थी।
- वर्ष 2014-15 के दौरान देश में 78,484 मिलियन अंडों का उत्पादन हुआ, जबकि वर्ष 2013-14 के दौरान 74752 करोड़ अंडों का उत्पादन हुआ था। देश में अंडों के उत्पादन में अब सालाना 5 प्रतिशत वृद्धि हो रही है।
नीली क्रांति
- मत्स्य पालन के क्षेत्र में विकास की अपार संभावनाओं को देखते हुए मोदी सरकार इस क्षेत्र में 'नीली क्रांति' की शुरुआत की है। तदनुसार, सभी जारी योजनाओं का विलय करते हुए 'नीली क्रांति' नामक योजना तैयार की गई है।
- 'नीली क्रांति' योजना के अंतर्गत अंतर्देशीय और समुद्री मत्स्य पालन को जोड़ते हुए पूरे मत्स्य पालन क्षेत्र के समेकित विकास को सुगम बनाया गया है। 'नीली क्रांति' में उन्नत प्रौद्योगिकियों के जरिये मछली पालन और देश में उपलब्ध के उपयोग विशाल मत्स्य संसाधनों का उपयोग करते हुए मछली उत्पादन बढ़ाने पर मुख्य रूप से ध्यान केंद्रित किया गया है।
- केंद्रीय बजट में 'नीली क्रांति' योजना हेतु पांच साल के लिए 3000 करोड़ रुपये निर्धारित किए गए हैं।वर्ष 2014-15 के दौरान 101.64 लाख टन मछली का उत्पादन हुआ, जबकि वर्ष 2013-14 के दौरान 95.72 लाख टन मछली का उत्पादन हुआ था। (इसमें 5.92 लाख टन की वृद्धि दर्ज की गई)वर्ष 2015-16 के दौरान मछली उत्पादन बढ़कर 107.95 लाख टन हुआ (6.31 लाख टन की वृद्धि), जो वर्ष 2014-15 से 6.21 प्रतिशत अधिक है।
- वर्ष 2013-14 के दौरान पिछली सरकार द्वारा 'बचत-सह-राहत' घटक के अंतर्गत प्रति माह प्रदान की जाने वाली 600 रुपये की राशि मोदी सरकार द्वारा बढ़ा दी गई है। वर्ष 2014-15 के दौरान इसे बढ़ाकर 900 रुपये प्रति माह कर दिया गया, और इसे पुन संशोधित करते हुए नीली क्रांति योजना के अंतर्गत 1500 प्रति माह किया गया है।
- 'नीली क्रांति मत्स्य पालन का समन्वित विकास और प्रबंधन' क्षेत्र के अंतर्गत पूर्वोत्तर राज्यों के लिए केंद्रीय वित्तीय सहायता 75 प्रतिशत से बढ़ा कर 80 प्रतिशत तक दी गई है।
किसान टीवी
किसान टीवी -सातों दिन और चौबीसों घंटे वाला चैनल है, जो किसानों को मौसम, किसान मंडी और अन्य पहलुओं के बारे में जानकारी प्रदान करने में सहायता करता है।