Monday 5 June 2017

सोलीबैकिलस कलामी : नव-अन्वेषित जीवाणु


सूक्ष्मजीव जैसे जीवाणु इत्यादि सर्वव्यापी होते हैं। यह मृदा, जल, वायु, मनुष्य एवं अन्य प्राणियों के शरीर के अंदर तथा पादपों में पाए जाते हैं। यहां तक कि अंतरिक्ष, जहां किसी भी प्रकार का जीवन संभव नहीं है, वहां भी इनके अस्तित्व की पुष्टि की गई है। ‘अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन’ (ISS) के सूक्ष्मजीवीय निरीक्षण से ज्ञात होता है कि पृथ्वी की परिक्रमा कर रही इस प्रणाली में प्रतिकूल परिस्थितियों में भी जीवाणु एवं कवक जैसे सूक्ष्मजीव जीवित रह सकते हैं।
  • हाल ही में नासा (NASA) की ‘जेट प्रोपल्शन लेबोरेटरी’ (Jet Propulsion Laboratory : JPL) में कार्यरत अनुसंधानकर्ताओं ने ‘अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन’ में 40 महीनों तक स्थापित रहे एक फिल्टर में एक नए जीवाणु (Bacteria)की खोज की है।
  • भारत के भूतपूर्व राष्ट्रपति एवं प्रख्यात वैज्ञानिक डॉ. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम के सम्मान में इस नव-अन्वेषित जीवाणु को ‘सोलीबैकिलस कलामी’ (Solibacillus Kalamii) नाम दिया गया है।
  • उल्लेखनीय है कि अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन में आर्द्रता-नियंत्रण तथा वायु-शोधन उपकरणों में कचरे के संग्रहण को रोकने तथा वातावरण को ‘निलंबित पार्टिकुलेट मैटर’ (Suspended Particulate Matter) से मुक्त रखने के लिए ‘हेपा’ (High-Efficiency Particulate Arrestance : HEPA) फिल्टर का प्रयोग किया जाता है।
  • यह फिल्टर आईएसएस की पर्यावरणीय नियंत्रण प्रणाली में शामिल वातायन तंत्र (Ventilation System) का अंग होता है।
  • जिस हेपा फिल्टर से इस जीवाणु की खोज हुई है वह आईएसएस पर जनवरी, 2008 से मई, 2011 तक स्थापित रहा था।
  • नव-अन्वेषित जीवाणु ‘सोलीबैकिलस’ प्रजाति का है।
  • हालांकि यह जीवाणु अभी तक पृथ्वी पर नहीं पाया गया है, फिर भी यह परग्रही (Extra-Terrestrial) जीवाणु नहीं है।
  • वैज्ञानिकों का मानना है कि यह जीवाणु प्रक्षेपण के दौरान किसी सामान या उपकरण के साथ अंतरिक्ष स्टेशन पर पहुंच गया और वहां की प्रतिकूल परिस्थितियों में भी जीवित रहा।
  • यह जीवाणु उच्च विकिरण को सहन करने के अतिरिक्त कुछ प्रोटीन-युक्त यौगिकों के उत्पादन में भी सक्षम है जो जैव-प्रौद्योगिकी अनुप्रयोगों में उपयोगी साबित हो सकते हैं।
  • यह जीवाणु ऐसे रसायनों का मुख्य स्रोत साबित हो सकता है, जिनसे भविष्य में विकिरण क्षति से रक्षा में मदद प्राप्त हो सकती है।
कलामसैट
  • तमिलनाडु के करूर जिले में स्थित पल्लापट्टी के 18 वर्षीय छात्र रिफत शारूक ने विश्व के सबसे छोटे एवं हल्के उपग्रह का विकास किया है।
  • इस उपग्रह को भूतपूर्व राष्ट्रपति एवं प्रख्यात वैज्ञानिक डॉ. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम की स्मृति में ‘कलामसैट’ (KalamSat) नाम दिया गया है।
  • 4 सेंटीमीटर के इस घनाकार उपग्रह (Cube Satellite) का वजन मात्र 64 ग्राम है।
  • यह उपग्रह ‘प्रबलित कार्बन फाइबर बहुलक’ (Reinforced Carbon Fiber Polymer) द्वारा निर्मित है।
  • यह पहला ऐसा उपग्रह है, जिसे 3-डी प्रिंटिंग तकनीक द्वारा बनाया गया है।
  • अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी ‘नासा’ तथा ‘आई डूडल लर्निंग’ (I Doodle Learning) द्वारा संयुक्त रूप से प्रायोजित ‘क्यूब्स इन स्पेस’ (Cubes in Space) नामक प्रतियोगिता के माध्यम से चयनित इस उपग्रह को 21 जून, 2017 को अमेरिका के वर्जीनिया में वालप्स द्वीप स्थित ‘वालप्स उड़ान सुविधा’ (Wallops Flight Facility) से साउंडिंग रॉकेट SR-4 द्वारा प्रक्षेपित किया जाएगा।
  • यह प्रथम अवसर होगा जब किसी भारतीय छात्र के प्रायोगिक उपग्रह का प्रक्षेपण नासा द्वारा किया जाएगा।
  • प्रक्षेपण के बाद ‘उप-कक्षीय पथ’ (Sub-Orbital Path) में प्रवेश करते ही यह उपग्रह कार्य प्रारंभ कर देगा।
  • लगभग 12 मिनट तक परिचालित रहकर विभिन्न आंकड़े एकत्र करने के बाद यह उपग्रह समुद्र में गिर जाएगा।
  • इस उपग्रह का प्रमुख कार्य अंतरिक्ष में 3-डी प्रिंटेड कार्बन फाइबर के कार्य-निष्पादन का प्रदर्शन करना है।