Saturday 13 January 2018

संथाल विद्रोह


संथाल समुदाय झारखण्ड-बंगाल के सीमावर्ती क्षेत्रों के पर्वतीय इलाकों – मानभूम, बड़ाभूम, सिंहभूम, मिदनापुर, हजारीबाग, बाँकुड़ा क्षेत्र में रहते थे. कोलों के जैसे ही संथालों ने भी लगभग उन्हीं कारणों के चलते अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोह किया इस विद्रोह को भी अंग्रेजी सेना ने कुचल डाला आइए जानते हैं इस विद्रोह के कारण और परिणाम को संथाल विद्रोह (Santhal Rebellion) का दमन किस तरह अंग्रेजों ने किया, इस विद्रोह का महत्त्व क्या है और इस विद्रोह में कौन संथालों के तरफ से आगे खड़ा (प्रमुख नेता) हुआ आदि इस "ekawaz18" के पोस्ट के जरिए जानने की कोशिश करेंगे

विद्रोह के कारण


संथालों का जीवन-यापन कृषि और वन संपदाओं पर निर्भर था स्थायी बंदोबस्त के स्थापना के बाद संथालों के हाथ से खुद की जमीन भी निकल गयी इसलिए उन्होंने अपना इलाका छोड़ दिया और राजमहल की पहाड़ियों में रहने लगे यहाँ की जमीन को उन्होंने कृषि के योग्य बनाया, जंगल काटे और घर बनाया संथालों के इस इलाके को “दमनीकोह” के नाम से जाना गया सरकार की नजर दमनीकोह पर भी पड़ी और वहाँ भी लगान वसूलने के लिए आ टपके फिर वहाँ जमींदारी स्थापित कर दी गई अब उस इलाके में जमींदारों, महाजनों, साहूकारों और सरकारी कर्मचारियों का वर्चस्व बढ़ने लगा बेचारे संथालों पर लगान की राशि इतनी रखी गई कि लगान के बोझ तले वे बिखर गए दमन का तांडव ऐसा था कि महाजन द्वारा दिए गए कर्ज पर 50 से 500% तक का सूद वसूल किया जाने लगा वे लगान चुकाने में असमर्थ हो गये इन सब कारणों के चलते संथाल किसानों की दरिद्रता बढ़ गयी। कर्ज न चुकाने के चलते उनके खेत, मवेशी छीन लिए गए संथालों को जमींदारों, महाजनों का गुलाम बनना पड़ा संथालों को कहीं से भी न्याय मिलने वाला नहीं था सरकारी कर्मचारी, पुलिस, थानेदार आदि महाजनों का ही पक्ष लेते थे संथालों के हित के विषय में सोचना तो दूर, इनके द्वारा संथालों का धन लूटा गया, आदिवासी स्त्रियों की इज्जत लूटी गई संथालों को इन सब से बाहर निकालने वाला कोई नहीं था अंततः उनके जीवन की यह निराशा एक दिन सरकार पर कहर बन कर टूट पड़ी

विद्रोह का स्वरूप और प्रमुख नेता


1855 ई. में संथालों की क्रोध की सीमा पार कर गई संथालों को न्याय दिलाने के लिए चार भाई सामने आयेउनके नाम थे – सिद्धू, कान्हू, चाँद और भैरव इन्होंने संथालों को एकजुट किया सिद्धू ने खुद को देवदूत बतलाया ताकि संथाल समुदाय उसकी बातों पर विश्वास कर सके संथालों के अन्दर धर्म भावना पैदा  करने के लिए उसने कहा कि वह भगवान् “ठाकुर” के द्वारा भेजा गया दूत है जिन्हें वे रोज पूजते हैं 30 जून, 1855 ई. को इन भाइयों ने सथालों की एक आमसभा बुलाई जिसमें 10,000 संथालों ने भाग लिया। इस सभा में संथालों को यह विश्वास दिलाया गया कि खुद भगवान् ठाकुर की यह इच्छा है कि जमींदारी, महाजनी और सरकारी अत्याचारों के खिलाफ संथाल सम्प्रदाय डट कर विरोध करें अंग्रेजी शासन को समाप्त कर दिया जाए

जुलाई 1855 ई. में सथालों ने विद्रोह का बिगुल बजाया शुरुआत में यह आन्दोलन सरकार विरोधी आन्दोलन नहीं था पर जब संथालों ने देखा कि सरकार भी जमींदारों और महाजनों का पक्ष ले रही है तो उनका क्रोध सरकार पर भी टूट पड़ा संथालों ने अत्याचारी दरोगा महेश लाल को मार डाला बाजार, दुकान सब नष्ट कर दिए और थानों में आग लगा दी. कई सरकारी कार्यालयों, कर्मचारियों और महाजनों पर संथालों ने आक्रमण किया. इसके चलते कई बेकसूर भी मारे गए. भागलपुर और राजमहल के बीच रेल, डाक, तार सेवा आदि सेवा भंग कर दी गई. संथालों ने अंग्रेजी शासन को समाप्त करने की शपथ ले ली थी. संथाल विद्रोह (Santhal Rebellion) के आलावा हजारीबाग, बाँकुड़ा, पूर्णिया, भागलपुर, मुंगेर आदि जगहों में आग की तरह फैल रही थी

संथाल विद्रोह का दमन


ब्रिटिश सरकार संथाल की आक्रमकता देखकर अन्दर से हिल चुकी थी सरकार ने इस इस हिंसक कार्रवाई को सख्ती से दबाने का ऐलान किया बिहार के भागलपुर और पूर्णिया से सरकार के द्वारा घोषणापत्र जारी किया गया कि अब संथाल के विद्रोह को जल्द से जल्द कुचल दिया जाए कलकत्ता केजार बर्रों और पूर्णिया से सेना की एक टुकड़ी संथालों का दमन करने के लिए भेजी गई  फिर उसके बाद दमन का नग्न-नृत्य शुरू हुआसंथाल के पास अधिक शक्ति नहीं थी और पर्याप्त शस्त्र-अस्त्र भी नहीं थे मात्र तीर और धनुष से वे कितने दिन टिकते? फिर भी उन्होंने इस दमन का दबाव बहुत बहादुरी से दिया

अंततः कई संथालों को गिरफ्तार कर लिया गया और 15 हजार से अधिक संथाल सैनिकों द्वारा मार गिराए गएसंथाल के नेता भी गिरफ्तार कर लिए गए और मारे गए अपने नेता के गिरफ्तारी से संथालों का मनोबल टूट गया और फरवरी 1856 ई. तक संथाल विद्रोह (Santhal Rebellion) समाप्त कर दिया गया

संथाल विद्रोह का महत्त्व
भले ही हजारों संथालों ने अपने हक के लिए कुर्बानी दी पर उन्होंने ये साबित कर दिया कि निरीह जनता भी दमन और अत्याचार एक हद तक बर्दास्त नहीं कर सकती सरकार को संथाल की माँगों को बाद में पूरा करने का प्रयास किया जाने लगा कालांतर में सरकार ने संथालपरगना को जिला बनाया फिर भी आदिवासियों पर दमन होता ही रहा संथाल विद्रोह (Santhal Rebellion) की प्रेरणा लेकर आदिवासियों ने आगे भी सरकार के खिलाफ कई विद्रोह किए