Tuesday 24 July 2018

मानसून उत्पत्ति की तापीय संकल्पना का संक्षेप में वर्णन कीजिये।


     मानसून की उत्पत्ति की तापीय संकल्पना का सर्वप्रथम प्रतिपादन हैले ने 1686 ई. में किया था। मानसून की उत्पत्ति से संबंधित तापीय संकल्पना के अनुसार, मानसून की उत्पत्ति पृथ्वी पर स्थल तथा जल के असमान वितरण और उनके गर्म एवं ठंडा होने के विरोधी स्वभाव के कारण होती है।    यदि सूक्ष्म दृष्टि से देखा जाए तो मानसूनी हवाएँ स्थल तथा जल समीर का ही विस्तृत रूप होती हैं। गर्मियों में अधिक सूर्यातप के कारण स्थलीय भाग सागरों की अपेक्षा अधिक गर्म हो जाने के कारण वहाँ न्यून दाब के क्षेत्र विकसित हो जाते हैं तथा सागरीय भागों से स्थल की ओर हवाएँ चलने लगती हैं। इसके विपरीत सर्दियों में स्थल भाग उच्च दाब के केंद्र बन जाते हैं तथा सागरीय भाग न्यून दाब के क्षेत्र। तापीय संकल्पना के आधार पर मानसून को दो भागों में विभाजित किया जाता है।    ग्रीष्मकालीन मानसूनः 21 मार्च के बाद सूर्य उत्तरायण होने लगता है। 21 जून को कर्क रेखा पर सूर्य के सीधा चमकने से उत्तरी गोलार्द्ध में सर्वाधिक सौर्यिक ऊर्जा प्राप्त होती है।     अत्यधिक तापमान के कारण एशिया पर न्यून वायुदाब बन जाता है। इसके विपरीत दक्षिणी गोलार्द्ध में शीतकाल के कारण दक्षिण हिंद महासागर तथा उत्तर-पश्चिमी ऑस्ट्रेलिया के पास उच्च दाब विकसित हो जाता है। परिणामस्वरूप उच्च दाब वाले क्षेत्रों से अर्थात् महासागरीय भागों से निम्न दाब वाले स्थलीय भागों की ओर हवाएँ चलने लगती हैं। सागरों के ऊपर से आने के कारण नमी से लदी ये हवाएँ पर्याप्त वृष्टि प्रदान करती हैं। जब निम्न दाब का क्षेत्र अधिक सक्रिय हो जाता है तो दक्षिण-पूर्वी व्यापारिक हवा भी भूमध्य रेखा को पार करके मानसूनी हवाओं से मिल जाती है। इसे दक्षिण-पश्चिमी मानसून अथवा भारतीय मानसून भी कहा जाता है। इस प्रकार एशिया में मानसून की दो शाखाएँ हो जाती हैं-    चीन तथा जापान की मानसून शाखा  दक्षिण एशिया की मानसून शाखा    भारत में भी दक्षिण-पश्चिम मानसून की दो शाखाएँ हो जाती हैं-    बंगाल की खाड़ी तथा  अरब सागर की शाखा।    शीतकालीन मानसूनः शीतकाल में 22 दिसंबर को सूर्य मकर रेखा पर सीधा चमकता है जिस कारण उत्तरी गोलार्द्ध में शीतकाल तथा दक्षिणी गोलार्द्ध में ग्रीष्मकाल होता है। साथ ही एशिया महाद्वीप पर बैकाल झील तथा पेशावर के पास उच्च दाब स्थापित हो जाता है। जबकि दक्षिणी गोलार्द्ध में ग्रीष्मकाल के कारण ऑस्ट्रेलिया के उत्तर में निम्न दाब बन जाता है जिस कारण स्थलीय भाग से सागरों की ओर हवाएँ चलने लगती हैं। इसे उत्तर-पूर्वी मानसून कहते हैं। स्थल की ओर से आने के कारण ये हवाएँ शुष्क होती हैं। अतः वर्षा प्रदान करने में असमर्थ होती हैं।    इस तरह से तापीय संकल्पना के अनुसार, दोनों प्रकार के मानसून की उत्पत्ति तापीय अंतर तथा उससे जनित वायुदाब में अंतर के कारण होती है।

मानसून की उत्पत्ति की तापीय संकल्पना का सर्वप्रथम प्रतिपादन हैले ने 1686 ई. में किया था। मानसून की उत्पत्ति से संबंधित तापीय संकल्पना के अनुसार, मानसून की उत्पत्ति पृथ्वी पर स्थल तथा जल के असमान वितरण और उनके गर्म एवं ठंडा होने के विरोधी स्वभाव के कारण होती है।

यदि सूक्ष्म दृष्टि से देखा जाए तो मानसूनी हवाएँ स्थल तथा जल समीर का ही विस्तृत रूप होती हैं। गर्मियों में अधिक सूर्यातप के कारण स्थलीय भाग सागरों की अपेक्षा अधिक गर्म हो जाने के कारण वहाँ न्यून दाब के क्षेत्र विकसित हो जाते हैं तथा सागरीय भागों से स्थल की ओर हवाएँ चलने लगती हैं। इसके विपरीत सर्दियों में स्थल भाग उच्च दाब के केंद्र बन जाते हैं तथा सागरीय भाग न्यून दाब के क्षेत्र। तापीय संकल्पना के आधार पर मानसून को दो भागों में विभाजित किया जाता है।

ग्रीष्मकालीन मानसूनः 21 मार्च के बाद सूर्य उत्तरायण होने लगता है। 21 जून को कर्क रेखा पर सूर्य के सीधा चमकने से उत्तरी गोलार्द्ध में सर्वाधिक सौर्यिक ऊर्जा प्राप्त होती है। 

अत्यधिक तापमान के कारण एशिया पर न्यून वायुदाब बन जाता है। इसके विपरीत दक्षिणी गोलार्द्ध में शीतकाल के कारण दक्षिण हिंद महासागर तथा उत्तर-पश्चिमी ऑस्ट्रेलिया के पास उच्च दाब विकसित हो जाता है। परिणामस्वरूप उच्च दाब वाले क्षेत्रों से अर्थात् महासागरीय भागों से निम्न दाब वाले स्थलीय भागों की ओर हवाएँ चलने लगती हैं। सागरों के ऊपर से आने के कारण नमी से लदी ये हवाएँ पर्याप्त वृष्टि प्रदान करती हैं। जब निम्न दाब का क्षेत्र अधिक सक्रिय हो जाता है तो दक्षिण-पूर्वी व्यापारिक हवा भी भूमध्य रेखा को पार करके मानसूनी हवाओं से मिल जाती है। इसे दक्षिण-पश्चिमी मानसून अथवा भारतीय मानसून भी कहा जाता है। इस प्रकार एशिया में मानसून की दो शाखाएँ हो जाती हैं-

चीन तथा जापान की मानसून शाखा
दक्षिण एशिया की मानसून शाखा

भारत में भी दक्षिण-पश्चिम मानसून की दो शाखाएँ हो जाती हैं-

बंगाल की खाड़ी तथा
अरब सागर की शाखा।

शीतकालीन मानसूनः शीतकाल में 22 दिसंबर को सूर्य मकर रेखा पर सीधा चमकता है जिस कारण उत्तरी गोलार्द्ध में शीतकाल तथा दक्षिणी गोलार्द्ध में ग्रीष्मकाल होता है। साथ ही एशिया महाद्वीप पर बैकाल झील तथा पेशावर के पास उच्च दाब स्थापित हो जाता है। जबकि दक्षिणी गोलार्द्ध में ग्रीष्मकाल के कारण ऑस्ट्रेलिया के उत्तर में निम्न दाब बन जाता है जिस कारण स्थलीय भाग से सागरों की ओर हवाएँ चलने लगती हैं। इसे उत्तर-पूर्वी मानसून कहते हैं। स्थल की ओर से आने के कारण ये हवाएँ शुष्क होती हैं। अतः वर्षा प्रदान करने में असमर्थ होती हैं।

इस तरह से तापीय संकल्पना के अनुसार, दोनों प्रकार के मानसून की उत्पत्ति तापीय अंतर तथा उससे जनित वायुदाब में अंतर के कारण होती है।