यह कहानी एक जर्मन महिला की है, जिनका नाम था (Emilie Schenkl) एमिली शेंकल।
हमें नहीं पता आपमें से कितनों ने ये नाम सुना है, और अगर नहीं सुना है तो आप दोषी नहीं । इस नाम को इतिहास से खुरच कर निकाल फेंका गया।
श्रीमती एमिली शेंकल ने 1937 में भारत माँ के लाड़ले बेटे सुभाष चन्द्र बोस से विवाह किया और एक ऐसे देश को ससुराल के रूप में चुना जिसने कभी इस बहू का स्वागत नहीं किया ....न बहू के आगमन में किसी ने मंगल गीत गाये और न उसकी बेटी के जन्म पर कोई सोहर गायी गयी। कभी कहीं जन मानस में चर्चा तक नहीं हुई कि वो कैसे जीवन गुजार रही हैं।
सात साल के कुल वैवाहिक जीवन में सिर्फ 3 साल ही उन्हें अपने पति के साथ रहने का अवसर मिला फिर उन्हें और नन्हीं सी बेटी को छोड़ पति देश के लिए लड़ने चला आए ........ इस वायदे के साथ कि पहले देश को आजाद करा लूँ। फिर तो सारा जीवन तुम्हारे साथ बिताना ही है। पर ऐसा हो न सका और 1945 में एक कथित विमान दुर्घटना में वो लापता हो गए।
उस समय एमिली शेंकल बेहद युवा थीं। चाहतीं तो यूरोपीय संस्कृति के हिसाब से दूसरा विवाह कर सकती थी।पर उन्होंने ऐसा नहीं किया और सारा जीवन बेहद कड़ा संघर्ष करते हुए बिताया ..... एक तारघर की मामूली क्लर्क की नौकरी और बेहद कम वेतन के साथ वो अपनी बेटी को पालती रहीं। न किसी से शिकायत की न कुछ माँगा।
भारत भी तब तक आजाद हो चुका था। और वे चाहतीं थीं कि कम से कम एक बार उस देश में आएँ जिसकी आजादी के लिए उनके पति ने जीवन न्योछावर कर दिया था।
लेकिन भारत का एक राजनीतिक परिवार इतना भयभीत था की .......
आखिरकार बेहद कठिनाइयों भरे और किसी भी तरह की चकाचौंध से दूर रहकर बेहद साधारण जीवन गुजार कर श्रीमती एमिली शेंकल बोस ने मार्च 1996 में गुमनामी में ही जीवन त्याग दिया।