फीफा: 68 साल बाद फाइनल में पहुँचने वाला सबसे छोटा देश बना क्रोएशिया, जनसंख्या सिर्फ 40 लाख रूस में हो रहे फीफा वर्ल्ड कप में पूर्वी यूरोप के छोटे से देश क्रोएशिया ने अबतक ऐसा खेल दिखाया है, जिसकी उम्मीद शायद किसी फुटबॉल प्रशंसक को नहीं रही होगी। सेमीफाइनल में इंग्लैंड को हराकर फाइनल में पहुँचे क्रोएशिया का नाम भी कई लोगों के लिए नया था। पहली बार फाइनल का टिकट पक्का कर चुके इस छोटे देश की कई बातें बड़े-बड़े मुल्कों के लिए भी मिसाल हैं।
क्रोएशिया वर्ल्ड कप फाइनल खेलने वाला सबसे युवा देश होगा। क्रोएशिया 1991 में आजाद हुआ था। युगोस्लाविया से अलग होकर स्वतंत्र राष्ट्र बनने के बाद क्रोएशिया को फुटबॉल वर्ल्ड कप में अपना पहला मैच खेलने के लिए 1998 तक का इंतजार करना पड़ा था।
वो कप्तान जिसने बारूदी सुरंगों के बीच फ़ुटबॉल सीखी
जब वो 6 साल के थे, तो उनके दादा को गोली मार दी गई थी। उनका परिवार युद्ध क्षेत्र में शरणार्थी था। वो ग्रेनेड के विस्फोटों के बीच बड़े हुए। उनके कोच कहते हैं कि वो फुटबॉल खेलने के लिए बहुत कमजोर थे। उसी मोद्रिच ने अपने देश क्रोएशिया को पहली बार फ़ुटबॉल वर्ल्ड कप के फ़ाइनल में पहुँचा दिया।
फ़ुटबॉल वर्ल्ड कप के फाइनल में क्रोएशिया के पहली बार पहुँचने के बाद मॉस्को के लुजनिकी स्टेडियम के बाहर उसके एक प्रशंसक से मेक्सिकन पत्रकार ने बात की।
जब इस फ़ुटबॉल प्रशंसक जैकब मोटिक से फ्रांस के खिलाफ रविवार को फाइनल की चुनौती को लेकर पूछा गया तो वो उसे लेकर चिंतित नहीं थे, क्योंकि जो उन्होंने अभी अभी देखा था उन्हें अभी तक यकीन नहीं हो पा रहा था कि उनकी टीम फाइनल में पहुँच गई है।
वो कहते हैं, "आप लुका मोद्रिच को जानते हैं न? वो बारूदी सुरंगों के बीच फ़ुटबॉल खेलते थे, उनकी ही तरह हम बिल्कुल भी डरे हुए नहीं हैं।
17 साल के ये प्रशंसक 90 के दशक में अपने देश के जन्म की कहानियां सुनकर बड़े हुए हैं। हालांकि उनकी प्रतिक्रिया में एक कल्पना है, लेकिन यह वास्तविकता से बहुत दूर भी नहीं है। मोद्रिच उन कुछ युवकों में से हैं जो क्रोएशियाई फ़ुटबॉल की स्वर्णिम कहानी लिख रहे हैं। वो और उनकी टीम के कुछ खिलाड़ियों ने अपने बचपन में खूनी संघर्ष और फिर 1991 में यूगोस्लाविया के पतन को देखा है।
स्लोवेनिया और क्रोएशिया की एकतरफा आजादी की घोषणा के बाद यूगोस्लावियाई सेना की खूनी प्रतिक्रिया हुई।
विस्थापन और निर्वासन
उस दौरान पूरे इलाके में फैली सांप्रदायिक हिंसा की वजह से टीम के उनके एक अन्य साथी वेद्रन कोर्लुका (टीम के सबसे प्रसिद्ध खिलाड़ियों में से एक) को भी क्रोएशिया में एक शरणार्थी के रूप में रहने के लिए मजबूर किया गया था।
कई अन्य लोगों को देश छोड़ना पड़ गया, जैसा कि इवान राकिटिच के मामले में हुआ, वो अपने परिवार के साथ स्विट्जरलैंड में जाकर बस गए थे। क्रोएशिया के लिए खेलने से पहले बार्सिलोना के यह स्टार फ़ुटबॉलर स्विटजरलैंड के लिए कई जूनियर कैटेगरी में प्रतिनिधित्व कर चुके हैं। द प्लेयर ट्रिब्यून में छपे एक लेख में मोद्रिच ने लिखा, "बाल्कन में क्या हो रहा है, बचपन में ये समझना मुश्किल था।"
उन्होंने स्वीकार किया, "मेरे माता-पिता ने कभी मुझसे या मेरे भाई से युद्ध के बारे में बातें नहीं की क्योंकि इसमें उन्होंने अपने बहुत से चाहने वालों को खो दिया था। हालांकि, हम भाग्यशाली रहे।"
अपने बचपन के दौरान विस्थापित एक और खिलाड़ी मारियो मांद्ज़ुकित्श हैं, जिनके निर्णायक गोल की बदौलत इंग्लैंड के खिलाफ सेमीफाइनल में क्रोएशिया को जीत मिली। वो जर्मनी में अपने परिवार के साथ बड़े हुए हैं।
लेकिन मोद्रिच को अपने देश में ही रहना पड़ा, हालांकि सच्चाई यह है कि भले ही प्रतिद्वंद्वी के रूप में उन्हें बारूदी सुरंगों का सामना नहीं करना पड़ा लेकिन सर्बियाई सेना की बमबारी खत्म होने के बाद उन्हें जेडार की सड़कों पर खेलना पड़ा।
मोद्रिच जैसे बच्चों को यह चेतावनी भी दी गई थी कि वो खतरनाक इलाकों में पहुँच जाने के जोखिम के कारण शरणार्थी कैंपों से बहुत दूर न जाएं।
2008 में मोद्रिच ने युद्ध के बारे में कहा था, "मैं केवल छह साल का था और तब वास्तव में बहुत कठिन समय था। मुझे अच्छी तरह याद है लेकिन इसके बारे में आप सोचना भी नहीं चाहते। उन्होंने कहा, "युद्ध ने मुझे मजबूत बना दिया, मैं न तो इसे याद रखना चाहता हूँ और न ही इसे भूलना चाहता हूँ।"
युद्ध की वजह से उनके परिवार को भी विस्थापित होकर जर्मनी जाना पड़ गया, लेकिन वहाँ वो शरणार्थी नहीं बन सके और 1990 के दशक में क्रोएशिया लौटने के लिए मजबूर हो गए।
लोवरेन आंशिक रूप से अपनी मातृभाषा भूल गए थे जिसकी वजह से उन्हें स्कूल में समस्याओं का सामना करना पड़ा। "जब मैं सीरिया और अन्य देशों के शरणार्थियों को देखता हूँ, तो मेरी पहला प्रतिक्रिया होती है कि हमें इन लोगों को मौका देना चाहिए।" किसी दूसरे की वजह से शुरू हुए युद्ध का वो हिस्सा नहीं बनना चाहते, इसलिए वो वहाँ से भाग जाते हैं।
आबादी के लिहाज से दिल्ली से भी छोटा, क्षेत्रफल में हिमाचल प्रदेश जितना बड़ा
क्रोएशिया की कुल आबादी 4 मिलियन (40 लाख) है, मतलब भारत की राजधानी दिल्ली से भी काफी कम। क्रोएशिया क्षेत्रफल में हिमाचल प्रदेश जितना ही बड़ा है।
जानें क्रोएशिया के बारे में
क्रोएशिया दक्षिण पूर्व यूरोप यानि बाल्कन में पानोनियन प्लेन, और भूमध्य सागर के बीच बसा एक देश है। देश का दक्षिण और पश्चिमी किनारा एड्रियाटिक सागर से मिलता है। देश की राजधानी और सबसे बड़ा शहर जगरेब है, जो तट से भीतर स्थित है। एड्रियाटिक सागर ते किनारे कोई हजार द्वीप हैं, इस समुद्र के किनारे पर्यटन के लिए उपयुक्त परिस्थितियाँ हैं।
पूर्व यूगोस्लाविविया के देश इनके पड़ोसी हैं जैसे - उत्तर में स्लोवेनिया और हंगरी, उत्तर पूर्व में सर्बिया, पूर्व में बॉस्निया और हर्जेगोविना और दक्षिण पूर्व में मोंटेंग्रो से इसकी सीमाएं मिलती हैं। एड्रियाटिक सागर के पार इटली है (350 km) जिसका द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान यहाँ उपस्थिति थी। यहाँ के निवासी मुख्यतः क्रोएट हैं जो अपने आपको ह्राओत कहते हैं। यहाँ की भाषा भी पूर्वी स्लाविक वर्ग में आती है।
आज जिसे क्रोएशिया के नाम से जाना जाता है, वहाँ सातवीं शताब्दी में क्रोट्स ने कदम रखा था। उन्होंने राज्य को संगठित किया। तामिस्लाव प्रथम का 925 ई. में राज्याभिषेक किया गया और क्रोएशिया राज्य बना। राज्य के रूप में क्रोएशिया ने अपनी स्वायत्तता करीबन दो शताब्दियों तक बरकरार रखी और राजा पीटर क्रेशमिर चतुर्थ और जोनीमिर के शासन के दौरान अपनी ऊंचाई पर पहुँचा। वर्ष 1102 में पेक्टा समझौता के माध्यम से क्रोएशिया के राजा ने हंगरी के राजा के साथ विवादास्पद समझौता किया। वर्ष 1526 में क्रोएशियन संसद ने फ्रेडिनेंड को हाउस ऑफ हाब्सबर्ग से सिहांसन पर आरुढ़ किया। 1918 में क्रोएशिया ने आस्ट्रिया-हंगरी से अलग होने की घोषणा कर यूगोस्लाविया राज्य में सहस्थापक के रूप में जुड़ गया। द्वितीय विश्व युद्ध के समय नाजियों ने क्रोएशिया के क्षेत्र पर कब्जा जमा स्वतंत्र राज्य क्रोएशिया की स्थापना की। युद्ध खत्म होने के बाद क्रोएशिया दूसरे यूगोस्लाविया के संस्थापक सदस्य के रूप में शामिल हो गया। 25 जून 1991 में क्रोएशिया ने स्वतंत्रता की घोषणा करते हुए संप्रभु राज्य बन गया।