भ्रंश घाटी का विकास तब होता है जब दो भ्रंश रेखाओं के बीच का चट्टानी स्तंभ नीचे की ओर धँस जाता है। जब तनावजनित बल के कारण दो भू-खंडों का विपरीत दिशा में खिसकाव होता है, तब इसका निर्माण होता है। भ्रंश घाटियाँ लंबी, संकरी व गहरी होती हैं। इन्हें जर्मन भाषा में ‘ग्राबेन (Graben)’ कहा जाता है।
भ्रंश घाटियों के निर्माण की प्रक्रिया पूर्वी अफ्रीका में बहुत स्पष्ट तरीके से समझी जा सकती है। पूर्वी अफ्रीका में भ्रंश घाटी लाल सागर से दक्षिण की ओर तक़रीबन 3000 किमी तक विस्तृत है। पूर्वी अफ्रीका में एक क्रियाशील महाद्वीपीय भ्रंश जोन है जो मायोसीन काल (22-25 मिलियन वर्ष पहले) में प्रारम्भ हुआ था।
पूर्वी अफ्रीका में भ्रंश की दो मुख्य शाखाएँ हैं- पूर्वी भ्रंश घाटी या ग्रेगरी भ्रंश तथा दूसरी, मुख्य इथियोपियन भ्रंश। यह इथियोपिया में ‘अफार त्रिकोण’ (Afar Triangle) से शुरू होकर मोजाम्बिक तक समाप्त होती है। अफार त्रिकोण पूर्वी अफ्रीका में महान भ्रंश घाटी (Great Rift Valley) का ही एक भाग है। यह इथियोपिया, केन्या, यूगांडा, रवांडा, बुरुंडी, जाम्बिया, तंजानिया, मलावी तथा मोजाम्बिक तक विस्तृत है।
पूर्वी अफ्रीका में भ्रंश की उत्पत्ति का प्रमुख कारण पर्पटीय घनत्व में भिन्नता तथा विवर्तनिकी गतिविधियाँ हैं। अफ्रीकी प्लेट दो विवर्तनिकी प्लेटों- सोमाली प्लेट और नुबियन प्लेट में विभाजित होने की प्रक्रिया में है। अतः भ्रंश क्षेत्र अभिसरण विवर्तनिकी प्लेट सीमांत विकसित कर रहा है जिसके कारण भ्रंश घाटी का विस्तार हो रहा है। अभिसरण की यह दर 6-7 मिमी. प्रति वर्ष है। अगर यह विस्तार लगातार होता है तो 10 मिलियन साल बाद स्थलमंडलीय दरार (rupture) उत्पन्न होगी, इसके परिणामस्वरूप सोमालियन प्लेट टूट जाएगी और एक नई महासागरीय घाटी का निर्माण होगा।
पूर्वी अफ्रीका में भ्रंश घाटी पर अनेक सक्रिय एवं निष्क्रिय ज्वालामुखी अवस्थित हैं। पृथ्वी पर वर्तमान में यह सर्वाधिक बड़ा सक्रिय भूकंपीय क्षेत्र है। ये सभी विवर्तनिकी एवं भू-भौतिकीय घटनाएँ गर्त उत्पन्न करती हैं जो धीरे-धीरे घाटियों का रूप धारण कर लेती हैं।