हम हर दिन हाइड्रोजन और ऑक्सीजन का मिश्रण पीते हैं। आम भाषा में इसे पानी कहते हैं। लेकिन क्या आप पानी से हाइड्रोजन को अलग कर सकते हैं? इसी सवाल में ऊर्जा का भविष्य छुपा है।
पानी यानि H2O, दो अणु हाइड्रोजन का और एक अणु ऑक्सीजन के। सुनने या पढ़ने में यह बहुत ही आसान लगता है। लेकिन हाइड्रोजन ऑक्साइड (जल) पृथ्वी पर मौजूद एक गजब की रासायनिक प्रक्रिया का सबूत है। दो गैसें मिलकर द्रव में बदलती हैं और धरती पर जीवन की प्यास बुझाती हैं। लेकिन इस प्रक्रिया को उल्टा करना यानि पानी से हाइड्रोजन और ऑक्सीजन को अलग अलग कर निकालना बहुत ही मुश्किल है।
द्रव में घुलकर विद्युत आवेश पैदा करने वाले इलेक्ट्रोलाइट्स की मदद से यह किया जा सकता है। लेकिन यह प्रक्रिया बेहद धीमी और अत्यंत महंगी है। खुद इलेक्ट्रोलाइट्स बेहद कीमती होते हैं। वैज्ञानिकों ने एक दूसरा रास्ता खोजा है। एक खास किस्म की प्लेट के ऊपर से पानी को गुजारते हुए उस पर कम से कम 1,400 डिग्री सेल्सियस तापमान की बौछार करना। इस दौरान मिलीसेकेंड्स के लिए भाप बनेगी, लेकिन अथाह ऊंचे तापमान की वजह से भाप मूल गैसों में टूट जाएगी।
इस तरह ऑक्सीजन और हाइड्रोजन मिलेगी। लेकिन 1,400 डिग्री या इससे ज्यादा तापमान को लगातार एक रिएक्टर में कैसे बरकरार रखा जाए। फिलहाल जर्मन एयरोस्पेस एजेंसी (डीएलआर) का रिएक्टर करीब 1,800 डिग्री का तापमान बर्दाश्त कर सकता है। इस रिएक्टर के जरिये ही प्रयोग हो रहे हैं और हाइड्रोजन बनाई जा रही है।
हाइड्रोजन का उत्पादन जितनी बड़ी चुनौती है, उतनी ही बड़ी मुश्किल उसका स्टोरेज भी है। बेहद विरल होने के लिए कारण इस गैस को छोटी जगह पर रख पाना बड़ा कठिन है। भारत में रसोई गैस के सिलेंडरों में भले ही 14 किलोग्राम एलपीजी (लिक्विड पेट्रोलियम गैस) आती हो, लेकिन अथाह दबाव पैदा करने के बावजूद उस सिलेंडर में करीब 500 ग्राम हाइड्रोजन ही समा सकेगी। कारों या बसों को चलाने के लिए कम से कम 700 बार के प्रेशर से हाइड्रोजन भरनी होगी। हाइड्रोजन के साथ बेहद सावधानी बरतना भी जरूरी हैं। बेहद हल्की और ज्वलनशील हाइड्रोजन विस्फोट करते हुए जलती है। लिहाजा स्टोरेज की सुरक्षा अहम प्राथमिकता होगी।
इन सब मुश्किलों के बावजूद वैज्ञानिक हाइड्रोजन के साथ आगे बढ़ने को उत्साहित हैं। हाइड्रोजन बनाने में सौर ऊर्जा और पवन ऊर्जा का इस्तेमाल फिलहाल सबसे किफायती माना जा रहा है। यह ऐसी गैस है जो कोयले, पेट्रोल और डीजल जैसे जीवाश्म ईंधन की छुट्टी कर सकती है। हाइड्रोजन को नियंत्रित रूप से जलाने पर सिर्फ पानी का उत्सर्जन होगा। कोई धुआं या दूसरी हानिकारक गैसें नहीं निकलेंगी।
सदियों से बहता पानी अब तकनीक के जरिये अपना चेहरा बदलने जा रहा है। द्रव, वाष्प के बजाए मूलभूत गैस में बदलेगा। ज्यादातर वैज्ञानिकों को लगता है कि जलवायु परिवर्तन के खिलाफ यह बड़ा और प्रभावशाली कदम होगा।