Monday, 31 July 2017

इबोला वायरस क्या है, कैसे फैलता है, वायरस के लक्षण क्या हैं, कांगो इबोला वायरस मुक्त घोषित


इबोला वायरस रोग (Ebola Virus Disease), जिसे पहले ‘इबोला रक्तस्रावी बुखार’ (Ebola Haemorrhagic Fever) कहा जाता था, एक घातक बीमारी है। इस बीमारी का कारण फाइलोवायरस परिवार (Filovirus Family) का सदस्य इबोला वायरस है। इबोला के संक्रमण का पहला मामला 40 साल पहले सामने आया था। उसके बाद ये बीमारी कई बार सामने आ चुकी है। लेकिन जानकारों का कहना है कि इस बार का इबोला संक्रमण सबसे खतरनाक है। साल 1976 में अफ्रीका में पहली बार इबोला संक्रमण का पता चला था। सूडान के मुजिारा और कांगो का इबोलागिनी में एक साथ इबोला संक्रमण फैला था। कांगो की ही इबोला नदी के नाम पर इस वायरस का नाम इबोला पड़ गया। तब से अब तक अफ्रीका में 15 बार इबोला संक्रमण फैल चुका है। हर बार कुछ तय सावधानियाँ और तौर-तरीके अपना कर ईबोला को महमारी बनने से रोकने में सफलता पाई जा चुकी है।
विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक, फ्रूट बैट यानी चमगादड़ इबोला वायरस का प्राथमिक स्रोत है। इबोला वायरस 2 से 21 दिन में शरीर में पूरी तरह फैल जाता है। इसके संक्रमण से कोशिकाओं से साइटोकाइन प्रोटीन बाहर आने लगता है। कोशिकाएं नसों को छोड़ने लगती हैं और उससे खून आने लगता है।
पसीने से संक्रमण:- इबोला एक संक्रामक रोग है, इसीलिए इबोला के मरीज को सबसे अलग रखा जाता है लेकिन यह सांस के जरिए नहीं फैल सकता, इसका संक्रमण तभी होता है यदि कोई व्यक्ति मरीज से सीधे संपर्क में आए। मिसाल के तौर पर मरीज के पसीने से यह वायरस फैल सकता है। मरीज की मौत के बाद भी वायरस सक्रिय रहता हैअस्पतालों में इसके फैलने की सबसे बड़ी वजह यह है कि मरीज की मौत के बाद जब उसके रिश्तेदार वहाँ पहुँचते हैं तो अंतिम संस्कार से पहले लाश को छूते हैं संक्रमण के लिए यह काफी है। जानवरों के जरिए भी संक्रमण होता है। चमगादड़ों को इबोला की सबसे बड़ी वजहों में से एक माना गया है। 
बीमारी के लक्षण:- इबोला वायरस के शरीर में प्रवेश करने के दो से 21 दिन के बीच मरीज कमजोर होने लगता है बुखार आता है, लगातार सरदर्द और मांसपेशियों के दर्द की शिकायत रहती है भूख मर जाती है, पेट में दर्द रहता है, चक्कर आने लगते हैं और उल्टी दस्त भी होते हैं बहुत तेज बुखार के बाद रक्तस्राव और खून की उल्टियां भी शुरू हो जाती हैं आंतड़ियों, स्प्लीन यानि तिल्ली और फेंफड़ों में बीमारी फैल जाने के बाद मरीज की मौत हो जाती है। इबोला वायरस के खिलाफ वैज्ञानिक अब तक कोई कारगर टीका नहीं बना पाए हैं और ना ही कोई इसे खत्म करने के लिए बाजार में कोई दवा उपलब्ध हैइसकी रोकथाम का केवल एक ही तरीका है, जागरूकता विश्व स्वास्थ्य संगठन की कोशिश है कि लोगों को समझाया जा सके कि इबोला के मामलों को दर्ज कराना कितना जरूरी है
मई, 2017 में कांगो लोकतांत्रिक गणराज्य में इबोला वायरस रोग का प्रकोप होने के पश्चात हाल ही में विश्व स्वास्थ्य संगठन ने इस देश को इबोला मुक्त घोषित किया।
  • 2 जुलाई, 2017 को विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा कांगो लोकतांत्रिक गणराज्य (DRC) को इबोला वायरस रोग (EVD) के प्रकोप से मुक्त घोषित किया गया।
  • यह घोषणा इबोला वायरस रोग से पीड़ित अंतिम व्यक्ति के दूसरे नकारात्मक परीक्षण के 42 दिन बाद की गई।
  • उल्लेखनीय है कि मई, 2017 में विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा कांगो लोकतांत्रिक गणराज्य के ‘बैस-यूले’ (Bas-Uele) प्रांत में इबोला वायरस रोग का प्रकोप घोषित किया गया था।
  • वर्ष 1976 में कांगो लोकतांत्रिक गणराज्य में वायरस की खोज के पश्चात यह 8वां इबोला वायरस रोग का प्रकोप है।
  • इसके पहले इस देश में वर्ष 1976-77, 1995, 2007, 2008-09, 2012 एवं 2014 में इबोला वायरस रोग प्रकोप हुआ था।
  • वर्ष 2014 में कांगो लोकतांत्रिक गणराज्य के इक्वाएटर (Equateur) प्रांत में इबोला वायरस रोग का प्रकोप हुआ था जिसमें 49 लोगों की मृत्यु हुई।
  • वर्ष 2017 के इबोला वायरस रोग के प्रकोप से देश में 4 लोगों की मृत्यु हुई।
  • गौरतलब है कि वर्ष 2013 में पश्चिम अफ्रीका (लाइबेरिया, गिनी एवं सिएरा लियोन) में इबोला वायरस रोग का प्रकोप हुआ था जिसमें 11,300 लोगों की मृत्यु हुई थी और अनुमानित 28,600 लोग संक्रमित हुए थे।
  • इबोला वायरस का संक्रमण संक्रमित पशुओं या संक्रमित मनुष्यों के शारीरिक तरल पदार्थों के संपर्क में आने से होता है।
  • इबोला वायरस रोग के लक्षण भिन्न-भिन्न है जिसमें शुरुआती चरण में अचानक बुखार, तीव्र कमजोरी, मांसपेशियों में दर्द, सिरदर्द और गले में खराबी सामान्य हैं।
  • विशिष्ट संक्रमण रोकथाम एवं नियंत्रण उपायों के माध्यम से लोग स्वयं को इबोला वायरस संक्रमण से बचा सकते हैं।
  • एक प्रायोगिक इबोला वैक्सीन ‘RVSV-ZEBOV’ को घातक इबोला ‘वायरस के खिलाफ अत्यधिक सुरक्षात्मक पाया गया है।
  • इस वैक्सीन का परीक्षण वर्ष 2015 में गिनी (Guinea) में विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा किया गया था।