भारत निर्वाचन आयोग (Election Commission of India) – भारत निर्वाचन आयोग (ECI) एक स्थायी और स्वतंत्र निकाय है। इसका गठन देश में स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव सुनिश्चित कराने के उद्देश्य से किया गया था। भारतीय संविधान का अनुच्छेद 324 यह वर्णित करता है कि संसद, राज्य विधानसभाओं, राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति के चुनावों के अधीक्षण, निर्देशन और नियंत्रण की शक्ति ECI में निहित होगी। अत: ECI एक अखिल भारतीय संस्था है एवं यह केंद्र एवं राज्य दोनों के लिए समान है।
बतादें कि भारत निर्वाचन आयोग राज्यों के पंचायतों और नगर पालिकाओं के चुनाव से संबंधित नहीं है। संविधान में अनुच्छेद 243K के तहत इस उद्देश्य के लिए अलग से राज्य निर्वाचन आयोग की व्यवस्था की गयी है।
भारत निर्वाचन आयोग की संरचना और नियुक्ति
संविधान के अनुच्छेद 324 के तहत निर्वाचन आयोग का गठन एक मुख्य निर्वाचन आयुक्त और अन्य निर्वाचन आयुक्तों से मिलकर होता है। अन्य निर्वाचन आयुक्तों की संख्या का निर्धारण राष्ट्रपति द्वारा किया जाता है। निर्वाचन आयोग की सलाह पर राष्ट्रपति द्वारा प्रादेशिक आयुक्तों की नियुक्ति का भी प्रावधान किया गया है।
भारतीय संविधान में मूल रूप से निर्वाचन आयोग में केवल मुख्य निर्वाचन आयुक्त का प्रावधान किया गया था। परंतु वर्तमान में यह तीन सदस्यीय निकाय है। इसमें एक मुख्य निर्वाचन आयुक्त और दो अन्य निर्वाचक आयुक्त हैं।
पहली बार 2 अतिरिक्त निर्वाचन आयुक्तों की नियुक्ति 16 अक्टूबर, 1989 को हुई थी। उनका कार्यकाल 1 जनलवरी 1990 तक के अल्प समय के लिए ही था। कालांतर में 1 अक्टूबर, 1993 को पुन: 2 अतिरिक्त निर्वाचन आयुक्तों की नियुक्ति की गयी। उसी समय में आयोग के बहु सदस्यीय होने की व्यवस्था प्रचलन में है। इस व्यवस्था में कोई भी निर्णायन आयोग के सदस्यों के बहुमत द्वारा होता है।
मुख्य निर्वाचन आयुक्त और दो अन्य निर्वाचन आयुक्तों की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा की जाती है। निर्वाचन आयुक्तों की शक्तियां समान होती है। उन्हें समान वेतन और भत्ता प्राप्त होता है। ये वेतन एवं भत्ते उच्चतम न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश के समान होते हैं।
निर्वाचन आयुक्तों और प्रादेशिक आयुक्तों के कार्यकाल की शर्तों के निर्धारण राष्ट्रपति द्वारा किया जाता है। वर्तमान में ये 6 वर्ष की अवधि के लिए या 65 वर्ष की आयु (दोनों में से जो भी पहले पूरो हो) तक पद धारण करते हैं।
भारत निर्वाचन आयोग की स्वतंत्रता
अपने कार्यों के निष्पादन के संदर्भ में, निर्वाचन आयोग कार्यकारी हस्तक्षेपों से मुक्त होता है। आयोग ही आम चुनाव या उप-चुनाव के चुनाव कार्यक्रम की समय सामग्री को निर्धारित करता हे। आयोग द्वारा निम्नलिखित विषयों यथा –
(i) किन स्थलों को मतदान केंद्र चुना जाना चाहिए।
(ii) मतदाताओं के लिए मतदान केंद्र किस प्रकार से निर्धारित हो।
(iii) मतगणना केंद्रों की अवस्थिति तथा,
(iv) मतदान केंद्रों एवं मतगणना केद्रों की प्रशासन व्यवस्था एवं अन्य सभी संबंधित मामलों में निर्णय लिया जाता है।
आयोग के स्वतंत्र कामकाज को सुनिश्चित करने के लिए संविधान में निम्नलिखित प्रावधान प्रदान किए गए हैं –
मुख्य निर्वाचक आयुक्त को कार्यकाल की सुरक्षा प्रदान की गई है। उसकी नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा की जाती है किंतु वह राष्ट्रपति के प्रसादपर्यंत पद धारण नहीं करता है। उसे उसके पद से उसी रीति व उन्हीं आधारों पर हटाया जा सकता है, जिस रीति एवं आधारों पर उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीशों को हटाया जाता है। अर्थात अक्षमता या सिद्ध कदाचार के आधार पर संसद के दोनों सदनों द्वारा विशेष बहुमत से प्रस्ताव पारित कर राष्ट्रपति द्वारा उसे पद से हटाया जा सकता है। अन्यथा नहीं।
मुख्य निर्वाचन आयुक्त की नियुक्ति के बाद उसकी सेवा शर्तों में कोई अलाभकारी परिवर्तन नहीं किया जा सकता है।
मुख्य निर्वाचन आयुक्त की सिफारिश के बिना किसी अन्य निर्वाचन आयुक्त या क्षेत्रीय आयुक्त को नहीं हटाया जा सकता है। (सिफारिश संबंधी यह नियम तब विवादों में आया, जब श्री एन गोपालस्वामी ने नवीन चावला को हटाने की सिफारिश की किंतु सरकार ने इसे स्वीकार करने से मना कर दिया था।)
आयोग के सचिवालय का अपना एक स्वतंत्र बजट होता है जिसे आयोग और संघ सरकार के वित्त मंत्रालय के परामर्श से अंतिम रूप दिया जाता है। उच्चतम न्यायालय, CAG आदि जैसे अन्य निकायों के समान इसका व्यय भारत की संचित निधि पर भारित नहीं है। हाल ही में आयोग ने अपने समस्त व्यय को संचित निधि पर भारित किये जाने की मांग की है।
निर्वाचन आयोग को स्वतंत्र और निष्पक्ष काम करने के लिए संविधान के तहत दिशा निर्देश प्रदान किए गए हैं लेकिन इसमें कुछ कमिया भी प्राप्त हैं–
1. संविधान में ECI के सदस्यों की योग्यता निर्धारित नहीं की गई है।
2. संविधान में ECI के सदस्यों का कार्यकाल निर्धारित नहीं किया गया है।
3. संविधान में निर्वाचन आयुक्तों को सेवानिवृत्ति के पश्चात सरकार द्वारा दिए गए किसी पद को लेने से वंचित नहीं किया गया है।
4. हाल ही में यह मांग की गई है कि मुख्य निर्वाचक आयुक्त की नियुकित एक द्विपक्षीय कॉलेजियम (bipartisan collegium) द्वारा की जानी चाहिए क्योंकि सरकार द्वारा की गयी एकपक्षीय नियुक्ति सामान्यतया इस निकाय को सत्तारूढ़ दल की राजनीति से प्रभावित होने के प्रति सम्भाव्य बना देती है।
भारत निर्वाचन आयोग की शक्तियां और कार्य
भारत निर्वाचन आयोग की शक्तियां और कार्य प्रशासनिक, सलाहकारी और अर्द्धन्यायिक प्रकृति के हैं–
(a) प्रशासनिक :
(i) संसद के परिसीमन आयोग अधिनियम के आधार पर संपूर्ण देश में निर्वाचन क्षेत्र के प्रादेशिक क्षेत्रों का निर्धारण करना।
(ii) मतदाता सूची में संशोधन करना एवं सभी पात्र मतदाताओं का नाम दर्ज करना।
(iii) चुनाव की तारीख और समय-सारणी के संबंध में अधिसूचना जारी करना और नामांकन पत्रों की जांच करना।
(iv) राजनीतिक दलों को मान्यता प्रदान करना और उन्हें चुनाव चिनहों का आवंटन करना।
(v) चुनावी व्यवस्था से संबंधित विवादों की जांच के लिए अधिकारियों की नियुक्ति करना।
(vi) चुनाव के दौरान दलों और उम्मीदवारों द्वारा पालन करने हेतु आदर्श आचार संहिता निर्धारित करना।
(vii) चुनाव परिणामों को प्रभावि करने के उद्देश्य से हेर-फेर करने, बूथ कैप्चरिंग, हिंसा एवं अन्य अनियमिताओं की स्थिति में चुनाव रद्द करना।
(viii) राष्ट्रपति या राज्यपाल से चुनाव के संचालन के लिए आवश्यक कर्मचारियों की उपलब्धता सुनिश्चित कराने हेतु अनुरोध करना।
(ix) राष्ट्रपति को इस संबंध में सलाह देना कि राष्ट्रपति शासन वाले राज्य में 1 वर्ष की समाप्ति के पश्चात् चुनाव का आयोजन कराया जाए अथवा नहीं।
(x) चुनावों के प्रयोजन के लिए राजनीतिक दलों को पंजीकृत करना और उन्हें चुनाव में प्रदर्शन के आधार पर राष्ट्रीय या राज्य दलों का दर्जा देना।
(xi) मतदाता जागरूकता और चुनावी भागीदारी से संबंधित कार्य करना।
(b) सलाहकारी और अर्द्धन्यायि
संविधान द्वारा निर्वाचन आयोग को, संसद और राज्य विधानमंडल के सदस्यों की अयोग्यता (निर्हरता) से संबंधित सलाहकारी अधिकार भी प्रदान किये गए हैं। इसके अतिरिक्त उच्चतम न्यायालय और उच्च न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत कई मामले चुनाव में भ्रष्ट आचरण के दोषी पाए गए व्यक्तियों से संबंधित होते हैं। ऐसे मामले में भी आयोग के पास इसकी राय जानने के लिए प्रेपित किए जाते हैं। आयोग इस संबंध में अपनी राय व्यक्त करता है कि क्या ऐसे व्यक्ति को अयोग्य घोषित किया जाए और यदि हां तो कितनी अवधि के लिए। उन सभी मामलों में राष्ट्रपति अथवा राज्यपाल (जिनके समक्ष आयोग द्वारा अयोग्यता और उसकी अवधि के संबंध में राय प्रस्तुत की गई हो) आयोग की राय के अनुसार ही कार्य करते है।
आयोग के पास ऐसे किसी भी उम्मीदवार को अयोग्य घोषित करने का अधिकार है, जो समय सीमा के भीतर और कानून द्वारा निर्धारित तरीके से अपने चुनावी खर्च का लेखा-जोखा दर्ज कराने में विफल रहा हे। आयोग के पास इस प्रकार अयोग्य ठहराए गए व्यक्ति की अयोग्यता की अवधि तय करने एवं कानून के तहत अन्य अयोग्यता संबंधित मामले को न्यून करने या समाप्त करेन का अधिकार भी है। यह राजनीतिक दलों को मान्यता प्रदान करने और उन्हें चुनाव चिह्न प्रदान करने से संबंधित किसी विवाद के निपटारे हेतु एक न्यायालय की भांति कार्य करता है।
No comments:
Post a Comment