Saturday 29 December 2018

लोकसभा में पास हुआ तीन तलाक विधेयक


लोकसभा में तीन तलाक (ट्रिपल तलाक) विधेयक 27 दिसंबर 2018 को पास हो गया। इसके पक्ष में 245 वोट पड़े हैं। वहीं बिल के विरोध में 11 वोट डाले गए हैं। ट्रिपल तलाक की प्रथा को रोकने के मकसद से यह बिल लाया गया है अब इसे राज्यसभा में मंजूरी के लिए पेश किया जाएगा।

सुप्रीम कोर्ट द्वारा अगस्त 2017 में ट्रिपल तलाक (तलाक-ए-बिद्दत) की प्रथा को असंवैधानिक करार देते हुए सरकार को कानून बनाने को कहा था। केंद्र सरकार ने दिसंबर 2017 में लोकसभा में मुस्लिम महिला (विवाह अधिकार संरक्षण) विधेयक लोकसभा से पारित कराया, लेकिन यह बिल राज्यसभा में अटक गया क्योंकि उच्च सदन सरकार के पास पर्याप्त संख्या बल नहीं है। इसके बाद सरकार को तीन तलाक पर अध्यादेश लाना पड़ा था इसकी अवधि 6 महीने की होती है।

ट्रिपल तलाक देश में विवादास्‍पद मुद्दा रहा है। विभिन्‍न मुस्लिम संगठनों ने इसे धार्मिक आस्‍था का सवाल बताया तो सरकार का कहना है कि इसे प्रतिबंधित करने के लिए कानून बनाने के मकसद से लाया गया विधेयक किसी समुदाय विशेष के खिलाफ नहीं है, बल्कि यह महिलाओं के अधिकारों और न्‍याय के बारे में है।


तीन तलाक विधेयक का प्रस्ताव

➽ पीड़ित महिला अदालत का रुख कर सकती है तथा अपने लिए कानूनी संरक्षण एवं सुरक्षा की मांग कर सकती है।

 इसके तहत किसी भी तरह का तीन तलाक (बोलकर, लिखकर या ईमेल, एसएमएस और व्हाट्सएप जैसे इलेक्ट्रॉनिक माध्यम से) गैरकानूनी होगा।

 नए बिल के ड्राफ्ट के मुताबिक अब आरोपी को मजिस्ट्रेट सशर्त जमानत दे सकता है। पुराने बिल में पुलिस बिना वॉरंट के गिरफ्तार कर सकती थी, जिसे हटा लिया गया है।

 एक झटके में तीन तलाक को अपराध मानते हुए इसे पहले गैर जमानती करार दिया गया था लेकिन अब जमानत मिल सकेगी।

 तीन तलाक देने पर बिल में तीन साल की सजा का प्रावधान किया गया है। संशोधित नए बिल में मजिस्ट्रेट के सामने पति-पत्नी में समझौते का विकल्प भी खुला रखा गया है।

 नए बिल के मुताबिक अब पीड़िता और उसके सगे रिश्तेदार ही केस दर्ज करा सकेंगे। इस मामले में पहले कोई भी केस दर्ज करा सकता था। इतना ही नहीं पहले पुलिस संज्ञान लेकर भी खुद मामला दर्ज कर सकती थी लेकिन अब इसमें बदलाव किया गया है।


तीन तलाक क्या है?

तीन तलाक मुसलमान समाज में तलाक का वो जरिया है, जिसमें एक मुस्लिम व्यक्ति तीन बार ‘तलाक’ बोलकर अपनी पत्नी को तलाक दे सकता है। ये मौखिक या लिखित हो सकता है, या हाल के दिनों में टेलीफोन, एसएमएस, ईमेल या सोशल मीडिया जैसे इलेक्ट्रॉनिक माध्यमों से भी तलाक दिया जा रहा है।

तलाक का यह जरिया मुस्लिम पर्सनल लॉ के हिसाब से कानूनी है, फिर भी बहुत सारी मुस्लिम वर्ग की महिलाएं इसका विरोध करती है। तीन तलाक के तहत मुस्लिम व्यक्ति अपनी पत्नी को बोलकर या लिखकर तलाक दे सकता है और पत्नी का वहाँ होना जरुरी भी नहीं होता है, यहाँ तक कि आदमी को तलाक के लिए कोई वजह भी लेनी नहीं पड़ती।

भारत से पहले दुनिया के 22 ऐसे देश हैं जहाँ तीन तलाक पूरी तरह बैन है। दुनिया का पहला देश मिस्र है जहाँ तीन तलाक को पहली बार बैन किया गया था। हमारा पड़ोसी देश पाकिस्तान हमसे कुछ मायनों में आगे है क्योंकि वर्ष 1956 में ही वहाँ तीन तलाक को बैन कर दिया गया था।

सूडान ने वर्ष 1929 में अपने देश में तीन तलाक को बैन किया। साइप्रस, जॉर्डन, अल्जीरिया, इरान, ब्रुनेई, मोरक्को, कतर और यूएई में भी तीन तलाक पर बैन है।


पृष्ठभूमि

उतराखंड निवासी शायरा बानो नाम की महिला ने मार्च 2016 में सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर करके ट्रिपल तलाक, हलाला निकाह और बहु-विवाह की व्यवस्था को असंवैधानिक घोषित किए जाने की मांग की। शायरा बानो ने मुस्लिम पर्सनल लॉ (शरीयत) एप्लीकेशन कानून 1937 की धारा 2 की संवैधानिकता को चुनौती दी। शायरा बानो द्वारा कोर्ट में दाखिल याचिका के अनुसार मुस्लिम महिलाओं के हाथ बंधे होते हैं और उन पर तलाक की तलवार लटकी रहती है।