Stephen Hawking's Wheelchair (Author : Rajeev Ranjan)
स्टीफन हॉकिंग ने अपने लिए खासतौर पर बनाई गई कस्टम इलेक्ट्रिक व्हीलचेयर का इस्तेमाल 1980 से शुरू किया। धीरे धीरे उनकी व्हीलचेयर से तमाम तकनीक जुड़ती गईं।
स्टीफन हॉकिंग का नाम लेते एक ऐसा शख्स याद आता है, जो व्हीलचेयर पर बैठा हुआ है। अब हॉकिंग के निधन के बाद उनकी ये व्हीलचेयर नीलाम होने वाली है। वो व्हीलचेयर पर इसलिए बैठे रहते थे क्योंकि उन्हें मोटर न्यूरोन नाम की बीमारी थी। इस बीमारी में शरीर के अधिकतर अंग काम करना बंद कर देते हैं। पीड़ित चलने-फिरने के साथ बोलने से भी लाचार हो जाता है। लेकिन स्टीफन की व्हील चेयर कुछ इस तरह बनी थी कि वो उनके लिए बोलती भी थी और उनकी बातों को समझती भी थी। वो जो चाहते थे, वो लिखती भी थी। दूसरों से संपर्क भी साधती थी। इस व्हील चेयर को वो कार की तरह तेज भगा भी सकते थे।
स्टीफन हॉकिंग ने अपने लिए खासतौर पर बनाई गई कस्टम इलेक्ट्रिक व्हीलचेयर का इस्तेमाल 1980 से शुरू किया। धीरे धीरे उनकी व्हीलचेयर से तमाम तकनीक जुड़ती गईं. जो हाई-टेक, कंप्यूटर जेनरेटेड थी। इसी के सहारे वो दुनियाभर से जुड़े भी रहते थे और अपने सारे काम भी कर लेते थे. कहा जा सकता है कि ये दुनिया की सबसे स्मार्ट व्हील चेयर है।
स्पीच सिंथेसाइजर- हाकिंग की व्हीलचेयर में ऐसे इक्विपमेंट्स थे, जिनके जरिए वे विज्ञान के अनसुलझे रहस्यों के बारे में दुनिया को बताते थे। चेयर के साथ कम्प्यूटर और स्पीच सिंथेसाइजर लगा था, इसी के सहारे हाकिंग पूरी दुनिया से बातें करते थे। ये उनके इशारों और जबड़े के मूवमेंट को आवाज में बदलती थी।
इंफ्रारेड ब्लिंक स्विच-व्हीलचेयर पर इंफ्रारेड ब्लिंक स्विच था, जो उनके चश्मे से जुड़ा था। हॉकिंग के जबड़े और आंख के इशारे से यह मशीन उनकी बातें पढ़कर डिस्प्ले बोर्ड पर लिख देती थी। यानि वो आंखों को घुमाकर ही कुर्सी को बता देते थे कि क्या लिखना है और कुर्सी पलक झपकते ये कर डालती थी।
विंडो टैबलेट- व्हीलचेयर पर लगा विंडो टैबलेट पीसी सिंगल स्विच से चलता था। इसमें लगी इंटरफेस तकनीक (ई-जेड) ऑनस्क्रीन बोर्ड के अक्षर को स्कैन करती थी। हॉकिंग के जबड़े के मूमेंट से ही ई-जेड का सेंसर गतिविधि का पता लगा लेता था। इसी से वे ई-मेल पढ़ते और गूगल सर्च करते थे।
एल्गोरिदम- एमियोट्रोफिक लेटरल स्क्लेरोसिस बीमारी की वजह से उनके हाथों की पकड़ बेहद कम हो गई थी। जाहिर है उसका असर उनकी टाइपिंग स्पीड पर भी था। वे एक मिनट में एक या दो शब्द टाइप कर पाते थे। चेयर में लगा एल्गोरिदम हॉकिंग की वॉकैब्यूलरी और राइटिंग स्टाइल को बखूबी समझता था। जिससे उसे उन्हीं शब्दों का पूर्वानुमान करता था, जो वे लिखना चाह रहे होते थे. वो उनके लिए तेजी से कुछ भी लिख डालता था।
माउस, सिनथेसाइजर- स्टीफन जो वाक्य लिखना चाहते थे, उसके पूरा होने के बाद सिनथेसाइजर उस टेक्स्ट को फौरन अमेरिकन, स्कैनडिनैनियन और स्कॉटिश एक्सेंट में तबदील कर दिया करता था। वही टेक्नोलॉजी उन्हें एक माउस इस्तेमाल करने की इजाजत भी देती थी, जिससे वे व्हीलचेयर से जुड़े हर सिस्ट्म को चला सकते थे।
हॉकिंग की आवाज- हॉकिंग की आवाज यू.एस के साइंटिस्ट डेनिस क्लैट ने हॉकिंग की स्पीच के आधार पर ही डेवलप की थी।
स्काइप कॉल-स्टीफन कुर्सी पर से ही स्काइप कॉल करते थे। कंपनी इंटेल ने उनके लिए यह व्हीलचेयर और कम्प्यूटर तैयार किया था। वे Firefox और मेल के लिए Eudora का इस्तेमाल करते थे। इंटेल i7 प्रोसेसर ने उन्हें वीडियो कॉन्फ्रेंस की इजाजत भी दे रखी थी।
हॉकिंग की कुर्सी में लगे सभी इक्विप्मेंट को हमेशा अपडेट और अपग्रेड किया जाता था। इंटेल कंपनी की तरफ से कंप्यूटर इंजीनियर्स की एक टीम हमेशा स्टीफन के फेशियल एक्सप्रेशन में आई तब्दीली के मुताबिक तकनीकी बदलाव करती रहती थी।
8mph की स्पीड- स्वीडन में बनी ये व्हीलचेयर एक बार चार्ज होने के बाद 8mph की स्पीड से 20 माइल्स दौड़ सकती थी। व्हीलचेयर मोटर से चलती थी। जिसे वे कार की तरह भगाते थे। स्टीफन की बॉयोग्राफी लिखने वाली प्रोफेसर क्रिस्टीन एम लार्सन ने एक इंटरव्यू में बताया, "मैने उन्हें वाइल्ड तरीके से व्हीलचेयर दौड़ाते देखा है। अक्सर वो अपनी व्हील चेयर के साथ डांस करते लगते थे।"
गालों की मूमेंट रीड करने वाला कंप्यूटर- दुनियाभर की तकनीकों से युक्त चेयर में लेनोवो का कंप्यूटर लगा था। जो चाइना से आया था। उनके गालों की मूमेंट रीड करने के लिए लगा सेंसर अमेरिका में बना था।