केंद्रीय महिला एवं बाल विकास मंत्रालय ने 15 नवम्बर 2018 को घोषणा की है कि 15 हजार रुपये से अधिक मासिक वेतन पाने वाली महिलाओं को मिलने वाले मातृत्व अवकाश के 7 हफ्ते का वेतन सरकार नियोक्ता कंपनी को वापस करेगी।
इसका उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि कंपनी की तरफ से गर्भवती महिला को छुट्टी देने में आनाकानी न की जाए। साथ ही कंपनियाँ भी वित्तीय नुकसान की चिंता छोड़ सकें। यह नियम प्राइवेट और सरकारी दोनों कंपनियों के लिए लागू होगा।
मातृत्व लाभ (संशोधित) विधेयक 2016 के मुख्य बिंदु
➤ दो से ज्यादा बच्चों के लिए 12 हफ्ते की छुट्टी मिलेगी।
➤ तीन महीने से कम उम्र के बच्चों को गोद लेने वाली या सेरोगेट माँओं को भी 12 हफ्ते की छुट्टी दी जाएगी।
➤ यदि संभव हो तो कंपनी महिलाओं को घर से ही काम करने की अनुमति दे सकती है।
➤ प्रत्येक संगठन को उनकी नियुक्ति के समय से महिलाओं को इन लाभों को देना होगा।
सरकार का तर्क
मंत्रालय का तर्क है कि उन्होंने 14 सप्ताह की अतिरिक्त मैटरनिटी लीव का प्रावधान दिया था। इसलिए अब महिला की इन 14 में से आधे यानी 7 हफ्तों की सैलरी के लिए वह कंपनी को भुगतान कर देगी, ताकि महिलाओं को प्रेगनेंसी के बाद काम पर लौटने में दिक्कतों का सामना न करना पड़े। श्रम विभाग ने भी यह प्रस्ताव स्वीकार कर लिया है। राशि का भुगतान लेबर वेलफेयर सेस से किया जाएगा। इस फंड में मार्च 2017 तक 32 हजार 632 करोड़ रुपए थे। इसमें से केवल 7 हजार 500 करोड़ रुपए का इस्तेमाल ही किया गया है।
पृष्ठभूमि
वर्ष 2017-18 के बजट में सरकार ने मैटरनिटी लीव को 12 हफ्ते से बढ़ाकर 26 हफ्ते कर दिया था। इसके बाद ऐसी शिकायतें आने लगी थीं, जब कंपनियाँ गर्भवती महिलाओं को छुट्टी देने में कतरा रही थीं। गर्भवती महिलाओं को कंपनी से निकाले जाने के भी कुछ मामले सामने आए थे। इन्हीं दिक्कतों को देखते हुए मंत्रालय द्वारा यह फैसला लिया गया है।