गृहस्थी चलाने के लिए, वंशवृद्रि के लिए, भोगने के लिए स्त्री को इस्तेमाल किया जाता रहा है, उसे यह भी याद दिलाया जाता रहा है कि यह सब तुम्हारी जिम्मेदारी है, कर्तब्य है, बदले में पारिवारीक, सामाजिक, आर्थिक, मांसिक, सुरक्षा मिलती रहेगी। देखा जाऐ तो, स्त्री व पुरुष के बीच सामाज में यह अघोषित करार हो गया है ओर इच्छा जाने बगैर उसे इस जिम्मेदारियों का निर्वाह करना ही होता है, वह चाहे या न चाहे। इसके बदले जिस तथाकथित सुरक्षा का दावा था, उसे तो शायद कब का भुला दिया गया है। मेरी समझ में तो यह बिल्कुल उस शराबी की तरह है जो रोज सुबह यह कहता है कि मैंने अब शराब छोड़ दिया है ओर अब कभी भी नहीं पिउंगा, लेकिन उसी शाम फिर से ............।
स्त्री हो, तो पाँच पतियों में बँटने के लिऐ तैयार रहो, भले उनमें से एक भी भरी सभा में तुम्हारा चीरहरण होने से रोकने की हिम्मत न दिखा सके, उसके लिए तो तथाकथित किसी दैवीय शक्ति को ही आना होगा। स्त्री हो तो तुम्हारी सीमा तय करने का हक लक्ष्मन के पास होगा न की तुम्हारे पास और उसे लांघने की जुर्रत की, तो सीधे रावण के हाथ लगेगी, और रावण की सीमा में रहने की हिदायात की जाए, ऐसी परंमपरा तो हम ने नहीं सुनी। स्त्री हो तो किसी पुरुष पर मोहित होने की सोचना भी मत नहीं, वरना नाक काट दी जाएगी। स्त्री हो व स्त्री को जन्म दिया तो 100 % तुमहारी गलती है हलाँकी सच्चाई ........... । स्त्री हो और अगर तुम्हारी चुनरी में दाग लगता है, तो यह तुम्हारी सोचने की बात है कि तुम इसे कैसे छिपाओ, क्योंकि जिनके द्वारा दाग लगाया गया वे तो बेफिक्र ही रहें हैं व बेफिक्र ही रहेंगे।
स्त्री हो, तो पाँच पतियों में बँटने के लिऐ तैयार रहो, भले उनमें से एक भी भरी सभा में तुम्हारा चीरहरण होने से रोकने की हिम्मत न दिखा सके, उसके लिए तो तथाकथित किसी दैवीय शक्ति को ही आना होगा। स्त्री हो तो तुम्हारी सीमा तय करने का हक लक्ष्मन के पास होगा न की तुम्हारे पास और उसे लांघने की जुर्रत की, तो सीधे रावण के हाथ लगेगी, और रावण की सीमा में रहने की हिदायात की जाए, ऐसी परंमपरा तो हम ने नहीं सुनी। स्त्री हो तो किसी पुरुष पर मोहित होने की सोचना भी मत नहीं, वरना नाक काट दी जाएगी। स्त्री हो व स्त्री को जन्म दिया तो 100 % तुमहारी गलती है हलाँकी सच्चाई ........... । स्त्री हो और अगर तुम्हारी चुनरी में दाग लगता है, तो यह तुम्हारी सोचने की बात है कि तुम इसे कैसे छिपाओ, क्योंकि जिनके द्वारा दाग लगाया गया वे तो बेफिक्र ही रहें हैं व बेफिक्र ही रहेंगे।
ऊँची-ऊँची दीवारो को घर बनाने वाली भी एक स्त्री ही होती है , लेकिन इन दीवारो के भीतर घरों में भौतिकता का हर सामान रहते हुए भी, सन्नाटे के साये में खामोश जीती है। उन्हें बच्चे व पति के फैलाब के अलाबा और कुछ सोचने का अधिकार नहीं मिला है या फिर यूँ कहें की बच्चे, पति के लिये जीते-जीते वे अपने बारे में सोचने का मौका नही मिलता। देखा जाए तो उनकी पीडा, उस आकश की तरह है, जिसका कोई ओर-छोर नहीं होता। फिर भी अपने पति, बच्चे, परिवार को खुश रखने के लिए, झुठी मुस्कान को लिहाफ की तरह ओढ कर इन सबके के सामने खड़ी रहती है। ठिक उसी तरह जैसे आपने विमान परिचारिका (Air hostess) को देखा होगा, वह भले घर से पिट कर आयी हो, या फिर स्वास्थ्य ही क्यों न ठिक हो उन्हें हवाईजहाज पर मुस्कान का लिहाफ ओढे रखना होता है। अपनी भावनात्मक उजाड़पण को, महसूस करने के बाबजूद आँखों के आँसू को टपकने नहीं देती, बल्कि उसे पी जाती है। अपने जीवन की लक्क्षहीन त्रासदी को भलीभांति जानती हुई भी, अपने बेजान कँपकंपाती पाहचान को बनाये रखने की नाकामयाब कोशिश में लगी रहती है। खुद को टुकड़े - टुकड़े में बँटते देख मन ही मन में बिफरती रहती है, लेकिन किसी भी हाल में इसका मुकाबला करने की कोशिश नहीं करती। पंखहीन पक्षी की तरह छटपटा कर रह जाती है। परिवार के सभी सदस्यों को अपनी सेवा से खुशी देनेवाली नारी, भीतर कितनी अकेली है, परिवार का कोई सदस्य, जानने तक का जुर्रत नहीं करता। वहरहाल समस्या यह है की हम मूक कबतक रहेंगे।
आपने धैर्यपूर्वक पूरा पढ़ा इसके लिए बहुत-बहुत धन्यवाद।
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