Thursday 12 January 2017

" पुरुष वनाम्‌ स्त्री " ("Men vs. Women")

"Men vs. Women" (Author: Rajeev Ranjan)

                 
                                       मेरे पिछले लेख के पढ़ने के बाद मेरे कुछ मित्रों ने मेल करके मुझे बताया की, आप पुरुष होकर आपने अपने लेख में एक पुरुष को नीचा दिखाया है। मेरा उनसे विनम्र पुर्वक निवेदन है कि ऐसा नहीं है, बस हम मानने को तैयार नहीं है। चलिए मैं आप से इस लेख में कुछ सवाल पुछता हुँ, कोशिश कीजिएगा कि उसका उत्तर आप ईमानदारी पूर्वक सोंचे। आप ने कितने पुरुष को देखा है जिसे गर्भ में ही मार दिया गाया हो, क्या हुआ उत्तर सोंच नहीं पा रहे हैं। सच्चाई तो यह है कि स्त्रियों को जन्म के पुर्व से ही तिरस्कार किया जाता है। कहीं गर्भ में ही लिंग परिक्षण कराकर मार दिया जाता है तो कहीं जन्म होने पर दूध में डुबोकर या फिर अफीम खिलाकर मार दिया जाता है। कहीं-कहीं तो जीवित अवस्था में ही झाडियाँ या कुडेदान में फेंक दिया जाता है या फिर जमीन में गाड़ दिया जाता है। अगर जीवित रहती भी है तो उसे घर में ही लिंग-भेद का शिकार होना पडता है वह चाहे खान-पान हो या आजादी या फिर वस्त्रों को ही लेकर क्यों न हो। वहीं घर के कामों में भी लड़कियों  को ही सम्मिलित किया जाता है लडकों को नहीं। अगर लडका रो दे तो उसे लड़की कहा जाता है। कहीं-कहीं जो अपने आप को सभ्य कहते हैं वे भी लड़कियों को बेटा कह कर संबोधित करते हैं। मेरे ख्याल से लडकियों को बेटा कहना भी उनका तिरस्कार है क्योंकि इससे यह साबीत होता है कि बेटे, लडकियों से बेहतर होते हैं। 
                         आपने कितने ऐसे पुरुष के बारे में सूना है जिनका महिलाओं द्वारा बलात्कार किया गया है या करने की कोशिश कि गयी हो, कहीं सूना है कि अमूक लडके के साथ चलती बस, चालती ट्रेन में .............। बलात्कारी तो हमला करके छोड़ देता है लेकिन उसके वाद स्त्री का जीना मुश्किल तो समाज करता है , ईज्जत लूट गयी, अस्मत तार-तार हो गया या वो थी ही इसी काविल, हम हीं चिल्लाते हैं। क्या कानून, पुलिस व न्यायालय ने समज को पीडिता का वहिष्कार करने, उसे ज्यादा बेइज्जत करने के लिए वाध्य किया हुआ है, कोई ये नहीं सोंचता की, इज्जत तो बलात्कारी की लुटी है। मुझे नोएडा की एक घटना याद आ रही है जहाँ कुछ लड़के ने मिलकर एक बच्ची के साथ ............... और एक लड़के के अभिभावक से जब मिडिया में इसके बारे में पुछा गया तो उनका जबाब था :- रेप ही किया ना क्या हो गया।    
                        बलात्कारी शरीर व मन को जख्मी करता है पर समाज तो जीवन व जीने की इच्छा को ही खत्म कर देता है। मैं हमेशा यही कहता हूँ कि अगर आपको किसी के दर्द को समझना हो तो ईमानदारी पूर्वक आप अपने आप को कुछ पल के लिए ही सही उस घटना से जोड़ कर देखें तो शायद उस दर्द या समस्या को ठिक से समझ पायेंगे।
                        आपके साथ कितनी बार ऐसा हुआ है, जब आप घर से निकलें हों व लड़कियों की फब्तियां का सामना करना पड़ा है, या आपको गिद्ध जैसे नोंच खाने की आँखों से घुरा गया है। मेरे एक मित्र हैं हरियाणा (सिरसा) के उनके एक मित्र है जिनका नाम मैं यहाँ पर लेना नहीं चाहुँगा लेकिन जब भी हमलोग साथ घुमने जाया करते थे तब हमलोग यह देख कर दंग रह जाते थे कि कैसे कोई इस तरह से घुर भी सकता है। वे किसी स्त्री को  नीचे से उपर इस प्रकार घुरते है जैसे इससे पहले उन्होंने किसी स्त्री को देखा ही नहीं हो। आपने कई बार चौराहे , सडक या ऐसे चाय की दुकान, स्टॉलों पर पुरुषों (बच्चे से लेकर मरनावस्था के बुढे तक) को देखा होगा जो स्त्रियों पर फब्तियां कसा करते हैं, उनमें से कई ऐसे होते है जो जब तक आँखों से ओझल न हो जाए तब तक लोलूप आँखों से घुरते ही जाते हैं।
                         आपने कितने ऐसे पुरषों के बारे में सुना या देखा है जिनपर स्त्रियों द्वारा तेजाब फेंका गया है  या चेहरे पर ब्लेड मारा गया है। शादी जैसे नाजुक छण में भी ऐसी कितनी स्त्रियां है जिनसे यह पूछा जाता है कि आपको यह दूल्हा पसन्द है या नहीं। हमारी संस्कृति तो कहती है भाई लड़की हो तो 'गौ' होनी चाहिए, उसे जिस खूँटे बाँध दो वहाँ आँखें मूँद कर बँधी रहनी चाहिए, अगर घर में पिटे भी तो घर से बाहर आवाज नहीं निकले। क्या पंचाली से यह पूछा गया था कि आपकी मर्जी क्या है नहीं, वल्कि उसपर जबरन पाँच पतियों को थोंपा गया था। वर्तमान में भी ज्यादा कुच्छ नहीं बदला है। 
                        जब महिलायें घर से काम करने के लिए बाहर निकलती है तो लोगों की एक बडी भिड़ उन्हें यह कहती है कि यह वैसी होगी ही। हमारी संस्कृति कहती है की पूरे खानदान की इज्जत स्त्री के ही हाथों में है चाहे पुरुष ..........। कहीं भी लड़ायी-झगड़े हो गालियाँ तो माँ, बहन की ही देंगे। कहीं भी युद्ध हो सबसे ज्यादा भुगतना स्त्रियों को ही पड़ता है । स्वतंत्रता के समय स्त्रियों का किस हैवानियत के साथ .............। आपने अगर सआदत हसन मंटो का लेख ' खोल दो ' पढ़ा होगा तो इसकी एक झलक वहाँ देखने को मिलती है । अगर नहीं पढ़े है तो कोई बात नहीं मैं कोशिश करूंगा की अपने अगले लेख में लिखूँ।
                         आपने धैर्यपूर्वक पूरा लेख पढ़ा इसके लिए बहुत-बहुत धन्यवाद।