Sunday, 19 February 2017

धर्म और जाति के नाम पर वोट मांगना असंवैधानिक



सर्वोच्च न्यायालय ने 2 जनवरी, 2017 को एक ऐतिहासिक निर्णय सुनते हुए, राजनितिक दल द्वारा धर्म और जाति के नाम पर वोट मांगने को असंवैधानिक करार दियाभारत के मुक्य न्यायाधीश टीएस ठाकुर की अध्यक्षता वाली संविधान पीठ ने प्रतिनिधित्व अधिनियम 1951, (आरपी) की धारा-123(3) के आधार पर यह निर्णय दिया
शीर्ष न्यायालय ने अपने निर्णय में कहा है कि धर्म, जाति, मत और संप्रदाय के नाम पर वोट नहीं माँगा जा सकता, इन आधारों पर वोट मांगना चुनाव कानूनों के तहत भ्रष्ट व्यवहार होगा, जिसकी अनुमति नहीं है, ऐसा करने वाले उम्मीदवार/उम्मीदवारों का चुनाव रद्द किया जा सकता है, सीजेआई की अध्यक्षता वाली सात न्यायाधीशों की पीठ  ने 4:3 के अनुपात से निर्णय दिया है
आरपी एक्ट, 1951 में भ्रष्ट व्यवहार को परिभाषित करने वाली धारा-123(3० में प्रयुक्त शब्द 'उसका धर्म' के सन्दर्भ में सीजेआई सहित तीन अन्य न्यायाधीशों एमबी लोकुर एसए बोब्डे और एलएन राव ने तीन के मुकाबले चार बहुमत से निर्णय सुनाया है, 'इसका धर्म' शब्द का निहितार्थ मतदाताओं, उम्मीदवारों और उनके एजेण्टों आदि सहित सभी के धर्म और जाति से है, न्यायाधीशों की पीठ ने यह निर्णय हिन्दुत्व मामलें में विभिन्न पक्षों और विपक्षों की विस्तृत सुनवाई के बाद दिया है

निर्णय के अन्य महत्त्वपूर्ण बिंदु
  • संविधान में राजनीति और धर्म को आपस में मिश्रित नहीं किए जाने का निर्देश।
  • धर्मनिरपेक्ष शब्द होने के कारण किसी को भी किसी भी धार्मिक संप्रदाय से जुड़ने का अधिकार।
  • चुनावों की पूरी प्रक्रिया धर्मनिरपेक्ष हो।
  • कोई भी सरकार किसी एक धर्म के साथ विशेष व्यवहार नही कर सकती और धर्म विशेष के साथ स्वयं को नही जोड़ सकती।
  • भगवान और मनुष्य का सम्बन्ध निजी मामला है, इसमें राज्य का दखल प्रतिबंधित है।
तीन जजों का अल्पमत

तीन जज युयु ललित, एके गोयल और डीवाई चन्द्रचुङ का अल्पमत यह था कि 'उसका धर्म' का अभिप्राय सिर्फ उम्मीदवार के धर्म से है, वहीं, पीठ ने कहा कि संविधान में कही नही लिखा है, की धर्म के नाम पर बहस नहीं हो सकती, पीठ ने कहा, इस मामले में कोर्ट को हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए और कानून बनाने मामला संसद पर छोड़ देना चाहिए

धारा-123(3) में क्या?

धारा-123(3) में लिखा हुआ है कि केवल उम्मीदार ही अपने धर्म के आधार पर वोट नहीं मांग सकता है, लेकिन उसके एजेंट को धर्म के आधार पर वोट मांगने में कोई परेशानी नहीं है
पृष्ठभूमि वर्ष 1999 में सर्वोच्च अदालत ने जनप्रतिनिधत्व कानून के तहत दोषी पाए जाने पर कार्रवाई की थी, हिन्दुत्व के नाम पर मतदान करने को कहा था

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