ऐसे विकास जो वर्तमान पीढ़ी की आवश्यकताओं की पूर्ति इस प्रकार से करता है कि भावी पीढ़ी को अपनी आवश्यकताएँ पूरी करने के लिये किसी प्रकार का समझौता न करना पड़े, इसे सतत विकास या धारणीय विकास (Sustainable development) कहा जाता है। इस सतत विकास को हासिल करने के लिये वर्ष 2015 में संयुक्त राष्ट्र में महत्त्वाकांक्षी ‘सतत विकास लक्ष्य’ प्रस्तुत किये गए। इनमें 17 Goals एवं 169 targets निर्धारित किये गए हैं जो वर्ष 2016-2030 तक के लिये लक्षित है।
भारत के समक्ष सतत विकास से जुड़ी चुनौतियाँ:-
- संकेतकों को परिभाषित करनाः हमारी नीति निर्धारण प्रक्रिया की एक बड़ी कमी यह रही है कि सतत विकास से संबंधित परिणामों के आकलन के लिये प्रासंगिक संकेतकों को ठीक प्रकार से परिभाषित नहीं किया गया है।
- वित्त मुहैया करानाः केंद्र सरकार द्वारा सामाजिक क्षेत्र में खर्च में कटौती किये जाने के बाद अब राज्यों पर इसे पूरा करने की जिम्मेदारी आ गई है और राज्यों के पास वित्त की अपर्याप्तता के कारण इन लक्ष्यों को पूरा करना एक चुनौतिपूर्ण कार्य होगा।
- निगरानी और जिम्मेदारीः इन लक्ष्यों को पूरा करने की दिशा में प्रगति की निगरानी का जिम्मा नीति आयोग पर है लेकिन इस संबंध में उचित संरचनात्मक तंत्र का अब तक विकास नहीं हो पाया है।
- प्रगति मापनः आँकड़ों एवं सूचना की अपर्याप्त उपलब्धता, प्रशासनिक लचरता एवं राजनीतिक इच्छा शक्ति की कमी के कारण इन लक्ष्यों में प्रगति का मापन उचित रूप से नहीं हो पा रहा है।
सतत विकास लक्ष्यों को हासिल करने की दिशा में किये जा रहे प्रयासः-
- भारत सरकार ने सतत विकास लक्ष्यों के कार्यान्वयन पर निगरानी रखने तथा इनके समन्वय की जिम्मेदारी नीति आयोग को सौंपी है जिसने सभी लक्ष्यों का अध्ययन कर उन्हें सबंधित मंत्रालयों में बाँट दिया और उनकी जवाबदेहिता सुनिश्चित कर दी।
- सांख्यिकी और कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय (MSPI) को संबंधित राष्ट्रीय संकेतक तैयार करने का कार्य सौंपा गया।
- भारतीय संसद द्वारा ‘अध्यक्षीय शोध पहल’ (Speaker's Research Initiative) नामक एक मंच स्थापित किया गया है जो सतत विकास लक्ष्यों से संबंधित मुद्दों पर सांसदों द्वारा इस क्षेत्र के विशेषज्ञों के साथ परामर्श को सुविधाजनक बनाता है।
- UNDP से संबंधित सभी कार्यक्रम सतत विकास लक्ष्यों को ध्यान में रखकर ही बनाए जाते हैं।
- संघीय ढाँचे में सतत विकास लक्ष्यों की संपूर्ण सफलता के लिये राज्यों की भूमिका भी महत्त्वपूर्ण है अतः सभी राज्यों से कहा गया है कि वे सतत विकास लक्ष्यों पर अपने दृष्टि-पत्र तैयार करें।
यद्यपि सतत विकास लक्ष्यों को पाने की दिशा में भारत की रफ्तार काफी धीमी है किंतु इरादे मजबूत हैं और भारत इस दिशा में सकारात्मक प्रयास कर रहा है। फिर भी संपूर्ण विकास के हेतु लोगों की आकांक्षाएँ पूरी करने के लिये पर्यावरण को संरक्षित रखते हुए राष्ट्रीय, राज्यीय और स्थानीय तीनों स्तरों पर प्रयास किये जाने की आवश्यकता है।