Sunday, 15 October 2017

कहावतें तथा लोकोक्तियाँ


  • मानो तो देव, नहीं तो पत्थर – विश्वास ही फलदायक 
  • आम का आम गुठली का दाम – सब तरह से लाभ-ही-लाभ 
  • घर की मुर्गी दाल बराबर – घर की वस्तु का कोई आदर नहीं करना 
  • बिल्ली के भाग्य से छींका ​(सिकहर) टूटा – संयोग अच्छा लग गय 
  • ऊँचे चढ़ के देखा, तो घर-घर एकै लेखा – सभी एक समान 
  • रोजा बख्शाने गये, नमाज लगे पड़ी – लाभ के बदले हानि 
  • मुँह में राम, बगल में छुरी – कपटी 
  • इस हाथ दे, उस हाथ ले – कर्मों का फल शीघ्र पाना 
  • मोहरों की लूट, कोयले पर छाप – मूल्यवान वस्तुओं को छोड़कर तुच्छ वस्तुओं पर ध्यान देना 
  • गुड़ खाय गुलगुले से परहेज – बनावटी परहेज 
  • नाम बड़े, पर दर्शन थोड़े – गुण से अधिक बड़ाई
  • लश्कर में ऊँट बदनाम – दोष किसी का, बदनामी किसी की 
  • उल्टा चोर कोतवाल को डाँटे – अपराधी ही पकड़नेवाली को डाँट बताये 
  • दुधारु गाय की दो लात भी भली – जिससे लाभ होता हो, उसकी बातें भी सह लेनी चाहिए 
  • बैल का बैल गया नौ हाथ का पगहा भी गया – बहुत बड़ा घाटा 
  • ऊँट के मुँह में जीरा – मरूरत से बहुत कम
  • न रहेगा बाँस, न बजेगी बाँसुरी – झगड़े के कारण को नष्ट करना
  • भैंस के आगे बीन बजावे, भैंस रही पगुराय – मूर्ख को गुण सिखाना व्यर्थ है 
  • खेत खाये गदहा, मार खाये जोलहा – अपराध करे कोई, दण्ड मिले किसी और को 
  • बेकार से बेगार भली – चुपचाप बैठे रहने की अपेक्षा कुछ काम करना 
  • खरी मजूरी चोखा काम – अच्छे मुआवजे में ही अच्छा फल प्राप्त होना 
  • नौ की लकड़ी नब्बे खर्च – काम साधारण, खर्च अधिक 
  • बड़े मियाँ तो बड़े मियाँ, छोटे​ मिया सुभान अल्लाह – बड़ा तो जैसा है, छोटा उससे बढ़कर है
  • एक पंथ दो काज – एक नहीं, दो लाभ 
  • दूध का जला मट्ठा भी फूँक-फूँक कर पीता है – एक बार धोखा खा जाने पर सावधान हो जाना 
  • बोये पेड़े बबूल के आम कहाँ से होय – जैसी करनी, वैसी भरनी 
  • एक तो चोरी दूसरे सीनाजोरी – दोष करके न मानना 
  • नीम हकीम खतरे जान – अयोग्य से हानि
  • भइ गति साँप-छछूँदर केरी – दुविधा में पड़ना 
  • कबीरदास की उलटी बानी, बरसे कंबल भींगे पानी – प्रकृतिविरुद्ध काम 
  • नाचे कूदे तोड़े तान, ताको दुनिया राखे मान – आडम्बर दिखानेवाला मान पाता है
  • तीन कनौजिया, तेरह चूल्हा – जितने आदमी उतने विचार 
  • पानी पीकर जात पूछना – कोई काम कर चुकने के बाद उसके औचित्य पर विचार करना 
  • खोदा पहाड़ निकली चुहिया – कठिन परिश्रम, थोड़ा लाभ 
  • पराधीन सपनेहुँ सुख नाहीं – पराधीनता में सुख नहीं 
  • घड़ी में घर जले, नौ घड़ी भद्रा – हानि के समय सुअवसर-कुअवसर पर ध्यान न देना 
  • कहीं का ईंट कहीं का रोड़ा, भानुमति ने कुनबा जोड़ा – इधर-उधर से सामान जुटाकर काम करना 
  • पराये धन पर लक्ष्मीनारायण – दूसरे का धन पाकर अधिकार जमाना 
  • थूक कर चाटना ठीक नहीं – देकर लेना ठीक नहीं, बचन-भंग करना, अनुचित 
  • गाछे कटहल, ओठे तेल – काम होने के पहले ही फल पाने की इच्छा 
  • गोद में छोरा नगर में ढिंढोरा – पास की वस्तु का दूर जाकर ढूँढ़ना 
  • गरजे सो बरसे नहीं – बकवादी कुछ नहीं करता 
  • घर का फूस नहीं, नाम धनपत – गुण कुछ नहीं, पर गुणी कहलाना 
  • घर की भेदी लंका ढाए – आपस की फूट से हानि होती हे 
  • घी का लड्डू टेढ़ा भला – लाभदायक वस्तु किसी तरह की क्यों न हो 
  • चोर की दाढ़ी में तिनका – जो दोषी होता है वह खुद डरता रहता है 
  • पंच परमेश्वर – पाँच पंचों की राय 
  • तीन लोक से मथुरा न्यारी – निराला ढंग 
  • तुम डाल-डाल तो हम पात-पात – किसी की चाल को खूब समझते हुए चलना 
  • धोबी का कुत्ता न घर का न घाट का – निकम्मा, व्यर्थ इधर-उधर डोलनेवाला
  • ऊपर-ऊपर बाबाजी, भीतर दगाबाजी – बाहर से अच्छा, भीतर से बुरा
  • आप डूबे जग डूबा – जो स्वंय बुरा होता है, दूसरों को भी बुरा समझता है 
  • अधजल गगरी छलकत जाय – थोड़ी विद्या, धन या बल होने पर इतराना 
  • हँसुए के ब्याह में खुरपे का गीत – बेमौका 
  • बकरे की माँ कब तक खैर मनायेगी – भय की जगह पर कब तक रक्षा होगी 
  • अंधों के आगे रोना, अपना दीदा खोना – निर्दयी या मूर्ख के आगे दु:खड़ा रोना बेकार होता है 
  • ओछे की प्रीत बालू की भीत – नीचों का प्रेम क्षणिक 
  • अपनी-अपनी डफली, अपना-अपना राग – परस्पर संगठन या मेल न रखना 
  • सत्तर चूहे खाके बिल्ली चली हज को – जन्म भर बुरा करके अन्त में धर्मात्मा बनना 
  • बाँझ क्या जाने प्रसव की पीड़ा – जिसको दु:ख नहीं हुआ है वह दूसरे के दु:ख को समझ नहीं सकता
  • अपनी करनी पार उतरनी – किये का फल भोगना 
  • कहे खेत की, सुने खलिहान की – हुक्म कुछ और करना कुछ और 
  • आगे कुआँ, पीछे खाई – हर तरफ हानि का आशंका 
  • सीधी उँगली से घी नहीं निकलता – सिधाई से काम नहीं होता 
  • गाँव का जोगी जोगड़ा, आन गाँव का सिद्ध – बाहर के व्यक्तियों का सम्मान, पर अपने यहाँ के व्यक्तियों की कद्र नहीं 
  • आग लगन्ते झोंपड़ा जो निकले सो लाभ – नष्ट होती हुई वस्तुओं में से जो निकल आये वह लाभ ही है 
  • दमड़ी की बुलबुल, नौ टका दलाली – काम साधारण, खर्च अधिक 
  • ऊँट बहे और गदहा पूछे कितना पानी – जहाँ बड़ों का ठिकाना नहीं, वहाँ छोटों का क्या कहना 
  • सब धान बाईस पसेरी – अच्छे-बुरे सबको एक समझना 
  • एक अनार सौ बीमार – एक वस्तु को सभी चाहनेवाले 
  • आये थे हरि-भजन को ओटन लगे कपास – करने को तो कुछ आये और करने लगे कुछ और 
  • साँप मरे पर लाठी न टूटे – अपना काम हो जाय पर कोई हानि भी न हो 
  • ईश्वर की माया, कहीं धूप कहीं छाया – कहीं सुख, कहीं दु:ख 
  • रोग का घर खाँसी, झगड़े घर हाँसी – अधिक मजाक बुरा 
  • आगे नाथ न पीछे पगहा – अपना कोई न होना, घर का अकेला होना 
  • चूहे घर में दण्ड पेलते हैं – अभाव-ही-अभाव 
  • पूछी न आछी, मैं दुलहिन की चाची – जबरदस्ती किसी के सर पड़ना 
  • घर में दिया जलाकर मसजिद में जलाना – दूसरे को सुधारने के पहले अपने को सुधारना 
  • नक्कारखाने में तूती की आवाज – सुनवाई न होना 
  • मान न मान मैं तेरा मेहमान – जबरदस्ती किसी के गले पड़ना 
  • लेना-देना साढ़े बाईस – सिर्फ मोल-तोल करना
  • किसी का घर जले, कोई तापे – दूसरे का दु:ख में देखकर अपने को सुखी मानना 
  • ताड़ से गिरा तो खजूर पर अटका – एक खतरे में से निकलकर दूसरे खतरे में पड़ना
  • पहले भीतर तब देवता-पितर – पेट-पूजा सबसे प्रधान
  • मार-मार कर हकीम बनाना – जबरदस्ती आगे बढाना 
  • माले मुफ्त दिले बेरहम – मुफ्त मिले पैसे को खर्च करने में ममता न होना 
  • उद्योगिनं पुरुषसिंहनुपैति लक्ष्मी – उद्योगी को ही धन मिलता है 
  • काबुल में क्या गदहे नहीं होते – अच्छे-बुरे सभी जगह हैं
  • मियाँ-बीवी राजी तो क्या करेगा काजी – जब दो ​व्यक्ति परस्पर किसी बात पर राजी हों तो दूसरे को इसमें क्या 
  • नौ नगद, न तेरह उधार – अधिक उधार की अपेक्षा थोड़ा लाभ अच्छा
  • ऊधों का लेना न माधो का देना – लटपट से अलग रहना
  • आधा तीतर आधा बटेर – बेमेल स्थिति
  • आग लगाकर जमालो दूर खड़ी – झगड़ा लगाकर अलग हो जाना
  • सारी रामायण सुन गये, सीता किसकी जाये (जोरू) – सारी बात सुन जाने पर साधारण सी बात का भी ज्ञान न होना
  • मन चंगा तो कठौती में गंगा – हृदय पवित्र तो सब कुछ ठीक 
  • अशर्फी की लूट और कोयले पर छाप – मूल्यवान वस्तुओं को नष्ट करना और तुच्छ को सँजोना 
  • कहाँ राजा भोज कहाँ भोजवा (गंगू) तेली – छोटे का बड़े के साथ मिलान करना
  • इतनी-सी जान, गज भर ही जबान – छोटा होना पर बढ़-बढ़कर बोलना
  • हंसा थे सो उड़ गये, कागा भये दीवान – नीच का सम्मान 
  • भागते भूत की लँगोटी ही सही – जाते हुए माल में से जो मिल जाय वही बहुत है
  • अपना ढेंढर न देखे और दूसरे की फूली निहारे – अपना दोष न देखकर दूसरों का दोष देखना
  • गुरु गुड़ चेला चीनी – गुरु से शिष्य का ज्यादा काबिल हो जाना 
  • हाथी चले बाजार, कुत्ता भूँके हजार – उचित कार्य करने में दूसरों की निन्दा की परवाह नहीं करनी चाहिए
  • आँख का अंधा नाम नयनसुख – गुण के विरुद्ध नाम 
  • देशी मुर्गी, विलायती बोल – बेमेल काम करना 
  • ईंट का जवाब पत्थर – दुष्ट के साथ दुष्टता करना
  • बन्दर क्या जाने अदरक का स्वाद – मूर्ख गुण की कद्र करना नहीं जानता 
  • मँगनी के बैल के दाँत नहीं देखे जाते – मुफ्त मिली चीज पर तर्क व्यर्थ 
  • आप भला तो जग भला – स्वयं अच्छे तो संसार अच्छा 20. चमड़ी जाय, पर दमड़ी न जाय – महा कंजूस 
  • हाथ कांगन को आरसी क्या? – प्रत्यक्ष के लिए प्रमाण क्या 
  • एक तो करेला आप तीता दूजे नीम चढ़ा – बुरे का और बुरे से संग होना 
  • काला अक्षर भैंस बराबर – निरा अनपढ़ 
  • दमड़ी की हाँड़ी गयी, कुत्ते की जात पहचानी गयी – मामूली वस्तु में दूसरे की पहचान 
  • हाथी के दाँत दिखाने के और, खाने के और – बोलना कुछ, करना कुछ 
  • ओस चाटने से प्यास नहीं बूझती – अधिक कंजूसी से काम नहीं चलता 
  • ऊँची दूकान फीका पकवान – बाहर ढकोसला भीतर कुछ नहीं 
  • रस्सी जल गयी पर ऐंठन न गयी – बुरी हालत में पड़कर भी अभिमान न त्यागना 
  • का बर्षा जब कृषि सुखाने – मौका बीत जाने पर कार्य करना व्यर्थ है
  • तेली का तेल जले और मशालची का सिर दुखे (धाती फाटे) – खर्च किसी का हो और बुरा किसी और को मालू हो 
  • बूड़ा वंश कबीर का उपजा पूत कमाल – श्रेष्ठ वंश में बुरे का पैदा होना 
  • लूट में चरखा नफा – मुफ्त में जो हाथ लगे, वही अच्छा 
  • एक म्यान में दो तलवार – एक स्थान पर दो उग्र विचार वाले 
  • ठठेरे-ठठेरे बदलौअल – चालाक को चालक से काम पड़ना 
  • न देने के नौ बहाने – न देने के बहुत-से बहाने 
  • मेढ़क को भी जुकाम – ओछे का इतराना 
  • ऊँट किस करवट बैठता है – किसकी जीत होती है 
  • काठ की हाँड़ी दूसरी बार नहीं चढ़ती – कपट का फल अच्छा नहीं होता
  • मियाँ की दौड़ मस्जिद तक – किसी के कार्यक्षेत्र या विचार शक्ति का सीमित होना 
  • नाच न जाने आँगन टेढ़ा – खुद तो ज्ञान नहीं रखना और सामग्री या दूसरों को दोष देना