संविधान के अनुच्छेद 280 के अनुसार, प्रत्येक 5 वर्ष में या आवश्यकता पड़ने पर एक केंद्रीय वित्त आयोग का गठन देश के राष्ट्रपति द्वारा किया जाएगा। संसद विधि द्वारा आयोग के सदस्यों की अर्हता निर्धारित करेगी। केंद्रीय वित्त आयोग के निम्नलिखित प्रमुख कार्य हैं –
- केंद्र व राज्यों के बीच करों का बँटवारा करना।
- भारत की संचित निधि में से राज्यों हेतु अनुदान के लिये सिफारिश करना।
- केंद्र व राज्यों के बीच वित्तीय संबंधों से जुड़े अन्य किसी मामले की देखरेख।
शीघ्र ही 15वें केंद्रीय वित्त आयोग का गठन होने जा रहा है। नए आयोग के समक्ष निम्नलिखित चुनौतियाँ होंगी –
- देश के कुछ राज्यों में पर्याप्त मात्रा में निजी निवेश होता है, वहीं कुछ राज्यों में निजी निवेश की कमी है। निजी निवेश के इस असंतुलित वितरण के कारण राज्यों के बीच असमानता बढ़ रही है। नए आयोग को बढ़ती असमानता पर गंभीरता से विचार करना होगा।
- विद्युत-वितरण कंपनियों के आर्थिक पुनरुद्धार के लिये केंद्र द्वारा शुरू की गई “उदय” योजना का भार राज्यों की वित्तीय स्थिति पर पड़ रहा है। आयोग को इस हेतु भी उपाय करने होंगे।
- देश के कई राज्यों के समक्ष आज सूखा, बाढ़, भूस्खलन, चक्रवात जैसी कई प्राकृतिक आपदाओं की चुनौती है। नए आयोग को आपदा प्रंबंधन के लिये राज्यों को समुचित कोष उपलब्ध कराने का प्रयत्न करना होगा।
- समावेशी विकास के लक्ष्यों को पूरा करने और जलवायु-परिवर्तन से निपटने की सरकारी प्रतिबद्धताओं की पूर्ति हेतु एक सुसंगत वित्तीय रणनीति बनाने पर ध्यान देना होगा।
- राज्यों के बीच करों के क्षैतिज वितरण के लिये अब तक लगभग 50 वर्ष पुरानी 1971 की जनगणना के आँकड़ों को आधार बनाया जाता रहा है। आयोग द्वारा अब 2011 की जनगणना के आँकड़ों को आधार रूप में लिया जा सकता है, परंतु दक्षिणी और पश्चिमी राज्यों को इससे होने वाले नुकसान का ध्यान भी आयोग को रखना होगा।
राज्यों की जनसंख्या, राजकोषीय स्थिति, वन क्षेत्र, आय में अंतर और क्षेत्रफल के आधार पर विभिन्न राज्यों के बीच संसाधनों का उचित आवंटन आवश्यक है। संसाधनों के संतुलित आवंटन द्वारा वित्त आयोग राज्यों और केंद्र के बीच टकराव को रोकने का काम करता है और अपने कर्त्तव्यों के निर्वहन के द्वारा देश में राजकोषीय संघवाद को सुनिश्चित करता है।