WHO के अनुसार उपेक्षित उष्णकटिबंधीय बीमारियाँ (NTD), वे बीमारियाँ होती हैं, जो उष्ण व उपोष्ण कटिबंध में स्थित ग्रामीण क्षेत्रों तथा शहरी क्षेत्रों की मलिन बस्तियों में निवास करने वाले गरीब लोगों को प्रभावित करती हैं। जापानी इंसेफलाइटिस, डेंगु बुखार, कुष्ठ रोग, क्लेमाइडिया, बुरुलाई अल्सर, चैगास बीमारी आदि NTD के उदाहरण हैं। राष्ट्रीय व क्षेत्रीय स्तर पर इन बीमारियों का प्रभाव इतना भयंकर होता है कि इन्हें गरीबी के चिरस्थायीकरण के लिये उत्तरदायी माना जाता है।
भारत में जापानी इंसेफलाइटिस-
- जापानी मस्तिष्क ज्वर (इंसेफलाइटिस) एक प्राणघातक संक्रामक बीमारी है, जो फ्लैविवायरस के संक्रमण से होती है। सूअर तथा जंगली पक्षी मस्तिष्क ज्वर के विषाणु के स्रोत होते हैं। क्यूलेक्स मच्छर इस बीमारी का वाहक होता है।
- जापानी इंसेफलाइटिस से प्रभावित क्षेत्रों में भारत के उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखण्ड, ओडिसा, पश्चिम-बंगाल, असम, मेघालय, मणिपुर, त्रिपुरा तथा आंध्र प्रदेश राज्य आते हैं। वर्तमान में पूर्वी उत्तर प्रदेश में यह बीमारी एक गंभीर स्वास्थ्य समस्या बनी हुई है।
- पूर्वी उत्तर प्रदेश के गोरखपुर तथा कुशीनगर जिले इस बीमारी से सर्वाधिक प्रभावित क्षेत्र हैं। इस बीमारी का प्रकोप जुलाई से नवम्बर माह के अंत तक जारी रहता है। वयस्कों की तुलना में बच्चे इस बीमारी के ज्यादा शिकार होते हैं।
- इस बीमारी के वाहक क्यूलेक्स मच्छर आमतौर पर स्थिर जलाशयों, जैसे- पोखर, तालाब, धान के खेतों में प्रजनन करते हैं।
- हरित क्रांति के फलस्वरूप सिंचाई-सुविधाओं के विस्तार, धान की फसल के क्षेत्रफल में वृद्धि तथा सिंचाई जल के कुप्रबंधन के कारण होने वाले जल-जमाव और जलवायु परिवर्तन के कारण बढ़ती उष्णता इस बीमारी के पूर्वी उत्तर प्रदेश में प्रकोप के कारण हैं।
- इन इलाकों की मानव बस्तियों में होने वाले सूअर-पालन की भी इस बीमारी के विकास और संचार में भूमिका होती है। इन क्षेत्रों में झीलों व दलदली भूमि की बाहुल्यता इसके विषाणुओं से ग्रस्त प्रवासी पक्षियों के आश्रय स्थलों का काम करती हैं।
जापानी इंसेफलाइटिस पर नियंत्रण हेतु सुझाव-
- इस बीमारी के प्रकोप वाले क्षेत्रों में शत-प्रतिशत टीकाकरण सुनिश्चित किया जाए।
- मच्छरों के लार्वा का भक्षण करने वाली इटली से आयातित “गैम्बूसिया एफिनिस” प्रजाति की मछली को झीलों, तालाबों, नहरों, धान के खेतों में वृहद् पैमाने पर छोड़ना चाहिये।
- “पिस्टिया लैंसीओलेटा व साल्विनिया मोलेस्टा” नामक जलीय पौधों की प्रजातियाँ, जो क्यूलेक्स मच्छरों के प्रजनन में सहायक होती हैं, को वर्षा ऋतु के दौरान जलाशयों से निकालकर नष्ट कर देना चाहिये।
- सूअर पालन मानव बस्तियों से दूर किया जाए तथा इन बस्तियों में स्वच्छता का विशेष ध्यान रखा जाए।
- मानव बस्तियों के आसपास जल-जमाव को हर हाल में रोका जाना चाहिये। खेतों में सिंचाई के दौरान जल प्रबंधन व नहरों की गाद की सफाई से जल-जमाव की स्थिति को रोका जा सकता है।