Saturday, 28 October 2017

पं. दीन दयाल उपाध्याय विज्ञान ग्राम संकुल परियोजना


विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग देश में ग्रामीण क्षेत्रों के उन्‍नयन और आर्थिक विकास के लिए अनेक पहलों पर अमल कर रहा है। कई उपयुक्‍त प्रौद्योगिकियां विकसित एवं प्रदर्शित की गई हैं और देश में अनेक संस्‍थानों पर प्रभावकारी ढंग से उपयोग में लाई गई हैं। विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी, पृथ्‍वी विज्ञान और पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्री डॉ. हर्षवर्धन ने आज ‘पंडित दीनदयाल उपाध्याय विज्ञान ग्राम संकुल परियोजना’ का शुभारंभ किया, जिसके तहत उत्‍तराखंड में क्‍लस्‍टर अवधारणा के जरिये सतत विकास के लिए उपयुक्‍त विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी संबंधी कदमों पर अमल करने का प्रयास किया जाएगा। मंत्री महोदय ने एक संवाददाता सम्‍मेलन को संबोधित करते हुए कहा कि यह परियोजना पंडित दीनदयाल उपाध्‍याय की सीख एवं आदर्शों से प्रेरित है, जिनकी जन्‍म  शताब्‍दी इस साल मनाई जा रही है। 
विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग (डीएसटी) ने उत्‍तराखंड में गांवों के कुछ क्‍लस्‍टरों को अपनाने और विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी के साधनों के जरिये समयबद्ध ढंग से उन्‍हें स्‍वयं-टिकाऊ क्‍लस्‍टरों में तब्‍दील करने की परिकल्‍पना की है। इस अवधारणा के तहत मुख्‍य बात यह है कि स्‍थानीय संसाधनों के साथ-साथ स्‍थानीय तौर पर उपलब्‍ध कौशल का उपयोग किया जाएगा और विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी का इस्‍तेमाल करते हुए इन क्‍लस्‍टरों को कुछ इस तरह से परिवर्तित किया जाएगा, जिससे कि वहां की स्‍थानीय उपज और सेवाओं में व्‍यापक मूल्‍यवर्धन संभव हो सके। इससे ग्रामीण आबादी को स्‍थानीय तौर पर ही पर्याप्‍त कमाई करने में मदद मिलेगी। इसके अलावा, स्‍थानीय समुदायों को रोजगारों एवं आजीविका की तलाश में अपने मूल निवास स्‍थानों को छोड़कर कहीं और जाकर बस जाने के लिए विवश नहीं होना पड़ेगा। उन्‍होंने कहा कि जब यह अवधारणा कुछ चुनिंदा क्‍लस्‍टरों में सही साबित हो जाएगी, तो इसकी पुनरावृत्ति देशभर में अनगिनत ग्रामीण क्‍लस्‍टरों में की जा सकती है।
                 
  • यह परियोजना उत्तराखंड के गांवों को आत्मनिर्भर बनाने तथा रोजगार की तलाश में हो रहे पलायन को रोकने में मदद करेगी।
  • यह परियोजना उत्तराखंड के चार क्लस्टरों गैंडीखाता, बजीरा, भिगुन, कौसानी के 60 गांवों में कार्यान्वित की जाएगी।
  • इस परियोजना के कार्यान्वयन की जिम्मेदारी ‘उत्तराखंड स्टेट काउंसिल ऑफ साइंस एंड टेक्नोलॉजी’ की है।
  • इस परियोजना के माध्यम से स्थानीय उत्पाद जैसे-दूध, शहद, मशरूम, हर्बल चाय, वनोत्पाद आदि का प्रसंस्करण करके मूल्य वृद्धि की योजना है।
  • परियोजना को पूर्णतया लागू करने के लिए विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग द्वारा तीन वर्ष का समय दिया जाएगा।
  • परियोजना के लिए केंद्र सरकार के विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग द्वारा 6.3 करोड़ रुपये की सहायता दी जाएगी।
  • परियोजना के पायलट चरण का उत्तराखंड में प्रयोग सफल होने पर इसे अन्य पहाड़ी राज्यों में भी लागू करने की योजना है।