इसमें कोई शक नहीं है कि रोबोटिक्स का वैश्विक श्रम बाजार पर व्यापक प्रभाव पड़ने वाला है, लेकिन प्रायः इसके नकारात्मक प्रभावों को लेकर ही चर्चा की जाती है, जैसे रोबोटिक्स से बड़ी संख्या में लोग बेरोजगार हो जाएंगे, यह विकृत उपभोक्तवाद को जन्म दे सकता है, आदि आदि। हालाँकि सच यह भी है कि रोबोटिक्स से श्रम बाजार की तस्वीर बदली जा सकती है। आज श्रम बाजार किस प्रकार से समस्याओं का सामना कर रहा है और क्या रोबोटों का राष्ट्रीयकरण इस समस्या का समाधान प्रस्तुत कर सकता है? इस लेख में हम इन्हीं बिन्दुओं पर चर्चा करेंगे।
वैश्विक श्रम बाजार में बदलाव अमानवीय क्यों?
- प्राचीन रोम में एक गुलाम को प्रतिदिन अधिकतम छह घंटे काम करना होता था, जबकि वर्ष का एक तिहाई हिस्सा उत्सवों आदि मनाने में बीत जाता था। मध्यकालीन युग में यूरोपीय श्रमिकों को भी प्रतिदिन छह घंटे ही कम करना होता था और धार्मिक समारोहों में लगभग 150 दिन खर्च होते थे।
- औद्योगिक क्रांति के बाद उत्पादन के तरीकों में व्यापक बदलाव आया, उपभोक्तावाद को बढ़ावा मिला और पूंजीवादी व्यवस्था के निर्माण को बल मिला। जैसे-जैसे इस औद्योगिक क्रांति का प्रसार हुआ, इसके साथ ही समूचे विश्व में अधिक से अधिक उत्पादन की होड़ मच गई। इन परिस्थितियों में मजदूरों से अमानवीय तरीके से काम लिया गया, जहाँ काम के घंटे निश्चित नहीं थे।
- जब भूमंडलीकरण का व्यापक प्रसार हो रहा था तो उड़ दौरान दुनिया के कई बड़े देशों में लोकतांत्रिक सरकारें थीं और श्रम बाजार का नियमन किया जा रहा था। फिर भी अधिक से अधिक लाभ प्राप्ति के उद्देश्य से स्थापित कंपनियों एवं उद्योगों में काम के घंटे लगातार 10-12 बने रहे और आज भी यही स्थिति बनी हुई है।
क्यों जरूरी है रोबोटों का राष्ट्रीयकरण?
- विदित हो कि रोबोटिक्स के कारण प्राप्त लाभों के समावेशी वितरण और रोबोट्स निर्माण एवं रख-रखाव संबंधी कार्यों के लिये प्रशिक्षण देकर प्रभावितों के एक बड़े समूह की आर्थिक जरूरतों को पूरा कर दिया जाता है।
- दरअसल, रोबोटिक्स अपनी उन्नत अवस्था में पहुँचेगा तो एक ऐसी व्यवस्था का निर्माण होगा, जहाँ मानव भी तकनीक की मदद से स्वयं को रोबोट के बराबर क्षमताओं से युक्त करना चाहेगा और इसका एक उन्नत बाजार तैयार होगा।
- सार यह कि रोबोटिक्स से सभी लाभान्वित होंगे। ऐसे में रोबोट्स को केवल निजी क्षेत्र तक सीमित रखने के बजाय इनका राष्ट्रीयकरण कर प्रत्येक व्यक्ति तक इनका लाभ पहुँचाना चाहिये।
क्यों उचित नहीं है रोबोटों का राष्ट्रीयकरण?
- गौरतलब है कि तकनीकी नवाचार से रोजगार पर नकारात्मक प्रभाव नहीं पड़ता बल्कि रोजगार के प्रकार बदल जाते हैं। ऐसे में जो इस परिवर्तन के हिसाब से खुद को ढाल लेते हैं उन्हें इसका नकारात्मक प्रभाव नहीं झेलना पड़ता।
- लेकिन, वे समूह जो एक निश्चित अवधि के भीतर अपनी क्षमता विकसित नहीं कर पाते उनके लिये सरकार को सामाजिक सुरक्षा सुनिश्चित करनी होती है।
- यदि रोबोट्स को सार्वजनिक संपति बना दिया गया तो सरकार के पास फण्ड की कमी हो सकती और आय का वह स्रोत खत्म हो सकता है जिसके जरिये सरकार प्रभावितों की सामाजिक सुरक्षा सुनिश्चित कर सकती है।
निर्णायक साबित हो सकता है रोबोट टैक्स?
- दरअसल, आज समूची दुनिया एक बदलाव के दौर से गुजर रही है जहाँ विनिर्माण में तकनीक और प्रौद्योगिकी की भूमिका बढ़ गई है और रोबोटिक्स इसमें सबसे अहम् है।
- इस संबंध में माइक्रोसॉफ्ट के संस्थापक बिल गेट्स का कहना है कि रोबोट्स अगर इंसानों की तरह नौकरी करते हैं तो उनसे भी कर्मचारियों की ही तरह टैक्स वसूलना चाहिये।
- तकनीकी नवाचार की इस सूनामी में हमारे रहने और कार्य करने के तरीकों में व्यापक बदलाव आएगा। रोबोटिक्स से उत्पादन और निर्माण के तरीकों में क्रांतिकारी परिवर्तन देखने को मिलेगा। एक अध्ययन के मुताबिक अकेले अमेरिका में अगले दो दशकों में डेढ़ लाख रोजगार खत्म हो जाएंगे।
- ध्यातव्य है कि रोजगार प्राप्त एक बड़ा तबका करों का भुगतान करता है, जिसका देश के विकास में उपयोग किया जाता है। अतः जब रोबोट मानवों का स्थान ले रहे हों तो उन्हें कर तो देना ही चाहिये।
- मान लिया जाए कि एक व्यक्ति 50,000 डॉलर की नौकरी एक कारखाने में कर रहा है, तो उसकी कमाई से देश आयकर तो प्राप्त करता ही है साथ में सामाजिक सुरक्षा कर आदि भी मिलता है। यदि उसका काम एक रोबोट करता है, तो उसे भी उसी स्तर पर “रोबोट टैक्स” देना चाहिये।
निष्कर्ष
- रोबोटिक्स एक ऐसी तकनीक है जिसमें मशीनें मानव को विस्थापित कर उसके अधिकतर कार्य करती हैं।
- मानवों का विस्थापन दोहरा अर्थ रखता है। यदि श्रम का विस्थापन हो तो वह मानव जाति के उत्थान में सहायक हो सकता है, जैसे- गहरी खतरनाक खानों में खुदाई करना, समुद्र की तलहटी में कार्य करना इत्यादि।
- लेकिन यदि रोबोटिक्स द्वारा रोज़गारों का ही विस्थापन होने लगे तो यह चिंता की स्थिति है और ऐसा होने की प्रबल संभावना है।
- गौरतलब है कि अमेरिका और पश्चिमी देशों में ‘रोबोटिक्स बनाम रोजगार’ एक व्यापक बहस का मुद्दा है, लेकिन रोबोट के उपयोग के मामले में भारत अभी बहुत पीछे है।
- हालाँकि, जिस तेजी से रोबोट बढ़ रहे हैं, यदि यह रुझान और पाँच-दस साल तक जारी रहा तो इससे भारत में रोजगार पर असर पड़ सकता है और रोबोट की वजह से उद्योग-कारोबार में कुछ नौकरियाँ खत्म हो सकती हैं।
- अतः वर्तमान में भारत को रोबोट्स के राष्ट्रीयकरण जैसी बातों से प्रभावित होने की जरूरत नहीं है। हालाँकि, श्रम बाजार को और मानवीय बनाने में रोबोट्स की भूमिका से इनकार भी नहीं किया जा सकता है।