बाल श्रम का प्रमुख कारण गरीबी है। गरीब अपने बच्चों से इसलिये मजदूरी करवाते हैं ताकि उन्हें आर्थिक सहायता मिल सके। दूसरी तरफ विभिन्न अध्ययनों से यह सिद्ध हो चुका है कि बाल श्रम के कारण गरीबी बढ़ती है।
दरअसल, बच्चे सस्ते श्रमिक होते हैं जिनसे वयस्क श्रमिकों के बजाय काफी कम मजदूरी में 15-20 घंटे तक काम कराया जाता है। ऐसे में नियोक्ता के लिये बाल श्रमिक ज्यादा लाभकारी होता है। अतः नियोक्ता बाल श्रमिकों को बढ़ावा देते हैं जिससे वयस्क श्रमिकों को रोजगार नहीं मिल पाता। इस प्रकार की बेरोजगारी के कारण गरीबी बढ़ती है।
साथ ही, बच्चों से इस आयु में मजदूरी करवाने से उनका स्वास्थ्य कमजोर रह जाता है, उनका संपूर्ण शारीरिक विकास नहीं हो पाता तथा वे शिक्षा से वंचित रह जाते हैं। इससे उनका कौशल विकास नहीं हो पाता और वे भविष्य में अकुशल श्रमिक ही बन पाते हैं। इससे एक तरफ उन्हें कम मजदूरी मिलती है और वे गरीब बने रहते हैं तो दूसरी तरफ देश के आर्थिक विकास में भी बाधा आती है।
नया बना ‘बाल श्रम (प्रतिषेध एवं विनियमन) अधिनियम, 2016’ दरअसल 1986 के बाल श्रम अधिनियम का संशोधित रूप है। अनेक विशेषज्ञों एवं सामाजिक कार्यकर्ताओं ने इसके प्रावधानों से बालश्रम के बढ़ने की आशंका जाहिर की। उनके तर्क निम्नलिखित हैं-
(i) नये अधिनियम में सरकार ने बालश्रम के लिये प्रतिबंधित खतरनाक उद्योगों की सूची 83 से घटाकर 3 कर दी।
(ii) इस नये अधिनियम में यह छूट दे दी गई है कि 14 साल तक के बच्चे भी पढ़ाई के साथ-साथ पारिवारिक उद्यमों में काम कर सकते हैं। इस अधिनियम में बच्चे के माता-पिता के अलावा नजदीकी रिश्तेदारों को भी परिवार का सदस्य माना गया है जबकि ज्यादातर मामलों में नजदीकी रिश्तेदार ही बच्चों से मजदूरी करवाते हैं।
(iii) इस अधिनियम के तहत पहली बार प्रकाश में आए बालश्रम के मामलों को ‘क्षमायोग्य अपराध (Compoundable offence)’ की श्रेणी में शामिल किया गया है। इससे जिला मजिस्ट्रेट को यह अधिकार मिल गया है कि वह बालश्रम कराने वाले को पहली बार पकड़ में आने पर महज जुर्माना लगाकर छोड़ सकता है।
बच्चे देश का भविष्य हैं। बच्चों के विकास के बिना किसी देश का दीर्घकालिक एवं टिकाऊ विकास नहीं हो सकता। अतः सुरक्षित और खुशहाल बचपन ही सशक्त भारत के निर्माण में सहायक होगा।